अंतर्राष्ट्रीय संबंध
UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता का मामला
- 07 Aug 2021
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प्रिलिम्स के लियेसंयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष, जी4 मेन्स के लियेUNSC में भारत : विगत योगदान तथा वर्तमान चुनौतियाँ , भारत द्वारा UNSC की अध्यक्षता ग्रहण करने के लाभ एवं वैशिक परिदृश्य में इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
पूर्व में ओबामा और ट्रम्प प्रशासन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन किया था। हालाँकि नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन शासन के तहत अमेरिकी विदेश विभाग के हालिया बयान इस मुद्दे पर एक अस्पष्ट या आधे-अधूरे विचार को दर्शाते हैं।
प्रमुख बिंदु
हाल के दृष्टिकोण की मुख्य विशेषताएँ:
- अमेरिका के अनुसार, सुरक्षा परिषद में ऐसा सुधार होना चाहिये, जिसमें सभी का प्रतिनिधित्व हो, प्रभावी हो और जो अमेरिका तथा संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के हित में प्रासंगिक हो।
- हालाँकि अमेरिका स्थायी व अस्थायी सदस्यों के लिये परिषद (UNSC ) के विस्तार पर आम सहमति कायम करने का पूर्ण समर्थन करता है।
- अमेरिका वीटो के विस्तार का समर्थन नहीं करेगा, जिसका वर्तमान में पाँच स्थायी सदस्यों (P-5) द्वारा प्रयोग किया जाता है: चीन, फ्राँस, रूस, यूके तथा यूएस।
- साथ ही संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत ने इस बात से इनकार किया था कि अमेरिका ने UNSC की स्थायी सदस्यता के लिये भारत और G4 (जापान, जर्मनी और ब्राज़ील) के अन्य सदस्यों का समर्थन किया है।
- इसने यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस (UFC) समूह- पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, इटली और अर्जेंटीना द्वारा क्षेत्रीय असहमति का हवाला दिया, जो G4 योजना का विरोध करता है।
UNSC में सुधारों की आवश्यकता:
- UNSC की गैर-लोकतांत्रिक प्रकृति: दो क्षेत्रों (उत्तरी अमेरिका और यूरोप) को छोड़कर अन्य क्षेत्रों को या तो कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है (जैसे- एशिया) या बिल्कुल भी प्रतिनिधित्व (अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और छोटे विकासशील द्वीपीय राज्य) नहीं दिया जाता है।
- वीटो पावर का दुरुपयोग: P-5 देशों द्वारा वीटो पावर का इस्तेमाल अपने और अपने सहयोगियों के रणनीतिक हितों की पूर्ति के लिये किया जाता है।
- उदाहरण के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका ने इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के मामले में अपने सहयोगी इज़रायल का समर्थन करने हेतु 16 बार परिषद के प्रस्तावों पर वीटो पेश किया।
- ग्लोबल गवर्नेंस का अभाव: इंटरनेट, स्पेस, हाई सीज़ (किसी के EEZ-अनन्य आर्थिक क्षेत्र से बाहर) जैसे ग्लोबल कॉमन्स के लिये कोई नियामक तंत्र नहीं है।
- साथ ही ये आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य (जैसा कि वर्तमान महामारी में देखा गया है) जैसे वैश्विक मुद्दों से निपटने के तरीके पर एकमत नहीं हैं।
- इन सभी कारकों के कारण संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने कहा कि सुरक्षा परिषद को या तो सुधार करना चाहिये या तेज़ी से अप्रासंगिक होने का जोखिम उठाना चाहिये।
UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता का मामला:
- संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के साथ भारत का ऐतिहासिक संघ: भारत संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य है।
- भारत अब तक दो वर्ष की गैर-स्थायी सदस्य सीट के लिये आठ बार निर्वाचित हुआ है।
- सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत में P5 देशों की तुलना में ज़मीन पर तैनात शांति सैनिकों की संख्या लगभग दोगुनी है।
नोट:
- अतीत में भारत को दोनों महाशक्तियों अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा क्रमशः वर्ष 1950 और 1955 में UNSC में शामिल होने की पेशकश की गई थी।
- हालाँकि भारत ने उस दौर में शीत युद्ध की राजनीति के चलते इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
- भारत वर्तमान में (2021 और 2022 के लिये) UNSC का अस्थायी सदस्य है और अगस्त महीने के लिये अध्यक्ष है।
- भारत का आंतरिक मूल्य: भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र और दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश (जल्द ही सबसे अधिक आबादी वाला देश) होने के कारण इसे UNSC में स्थायी सदस्यता प्रदान करने के प्राथमिक कारण हैं।
- साथ ही भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
- भारत की भू-राजनीतिक स्थिति: मई 1998 में भारत को एक परमाणु हथियार संपन्न राज्य (NWS) का दर्जा प्राप्त हुआ था, जो कि एक स्थायी सदस्य के रूप में भारत की दावेदारी का महत्त्वपूर्ण आधार है, क्योंकि परिषद के वर्तमान सभी स्थायी सदस्य परमाणु हथियार संपन्न देश हैं।
- इसके अलावा भारत को विभिन्न निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं जैसे- MTCR और वासेनर व्यवस्था आदि में शामिल किया गया है।
- राजनीति, सतत् विकास, अर्थशास्त्र, संस्कृति और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे विविध क्षेत्रों में भारत के लगातार बढ़ते वैश्विक कद के कारण देश की वैश्विक क्षमता काफी मज़बूत हुई है।
- विकासशील विश्व का प्रतिनिधित्व: भारत तीसरी दुनिया के देशों का निर्विवाद प्रतिनिधि है, जो कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका से परिलक्षित होता है।
स्थायी सदस्यता संबंधी भारत की चुनौतियाँ:
- आलोचकों द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि भारत ने अभी भी परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और वर्ष 1996 में व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर करने से भी इनकार कर दिया था।
- चीन, जिसके पास UNSC में वीटो पावर है, स्थायी सदस्य बनने के भारत के प्रयासों को लेकर चुनौतियाँ पैदा कर रहा है।
- यद्यपि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण स्थान पर है और देश का व्यापक आर्थिक बुनियादी ढाँचा भी स्थिर है, किंतु भारत मानव विकास सूचकांक जैसे कई सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में भारत खराब प्रदर्शन कर रहा है।
- हिंद महासागर क्षेत्र से परे अपनी सैन्य शक्ति को प्रदर्शित करने की भारत की क्षमता का परीक्षण किया जाना अभी शेष है। इसके अलावा भारत अपनी सैन्य आवश्यकताओं के लिये अमेरिका और रूस से हथियारों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है।