मोबिलिटी वृद्धि का ग्रामीण लड़कियों की शिक्षा पर प्रभाव | 21 Aug 2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

जर्नल ऑफ ट्रांसपोर्ट जियोग्राफी में प्रकाशित हालिया शोध से पता चलता है कि पिछले दशक में ग्रामीण लड़कियों में साइक्लिंग (साइकिल चलाने) के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के शोधकर्त्ताओं द्वारा ‘साइलेंट रिवॉल्यूशन अर्थात् मूक क्रांति’ के रूप में वर्णित इस प्रवृत्ति ने ग्रामीण लड़कियों की मोबिलिटी (चलिष्णुता)/ गतिशीलता और शिक्षा पर सरकारी हस्तक्षेप एवं बदलते सामाजिक मानदंडों के प्रभाव को उजागर किया है।

ग्रामीण लड़कियों के बीच साइक्लिंग की बढ़ती प्रवृत्ति ने शिक्षा को किस प्रकार प्रभावित किया है?

  • विकास अवलोकन: ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल जाने वाली लड़कियों का प्रतिशत वर्ष 2007 में 4.5% से दोगुना होकर 2017 में 11% हो गया।
    • राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों में बीच साइक्लिंग का स्तर 6.6% से बढ़कर 11.2% हो गया, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 6.3% से 12.3% तक दोगुनी वृद्धि देखी गई। शहरी क्षेत्रों में 7.8% से 8.3% तक मामूली वृद्धि देखी गई।
  • साइक्लिंग में वृद्धि में योगदान देने वाले कारक: 
    • साइकिल वितरण योजना (Bicycle Distribution Schemes- BDS) ने 35 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (पत्र में आंध्र प्रदेश को अविभाजित राज्य माना गया है) में से 20 ने साइक्लिंग को प्रोत्साहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे विशेष रूप से लड़कियों के बीच साइक्लिंग को बढ़ावा मिला है।
      • राज्य द्वारा 14-17 वर्ष की आयु के स्कूली बच्चों को साइकिल प्रदान किया जाता है, ताकि स्कूल में नामांकन में सुधार हो, विशेष रूप से लड़कियों के बीच, क्योंकि इनमें स्कूल छोड़ने की दर अधिक है।
      • प्रभाव: पश्चिम बंगाल के BDS ने लड़कियों के साइक्लिंग के स्तर में 15.4% से 27.6% की वृद्धि की, जिससे यह ग्रामीण लड़कियों द्वारा साइकिल चलाने के मामले में शीर्ष राज्य बन गया जबकि बिहार में आठ गुना वृद्धि देखी गई।
  • व्यापक सामाजिक परिवर्तनों पर प्रभाव:
    • शिक्षा: BDS लड़कियों के बीच स्कूल में नामांकन और प्रतिधारण दर में सुधार करने में प्रभावी रही है। लड़कियों के लिये स्कूल आना-जाना आसान बनाकर, इन योजनाओं ने स्कूल-ड्रॉप आउट दरों को कम करने और निरंतर शिक्षा को प्रोत्साहित करने में मदद की।
      • शिक्षा तक पहुँच बढ़ने से लड़कियों के लिये बेहतर व दीर्घकालिक परिणाम होते हैं, जिससे उन्हें बेहतर नौकरी की संभावनाएँ और आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है। इससे सशक्तीकरण और सामुदायिक आर्थिक विकास का चक्र बढ़ता है।
    • लैंगिक मानदंडों का खंडन: ग्रामीण लड़कियों में साइक्लिंग की प्रवृत्ति में वृद्धि पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो परंपरागत रूप से महिलाओं की गतिशीलता को प्रतिबंधित करते हैं। यह वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक लैंगिक समानता की ओर परिवर्तन का संकेत देती है।

भारत में लड़कियों में स्कूल नामांकन को बढ़ावा देने के लिये अन्य योजनाएँ क्या हैं?

  • मिड-डे मील योजना
  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना
  • सुकन्या समृद्धि योजना
  • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना: इसे वर्ष 2004 में शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉकों में वंचित समुदायों की लड़कियों के लिये उच्च प्राथमिक स्तर पर आवासीय विद्यालय स्थापित करने के हेतु शुरू किया गया था।
    • इस योजना में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या अल्पसंख्यक लड़कियों के लिये 75% आरक्षण प्रदान किया जाता है, जबकि शेष 25% बीपीएल परिवारों की लड़कियों के लिये है।
    • यह स्कूल स्थापित करने के लिये प्रति वर्ष 1.5 लाख रुपए का आवर्ती अनुदान और 5 लाख रुपए का एकमुश्त अनुदान प्रदान करता है।
  • माध्यमिक शिक्षा के लिये लड़कियों को प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना: केंद्र सरकार ने कक्षा 10 से ऊपर की लड़कियों के लिये माध्यमिक शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य युवावस्था तक पहुँचते-पहुँचते स्कूल छोड़ देने वाली लड़कियों की उच्च दर की समस्या को हल करना है।
    • इस योजना के तहत बालिका के नाम पर 3,000 रुपए की सावधि जमा की जाती है। सावधि जमा से परिपक्व राशि निकालने के लिये न्यूनतम मानदंड दसवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण करना और 18 वर्ष की आयु प्राप्त करना है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में लड़कियों के बीच स्कूल नामांकन और प्रतिधारण बढ़ाने में सरकारी योजनाओं की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न.1 “महिला को सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न. 2 भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2015)