भारतीय अर्थव्यवस्था और इम्पॉसिबल ट्रिनिटी | 06 Sep 2023

प्रिलिम्स के लिये:

इम्पॉसिबल ट्रिनिटी, भारतीय रिज़र्व बैंक, मौद्रिक नीति, विदेशी मुद्रा भंडार

मेन्स के लिये:

इम्पॉसिबल ट्रिनिटी को संभव बनाने में चुनौतियाँ, भारत की मुद्रा गतिशीलता

स्रोत: बिज़नेस लाइन 

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय निवेशकों को "इम्पॉसिबल ट्रिनिटी" पर काबू पाने में एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

इम्पॉसिबल ट्रिनिटी:

  • परिचय: 
    • इम्पॉसिबल ट्रिनिटी, या त्रिलम्मा, इस विचार को संदर्भित करता है कि एक अर्थव्यवस्था स्वतंत्र मौद्रिक नीति, निश्चित विनिमय दर नहीं बनाए रख सकती है और एक ही समय में अपनी सीमाओं के विपरीत पूंजी के मुक्त प्रवाह की अनुमति नहीं दे सकती है।
      • एक निश्चित विनिमय दर व्यवस्था में घरेलू मुद्रा अन्य विदेशी मुद्राओं जैसे अमेरिकी डॉलर, यूरो, पाउंड स्टर्लिंग आदि की एक बास्केट से जुड़ी होती है।
    • एक सक्षम नीति निर्माता, किसी भी समय, इन तीन उद्देश्यों में से दो को प्राप्त कर सकता है।
    • यह विचार 1960 के दशक की शुरुआत में कनाडा के अर्थशास्त्री रॉबर्ट मुंडेल और ब्रिटिश अर्थशास्त्री मार्कस फ्लेमिंग द्वारा स्वतंत्र रूप से प्रस्तावित किया गया था।
    • इम्पॉसिबल ट्रिनिटी अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र और मौद्रिक नीति में एक मौलिक अवधारणा है।
    • यह उन अंतर्निहित चुनौतियों का वर्णन करती है जिनका सामना देश अपनी विनिमय दर और पूंजी प्रवाह से संबंधित तीन विशिष्ट नीतिगत उद्देश्यों को एक साथ प्राप्त करने का प्रयास करते  हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • जब कोई देश मुक्त पूंजी प्रवाह और निश्चित विनिमय दर को प्राथमिकता देता है, तो वह अपनी मौद्रिक नीति पर नियंत्रण खो देता है, जिससे वह बाह्य आर्थिक दबावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
    • यदि कोई देश एक निश्चित विनिमय दर और स्वतंत्र मौद्रिक नीति बनाए रखना चाहता  है, तो उसे अपनी सीमाओं के विपरीत धन के प्रवाह को सीमित करने के लिये पूंजी नियंत्रण लागू करना होगा।
    • स्वतंत्र मौद्रिक नीति और मुक्त पूंजी प्रवाह का विकल्प चुनने के लिये विनिमय दर में उतार-चढ़ाव को स्वीकार करने की आवश्यकता होती है, जिससे संभावित रूप से अस्थिरता उत्पन्न  हो सकती है।
  • इम्पॉसिबल ट्रिनिटी के उदाहरण:
    • विभिन्न देशों ने इम्पॉसिबल ट्रिनिटी की चुनौतियों का सामना किया है, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय उदाहरण वर्ष 1997 में एशियाई वित्तीय संकट और वर्ष 1992 में यूरोपीय विनिमय दर तंत्र संकट हैं।
      • इन संकटों को आंशिक रूप से प्रभावित देशों की निश्चित विनिमय दरों, स्वतंत्र मौद्रिक नीतियों और मुक्त पूंजी प्रवाह को एक साथ बनाए रखने में असमर्थता हेतु ज़िम्मेदार ठहराया गया था।

भारत का इम्पॉसिबल ट्रिनिटी से जूझना:

