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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की 'गिग' इकॉनमी

  • 28 Jun 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्लेटफॉर्म वर्कर्स, स्टार्टअप इंडिया पहल, कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी 2020

मेन्स के लिये:

भारत के गिग सेक्टर की क्षमता, गिग सेक्टर से जुड़ी चुनौतियाँ, कार्यबल की सामाजिक सुरक्षा में सुधार के लिये नीति आयोग की सिफारिशें

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नीति आयोग ने 'इंडियाज़ बूमिंग गिग एंड प्लेटफॉर्म इकॉनमीी' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की।

  • रिपोर्ट के अनुसार, 2029-30 तक भारत के गिग वर्कफोर्स के 2.35 करोड़ तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2020-21 में 77 लाख (7.7 मिलियन) कर्मचारी गिग इकॉनमी में संलग्न थे। जो भारत में गैर-कृषि कार्यबल का 2.6% या कुल कार्यबल के 1.5% थे।
  • नीति आयोग ने ऐसे श्रमिकों और उनके परिवारों के लिये सामाजिक सुरक्षा संहिता में परिकल्पित साझेदारी मोड में सामाजिक सुरक्षा उपायों का विस्तार करने की सिफारिश की।

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रिपोर्ट में उठाए गए प्रमुख मुद्दे:

  • पहुँच:
    • भले ही गिग इकॉनमी, रोज़गार के व्यापक विकल्पों के साथ उन सभी के लिये सुलभ है जो इस तरह के रोज़गार में संलग्न होने के इच्छुक हैं, परंतु इंटरनेट सेवाओं और डिजिटल प्रौद्योगिकी तक पहुँच एक प्रतिबंधात्मक कारक हो सकता है।
      • इसने गिग इकॉनमी को काफी हद तक एक शहरी परिघटना बना दिया है।
  • नौकरी और आय असुरक्षा:
    • गिग वर्कर्स को मज़दूरी, घंटे, काम करने की स्थिति और सामूहिक सौदेबाज़ी के अधिकार से संबंधित श्रम नियमों से लाभ नहीं मिलता है।
  • व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य जोखिम:
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ रोज़गार में लगे श्रमिकों, विशेष रूप से एप-आधारित टैक्सी और वितरण (Delivery) क्षेत्रों में महिला श्रमिकों को विभिन्न व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
  • बेमेल कौशल:
    • ऑनलाइन वेब-आधारित प्लेटफॉर्म पर ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज कौशल बेमेल की भिन्न स्वरूप देखे जा सकते है।
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सर्वेक्षणों के अनुसार, उच्च शैक्षिक उपलब्धियों वाले श्रमिकों को आवश्यक रूप से उनके कौशल के अनुरूप काम नहीं मिल रहा है।
  • अनुबंध की शर्तों के कारण आने वाली चुनौतियाँ:
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काम करने की स्थिति बड़े पैमाने पर सेवा समझौतों की शर्तों द्वारा नियंत्रित होती है। वे मंच के मालिक और कार्यकर्ता के बीच संविदात्मक संबंधों को रोज़गार के अलावा अन्य के रूप में चिह्नित करते हैं।

गिग अर्थव्यवस्था:

  • गिग अर्थव्यवस्था एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें सामान्य अस्थायी पद होते हैं और संगठन अल्पकालिक जुड़ाव के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
    • गिग वर्कर: एक व्यक्ति जो काम करता है या कार्य व्यवस्था में भाग लेता है और पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर ऐसी गतिविधियों से आय अर्जित करता है"।
  • बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गिग वर्कफोर्स में सॉफ्टवेयर, साझा और पेशेवर सेवाओं जैसे उद्योगों में 15 मिलियन कर्मचारी कार्यरत हैं।
  • इंडिया स्टाफिंग फेडरेशन की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, चीन, ब्राज़ील और जापान के बाद भारत वैश्विक स्तर पर फ्लेक्सी-स्टाफिंग में पाँचवाँ सबसे बड़ा देश है।

भारत के गिग सेक्टर की क्षमता:

  • भारत में अनुमानित 56% नए रोज़गार गिग इकॉनमी कंपनियों द्वारा ब्लू-कॉलर और व्हाइट-कॉलर कार्यबल दोनों में उत्पन्न किये जा रहे हैं।
  • जबकि भारत में ब्लू-कॉलर नौकरियों के बीच गिग इकॉनमी प्रचलित है, वाइट-कॉलर नौकरियों जैसे- परियोजना-विशिष्ट सलाहकार, विक्रेता, वेब डिज़ाइनर, सामग्री लेखक और सॉफ्टवेयर डेवलपर्स में गिग श्रमिकों की मांग भी उभर रही है।
  • गिग इकॉनमी भारत में गैर-कृषि क्षेत्रों में 90 मिलियन नौकरियाँ उपलब्ध करा सकती है, जिसमें "दीर्घावधि" में सकल घरेलू उत्पाद में और 1.25% की वृद्धि होने की संभावना है।
  • जैसा कि भारत वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने घोषित लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, आय और बेरोज़गारी के अंतर को कम करने में गिग इकॉनमी की प्रमुख भूमिका होगी।

