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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-म्याँमार

  • 24 Dec 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-म्याँमार सहयोग, कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट परियोजना, रखाइन राज्य विकास कार्यक्रम, सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

भारत के लिये म्याँमार का महत्त्व, म्याँमार में तख्तापलट और भारत के लिये इसके निहितार्थ, एक्ट ईस्ट नीति, भारत की "पड़ोस पहले" नीति।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत द्वारा पड़ोसी देश (म्याँमार) को  'मेड इन इंडिया' कोरोनावायरस टीकों की 10 लाख खुराक और निरंतर मानवीय सहायता के हिस्से के रूप में 10,000 टन चावल और गेहूंँ का अनुदान प्रदान किया गया है।

  • 1 फरवरी, 2021 को तख्तापलट में म्याँमार की सेना द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई आंग सान सू की सरकार को अपदस्थ करने के बाद से किसी भारतीय विदेश सचिव की म्याँमार की यह पहली यात्रा थी।

Myanmar

प्रमुख बिंदु 

  • भारतीय विदेश मंत्री द्वारा म्याँमार में "जल्द-से-जल्द" "लोकतंत्र की वापसी", दोनों देशों के मध्य राजनीतिक कैदियों की "मुक्ति" का आह्वान किया गया। बातचीत के माध्यम से मुद्दों का समाधान और सभी प्रकार की हिंसा को पूर्ण रूप से समाप्त करने की बात की गई।
  • आसियान पहल के लिये भारत के मज़बूत और लगातार समर्थन की पुष्टि की गई तथा आशा व्यक्त की कि पांँच सूत्रीय सहमति के आधार पर इस दिशा में व्यावहारिक और रचनात्मक तरीके से प्रगति की जाएगी।
    • आसियान के पांँच सूत्रीय सहमति के प्रति सर्वसम्मति व्यक्त करते हुए म्याँमार में हिंसा को तत्काल समाप्त करने की बात की गई तथा सभी पक्षों से संयम बरतने को कहा गया, लोगों के हित में शांतिपूर्ण समाधान तलाशने के लिये सभी संबंधित पक्षों के बीच रचनात्मक बातचीत शुरू करने पर भो सहमति व्यक्त की गई।
  • भारत-म्याँमार सीमा क्षेत्रों के साथ-साथ व्यक्ति-केंद्रित सामाजिक-आर्थिक विकास परियोजनाओं के लिये  भारत के निरंतर समर्थन से कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट परियोजना और त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी परिचालित कनेक्टिविटी पहलों के शीघ्र कार्यान्वयन हेतु भारत की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
  • म्याँमार के लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए रखाइन राज्य विकास कार्यक्रम और सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम के तहत परियोजनाओं को जारी रखने के लिये भारत की प्रतिबद्धता दोहराई गई।
  • इस बात पर ज़ोर दिया गया कि म्याँमार में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होने पर उत्तर पूर्व के राज्यों में भी शांति और सुरक्षा प्रभावित होती है।
    • हाल के दिनों में सिर्फ रोहिंग्या ही नहीं हैं जिन्होंने म्याँमार से भारत में घुसने की कोशिश की है। रिपोर्टों के अनुसार, म्याँमार की सेना में सेवारत पुलिसकर्मी और देश छोड़कर भागे अन्य लोगों द्वारा मिज़ोरम, मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में शरण ली गई है।

