रूसी उपकरणों पर भारतीय सैन्य निर्भरता | 29 Oct 2021
प्रिलिम्स के लिये:विभिन्न भारतीय सैन्य उपकरण, CAATSA, SIPRI, ब्रह्मोस, सैन्य अभ्यास इंद्र मेन्स के लिये:भारत द्वारा विभिन्न देशों से आयात किये जाने वाले सैन्य उपकरण की स्थिति, भारत-रूस रक्षा संबंध |
चर्चा में क्यों?
मिलिट्री बैलेंस 2021 ( Military Balance 2021) के अनुसार, भारत के वर्तमान सैन्य शस्त्रागार में रूस-निर्मित या रूसी-तकनीक पर डिज़ाइन किये गए उपकरणों की भारी मात्रा है।
- मिलिट्री बैलेंस दुनिया भर के 171 देशों की सैन्य क्षमताओं और रक्षा अर्थशास्त्र का मूल्यांकन प्रतिवर्ष इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज (वैश्विक थिंक टैंक) द्वारा किया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट के बारे में:
- रूसी हथियारों और उपकरणों पर भारत की निर्भरता में काफी गिरावट आई है।
- हालाँकि भारतीय सेना रूसी आपूर्ति वाले उपकरणों के बिना प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकती और निकट भविष्य में भारत-रूस के मध्य शर्तों के आधार पर हथियार प्रणालियों पर भारत की निर्भरता बनी रहेगी।
- CAATSA रूस से सैन्य हथियार खरीदने वाले देश के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता है।
- भारत की रूस निर्मित S-400 वायु रक्षा प्रणाली खरीदने की योजना है, जो CAATSA की धारा 231 के तहत अमेरिकी प्रतिबंधों को प्रभावित कर सकती है।
- अमेरिकी प्रशासन की काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सेंक्शंस एक्ट (CAATSA) की समीक्षा की दृष्टि से यह रिपोर्ट महत्त्वपूर्ण है।
- रूसी हथियारों और उपकरणों पर भारत की निर्भरता में काफी गिरावट आई है।
- भारत-रूस सैन्य संबंध:
- भारतीय निर्भरता: स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, वर्ष 2010 से रूस सभी भारतीय हथियारों के आयात में लगभग दो-तिहाई (62%) योगदान करता है।
- इसके अतिरिक्त भारत सबसे बड़ा रूसी हथियार आयातक रहा है, जो सभी रूसी हथियारों के निर्यात का लगभग एक-तिहाई (32%) है।
- भारत के लिये अनुकूल रूसी सैन्य निर्यात: भारत में रूस का अधिकांश प्रभाव हथियार प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों को प्रदान करने की उसकी सम्मति के कारण है जिसे कोई अन्य देश भारत को निर्यात नहीं करेगा।
- अमेरिका केवल C-130j सुपर हरक्यूलिस, C-13 ग्लोबमास्टर, P-8i पोसाइडन आदि जैसी गैर-घातक रक्षा तकनीक प्रदान करता है, जबकि रूस ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल, S-400 एंटी-मिसाइल सिस्टम जैसी उच्च-स्तरीय तकनीक प्रदान करता है।
- रूस भी अपेक्षाकृत आकर्षक दरों पर उन्नत हथियार प्लेटफॉर्म की पेशकश करना जारी रखता है।
- सैन्य सहयोग: रूस से सैन्य हार्डवेयर के लगभग 10,000 उपकरण खरीदे जाते हैं।
- भारतीय सेना का मुख्य युद्धक टैंक बल मुख्य रूप से रूसी T-72M1 (66%) और T-90S (30%) से बना है।
- भारत मेक इन इंडिया दृष्टिकोण के तहत AK 103 राइफल्स की कीमत पर बातचीत कर रहा है।
- नौसेना सहयोग: भारतीय नौसेना का एकमात्र परिचालन विमान वाहक एक नवीनीकृत सोवियत युग का जहाज़ (आईएनएस विक्रमादित्य) है। नौसेना के लड़ाकू बेड़े में 43 MiG-29K शामिल हैं।
- नौसेना के 10 गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक में से चार रूसी काशीन श्रेणी के हैं और इसके 17 युद्धपोतों में से छह रूसी तलवार श्रेणी के हैं।
- नौसेना की एकमात्र परमाणु-संचालित पनडुब्बी रूस द्वारा लीज़ पर दी गई है और सेवारत 14 अन्य पनडुब्बियों में से आठ रूसी मूल की किलो (Kilo) श्रेणी की हैं
- वायुसेना सहयोग: भारतीय वायुसेना का 667-विमान फाइटर ग्राउंड अटैक (FGA) बेड़ा 71% रूसी मूल (39% Su-30s (सुखोई), 22% MiG-21s, 9% MiG-29s) है।
- सेवा के सभी छह एयर टैंकर रूस निर्मित IL-78s हैं।
- मिसाइल सहयोग: देश की एकमात्र परमाणु-सक्षम सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, ब्रह्मोस रूस के साथ एक संयुक्त उद्यम द्वारा निर्मित है।
- S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम के 2021 तक डिलीवर होने की उम्मीद है।
- सैन्य अभ्यास: भारत और रूस सैन्य अभ्यास की इंद्र (INDRA) शृंखला आयोजित करते हैं, जो वर्ष 2003 में शुरू हुई थी। हालाँकि पहला संयुक्त त्रि-सेवा अभ्यास वर्ष 2017 में आयोजित किया गया था।
- भारतीय निर्भरता: स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, वर्ष 2010 से रूस सभी भारतीय हथियारों के आयात में लगभग दो-तिहाई (62%) योगदान करता है।
आगे की राह
- चीन और पाकिस्तान के साथ रूस की नज़दीकियों ने भारत के लिये चिंता बढ़ा दी है। हालाँकि यह निकटता सामरिक है जो मुख्य रूप से पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण प्रेरित है, जबकि रूस-भारत साझेदारी रणनीतिक है।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि रूस ने हमेशा भारत को चीन की बढ़ती प्रभुत्त्व के खिलाफ एक संतुलनकर्त्ता के रूप में देखा।
- भारत अपनी खरीद का दायरा बढ़ा सकता है और अपने रणनीतिक कार्यक्रमों तथा हथियार प्रणालियों के संयुक्त विकास के लिये रूस का सहयोगी बन सकता है।
- इस प्रकार अमेरिका के साथ उसके द्वारा बनाए गए रणनीतिक संबंधों से हथियार आपूर्तिकर्त्ताओं में भारत की रुचि को अलग करके आगे का मार्ग प्रशस्त करेगा।