गिग सेक्टर के प्रमुख चालक:

  • कहीं से भी कार्य करने का लचीलापन:
    • डिजिटल युग में कार्यकर्त्ता को एक निश्चित स्थान पर बैठने की आवश्यकता नहीं होती है- कार्य कहीं से भी किया जा सकता है, इसलिये नियोक्ता किसी परियोजना के लिये उपलब्ध सर्वोत्तम प्रतिभा का चयन स्थान से बँधे बिना कर सकते हैं।
  • कार्य के प्रति बदलता दृष्टिकोण:
    • लगता है कि मिलेनियल जेनरेशन का करियर के प्रति काफी अलग नज़रिया है। वे ऐसा करियर, जिससे उनको संतुष्टि नहीं प्राप्त हो, बनाने के बजाय ऐसा कार्य करना चाहते हैं जो उनकी पसंद का है।
  • व्यापार प्रतिदर्श:
    • गिग कर्मचारी विभिन्न मॉडल पर काम करते हैं जैसे कि निश्चित शुल्क (अनुबंध की शुरुआत के दौरान तय), समय और प्रयास, वितरित किये गए कार्य की वास्तविक इकाई एवं परिणाम की गुणवत्ता। फिक्स्ड-फीस मॉडल सबसे प्रचलित है। हालांँकि समय और प्रयास मॉडल एक-दूसरे के करीब आते हैं।
  • स्टार्टअप कल्चर का उदय:
    • भारत में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र तेज़ी से विकसित हो रहा है। स्टार्टअप के लिये पूर्णकालिक कर्मचारियों को काम पर रखने से उच्च निश्चित लागत की आवश्यकता होती है और इसलिये गैर-मुख्य गतिविधियों के लिये संविदात्मक फ्रीलांसर काम पर रखे जाते हैं।
    • स्टार्टअप अपने तकनीकी प्लेटफाॅर्मों को मज़बूती प्रदान करने के लिये इंजीनियरिंग, उत्पाद, डेटा विज्ञान और एमएल जैसे क्षेत्रों में कुशल प्रौद्योगिकी फ्रीलांसर (प्रति परियोजना के आधार पर) को काम पर रखने पर भी विचार कर रहे हैं।
  • संविदा कर्मचारियों की बढ़ती मांग:
    • बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ महामारी के बाद परिचालन खर्च को कम करने के लिये विशेष रूप से विशिष्ट परियोजनाओं हेतु फ्लेक्सी-हायरिंग विकल्प अपना रही हैं।
    • यह प्रवृत्ति भारत में गिग संस्कृति के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

प्लेटफॉर्म वर्कर्स:

  • परिचय:
    • प्लेटफ़ॉर्म वर्कर का तात्पर्य किसी ऐसे संगठन के लिये काम करने वाले कार्यकर्त्ताओं से है जो व्यक्तियों या संगठनों को सीधे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करके विशिष्ट सेवाएँ प्रदान करता है।
    • उदाहरण: ओला या उबर ड्राइवर, स्विगी या ज़ोमैटो डिलीवरी एजेंट आदि।
  • चिंताएँ:
    • वे औपचारिक और अनौपचारिक श्रम के पारंपरिक द्विभाजन के दायरे से बाहर हैं।
    • प्लेटफ़ॉर्म कार्यकर्त्ता स्वतंत्र ठेकेदार हैं क्योंकि वे कार्यस्थल सुरक्षा और अधिकारों के कई पहलुओं तक नहीं पहुँच सकते हैं।

सिफारिशें:

  • 'प्लेटफॉर्म इंडिया पहल':
    • 'स्टार्टअप इंडिया पहल' की तर्ज पर प्लेटफॉर्म इंडिया पहल, कौशल विकास और सामाजिक वित्तीय समावेशन में तेज़ी लाने से प्लेटफॉर्म द्वारा पेश किये गए लचीलेपन और श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा को संतुलित करने के लिये एक ढांँचा प्रदान किया जा सकता है।
      • क्षेत्रीय और ग्रामीण व्यंजन, स्ट्रीट फूड आदि बेचने के व्यवसाय में लगे स्व-नियोजित व्यक्तियों को प्लेटफार्मों से जोड़ा जा सकता है ताकि वे अपने उत्पाद को कस्बों एवं शहरों के व्यापक बाज़ारों में बेच सकें।
  • अनुदान सहायता:
    • वित्तीय उत्पादों के माध्यम से संस्थागत ऋण तक पहुंँच को बढ़ाया जा सकता है जो विशेष रूप से प्लेटफॉर्म श्रमिकों और अपने स्वयं के प्लेटफॉर्म स्थापित करने में रुचि रखने वालों के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।
    • सभी आकार के प्लेटफॉर्म व्यवसायों को वेंचर कैपिटल फंडिंग, बैंकों और अन्य फंडिंग एजेंसियों से अनुदान तथा ऋण प्रदान किया जाना चाहिये।
  • लिंग संवेदीकरण:
    • लैंगिक समानता की चिंताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाकर व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करना।

स्रोत: द हिंदू

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