भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान की आपूर्ति और मांग संबंधी चुनौतियाँ | 17 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, ISRO के प्रक्षेपण यान, स्पेसएक्स का फाल्कन 9, भूस्थिर अंतरण कक्षा

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, भारत की अंतरिक्ष प्रक्षेपण सेवाएँ, उपग्रह-आधारित सेवाओं का बाज़ार

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष ने कहा कि इसरो की प्रक्षेपण यान क्षमता, मांग से तीन गुना अधिक है।

  • इस बयान से भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियों के संबंध में विशेषज्ञों के बीच वार्ता शुरू हो गई है क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि भारत अपनी सेवाओं के लिये पर्याप्त मांग सृजित करने के लिये संघर्ष कर रहा है।

भारत का वर्तमान प्रक्षेपण यान परिदृश्य क्या है?

  • मौजूदा प्रक्षेपण वाहन:
  • मौजूदा प्रक्षेपण यानों की सीमाएँ:
    • कम पेलोड क्षमता: भारत के LVM-3 की क्षमता चीन के लॉन्ग मार्च 5 की क्षमता से एक तिहाई से भी कम है। भारत के मौजूदा प्रक्षेपण यानों को चंद्रयान 4 जैसे अधिक महत्त्वाकांक्षी मिशनों के लिये क्षमता संबंधी सीमाओं का सामना करना पड़ता है जिसके लिये अपग्रेड और नए प्रक्षेपण यान  विकसित करने की आवश्यकता है।
      • भारत के पास वर्तमान में संचार, रिमोट सेंसिंग, पोज़िशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग (PNT), मौसम विज्ञान, आपदा प्रबंधन, अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट, वैज्ञानिक मिशन तथा प्रायोगिक मिशन जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये उपग्रहों का समूह है। इसके अतिरिक्त इसे आगामी अंतरिक्ष मिशनों के लिये प्रक्षेपण यानों की आवश्यकता है।
    • यानों के उन्नयन की आवश्यकता: इसरो ने LVM-3 को अर्द्ध-क्रायोजेनिक इंजन के साथ उन्नत करने की योजना बनाई है जिसका उद्देश्य भूस्थिर अंतरण कक्षा (GTO) तक इसकी पेलोड क्षमता को छह टन तक बढ़ाना है।
      • GTO तक 10 टन भार ले जाने के लिये नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) अथवा प्रोजेक्ट सूर्य नामक एक नया प्रक्षेपण यान विकसित करने की योजना बनाई गई है।
      • वर्तमान में इसरो ने इस परियोजना के लिये केवल एक फंडिंग प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
      • इसके अतिरिक्त छोटे उपग्रहों के वाणिज्यिक प्रक्षेपण के लिये आत्मविश्वास स्थापित करने के लिये SSLV के एक और सफल उड़ान की आवश्यकता है।
    • विदेशी प्रक्षेपण यानों पर निर्भरता: भारी पेलोड के प्रक्षेपण लिये भारत एरियन वी और स्पेसएक्स के फाल्कन 9 पर निर्भर रहता है।

ISRO_Launch_Vehicles

आपूर्ति एवं मांग के बीच विसंगति क्यों है?

