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भारतीय अर्थव्यवस्था

गिग वर्कर्स

  • 29 Dec 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये :

गिग इकोनॉमी, कोविड-19 महामारी, वेतन संहिता, 2019, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020, विभिन्न कॉलर रोज़गार।

मेन्स के लिये :

गिग इकॉनमी: अर्थ, उपयोग, विधान, संबंधित चिंताएँ और आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

कोविड-19 महामारी के बाद गिग रोज़गार विशेष रूप से साझा सेवाओं और लॉजिस्टिक्स सेगमेंट में मांग में वृद्धि देखी गई है, जिससे रोज़गार की खोज के लिये प्लेटफार्मों में इससे संबंधित गतिविधियों में तेज़ी आई है।

प्रमुख बिंदु

  • गिग अर्थव्यवस्था के बारे में:
  • गिग इकॉनमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें अस्थायी अनुबंध होता है और संगठन अल्पकालिक जुड़ाव के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
  • बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गिग वर्कफोर्स में सॉफ्टवेयर, साझा सेवाओं और पेशेवर सेवाओं जैसे उद्योगों में कार्यरत 1.5 मिलियन कर्मचारी शामिल हैं।
  • भारत में अनुमानित 56% नए रोज़गार गिग इकॉनमी कंपनियों द्वारा ब्लू-कॉलर और व्हाइट-कॉलर वर्कफोर्स दोनों के लिये उत्पन्न किये जा रहे हैं। 

विभिन्न कॉलर वर्कर:

  • ब्लू-कॉलर वर्कर: इसमें मज़दूर वर्ग शारीरिक श्रम के माध्यम से आय अर्जन करता है।
  • व्हाइट-कॉलर वर्कर: यह एक वेतनभोगी पेशेवर है, जो आमतौर पर कार्यालय के प्रबंधन का कार्य करता करता है।
  • गोल्ड-कॉलर वर्कर: इस प्रकार के वर्कर का उपयोग अत्यधिक कुशल ज्ञान वाले लोगों को संदर्भित करने हेतु किया जाता है जो कंपनी के लिये अत्यधिक मूल्यवान होते हैं। उदाहरण: वकील, डॉक्टर, शोध वैज्ञानिक आदि।
  • ग्रे-कॉलर वर्कर: यह व्हाइट या ब्लू-कॉलर के रूप में वर्गीकृत नहीं किये गए नियोजित लोगों को संदर्भित करता है।
    • हालाँकि ग्रे-कॉलर का प्रयोग उन लोगों का वर्णन करने के लिये भी किया जाता है जो सेवानिवृत्ति की आयु से परे काम करते हैं। उदाहरण: अग्निशामक, पुलिस अधिकारी, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर, सुरक्षा गार्ड आदि।
  • ग्रीन-कॉलर वर्कर: ये ऐसे वर्कर हैं जो अर्थव्यवस्था के पर्यावरणीय क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
    • उदाहरण: वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों जैसे- सौर पैनल, ग्रीनपीस, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर आदि में काम करने वाले वर्कर।
  • पिंक-कॉलर वर्कर: यह एक ऐसा रोज़गार है जिसे पारंपरिक रूप से महिलाओं का काम माना जाता है और अक्सर कम वेतन मिलता है।
  • स्कारलेट-कॉलर वर्कर: यह एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल अक्सर पोर्नोग्राफी उद्योग में काम करने वाले लोगों, विशेष रूप से इंटरनेट पोर्नोग्राफी के क्षेत्र में महिला उद्यमियों को संदर्भित करने के लिये किया जाता है।
  • रेड-कॉलर वर्कर: सभी प्रकार के सरकारी कर्मचारी।
  • ओपन-कॉलर वर्कर: यह एक ऐसा वर्कर है जो घर से खासकर इंटरनेट के ज़रिये काम करता है।
  • गिग इकॉनमी की घातीय वृद्धि का कारण:
    • डिजिटल युग में वर्कर्स को एक निश्चित स्थान पर बैठने की आवश्यकता नहीं है - काम कहीं से भी किया जा सकता है, इसलिये नियोक्ता किसी परियोजना के लिये उपलब्ध सर्वोत्तम प्रतिभा का चयन स्थान से परे कार्य कर सकते हैं।
    • ऐसा लगता है कि नई पीढ़ी का कॅरियर के प्रति काफी अलग रवैया है। वे ऐसा कॅरियर बनाने के बजाय सामान्य ज़रूरतों हेतु काम करना चाहते हैं।
    • बढ़ता प्रवास और सुप्राप्य कौशल प्रशिक्षण।
  • संबद्ध चुनौतियाँ:
    • अनियमित प्रकृति: गिग इकॉनमी बड़े पैमाने पर अनियमित रूप से विकसित होती है, इसलिये श्रमिकों की नौकरी की सुरक्षा बहुत कम होती है और बहुत सीमित लाभ प्राप्त होते हैं।
      • हालाँकि कुछ लोगों का तर्क है कि श्रमिकों को कोई सामाजिक सुरक्षा, बीमा आदि नहीं मिलने के संबंध में भारत में गिग इकॉनमी भारत के अनौपचारिक श्रम का विस्तार है, जो लंबे समय से प्रचलित है और अनियंत्रित बनी हुई है।
    • कौशल की आवश्यकता: एक वर्कर्स को पर्याप्त रूप से कुशल होने की आवश्यकता होती है। जब तक कोई व्यक्ति अत्यंत प्रतिभाशाली नहीं होगा, उसकी सौदेबाज़ी की शक्ति अनिवार्य रूप से सीमित होगी।
      • जबकि कंपनियाँ नियमित रूप से कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने में निवेश करती हैं, एक गिग-इकॉनमी वर्कर्स को अपनी लागत पर अपने कौशल को अपग्रेड करना होगा।
    • मांग-पूर्ति असंतुलन: स्थायी नौकरियों की तुलना में अब पहले से ही कई अधिक संभावित ऑनलाइन स्वतंत्र या फ्रीलांस कर्मचारी हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि मांग एवं पूर्ति के बीच यह असंतुलन समय के साथ और अधिक बढ़ जाएगा, जिसके कारण समय के साथ मज़दूरी में कमी आएगी।
  • गिग अर्थव्यवस्था पर महामारी का प्रभाव:
    • कोविड-19 के कारण व्यवसाय बाधित हो गए और लोग आय के स्रोत की तलाश में थे। इससे महामारी के कारण ‘गिग वर्कर्स’ की मांग में तेज़ी देखने को मिली।
      • उदाहरण के लिये अगस्त 2020 में सोशल मीडिया कंपनी गूगल ने नौकरी चाहने वालों को ऑन-डिमांड व्यवसायों, खुदरा और आतिथ्य जैसे उद्योगों में अवसरों से जोड़ने के लिये ‘Kormo Jobs’ नाम से एक एप लॉन्च करने की घोषणा की।
    • हालाँकि जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में ‘गिग श्रमिकों’ की संख्या बढ़ी है, विशेष रूप से उपभोक्ता इंटरनेट कंपनियों जैसे- ज़ोमैटो, स्विगी, उबर, ओला, अर्बन कंपनी आदि के साथ श्रमिकों की आय में गिरावट दर्ज की गई है।
    • संविदात्मक श्रम पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके दो महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े हैं:
      • सर्वप्रथम इसने ऑन-डिमांड स्टाफिंग की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिये नए व्यवसाय मॉडल विकसित किये हैं।
      • साथ ही इसने एक बार फिर ऐसी श्रम संहिताओं की आवश्यकताओं पर प्रकाश डाला है, जो गिग श्रमिकों को परिभाषित करती हैं और उनके लिये एक सार्वभौमिक न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित करती हैं।