  • इम्पॉसिबल ट्रिनिटी को संबोधित करने के लिये रणनीतियाँ और कार्य:
    • ब्याज दरों का प्रबंधन:
      • अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की तुलना में RBI ब्याज़ दरें बढ़ाने में सतर्क रहा है।
        • दरें बढ़ाने की अनिच्छा मंदी उत्पन्न होने के भय से प्रेरित है, खासकर वर्ष 2024 में आगामी चुनावों के साथ।
      • कम ब्याज़ दर मध्यस्थता अमेरिका (विश्व की आरक्षित मुद्रा) में पूंजी की उड़ान और भारतीय रुपए के आसन्न मूल्यह्रास का संकेत देती है।
    • विदेशी मुद्रा भंडार की संरचना:
      • भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में मुख्य रूप से 'हॉट मनी' (विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) से जो मध्यस्थता के अवसरों का लाभ उठाने के लिये घरेलू ऋण या इक्विटी बाज़ारों में निवेश करते हैं) और कॉर्पोरेट उधार (उदाहरण के लिये, अडानी ग्रीन एनर्जी, वेदांता, आदि) शामिल हैं, ना कि व्यापार से कमाया गया धन।
        • व्यापार के माध्यम से अर्जित नहीं किये गए भंडार पर विश्वास करना मुद्रा स्थिरता बनाए रखने के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • पूंजी नियंत्रण लागू करना:
      • भारत ने पूंजी प्रवाह को नियंत्रित करने के लिये विभिन्न उपाय लागू किये हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता अभी अनिश्चित बनी हुई है।
      • पूंजी बहिर्प्रवाह को नियंत्रित करने के नीतिगत उपाय:
        • आयात प्रतिबंध और लाइसेंसिंग नीतियाँ:
          • भारत ने पूंजी के बहिर्प्रवाह को सीमित करने की त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध लगाया।
          • इन प्रतिबंधों को बाद में घरेलू विनिर्माण सीमाओं के कारण लाइसेंस-आधारित आयात नीतियों में बदल दिया गया।
          • हालाँकि, ये उपाय अनजाने में पूंजी के बहिर्वाह को रोकने के बजाय आपूर्ति-तन्य मुद्रास्फीति में योगदान कर सकते हैं।
        •  कर दरों में परिवर्तन:
          • भारत ने पूंजी के बहिर्प्रवाह को प्रतिबंधित करने के साधन के रूप में आउटबाउंड प्रेषण पर कर दरों को 5% से बढ़ाकर 20% कर दिया है।
          • 'इम्पॉसिबल ट्रिनिटी' के प्रबंधन में इस कर वृद्धि की प्रभावशीलता जाँच के दायरे में है।
  • भारत की आर्थिक स्थिति पर चीन का प्रभाव:
    • चीन की अपस्फीति और विभिन्न दरों में कटौती का उद्देश्य आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है। चीनी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जुलाई में पिछले वर्ष की तुलना में 0.3% गिर गया। इसके अतिरिक्त, चीनी युआन के मुकाबले INR में 4% की वृद्धि हुई है।
    • भारतीय रुपए के मज़बूत होने के परिणामस्वरूप चीन से आयात में वृद्धि हो सकती है जो अंततः भारत के व्यापार संतुलन तथा मुद्रा गतिशीलता प्रभावित कर सकती है।
    • चीनी मुद्रा युआन के मूल्यह्रास से वैश्विक बाज़ारों में भारत का निर्यात कम प्रतिस्पर्द्धी हो सकता है।
  • विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investors- FIIs) और भारतीय ऋण:
    • विदेशी संस्थागत निवेशको द्वारा भारतीय ऋण प्रतिभूतियों की हिस्सेदारी बेचे जाने तथा विदेशों में अधिक लाभदायक निवेश की तलाश करने से विदेशी मुद्रा की मांग में वृद्धि देखी जा रही है और विदेशी मुद्रा बाज़ार में भारतीय रुपया कमज़ोर हो रहा है।

भारतीय निवेशकों के लिये इम्पॉसिबल ट्रिनिटी के निहितार्थ:

  • रुपए के मूल्यह्रास से सुरक्षा:
    • सूचना प्रौद्योगिकी और फार्मा जैसे क्षेत्रों में निवेश, जिनमें कमाई मुख्य रूप से डॉलर में होती हैं, रुपए के मूल्य में गिरावट क कम कर सकते हैं।
      • रुपया कमज़ोर होने के समय इन कंपनियों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में संभावित वृद्धि लाभकारी रिटर्न दे सकती है।
  • विदेशी में निवेश में विविधता लाना:
    • निवेशकों को 'इम्पॉसिबल ट्रिनिटी' द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए स्वयं को अनुकूलित करना चाहिये।
      • चुनौतीपूर्ण आर्थिक स्थिति में, पूंजी की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय परिसंपत्तियों में निवेश करना आवश्यक हो जाता है।

आगे की राह

  • भारत को पूंजी नियंत्रण उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने पर ध्यान देना चाहिये। इन उपायों से मुद्रा स्थिरता बनाए रखने और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
  • देश को सक्रिय रूप से अपने विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता लानी चाहिये और विदेशी निवेशकों के 'हॉट मनी' पर बहुत अधिक निर्भर रहने के बजाय व्यापार के माध्यम से लाभ अर्जित करने का लक्ष्य रखना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने से मुद्रा स्थिरता में मदद मिल सकती है और रुपया मज़बूत हो सकता है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक को मुद्रास्फीति नियंत्रण और विदेशी निवेश को आकर्षित करने संबंधी कार्यों पर विचार करते हुए ब्याज़ दरों के संदर्भ में संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। ब्याज़ दर का क्रमिक समायोजन इस संतुलन को हासिल करने में मदद कर सकता है।