नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का जनांकिकीय संक्रमण

  • 16 Jan 2025
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जनांकिकीय लाभांश, संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड, समर्थन अनुपात, जनांकिकीय संक्रमण, प्रतिस्थापन दर

मेन्स के लिये:

जनांकिकीय लाभांश और इसके आर्थिक निहितार्थ, भारत का जनांकिकीय संक्रमण, रजत अर्थव्यवस्था

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

चर्चा में क्यों? 

मैकिन्से एंड कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार अन्य विकसित देशों की भाँति ही भारत की अर्थव्यवस्था भी वर्ष 2050 तक एक कालप्रभावित अर्थव्यवस्था (सिल्वर इकोनॉमी) में परिणत हो जाएगी और अपने जनांकिकीय लाभांश का पूर्ण उपयोग करने के लिये देश के पास 33 वर्ष शेष हैं।

  • इस रिपोर्ट में मंद संवृद्धि, बढ़ती निर्भरता और राजकोषीय दबाव पर भी प्रकाश डाला गया है, क्योंकि भारत की कार्यशील आयु वर्ग की संख्या में वृद्धजनों की तुलना में अधिक गिरावट आ रही है।

नोट: संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड के अनुसार, जनांकिकीय लाभांश का तात्पर्य उस आर्थिक विकास क्षमता से है, जब किसी देश के कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष) की जनसंख्या उस पर आश्रित जनसंख्या (बालक और वृद्धजन) से अधिक हो जाती है, जिससे उत्पादकता और आर्थिक उत्पादन में वृद्धि के लिये उपयुक्त अवसर सर्जित होते हैं।

  • आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, भारत 2005-06 से ही जनांकिकीय लाभांश की स्थिति में है और यह स्थिति 2055-56 तक बनी रहेगी।

भारत के जनांकिकीय संक्रमण की रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • ह्वासमान समर्थन अनुपात: भारत के पास वर्ष 2050 तक अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के समान कालप्रभावित होने में 33 वर्ष शेष हैं।
    • भारत का समर्थन अनुपात (65 वर्ष या उससे अधिक आयु के प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक पर कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्ति) 1997 में 14:1 था जो वर्ष 2023 में घटकर 10:1 हो गया है तथा अनुमानतः वर्ष 2050 तक यह और घटकर 4.6:1 तथा 2100 तक 1.9:1 हो जाएगा, जो जापान जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के स्तर के समान होगा।
  • लोक वित्त पर बढ़ता दबाव: 2050 तक, वृद्धजनों की हिस्सेदारी कुल खपत में 15% होगी, जो वर्तमान में 8% है।
    • वृद्धजन की संख्याओं में निरंतर बढ़ोतरी से पेंशन, लोक स्वास्थ्य सेवा और पारिवारिक संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा।
    • वैश्विक उपभोग में भारत की हिस्सेदारी वर्तमान में 9% है जो अनुमानतः वर्ष 2050 तक बढ़कर 16% हो जाएगी।
  • निम्न उत्पादकता और श्रम बाज़ार: भारत की श्रम शक्ति भागीदारी, विशेष रूप से महिलाओं की, निम्न बनी हुई है और यह सुधार का एक प्रमुख कारक है।
    • भारत में श्रमिक उत्पादकता 9 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा है, जो उच्च आय वाले देशों में 60 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा की औसत उत्पादकता से काफी कम है।
  • जन्म दर में गिरावट: जन्म दर में वैश्विक गिरावट की स्थिति गंभीर है, जिसका प्रभाव भारत जैसे उभरते देशों और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं दोनों पर पड़ा है।
    • इस जनांकिकीय प्रवृत्ति का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि, श्रम बाज़ार, पेंशन प्रणाली और उपभोक्ता व्यवहार पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
  • अनुशंसाएँ: जनांकिकीय लाभांश को अधिकतम करने के लिये श्रम बल में, विशेष रूप से महिलाओं की, भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • श्रमिक उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिये, भारत को प्रौद्योगिकी अपनाने, नवाचार को बढ़ावा देने तथा बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और कौशल विकास में रणनीतिक निवेश पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
    • वृद्धजन की संख्याओं में निरंतर बढ़ोतरी से उत्पन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लोक वित्त और सामाजिक सहायता प्रणालियों को सुदृढ़ कर जनांकिकीय संक्रमण हेतु तत्पर रहने की आवश्यकता है।

जनांकिकीय संक्रमण क्या है?

  • जनांकिकीय संक्रमण एक ऐसा मॉडल है जो जन्म और मृत्यु दर में परिवर्तन के साथ-साथ जनसंख्या आयु संरचना में बदलाव का वर्णन करता है और यह परिवर्तन समाज में हुए आर्थिक और तकनीकी विकास के कारण होता है। इसमें प्रायः निम्न चरण शामिल होते हैं।
    • चरण 1: उच्च जन्म और मृत्यु दर के परिणामस्वरूप जनसंख्या स्थिर हो जाती है।
    • चरण 2: स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता और खाद्य उत्पादन में सुधार के कारण मृत्यु दर में कमी आती है, जबकि जन्म दर उच्च बनी रहती है। इससे जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि होती है।
    • चरण 3: जन्म दर में गिरावट शुरू होती है, जिससे जनसंख्या वृद्धि धीमी हो जाती है। इसके कारकों में शहरीकरण, निम्न बाल मृत्यु दर, गर्भनिरोध की सुविधा और लघु परिवारों की ओर समाज का रुख शामिल हैं।
    • चरण 4: जन्म और मृत्यु दर दोनों निम्न होती हैं, जिससे जनसंख्या स्थिर अथवा वृद्ध होती है। यह चरण उच्च जीवन स्तर, उन्नत प्रौद्योगिकी और सामाजिक विकास को दर्शाता है।