गिग इकॉनमी के लिये श्रम संहिता:

  • मौजूदा कानून:
    • मज़दूरी संहिता, 2019 गिग श्रमिकों (संगठित और असंगठित क्षेत्रों सहित) के लिये  सार्वभौमिक न्यूनतम मज़दूरी और न्यूनतम मज़दूरी का प्रावधान करती है।
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 गिग श्रमिकों को एक नई व्यावसायिक श्रेणी के रूप में मान्यता देती है।
      • यह गिग वर्कर को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर काम करता है या कार्य व्यवस्था में भाग लेता है और ऐसी गतिविधियों से कमाई करता है।
  • सुरक्षा संहिता से संबद्ध मुद्दे:
    • लाभ की कोई गारंटी नहीं: सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020 में प्लेटफाॅर्म  वर्कर्स अब मातृत्व लाभ, जीवन और विकलांगता कवर, वृद्धावस्था सुरक्षा, भविष्य निधि, रोज़गार दुर्घटना लाभ आदि जैसे लाभों के लिये पात्र हैं।
      • हालाँकि इस पात्रता का यह अर्थ नहीं है कि लाभ की गारंटी दी गई है।
      • कोई भी प्रावधान सुरक्षित लाभ प्रदान नहीं करता है, जिसका अर्थ है कि केंद्र सरकार समय-समय पर कल्याणकारी योजनाएँ बना सकती है, जो व्यक्तिगत और कार्य सुरक्षा के इन पहलुओं को कवर करती हैं, लेकिन उनकी गारंटी नहीं देती है।
    • कोई निश्चित उत्तरदायित्व नहीं: संहिता के तहत बुनियादी कल्याण उपायों से संबंधित प्रावधानों को केंद्र सरकार, प्लेटफॉर्म एग्रीगेटर्स और श्रमिकों की संयुक्त ज़िम्मेदारी के रूप में परिभाषित किया गया है।
      • हालाँकि इसमें यह नहीं बताया गया है कि कौन सा हितधारक कितना कल्याण प्रदान करने हेतु उत्तरदायी है।

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आगे की राह

  • स्पष्टता की आवश्यकता: स्पष्टीकरण के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्लेटफॉर्म के काम की गुणवत्ता से समझौता किये बिना श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा उपाय प्रदान किया जाए।
  • संयुक्त जवाबदेही: गिग इकॉनमी में काम की विविधता की सामाजिक-कानूनी स्वीकृति की आवश्यकता है और सामाजिक सेवाओं के वितरण के लिये राज्य और संबंधित कंपनियों को संयुक्त जवाबदेही का श्रेय देने की आवश्यकता है।
  • समेकित प्रयास: कल्याणकारी सेवाएँ प्रदान करने में परिचालन संबंधी चुनौतियों को कम करने हेतु राज्य, कंपनियों और श्रमिकों द्वारा एक त्रिपक्षीय प्रयास महत्त्वपूर्ण है।

 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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