चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों के शुद्ध निर्यातक के रूप में भारत | 09 May 2024
प्रिलिम्स के लिये:गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP), फार्मास्यूटिकल गुणवत्ता प्रणाली, फार्मास्यूटिकल कंपनियाँ,फार्मास्यूटिकल प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना (PTUAS), PMPDS, फार्मास्यूटिकल्स के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), अनुसूची M और WHO-GMP मानक,केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940, मेन्स के लिये:संशोधित गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस, भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग, स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप,अप्रभावी औषधि विनियमों के परिणाम। |
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में प्रथम बार चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों और डिस्पोज़ेबल्स सामग्री का शुद्ध निर्यातक बनकर चिकित्सा संबंधी सामग्री (medical goods) व्यवसाय में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है।
- यह उस पुरानी प्रवृत्ति के परिवर्तित होने का संकेत है जहाँ ऐसे उत्पादों का आयात निर्यात से अधिक था।
भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग की क्या स्थिति है?
- परिचय:
- भारत ऐतिहासिक रूप से चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों एवं डिस्पोज़ेबल्स के लिये आयात पर निर्भर रहा है। भारत ने अब इस प्रवृत्ति को परिवर्तित कर दिया है, जो इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर हो रहे बदलाव का संकेत देता है।
- भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्माता है। इसका फार्मास्युटिकल उद्योग वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल में सस्ती जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- वर्तमान में एक प्रमुख फार्मास्युटिकल निर्यातक के रूप में इसका मूल्य 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसमें 200 से अधिक देशों में भारतीय फार्मा निर्यात होता है।
- वर्ष 2024 तक इसके 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
- निर्यात और आयात आँकड़े:
- निर्यात: भारत ने 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों और डिस्पोज़ेबल्स का निर्यात किया, जो पिछले वित्तीय वर्ष (2021-22) की तुलना में 16% की वृद्धि दर्शाता है।
- आयात: लगभग 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात हुआ, जो 33% की गिरावट दर्शाता है।
- भारत के फार्मा सेक्टर की प्रमुख चुनौतियाँ:
- अनुसंधान एवं विकास (Lagging Research and Development- R&D) में पिछड़ना: फार्मा क्षेत्र में भारत का अनुसंधान एवं विकास खर्च विकसित देशों की तुलना में कम है। इससे नई दवाओं के निर्माण में बाधा आती है।
- सीमित नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: शिक्षा जगत, अनुसंधान संस्थानों और दवा कंपनियों के मध्य सहयोग का अभाव है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं तथा चिकित्सा उपकरणों का विकास धीमा हुआ है।
- मूल्य नियंत्रण और लाभ मार्जिन: कुछ दवाओं पर सरकारी मूल्य नियंत्रण मुनाफे को सीमित कर सकता है, जिससे कंपनियों के लिये नई दवाओं के अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश करना कम आकर्षक हो जाता है।
- जटिल नियामक ढाँचा: नई दवाओं के लिये अनुमोदन प्रक्रिया को नेविगेट करने की प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकता है, जो लाल फीताशाही को जन्म देता है।
- कुशल कार्यबल की कमी: फार्मा क्षेत्र में उच्च योग्य वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की कमी है, जिसके कारण कर्मचारियों की कार्यकुशलता प्रभावित हो रही है।
- बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) चिंताएँ: अनिवार्य लाइसेंसिंग (भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970) जैसे प्रावधानों के कारण IP सुरक्षा के आसपास अनिश्चितताएँ, भारत में बड़े फार्मा निवेश को हतोत्साहित कर सकती हैं।
- आयात निर्भरता: प्रगति के बावजूद, भारत चिकित्सा उपकरणों के लिये काफी हद तक आयात पर निर्भर है, जिसमें लगभग 70% उपकरण अन्य देशों से आते हैं।
- सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API) के आयात के लिये भारत की चीन जैसे देशों पर अत्यधिक निर्भर है।
- नकली दवाइयाँ: भारतीय फार्मास्युटिकल क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा घटिया या नकली दवाओं के सेवन से होने वाली मौतों की घटना है।
- भारतीय मूल की नकली दवाओं के सेवन के कारण ही मध्य एशिया और अफ्रीका में बच्चों की मौतें होती हैं।
फार्मास्यूटिकल क्षेत्र से संबंधित पहल:
- फार्मास्यूटिकल्स के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI)
- बल्क ड्रग पार्क योजना को बढ़ावा देना
- फार्मास्यूटिकल्स उद्योग योजना को सुदृढ़ बनाना
- भारत में फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास और नवाचार पर राष्ट्रीय नीति
- फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना (PRIP)
- फार्मास्युटिकल प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना (PTUAS)
- गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP)
भारत के फार्मा सेक्टर में सुधार के लिये और क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- विधायी परिवर्तन और केंद्रीकृत डेटाबेस:
- औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम (1940) में संशोधन की आवश्यकता है तथा एक केंद्रीकृत औषधि डेटाबेस की स्थापना से निगरानी बढ़ाई जा सकती है तथा सभी दवा निर्माताओं के बीच प्रभावी विनियमन सुनिश्चित किया जा सकता है।
- साथ ही, उत्पाद गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये सभी राज्यों में समान गुणवत्ता मानकों को लागू करना आवश्यक है।
- प्रमाणीकरण को प्रोत्साहित करना:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस प्रमाणन प्राप्त करने के लिये फार्मास्युटिकल विनिर्माण इकाइयों को प्रोत्साहित करने से गुणवत्ता मानकों को बढ़ाया जा सकता है।
- पारदर्शिता, विश्वसनीयता एवं उत्तरदायित्व:
- नियामक संस्थाओं तथा फार्मास्युटिकल उद्योग को भारतीय दवा नियामक व्यवस्था की वृद्धि करने तथा इसे पारदर्शी, विश्वसनीय और वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिये सहयोग करना चाहिये।
- सतत् विनिर्माण प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करें:
- हरित रसायन, अपशिष्ट कटौती और ऊर्जा दक्षता सहित टिकाऊ विनिर्माण प्रथाओं पर ज़ोर देने से लागत कम करते हुए क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाया जा सकता है।
- जेनेरिक्स से आगे बढ़ना: भारत सस्ती जेनेरिक दवाओं के उत्पादन में अग्रणी है लेकिन इसे नई दवाओं के विकास में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- PLI जैसी पहलों के माध्यम से सरकारी सहायता एवं नैदानिक परीक्षण वित्तपोषण को सुविधाजनक बनाने से अनुसंधान और विकास प्रयासों में तेज़ी आ सकती है।
- अनुसंधान एवं विकास और नवाचार को बढ़ावा देना: वैश्विक अभिकर्त्ताओं की तुलना में अनुसंधान और विकास पर होने वाले भारत के कम खर्च में सुधार किया जा सकता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने और नवाचार के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों और डिस्पोज़ेबल के शुद्ध निर्यातक बनना भारत की हालिया महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। इस उपलब्धि का लाभ वैश्विक चिकित्सा वस्तुओं के बाज़ार में भारत की स्थिति को मज़बूत करने के लिये कैसे उठाया जा सकता है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध होने के कारण हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019) |