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भूगोल

भारत का डीप ड्रिल मिशन

  • 16 Jul 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का डीप ड्रिल मिशन, भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत, भू-विज्ञान, ज्वालामुखी, पृथ्वी की संरचना, प्लेट विवर्तनिक 

मेन्स के लिये:

डीप ड्रिल मिशन का महत्त्व, पृथ्वी की संरचना में विभिन्न परतें, प्लेट विवर्तनिक की गति के प्रभाव, महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने महाराष्ट्र के कराड में बोरहोल जियोफिज़िक्स रिसर्च लेबोरेटरी (Borehole Geophysics Research Laboratory- BGRL) नामक एक विशेष संस्थान की मदद से पृथ्वी की भू-पर्पटी की 6 किलोमीटर गहराई तक वैज्ञानिक ड्रिलिंग का कार्य शुरू किया है।

  • इसके द्वारा पहले ही 3 किलोमीटर की गहराई तक ड्रिलिंग पूरी कर ली गई।

कोयना भारत के डीप ड्रिलिंग मिशन के लिये क्यों उपयुक्त है?

  • भूकंपीय उत्प्रेरकता (Triggered Seismicity): प्लेट विवर्तनिक (tectonic plate) सीमाओं पर होने वाले अधिकांश भूकंपों के विपरीत, कोयना में वर्ष 1962 में कोयना बाँध के निर्माण के बाद कई भूकंप आए। यह घटना, जहाँ मानवीय गतिविधि (जलाशय को भरने) के कारण भूकंप आते हैं, उसे जलाशय-प्रेरित भूकंपीयता (Reservoir-Induced Seismicity - RIS) कहा जाता है।
    • वैज्ञानिकों का लक्ष्य गहरी ड्रिलिंग के माध्यम से इन भूकंपों के स्रोत पर पृथ्वी की संरचना और दबाव का प्रत्यक्ष अध्ययन करना है।
  • सक्रिय भ्रंश क्षेत्र: कोयना-वार्ना क्षेत्र भूगर्भीय भ्रंश रेखा पर स्थित है, जिसके कारण यह स्वाभाविक रूप से भूकंप के प्रति संवेदनशील है।
  • हालाँकि यहाँ होने वाली घटनाएँ प्लेट सीमाओं पर होने वाली घटनाओं से भिन्न हैं।
  • पृथक गतिविधि: कोयना बाँध के 50 किलोमीटर के दायरे में भूकंपीय गतिविधि का कोई अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत नहीं है। यह अलगाव कोयना को केंद्रित अनुसंधान के लिये एक आदर्श स्थान बनाता है।

साइंटिफिक डीप ड्रिलिंग क्या है?

  • परिचय: 
    • साइंटिफिक डीप ड्रिलिंग से तात्पर्य है कि पृथ्वी की संरचना और प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिये पृथ्वी की भू-पर्पटी में डीप ड्रिलिंग करना शामिल है।
    • यह शोध भू-वैज्ञानिक संरचनाओं, प्राकृतिक संसाधनों और पृथ्वी के इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।
    • डीप ड्रिलिंग परियोजनाओं का उद्देश्य अक्सर विवर्तनिक, भूकंप तंत्र और भूतापीय ऊर्जा क्षमता के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाना होता है।
  • तकनीक और विधियाँ:
    • रोटरी ड्रिलिंग: इस विधि में चट्टानों को काटने के लिये एक घूमने वाली ड्रिल बिट का उपयोग किया जाता है। ड्रिल बिट को एक ड्रिल स्ट्रिंग से जोड़ा जाता है, जिसे एक रिग द्वारा घुमाया जाता है। बिट को ठंडा करने और चट्टानों को सतह पर ले जाने के लिये ड्रिलिंग मिट्टी को प्रसारित किया जाता है।
    • पर्कशन ड्रिलिंग (एयर हैमरिंग): यह हथौड़े को चलाने के लिये उच्च वायुदाब का उपयोग करता है जो ड्रिल बिट पर तेज़ी से प्रहार करता है, कुशलतापूर्वक चट्टान को तोड़ता है और कटिंग को बाहर निकालता है। यह खनिज अन्वेषण, पानी के कुओं और भूतापीय ऊर्जा जैसे कठोर चट्टान अनुप्रयोगों के लिये तेज़, लागत
      • कोयना ड्रिलिंग तकनीक में मड रोटरी ड्रिलिंग और पर्क्यूशन ड्रिलिंग (एयर हैमरिंग) का संयोजन किया जाता है।प्रभावी तथा बहुमुखी है, हालाँकि यह तेज आवाज़ कर सकता है और उथली गहराई के लिये सबसे उपयुक्त है।
    • हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग (फ्रैकिंग): फ्रैकिंग, जिसे हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग के रूप में भी जाना जाता है, एक तकनीक है जिसका उपयोग कभी-कभी चट्टानों को विभाजित करने के लिये किया जाता है जिसका उद्देश्य नमूने के लिये द्रव प्रवाह में सुधार करना या संसाधन निष्कर्षण के दौरान बेहतर परिणाम पाना होता है।
    • भू-भौतिकीय सर्वेक्षण: इसमें भूमिगत संरचनाओं का मानचित्रण करने तथा ड्रिलिंग कार्यों से पहले और उसके दौरान ड्रिलिंग लक्ष्यों की पहचान करने के लिये भूकंपीय, चुंबकीय एवं गुरुत्वाकर्षण विधियों का उपयोग किया जाता है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने की अन्य विधियाँ क्या हैं?

  • पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन प्रत्यक्ष विधियों जैसे ड्रिलिंग और गहरे बोरहोल के माध्यम से शैल का नमूना प्राप्त करने तथा अप्रत्यक्ष विधियों जैसे भूकंपीय तरंग विश्लेषण, गुरुत्वाकर्षण माप एवं पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करके किया जाता है।
    • भूकंपीय तरंगें: भूकंप से उत्पन्न भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।
      • भूकंपीय तरंगें पृथ्वी के आंतरिक भाग से होकर परिवहित होती हैं और उनकी अपवर्तन (Refraction) और परावर्तन (Reflection) जैसी गतिविधियाँ वैज्ञानिकों को विभिन्न परतों की संरचना और इनके गुणों का अनुमान लगाने में मदद करती हैं।
    • गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र माप: पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तन आंतरिक घनत्व तथा इसकी संरचना में परिवर्तन का संकेत देती हैं। ये माप पृथ्वी के क्रोड, मेंटल और क्रस्ट के बीच की सीमाओं की पहचान करने में मदद करते हैं।
    • ऊष्मा के प्रवाह का माप: पृथ्वी के आंतरिक भाग से बाहर निकलने वाली ऊष्मा विभिन्न परतों के ताप और ऊष्मीय गुणधर्मों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। यह जानकारी पृथ्वी की आंतरिक प्रक्रियाओं और गतिशीलता को समझने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • उल्कापिंड की संरचना: उल्कापिंडों का अध्ययन, जिन्हें प्रारंभिक सौर मंडल के अवशेष माना जाता है, पृथ्वी के आंतरिक भाग की संरचना और निर्माण के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।

विश्व की अन्य डीप ड्रिलिंग परियोजनाएँ

  • अमेरिका का प्रोजेक्ट मोहोल: 1960 के दशक में अमेरिका ने पृथ्वी की पर्पटी और मेंटल के बीच की सीमा से नमूने प्राप्त करने के लिये दुनिया का सबसे गहरा प्रवेधन (Drill) करने का प्रयास किया, जिसे मोहो डिसकंटिन्यूटी के नाम से जाना जाता है।
    • इसे वर्ष 1966 में रोक दिया गया लेकिन इसने ग्रह के संबंध में नवीन भू-वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करने के लिये गहरे समुद्र में प्रवेधन करने की क्षमता को प्रदर्शित किया।
  • कोला सुपरडीप बोरहोल: यह रूस में मानव द्वारा किया गया विश्व का सबसे गहरा रंध्र (Hole) है, जिसे 1970 के दशक में शुरू किया गया था जिसकी गहराई 12,262 मीटर थी।    
    • इस दौरान "कॉनराड डिसकंटिन्यूटी" के लोप, अत्यंत गहराई पर तरल पदार्थ की मौजूदगी और 2 अरब वर्ष प्राचीन सूक्ष्म जीवाश्मों जैसी अप्रत्याशित खोज हुई।
    • इसे वर्ष 1992 में रोक दिया गया और वर्ष 2005 में रंध्र को सील कर दिया गया। 
  • चीन की डीप होल परियोजना: चीन पृथ्वी की सतह के ऊपर और नीचे नई सीमाओं का पता लगाने के लिये शिंजियांग में 10,000 मीटर गहरा प्रवेधन कर रहा है। 
    • इसका उद्देश्य 10 से अधिक महाद्वीपीय परतों में प्रवेश करना और 145 मिलियन वर्ष प्राचीन क्रेटेशियस सिस्टम तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
  • डीप सी ड्रिलिंग प्रोजेक्ट (DSDP): इसकी शुरुआत वर्ष 1966 में हुई थी, जिसमें विभिन्न महासागरों में ड्रिलिंग और कोरिंग शामिल थी, जिससे महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज हुईं, जिसमें नमक के गुंबदों की पहचान तथा तेल की खोज के लिये उनकी क्षमता शामिल थी। इसे वर्ष 1972 में समाप्त कर दिया गया था।
  • एकीकृत महासागर ड्रिलिंग परियोजना (IODP): यह एक अंतर्राष्ट्रीय पहल है जो समुद्री अनुसंधान प्लेटफॉर्मों का उपयोग करके समुद्र तल के नमूनों के माध्यम से पृथ्वी के इतिहास और प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है।
    • इसके लक्ष्यों में पृथ्वी की दीर्घकालिक प्रक्रियाओं को समझना, गहन जीवमंडल की खोज करना, जलवायु इतिहास का अध्ययन करना तथा भूपर्पटी और मेंटल की जाँच करना शामिल है।
    • IODP वैश्विक अभियानों के लिये जापान, अमेरिका और अन्य साझेदारों के अनुसंधान जहाज़ों को नियुक्त करता है, जिससे ग्रह संबंधी ज्ञान में वृद्धि होती है।

