शासन व्यवस्था
नौसेना के स्वदेशीकरण का प्रयास
- 16 Apr 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:रक्षा क्षेत्र से संबंधित पहलें। मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण, रक्षा के स्वदेशीकरण का महत्त्व तथा संबंधित चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
रक्षा आयात में कटौती एवं घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयास के अनुरूप नौसेना विशेष रूप से हथियारों एवं विमानन से संबंधित वस्तुओं में स्वदेशीकरण के प्रयासों को तीव्र कर रही है।
- यूक्रेन में चल रहे युद्ध एवं रूसी हथियारों तथा उपकरणों पर भारतीय सेना की बड़े पैमाने पर निर्भरता के कारण स्वदेशीकरण के प्रयासों में और तेज़ी आई है।
- इससे पहले रक्षा मंत्रालय (MoD) ने 101 वस्तुओं की ‘तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण’ सूची जारी की है, जिसमें प्रमुख उपकरण/प्लेटफॉर्म शामिल हैं।
स्वदेशीकरण हेतु नौसेना के प्रयास:
- भारतीय नौसेना स्वदेशीकरण योजना 2015-2030:
- वर्ष 2014 में नौसेना ने उपकरण एवं हथियार प्रणाली के स्वदेशी विकास को सक्षम करने के लिये भारतीय नौसेना स्वदेशीकरण योजना (INIP) 2015-2030 को प्रख्यापित किया था।
- अब तक नौसेना ने इस योजना के तहत लगभग 3400 वस्तुओं का स्वदेशीकरण किया है, जिसमें 2000 से अधिक मशीनरी और बिजली पुर्जे, 1000 से अधिक विमानन पुर्जे और 250 से अधिक हथियार शामिल हैं।
- नौसेना उड्डयन स्वदेशीकरण रोडमैप 2019-22:
- मौजूदा नौसेना उड्डयन स्वदेशीकरण रोडमैप (NAIR) 2019-22 भी संशोधन के अधीन है।
- संशोधित NAIR 2022-27 में सभी तेज़ गति वाले विमान अनिवार्य पुर्जे और उच्च लागत वाले स्वदेशी मरम्मत उपकरणों को शामिल किया जा रहा है।
- फाइट कंपोनेंट (जो कि स्वयं हथियार हैं) पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि फ्लोट एवं मूव कंपोनेंट्स की तुलना में इस क्षेत्र में अभी और अधिक कार्य किया जाना है।
- फ्लोट कंपोनेंट के रूप में जहाज़ होता है, मूव कंपोनेंट्स में ‘प्रणोदन’ शामिल होता है तथा फाइट कंपोनेंट में हथियार और सेंसर शामिल होते हैं।
- स्वदेशीकरण समितियाँ:
- नौसेना विमानों के पुर्जों के स्वदेशीकरण की देखभाल के लिये चार आंतरिक स्वदेशीकरण समितियों का गठन किया गया है।
- नौसेना संपर्क प्रकोष्ठ:
- इसके अलावा विभिन्न स्थानों पर स्थित नौसेना संपर्क प्रकोष्ठों (NLCs) को 'स्वदेशीकरण प्रकोष्ठ' के रूप में नामित किया गया है।
- वर्तमान में 41 जहाज़ और पनडुब्बियांँ निर्माणाधीन हैं जिसमे से 39 भारत के शिपयार्ड में बनाए जा रहे हैं, जबकि सैद्धांतिक रूप से भारत में 47 जहाज़ों के निर्माण हेतु रक्षा मंत्रालय की मंजूरी प्राप्त है।
- वर्ष 2014 से आवश्यकता की स्वीकृति (Acceptance of Necessity- AoN) का 78%, और अनुबंध के 68% मूल्य के आधार पर भारतीय विक्रेताओं को प्रदान किये गए हैं।
- AoN ने टेंडर प्रक्रिया शुरू करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
- इसके अलावा विभिन्न स्थानों पर स्थित नौसेना संपर्क प्रकोष्ठों (NLCs) को 'स्वदेशीकरण प्रकोष्ठ' के रूप में नामित किया गया है।
- DRDO के साथ सहयोग::
- नौसेना, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) तथा उद्योग के साथ विकास की समयसीमा में कटौती हेतु कार्य कर रही है।
- कुछ फोकस क्षेत्रों में स्वदेशी डिज़ाइन और विकसित एंटी-सबमरीन हथियार, सेंसर, सैटकॉम, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरण, एंटी-शिप मिसाइल, मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल, युद्ध प्रबंधन प्रणाली, सॉफ्टवेयर, रेडियो, नेटवर्क एन्क्रिप्शन डिवाइस लिंक II संचार प्रणाली, पनडुब्बियों हेतु मुख्य बैटरी, सोनार प्रणाली, मिसाइलों और टॉरपीडो के घटक आदि शामिल हैं।