Demographic_Transition

  • भारत की जनसांख्यिकी: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत जनसांख्यिकीय परिवर्तन के चार चरण मॉडल के तीसरे चरण में है, जो उच्च से निम्न मृत्यु दर और प्रजनन दर की ओर बढ़ रहा है।

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत

  • वर्ष 1798 में अंग्रेज़ अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस द्वारा प्रस्तावित जनसंख्या का माल्थस सिद्धांत बताता है कि जनसंख्या तेज़ी से बढ़ती है, जबकि खाद्य उत्पादन गणितीय रूप से बढ़ता है। 
    • इस असंतुलन के कारण जनसंख्या अधिक हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप अकाल, बीमारी और मृत्यु दर बढ़ती है जिससे अंततः जनसंख्या कम हो जाती है।
    • माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के तरीकों के रूप में "कृत्रिम निरोध" (जैसे, विवाह में देरी) और "प्राकृतिक निरोध " (जैसे, अकाल और बीमारी) की पहचान की।
    • प्रभावशाली होने के बावजूद, इस सिद्धांत की आलोचना तकनीकी प्रगति और मानव अनुकूलनशीलता को कम आँकने के लिये  की गई है।

भारत में वृद्धजनों के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?

  • कार्यबल भागीदारी में गिरावट: कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्तियों के घटते अनुपात के कारण भारत की आर्थिक वृद्धि काफी धीमी हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, जापान, जिसकी 27% आबादी 65 वर्ष से अधिक है, को श्रम की कमी और तनावपूर्ण सामाजिक सुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। सुस्त विकास और स्थिर मज़दूरी के कारण घरेलू खर्च में कमी आई है।
  • स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर दबाव: वृद्धजनों में आमतौर पर दीर्घकालिक बीमारियों की दर अधिक होती है, जिससे भारत की पहले से ही दबावग्रस्त स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है। 
    • पर्याप्त बुनियादी ढाँचे के बिना स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं में वृद्धि से स्वास्थ्य संबंधी असमानताएँ बढ़ सकती हैं तथा वृद्धजनों के जीवन की गुणवत्ता में कमी आ सकती है।
  • कम उत्पादकता और नवाचार: वृद्ध होती जनसंख्या के कारण आर्थिक गतिविधि और नके रता अनुपात सामाजिक और आर्थिक संसाधनों पर और अधिक दबाव डाल सकता है।

आगे की राह:

  • वृद्धजनों के कार्यबल का कौशल विकास: वृद्धजनों के कार्यबल को 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था के लिये आवश्यक कौशल, जैसे डिजिटल साक्षरता, रचनात्मकता और नवाचार, तथा तकनीकी दक्षता से लैस करने के लिये शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना।
  • स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना: वृद्धजनों को गुणवत्तापूर्ण और किफायती स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मज़बूत करना।
  • वित्तीय समावेशन: सुलभ और सस्ती पेंशन योजनाओं, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और वित्तीय साक्षरता पहलों के माध्यम से वृद्धजनों के लिये वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • नवप्रवर्तन और उत्पादकता वृद्धि: अनुसंधान और विकास में निवेश करना, उद्यमशीलता को बढ़ावा देना, तथा उत्पादकता बढ़ाने एवं श्रम की कमी को दूर करने हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।
  • अंतर-पीढ़ीगत समावेशन: युवा और वृद्ध दोनों की चिंताओं को दूर करने के लिये अंतर-पीढ़ीगत संवाद एवं सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देना।
  • जनांकिकीय लाभांश को संबोधित करना: खराब शिक्षा, लैंगिक असमानता, कौशल में कमी और अनौपचारिक क्षेत्र से बेरोज़गारी में वृद्धि, ये सभी कारक भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को बाधित कर रहे हैं। वर्ष 2023-24 मानव विकास सूचकांक रैंकिंग में 134वें स्थान पर है।
    • बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और महिला कार्यबल की बढ़ी हुई भागीदारी के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान करना महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. पूर्ण आर्थिक विकास हासिल करने से पहले भारत के 'वृद्ध' अर्थव्यवस्था बन जाने के संभावित परिणाम क्या हैं? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जनांकिकीय लाभांश के पूर्ण लाभ को प्राप्त करने के लिये भारत को क्या करना चाहिये? (2013)

(a) कुशलता विकास का प्रोत्साहन
(b) और अधिक सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का प्रारंभ
(c) शिशु मृत्यु दर में कमी
(d) उच्च शिक्षा का निजीकरण

उत्तर: (a)


प्रश्न. आर्थिक विकास से जुड़े जनांकिकीय संक्रमण के निम्नलिखित विशिष्ट चरणों पर विचार कीजिये:(2012)

  1. निम्न जन्म दर के साथ निम्न मृत्यु दर  
  2. उच्च जन्म दर के साथ उच्च मृत्यु दर  
  3. निम्न मृत्यु दर के साथ उच्च जन्म दर

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर उपर्युक्त चरणों का सही क्रम चुनिये:

(a) 1, 2, 3 
(b) 2, 1, 3
(c) 2, 3, 1 
(d) 3, 2, 1

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. "भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती।" सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिये कौन-से उपाय किये हैं? (2016)

प्रश्न. "जिस समय हम भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) को शान से प्रदर्शित करते हैं, उस समय हम रोज़गार-योग्यता की पतनशील दरों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।" क्या हम ऐसा करने में कोई चूक कर रहे हैं? भारत को जिन जॉबों की बेसबरी से दरकार है, वे जॉब कहाँ से आएँगे? स्पष्ट कीजिये। (2014)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2