  • ऐतिहासिक संदर्भ: पहले इसरो आपूर्ति-संचालित मॉडल उपग्रहों को लॉन्च करता पर कार्य करता था, और तत्पश्चात् ग्राहकों की तलाश करता था। यह दृष्टिकोण वर्ष 2019 के बाद मांग-संचालित मॉडल में स्थानांतरित हो गया, जिसके कारण वास्तविक ज़रूरतों के सापेक्ष लॉन्च वीकल्स की अधिक आपूर्ति सुनिश्चित हुई।
  • इस परिवर्तन के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि उपग्रह सेवाओं की मांग उपग्रह निर्माण तथा प्रक्षेपण से पहले की जानी चाहिये।
  • मांग सृजित करने में चुनौतियाँ: 
    • आर्थिक कारक: उपग्रहों के लिये लॉन्च वीकल्स की आवश्यकता होती है, हेवी वीकल्स का उपयोग लूनर एक्सप्लोरेशन जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिये किया जाता है तथा स्माल वीकल्स का उपयोग प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के लिये किया जाता है।
      • उपग्रहों का परिचालन जीवनकाल सीमित होता है, जिसके कारण उन्हें बदलने की आवश्यकता होती है, जिससे लॉन्च वीकल्स की अतिरिक्त मांग सृजित हो सकती है। हालाँकि तकनीकी प्रगति ने इन जीवनकालों को बढ़ा दिया है, जिससे लॉन्च वीकल्स की मांग में अनिश्चितता उत्पन्न हो गई है।
      • लॉन्च वीकल्स में भी सुधार हो रहा है, जिनमें एक ही प्रक्षेपण में अनेक उपग्रहों को लॉन्च करने की क्षमता, पुन: प्रयोज्य रॉकेट चरण तथा विषैले ईंधनों के स्थान पर हरित विकल्पों के उपयोग के प्रयास शामिल हैं।
    • बाज़ार अनुवेधन: इंटरनेट सेवाओं जैसे कुछ क्षेत्रों में, मौजूदा विकल्प (उदाहरण के लिये, किफायती फाइबर एवं मोबाइल इंटरनेट) अंतरिक्ष-आधारित समाधानों की कथित आवश्यकता को प्रभावित कर सकते हैं। इससे उपग्रह क्षमताओं को विकसित करने की ज़रूरत कम हो जाती है।
    • सरकारी पहलों पर निर्भरता: भारत सरकार चाहती है कि निजी क्षेत्र मांग को प्रोत्साहित करे, उपग्रहों का निर्माण के साथ-साथ उनको प्रक्षेपित करे, ग्राहक सेवाएँ प्रदान करे, प्रक्षेपण सेवाओं से राजस्व उत्पन्न करे और साथ ही श्रमिकों के कौशल को उन्नत करे।
      • निजी कंपनियाँ चाहती हैं कि सरकार उनकी ग्राहक बने और विश्वसनीय विनियमन उपलब्ध कराए, जिससे उन्हें दीर्घकालिक राजस्व प्राप्त हो सके।
      • यदि सरकार संभावित उपभोक्ताओं को खरीदारी करने हेतु सूचित करने और प्रोत्साहित करने के लिये सक्रिय कदम नहीं उठाती है, तब इस बात की पूर्ण संभावना है कि आपूर्ति तथा मांग में असंतुलन जारी रहेगा।

आगे की राह

  • हितधारकों को शिक्षित करना: मांग सृजित करने की कुंजी संभावित उपयोगकर्त्ताओं (सरकारी संस्थाओं, उद्योगों के साथ-साथ आम नागरिकों) को उपग्रह सेवाओं के लाभों एवं अनुप्रयोगों के बारे में शिक्षित करना है।
    • जागरूकता बढ़ाने और उपग्रह-आधारित सेवाओं के लिये बाज़ार तैयार करने की ज़िम्मेदारी इसरो तथा निजी क्षेत्र दोनों पर है।
  • जटिल ग्राहक आधार (Complex Customer Base): उपग्रह सेवाओं की मांग को कृषि, वित्त और रक्षा सहित विविध क्षेत्रों में विकसित किया जाना चाहिये। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अलग-अलग ज़रूरतें और जागरूकता का स्तर होता है, जिससे मांग सृजन के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
  • लागत-प्रभावशीलता (Cost-Effectiveness): लागत-प्रतिस्पर्धी प्रक्षेपण सेवा प्रदाता के रूप में भारत की बढ़त को बनाए रखना तथा अंतरिक्ष तक किफायती पहुँच चाहने वाले वैश्विक ग्राहकों को आकर्षित करना।
    • इसरो के सफल प्रक्षेपणों के सिद्ध रिकॉर्ड को बनाए रखना, संभावित ग्राहकों के बीच विश्वास और आत्मविश्वास को बढ़ावा देना।
  • सरकारी दबाव (Government Push): सरकार प्रारंभिक वित्तपोषण उपलब्ध कराकर, उपग्रहों के लिये प्रक्षेपण स्थान की गारंटी देकर तथा अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोगों के लाभों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाकर निजी अंतरिक्ष उपक्रमों को समर्थन दे सकती है।
  • सहयोग (Collaboration): संयुक्त मिशन, प्रौद्योगिकी विनिमय और ज्ञान साझा करने के लिये अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना। सहायक विनियामक वातावरण बनाकर उपग्रह विकास और प्रक्षेपण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण क्षेत्र के समक्ष वर्तमान चुनौतियों पर चर्चा कीजिये, आपूर्ति और मांग के बीच के अंतर को पाटने के उपाय सुझाइए।

और पढ़ें: 2024 में अंतरिक्ष मिशन

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष  के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. PSLV से वे उपग्रह प्रमोचित किये जाते हैं जो पृथ्वी संसाधनों के मानिटरन उपयोगी हैं जबकि GSLV को मुख्यतः संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
  2. PSLV द्वारा प्रमोचित उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर रहते प्रतीत होते हैं जैसा कि पृथ्वी के एक विशिष्ट स्थान से देखा जाता है।
  3. GSLV Mk III, एक चार स्टेज वाला प्रमोचन वाहन है, जिसमें प्रथम और तृतीय चरणों में ठोस रॉकेट मोटरों का तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरणों में द्रव रॉकेट इंजनों का प्रयोग होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) 1 और 2
(d) केवल 3

उत्तर: (a)