- नौसेना, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) तथा उद्योग के साथ विकास की समयसीमा में कटौती हेतु कार्य कर रही है।
- नौसेना नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन (NIIO):
- इसे अगस्त 2020 में लॉन्च किया गया। यह भारतीय नौसेना क्षमता विकास तंत्र के साथ शिक्षा और उद्योग के लिये एक लचीला व सुलभ इंटरफ़ेस प्रदान करता है।
- पिछले दो वर्षों में नौसेना कर्मियों द्वारा 36 बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) हेतु आवेदन दायर किये गए हैं।
- NIIO के निर्माण और 12 सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों (MSMEs) को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बाद से हर महीने दो से अधिक आईपीआर आवेदन दायर किये जा चुके हैं।
- नौसेना परियोजना प्रबंधन टीमों के तहत यूज़र इनपुट:
- नौसेना ने अब डीआरडीओ के क्लस्टर मुख्यालय में नौसेना परियोजना प्रबंधन टीमों के माध्यम से यूज़र इनपुटका उपयोग किया हैं और ऐसे दो क्लस्टर पहले से ही चालू हैं।
- ये भारतीय नौसेना की लड़ाकू क्षमता को विकसित करने हेतु चल रही 15 भविष्य की प्रौद्योगिकियों और 100 से अधिक DRDO परियोजनाओं के लिये प्रत्येक चरण में यूज़र इनपुट प्रदान करने हेतु DRDO प्रयोगशालाओं तथा उनके विकास सह-उत्पादन भागीदारों (Development cum Production Partners- DcPP) के साथ इंटरफेस (Interface) कर चुके हैं।
- मेक I और मेक II:
- खरीद प्रक्रिया के विभिन्न घरेलू विकास मार्गों के तहत नौसेना के 20 से अधिक मेक I और मेक II पर अधिक ज़ोर दिया जा रहा है।
- पूंजी अधिग्रहण की 'मेक' श्रेणी मेक इन इंडिया पहल की आधारशिला है जो सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की भागीदारी के माध्यम से स्वदेशी क्षमताओं का निर्माण करना चाहती है।
- 'मेक-आई' सरकार द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं को संदर्भित करता है, जबकि 'मेक-द्वितीय' उद्योग-वित्तपोषित कार्यक्रमों को कवर करता है।
- 'मेक-I भारतीय सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ लाइट टैंक और संचार उपकरण जैसे बड़े- प्लेटफॉर्मों के विकास में शामिल है।
- मेक-II श्रेणी में सैन्य हार्डवेयर का प्रोटोटाइप विकास या आयात प्रतिस्थापन के लिये इसका उन्नयन शामिल है जिसके लिये सरकारी धन उपलब्ध नहीं कराया जाता है।
- खरीद प्रक्रिया के विभिन्न घरेलू विकास मार्गों के तहत नौसेना के 20 से अधिक मेक I और मेक II पर अधिक ज़ोर दिया जा रहा है।
रक्षा का स्वदेशीकरण:
- परिचय:
- स्वदेशीकरण आत्मनिर्भरता और आयात के बोझ को कम करने के दोहरे उद्देश्य के लिये देश के भीतर किसी भी रक्षा उपकरण के विकास और उत्पादन की क्षमता है।
- रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता रक्षा उत्पादन विभाग के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
- रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO), रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (DPSUs) और निजी संगठन रक्षा उद्योगों के स्वदेशीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है तथा सशस्त्र बलों की रक्षा खरीद पर अगले पाँच वर्षों में लगभग 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने की उम्मीद है।
- संबंधित पहल:
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% की गई।
- आयुध निर्माणी बोर्डों का निगमीकरण।
- डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज।
- सृजन पोर्टल: स्वदेशीकरण हेतु वस्तुओं को खरीदने के लिये विक्रेताओं तक पहुँच प्रदान करना।