अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-रूस शिखर सम्मेलन
- 08 Dec 2021
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:S-400 वायु रक्षा मिसाइल, ‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद, हिंद महासागर क्षेत्र मेन्स के लिये:भारत-रूस संबंध और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत दौरे पर आए। दोनों देशों के मध्य हुए बैठक में कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए। यह बैठक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह दोनों देशों के विदेश मंत्रयों और रक्षा मंत्रियों के बीच पहली 2+2 (2+2 Meeting) बैठक थी।
- अप्रैल 2021 भारत और रूस के बीच एक आम सहमति विकसित करने के लिये दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने एक दूसरे की चिंताओं से संबंधित विभिन्न मुद्दों को संबोधित किया।
प्रमुख बिंदु
- पहली भारत-रूस 2+2 वार्ता: यह दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के मध्य पहली 2+2 बैठक है।
- ‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (Quadrilateral Security Dialogue) अर्थात् क्वाड के सदस्य देशों- अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ 2+2 प्रारूप बैठकों का आयोजित किया गया है।
- कलाश्निकोव राइफल्स पर समझौता: दोनों पक्षों के मध्य अमेठी, उत्तर प्रदेश में एक संयुक्त उद्यम के तहत लगभग 600,000 एके-203 (AK-203) राइफल्स के निर्माण के लिये दो अनुबंधों पर हस्ताक्षर किया गया।
- सैन्य सहयोग के लिये समझौता: दोनों देशों द्वारा अगले दशक वर्ष 2021 से 2031 तक के एक सैन्य प्रौद्योगिकी सहयोग के लिये एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किया गया।
- भारत ने सिर्फ एक खरीदार के रूप में रूस का रक्षा विकास और उत्पादन भागीदार बनने के अपने लक्ष्य को रेखांकित किया।
- दोनों पक्ष अब सैन्यअभ्यासों के प्रारूप का विस्तार करने पर विचार कर रहे हैं ताकि उन्हें और अधिक प्रगाढ़ किया जा सके और साथ ही मध्य एशिया में भारत-रूस सहयोग के विस्तार पर भी विचार किया जा सकें।
- रसद समझौते के पारस्परिक आदान-प्रदान को आगे बढ़ाना: रक्षा बिक्री से परे, रसद समझौते का पारस्परिक आदान-प्रदान (Reciprocal Exchange of Logistics Agreement- RELOS) नौसेना से सैन्य सहयोग समझौता ज्ञापन निष्कर्ष के उन्नत चरणों में हैं।
- सैन्य प्रोटोकॉल: दोनों देशों द्वारा सैन्य और सैन्य तकनीकी सहयोग ((IRIGC-M&MTC) पर 20वें भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग के प्रोटोकॉल पर भी हस्ताक्षर किया गया।
- ‘IRIGC-M&MTC’ पिछले दो दशकों से एक अच्छी तरह से स्थापित तंत्र है, जो रक्षा सहयोग के लिये पारस्परिक रूप से सहमत एजेंडे पर चर्चा करने और लागू करने हेतु एक मंच प्रदान करता है।
- एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम डील: भारत ने ज़ोर देकर कहा कि वह एक "स्वतंत्र विदेश नीति" का पालन करता है, जो अमेरिका के काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शंस एक्ट (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) की ओर इशारा करता है।
- इसे S-400 वायु रक्षा मिसाइल (S-400 Air Defence Missile) प्रणालियों की आपूर्ति के संदर्भ में संदर्भित किया जाता है.
- भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट पर चर्चा: अफगानिस्तान, मध्य पूर्व की स्थिति के साथ मध्य एशिया का व्यापक प्रभाव है।
- समुद्री सुरक्षा और इसकी हिफाजत पर दोनों देशों द्वारा साझा चिंता व्यक्त की गई।
- बैठक में चीन के आक्रामक रुख का मुद्दा भी उठाया गया।
- दोनों देशों द्वारा मध्य एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में अधिक से अधिक जुड़ाव का प्रस्ताव रखा गया।
भारत के लिये रूस का महत्त्व
- चीन को संतुलित करना: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रमण ने भारत-चीन संबंधों को एक मोड़ पर ला दिया, लेकिन यह भी प्रदर्शित किया कि रूस चीन के साथ तनाव को कम करने में योगदान देने में सक्षम है।
- लद्दाख के विवादित क्षेत्र में गलवान घाटी में घातक झड़पों के बाद रूस ने भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की।
- आर्थिक जुड़ाव के उभरते नए क्षेत्र: हथियारों, हाइड्रोकार्बन, परमाणु ऊर्जा और हीरे जैसे सहयोग के पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा आर्थिक जुड़ाव के नए क्षेत्रों के उभरने की संभावना है। इनमें खनन, कृषि-औद्योगिक और उच्च प्रौद्योगिकी, जिसमें रोबोटिक्स, नैनोटेक तथा बायोटेक शामिल हैं।
- रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक में भारत के पदचिन्हों का विस्तार होना तय है। कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को भी बढ़ावा मिल सकता है।
- आतंकवाद का मुकाबला: भारत और रूस अफगानिस्तान के बीच की खाई को पाटने के लिये काम कर रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने का आह्वान कर रहे हैं।
- बहुपक्षीय मंचों का समर्थन: इसके अतिरिक्त रूस एक सुधारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
- रूस का सैन्य निर्यात: रूस भारत के लिये सबसे बड़े हथियार निर्यातकों में से एक रहा है। यहाँ तक कि वर्ष 2011 से 2015 की तुलना में पिछले पाँच वर्ष की अवधि में भारत को हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी 50% से अधिक गिर गई।
- वैश्विक हथियारों के व्यापार की निगरानी करने वाले ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में भारत ने रूस से 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर के हथियार और सैन्य सामग्री आयात की है।
आगे की राह
- समय पर रख-रखाव सहायता प्रदान करने के लिये रूस: भारतीय सेना के साथ सेवा में रूसी हार्डवेयर की बड़ी सूची के लिये पुर्जों की समय पर आपूर्ति और समर्थन भारत के संदर्भ में एक प्रमुख मुद्दा रहा है।
- इसे संबोधित करने के लिये रूस ने वर्ष 2019 में हस्ताक्षरित एक अंतर-सरकारी समझौते के बाद अपनी कंपनियों को भारत में संयुक्त उद्यम स्थापित करने की अनुमति देते हुए विधायी परिवर्तन किये हैं।
- इस समझौते को समयबद्ध तरीके से लागू करने की ज़रूरत है।
- एक दूसरे के महत्त्व को स्वीकार करना: रूस आने वाले दशकों तक भारत के लिये एक प्रमुख रक्षा भागीदार बना रहेगा।
- दूसरी ओर रूस और चीन वर्तमान में एक अर्द्ध-गठबंधन एलायंस में हैं। रूस बार-बार दोहराता है कि वह खुद को किसी के कनिष्ठ भागीदार के रूप में नहीं देखता है। इसलिये रूस चाहता है कि भारत उसके लिये एक संतुलक का काम करे।
- संयुक्त सैन्य उत्पादन: दोनों देश इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि वे तीसरे देशों को रूसी मूल के उपकरण और सेवाओं के निर्यात के लिये भारत को उत्पादन आधार के रूप में उपयोग करने में कैसे सहयोग कर सकते हैं।