कोयना में डीप ड्रिलिंग मिशन के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • क्षेत्र का गंभीर तनाव: कोयना क्षेत्र अत्यधिक तनावग्रस्त है, जिससे यह छोटे तनाव संबंधी विक्षोभों के प्रति संवेदनशील है, जिससे बार-बार छोटे-तीव्रता वाले भूकंप आ सकते हैं।
  • 3 किमी. तक जल की उपस्थिति: 3 किमी. नीचे पाया जाने वाला जल उल्कापिंड या वर्षा आधारित है, जो गहरे रिसाव और परिसंचरण का संकेत देता है।
  • जलाशय से उत्पन्न भूकंपों के संबंध में जानकारी: इस मिशन से ज्ञात हुआ कि 65 मिलियन वर्ष पुराने डेक्कन ट्रैप लावा प्रवाह का 1.2 किमी. हिस्सा 2,500-2,700 मिलियन वर्ष पुराने ग्रेनाइट बेसमेंट चट्टानों के ऊपर स्थित है।
  • चट्टान संबंधी जानकारी: 3 किमी. गहराई से लिये गए कोर नमूनों से चट्टानों के भौतिक और यांत्रिक गुणों, निर्माण तरल पदार्थ तथा गैसों की रासायनिक एवं समस्थानिक संरचना, तापमान व तनाव व्यवस्था तथा फ्रैक्चर अभिविन्यासों के बारे में नई जानकारी मिली।
  • डेटा सत्यापन: ध्वनिक और सूक्ष्म-प्रतिरोधकता तकनीकों का उपयोग करके बोरहोल दीवार की उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियाँ वैश्विक वैज्ञानिकों को अन्य कोर से डेटा को सत्यापित करने की अनुमति देती हैं।
  • हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग एंड फॉल्ट डिटेक्शन: टीम ने चट्टानों के स्व-स्थानिक तनाव शासन को मापने के लिये हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग प्रयोग किये। विभिन्न डेटासेट तथा उन्नत विश्लेषण को एकीकृत करके, उन्होंने दबे हुए फॉल्ट ज़ोन का पता लगाया एवं उनका अध्ययन किया।

डीप ड्रिलिंग मिशन का महत्त्व क्या है?

  • भूकंप की बेहतर समझ और भू-खतरा प्रबंधन: इसे गहरे बोरहोलों में सेंसर लगाकर प्राप्त किया जा सकता है, ताकि दोष रेखाओं की निगरानी की जा सके, जिससे बेहतर पूर्वानुमान मॉडल एवं जोखिम न्यूनीकरण संभव हो सके।
    • इसके अतिरिक्त, गहरी ड्रिलिंग से पृथ्वी की पपड़ी पर सटीक डेटा मिलता है, जो भू-खतरों के प्रबंधन और खनिजों और हाइड्रोकार्बन जैसे भू-संसाधनों की खोज के लिये आवश्यक है।
  • भू-वैज्ञानिक मॉडलों का सत्यापन: ड्रिलिंग से प्रत्यक्ष अवलोकन और नमूनाकरण, भू-वैज्ञानिक मॉडलों की पुष्टि या खंडन करने तथा टेक्टोनिक प्रक्रियाओं और भूपर्पटी की गतिशीलता के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने की सुविधा मिलती है। 
  • तकनीकी नवाचार और आत्मनिर्भरता: गहरी ड्रिलिंग में निवेश से भूकंप विज्ञान, ड्रिलिंग तकनीक, सेंसर विकास तथा डेटा विश्लेषण में प्रगति को बढ़ावा मिलता है, जिससे भारत में तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है।
  • वैश्विक वैज्ञानिक योगदान: भारत में गहन ड्रिलिंग परियोजनाओं से प्राप्त निष्कर्ष वैश्विक भू-विज्ञान ज्ञान में योगदान देते हैं, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हैं और पृथ्वी की प्रणालियों की समग्र समझ को बढ़ाते हैं।                        

