इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिये अमेरिका की रणनीति | 16 Jan 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी सरकार ने एक गोपनीय दस्तावेज़ को सार्वजनिक किया है जिसमें कहा गया है कि समान विचारधारा वाले देशों के सहयोग से भारत, रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इंडो-पैसिफिक क्षेत्र (Indo-Pacific Region) में चीन को प्रतिसंतुलित कर सकता है।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिये अमेरिका की रणनीति संबंधी वर्ष 2018 का यह गोपनीय दस्तावेज़ इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन, उत्तर कोरिया, भारत और अन्य देशों के उद्देश्यों, चुनौतियों और रणनीतियों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
प्रमुख बिंदु:
अमेरिका के समक्ष चुनौतियाँ:
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के सामरिक महत्त्व को बनाए रखना तथा चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना।
- यह सुनिश्चित करना कि उत्तर कोरिया अमेरिका के लिये किसी प्रकार का खतरा उत्पन्न न करे।
- निष्पक्ष और पारस्परिक व्यापार को आगे बढ़ाते हुए वैश्विक स्तर पर अमेरिका के आर्थिक हितों को आगे बढ़ाना।
भारत से संबंधित पहलू:
- भारत सुरक्षा संबंधित मुद्दों पर अमेरिका का एक पसंदीदा भागीदार देश है जो दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में समुद्री सुरक्षा के संरक्षण तथा चीन के बढ़ते प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने में सहयोग कर सकता है। अत: ऐसी स्थिति में अमेरिका का लक्ष्य भारत का सहयोग प्राप्त करना है:
- भारत के वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षा का समर्थन किया जाना चाहिये , जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया दृष्टिकोण के साथ इसकी संगतता को उजागर करता है।
- भारत के साथ मिलकर ‘घरेलू आर्थिक सुधार की दिशा’ में कार्य करना।
- रक्षा क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग और क्षमता में वृद्धि करना।
- पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और आसियान के रक्षा मंत्रियों की प्लस बैठक (ASEAN Defence Ministers’ Meeting Plus) में भारत को अधिक-से-अधिक नेतृत्व की भूमिकाएँ प्रदान करना।
- भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policy) का समर्थन करना।
भारत बनाम चीन:
- भारत-चीन विवाद को हल करने में भारत की मदद करना: अमेरिका का उद्देश्य सैन्य, राजनयिक तथा खुफिया चैनलों के माध्यम से भारत का समर्थन करना है ताकि महाद्वीपीय चुनौतियों जैसे- चीन के साथ सीमा विवाद, नदियों को लेकर विवाद, ब्रह्मपुत्र और चीन की तरफ से भारत में बहने वाली नदियों संबंधी विवाद का समाधान किया जा सके।
- बेल्ट रोड इनिशिएटिव से अलग रहने की भारत की रणनीति का समर्थन: अमेरिका, चीन की बेल्ट रोड इनिशिएटिव के तहत चीनी वित्तपोषण के कारण ऋण चक्र में फँस चुके देशों को अवसंरचना विकास संबंधी ऋण देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता चाहता है।
- भारत और जापान के साथ कार्य करना: भारत और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के अन्य देशों के मध्य क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने वाली वित्त परियोजनाओं की सहायता करना।
भारत-अमेरिका संबंध:
- लोकतांत्रिक मूल्यों को साझा करना और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों से संबंधित हितों पर और अधिक ध्यान केंद्रित करना।
- व्यापार और निवेश, रक्षा व सुरक्षा, शिक्षा, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी एवं साइबर सुरक्षा आदि व्यापक बहु-क्षेत्रीय संबंधों को मज़बूती प्रदान करना।
लोगों के मध्य जुड़ाव: दोनों देशों के राजनीतिक स्पेक्ट्रम/परिदृश्य लोगों के मध्य व्यापक संपर्क और समर्थन, दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों का पोषण करता है।
- दोनों देश ने एक-दूसरे को सैन्य सूचना और सैन्य-तंत्र से संबंधित सहायता प्रदान करने के लिये अनेक रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं-
- संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications Compatibility and Security Agreement -COMCASA)
- लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (Logistics Exchange Memorandum of Agreement -LEMOA)
- सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (General Security Of Military Information Agreement -GSOMIA)
- मूल विनिमय और सहयोग समझौता (Basic Exchange and Cooperation Agreement -BECA): यह भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका 2 + 2 वार्ता का परिणाम था।
संयुक्त राज्य अमेरिका-चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता:
- विश्व वित्त पर हावी होने की प्रतियोगिता: USA के प्रभुत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन का मुकाबला करने के लिये चीन एशिया इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक और न्यू डेवलपमेंट बैंक जैसे वैकल्पिक वित्तीय संस्थानों को प्रोत्साहित कर रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय समूहों पर प्रभावी प्रभाव: संयुक्त राज्य अमेरिका ने चीन के उभार को नियंत्रित करने के लिये अपनी 'एशिया धुरी' (Pivot to Asia) नीति के तहत क्वाड पहल (Quad Initiative) और हिंद-प्रशांत नीति (Indo Pacific Narrative) शुरू की है। हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसमें चीन को शामिल किये बिना G-7 को G-11 तक विस्तारित करने का प्रस्ताव रखा।
- नया शीत युद्ध: USA-चीन का टकराव वैचारिक और सांस्कृतिक सर्वोच्चता, व्यापार युद्ध जैसे कई मोर्चों पर है, जिन्हें अक्सर न्यू शीत युद्ध कहा जाता है।
आगे की राह
- हितों और रिश्तों में संतुलन रखना: भारत को USA-चीन प्रतिद्वंद्विता में पड़ने की बजाय अपनी बढ़ती वैश्विक शक्ति को पहचानना चाहिये। दोनों देशों के साथ रिश्तों को शांतिपूर्ण बनाए रखते हुए अपने स्वयं के हित और विकास को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- बहुपक्षीयता को बढ़ावा: भारत नए बहुपक्षवाद द्वारा वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को बढ़ावा दे सकता है जो न्यायसंगत धारणीय विकास के लिये आर्थिक व्यवस्था और सामाजिक व्यवहार दोनों पर निर्भर करता है।