भारत-म्याँमार संबंध

  • भूमिका: 
    • भारत और म्याँमार के संबंध आधिकारिक तौर पर वर्ष 1951 में मैत्री संधि पर हस्ताक्षर के बाद शुरू हुए, इसके बाद वर्ष 1987 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की यात्रा के दौरान अधिक सार्थक संबंधों की नींव रखी गई।
  • बहुआयामी संबंध:
    • बंगाल की खाड़ी के साथ एक लंबी भौगोलिक और समुद्री सीमा साझा करने के अलावा भारत और म्याँमार के बीच पारंपरिक रूप से सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, जातीय और धार्मिक संबंधों में बहुत कुछ समानता है।
  • म्याँमार की भू-सामरिक स्थिति: 
    • म्याँमार भारत के लिये भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दक्षिण-पूर्व एशिया के केंद्र में स्थित है।
    • म्याँमार एकमात्र दक्षिण-पूर्व एशियाई देश है जो उत्तर-पूर्वी भारत के साथ लगभग 1,624 किलोमीटर की थल सीमा साझा करता है।
    • दोनों देश बंगाल की खाड़ी में 725 किलोमीटर की समुद्री सीमा भी साझा करते हैं।
  • दो विदेश नीति सिद्धांतों का संगम:
    • म्याँमार एकमात्र ऐसा देश है जो भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीतिऔर "एक्ट ईस्ट" नीति के केंद्र में है।
    • भारत-प्रशांत क्षेत्रीय कूटनीति के संदर्भ में भारत के लिये म्याँमार एक महत्त्वपूर्ण देश है और दक्षिण एशिया व दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने के लिये एक भूमि पुल के रूप में कार्य करता है।
  • चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा: 
    • यदि भारत एशिया में एक मुखर क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित करना चाहता है, तो इसे ऐसी नीतियों के विकास की दिशा में काम करना होगा जो पड़ोसी देशों के साथ इसके संबंधों को बेहतर और मज़बूत बनाने में सहायक हों।
    • हालाँकि इस नीति के कार्यान्वयन में चीन एक बड़ी बाधा है, क्योंकि चीन का लक्ष्य भारत के पड़ोसियों पर इसके प्रभुत्व को समाप्त करना है। ऐसे में भारत और चीन दोनों ही म्याँमार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिये एक अप्रत्यक्ष मुकाबला कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये हिंद महासागर हेतु स्थापित अपनी ‘सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन’ या सागर (SAGAR) नीति के तहत भारत ने म्याँमार के रखाईन प्रांत में सित्वे बंदरगाह को विकसित किया है।   
    • ‘सित्वे’ (Sittwe) बंदरगाह को म्याँमार में चीन समर्थित ‘क्याउक्प्यू’ (Kyaukpyu) बंदरगाह के लिये भारत की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है, गौरतलब है कि क्याउक्प्यू बंदरगाह का उद्देश्य रखाईन प्रांत में चीन की भू-रणनीतिक पकड़ को मज़बूत करना है।
  • भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु महत्त्वपूर्ण:
    • पूर्वोत्तर भारत के राज्य वामपंथी उग्रवाद और मादक पदार्थों के व्यापार मार्गों (स्वर्णिम त्रिभुज) से प्रभावित हैं।
    • इन चुनौतियों से निपटने के लिये भारत और म्याँमार की सेनाओं द्वारा ऑपरेशन सनशाइन जैसे कई संयुक्त सैन्य अभियान संचालित किये गए हैं।
  • आर्थिक सहयोग:
    • कई भारतीय कंपनियों ने म्याँमार में बुनियादी ढाँचा सहित बहुत से अन्य क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण आर्थिक तथा व्यापारिक समझौते किये हैं।
    • कुछ अन्य भारतीय कंपनियों जैसे- एस्सार (Essar), गेल और ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ONGC Videsh Ltd.) ने म्याँमार के ऊर्जा क्षेत्र में निवेश किया है। 
    • भारत ने अपने "मेड इन इंडिया" रक्षा उद्योग और सैन्य निर्यात को बढ़ावा देने के लिये एक प्रमुख घटक के रूप में म्याँमार की पहचान की है। 

आगे की राह 

  • भले ही भारत द्विपक्षीय और विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली का आह्वान करता है लेकिन भारत की चिंता को दूर करने के लिये म्याँमार में सेना के साथ तालमेल बढ़ाना होगा तथा इसे एक हितधारक बनाना होगा जो राजनीतिक बंदियों की रिहाई सहित लोकतांत्रिक मोर्चे पर काम कर सके।
    • भारत यदि म्याँमार की सेना को अधिकारविहीन करता है तो वह चीन की तरफ अपना रुख करेगी। तख्तापलट के बाद से म्याँमार पर चीन की आर्थिक पकड़ केवल चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारे के लिये महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर विशेष ध्यान देने मात्र से मज़बूत हो गई है।
  • भारत की "बौद्ध सर्किट" पहल, जो भारत के विभिन्न राज्यों में प्राचीन बौद्ध विरासत स्थलों को जोड़कर विदेशी पर्यटकों के आगमन और राजस्व को दोगुना करने हेतु शुरू की गई है, में बौद्ध-बहुल म्याँमार को भी शामिल किया जा सकता है।
  • रोहिंग्या मुद्दे को जितनी जल्दी सुलझाया जाएगा, भारत के लिये म्याँमार और बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों का प्रबंधन करना उतना ही आसान होगा, इसके अतिरिक्त द्विपक्षीय एवं उपक्षेत्रीय आर्थिक सहयोग पर अधिक ध्यान देने की भी आवश्यकता है।
  • अंततः आसियान और बिम्सटेक जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों में सहयोग दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करेगा।

स्रोत: द हिंदू

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