डीप ड्रिलिंग मिशन के साथ चुनौतियाँ क्या हैं?

  • रिग क्षमता: जैसे-जैसे गहराई बढ़ती है, ड्रिलिंग रिग की हुक लोड क्षमता एक महत्त्वपूर्ण बाधा बन जाती है, जिससे 3 किलोमीटर के लिये 100 टन के रिग की तुलना में 6 किलोमीटर के पायलट के लिये कहीं अधिक शक्तिशाली रिग की आवश्यकता होती है।
  • ड्रिलिंग जटिलता: अधिक गहराई पर खंडित एवं भूकंपीय रूप से सक्रिय चट्टान संरचनाओं के माध्यम से ड्रिलिंग करना अधिक जटिल हो जाता है, जिससे उपकरणों के फँसने का जोखिम बढ़ जाता है और साथ ही सीमित पहुँच के कारण समस्या निवारण में जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • कोर हैंडलिंग: 3 किलोमीटर से अधिक गहराई से लंबे और भारी चट्टान कोर को निकालना तथा उठाने पर विशेष तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • बोरहोल की स्थिरता:  गहरे बोरहोल में फॉल्ट लाइन एवं फ्रैक्चर ज़ोन का सामना करने की अधिक संभावना होती है, जो बोरहोल स्थिरता से समझौता कर सकता है और साथ ही ड्रिल को चलाने के लिये  विशेष उपकरण की आवश्यकता होती है।
  • मानव संसाधन: गहरी ड्रिलिंग प्रचालनों की विस्तारित अवधि, जो 3 किलोमीटर के लिये 6-8 महीने तथा 6 किलोमीटर के लिये 12-14 महीने तक चलती है, अत्यधिक कुशल तकनीकी कर्मिकों पर भारी बोझ डालती है, जिन्हें कठोर परिस्थितियों में 24/7 साइट पर कार्य करना पड़ता है।

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निष्कर्ष

3 किलोमीटर पायलट ड्रिलिंग डेटा भविष्य की 6 किमी. योजनाओं का मार्गदर्शन करेगा, जिसमें 110-130 डिग्री सेल्सियस के तापमान के लिये उपकरण एवं सेंसर डिज़ाइन शामिल हैं। कोयना के निष्कर्ष औद्योगिक क्षमता के साथ दोष क्षेत्रों से लेकर गहरे उपसतह सूक्ष्मजीवों तक विविध शोध को सक्षम बनाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय रुचि में गहरे डेक्कन ट्रैप में कार्बन कैप्चर पर परियोजनाएँ शामिल हैं। यह प्रयास भारत की वैज्ञानिक ड्रिलिंग क्षमता को मज़बूत करता है और साथ ही अंतःविषय ज्ञान को भी विस्तृत करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. साइंटिफिक डीप ड्रिलिंग क्या है? इसके महत्त्व एवं चुनौतियों पर चर्चा कीजिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2013)

  1. विद्युत चुंबकीय विकिरण 
  2. भू-तापीय ऊर्जा 
  3. गुरुत्वाकर्षण बल 
  4. प्लेट संचलन 
  5. पृथ्वी का घूर्णन 
  6. पृथ्वी की परिक्रमा

उपर्युक्त में से कौन पृथ्वी की सतह पर गतिशील परिवर्तन लाने के लिये ज़िम्मेदार हैं?

(a) केवल 1, 2, 3 और 4
(b) केवल 1, 3, 5 और 6
(c) केवल 2, 4, 5 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंपों की आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है। फिर भी इनके प्रभाव के न्यूनीकरण हेतु भारत की तैयारी (तत्परता) में महत्त्वपूर्ण कमियाँ है। विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. भूकंप से संबंधित संकटों के लिये भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिये। पिछले तीन दशकों में भारत के विभिन्न भागों में भूकंपों द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ कीजिये। (2021)

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