आर्थिक सर्वेक्षण 2021 के मुख्य बिंदु | 02 Feb 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने 1 अप्रैल, 2021 से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष के लिये केंद्रीय बजट से पहले अर्थव्यवस्था की स्थिति का विवरण प्रदान करने वाला आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया।

  • आर्थिक सर्वेक्षण का मूलभूत विषय "सेविंग लाइव्स एंड लाइवलीहुड्स" (Saving Lives and Livelihoods) है।

Saving-Lives-and-Livelihoods

आर्थिक सर्वेक्षण:

  • भारत का आर्थिक सर्वेक्षण भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा जारी एक वार्षिक दस्तावेज़ है।
  • इसमें भारत की अर्थव्यवस्था से संबंधित आधिकारिक और अद्यतन डेटा स्रोत को शामिल किया जाता है।
    • यह सरकार द्वारा पिछले एक वर्ष में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर प्रस्तुत एक रिपोर्ट है जो कि अर्थव्यवस्था की प्रमुख चुनौतियों और उनके संभावित समाधानों को प्रस्तुत करती है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण दस्तावेज़ मुख्य आर्थिक सलाहकार के मार्गदर्शन में आर्थिक मामलों के विभाग के वाणिज्य प्रभाग द्वारा तैयार किया जाता है।
  • यह आमतौर पर संसद में केंद्रीय बजट पेश किये जाने से एक दिन पहले प्रस्तुत किया जाता है।
    • भारत में पहला आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 1950-51 में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 1964 तक इसे केंद्रीय बजट के साथ प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 1964 से इसे बजट से अलग कर दिया गया।

प्रमुख बिंदु:

भारतीय अर्थव्यवस्था और COVID-19:

  • महामारी का सामना करने की रणनीति:
    • मानवीय सिद्धांत द्वारा उपजी एक प्रतिक्रिया के अनुसार वर्तमान में निम्नलिखित स्थितियाँ विद्यमान हैं:
      • खोया हुआ मानव जीवन वापस नहीं लाया जा सकता है।
      • कोविड-19 महामारी के कारण प्रभावित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि अस्थायी आघात से उबर जाएगी।
    • भारत की नीतियों एवं प्रतिक्रियाओं को महामारी विज्ञान पर व्यापक शोध करके प्राप्त किया गया है, जो कि विशेष रूप से वर्ष 1918 के स्पैनिश फ्लू से प्रभावित हैं।
      • इस पर किये गए प्रमुख शोधों में से एक यह था कि महामारी उच्च और घनी आबादी में तेज़ी से फैलती है और इसकी शुरुआत में लॉकडाउन संबंधी निर्णय लेने की सर्वाधिक आवश्यकता होती है।
  • चार स्तंभों पर आधारित रणनीति:
    • भारत ने नियंत्रात्मक, राजकोषीय, वित्तीय और दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों की अनूठी चार स्तंभों पर आधारित रणनीति अपनाई।
    • वित्तीय स्थिति को देखते हुए समंजित राजकोषीय और मौद्रिक सहायता प्रदान की गई।
      • एक अनुकूल मौद्रिक नीति ने मौद्रिक नीति संचरण को सुविधाजनक बनाते हुए अस्थायी सहायता के रूप में देनदारों को प्रचुर मात्रा में तरलता और तत्काल राहत प्रदान की।
    • राजकोषीय नतीजों तथा ऋण स्थिरता नीतियों को ध्यान में रखते हुए लॉकडाउन के दौरान संवेदनशील वर्ग की समस्याओं को पूरा करके खपत और निवेश को बढ़ावा दिया गया।
  • मांग और आपूर्ति प्रभावित :
    • भारत एकमात्र ऐसा देश था जिसने मध्यम अवधि में आपूर्ति का विस्तार करने और उत्पादक क्षमताओं को दीर्घकालिक नुकसान से बचाने के लिये संरचनात्मक सुधारों की घोषणा की।
      • 1.46 लाख करोड़ रुपए की ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ (PLI) योजना से भारत के वैश्विक आपूर्ति शृंखला का एक अभिन्न अंग बनने और रोज़गार के अधिक अवसर पैदा होने की उम्मीद है
    • मांग आधारित कई उपायों की घोषणा की गई है।

आर्थिक पुनर्बहाली:

V-Shaped

  • लॉकडाउन के बाद ‘V-शेप्ड’ आर्थिक सुधार
    • जुलाई 2020 से भारत लचीले ‘V-शेप्ड’ आर्थिक सुधारों को अपना रहा है।
    • ‘V-शेप्ड’ रिकवरी एक प्रकार की आर्थिक मंदी और पुनर्बहाली प्रक्रिया है जो चार्ट के "वी" आकार जैसी दिखती है।
    • ‘V-शेप्ड’ रिकवरी आर्थिक उपायों के एक विशेष प्रकार के चार्ट के आकार का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे अर्थशास्त्री मंदी और आर्थिक सुधारों की जाँच करते समय बनाते हैं।
    • ‘V-शेप्ड’ रिकवरी को तीव्र आर्थिक गिरावट के बाद आर्थिक स्थिति में त्वरित और निरंतर पुनर्बहाली के लिये प्रयोग में लाया जाता है।
    • कारण:
      • यह सेवा क्षेत्र में मज़बूत सुधारों एवं उपभोग और निवेश में वृद्धि की संभावनाओं के साथ विशाल टीकाकरण अभियान की शुरुआत से प्रेरित है।
      • ‘V-शेप्ड’ रिकवरी उच्च आवृत्ति संकेतक जैसे- बिजली की मांग, रेल किराया, ई-वे बिल, गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स (जीएसटी) संग्रह, स्टील की खपत आदि के पुनरुत्थान के कारण होती है।
      • अर्थव्यवस्था के मूल तत्त्व मज़बूत बने हुए हैं क्योंकि लॉकडाउन में कमी के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान ने अर्थव्यवस्था को मज़बूती के साथ पुनर्जीवित किया है। 
    • महत्त्व
      • इस गति से अर्थव्यवस्था को पूर्व-महामारी स्तर तक पहुँचने में दो वर्ष लगेंगे।
  • सकल घरेलू उत्पाद संबंधी अनुमान:
    • वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की वास्तविक जीडीपी विकास दर 11.0 प्रतिशत रहेगी तथा सांकेतिक जीडीपी विकास दर 15.4 प्रतिशत रहेगी, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सर्वाधिक होगी।
    • सेवा क्षेत्र, विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा है। ये क्षेत्र अब तेज़ी से सामान्य स्थिति की ओर आगे बढ़ रहे हैं। कृषि क्षेत्र में बेहतर परिणाम देखे गए हैं।
    • वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में चालू खाता अधिशेष जीडीपी का 3.1 प्रतिशत रहेगा।
  • विदेशी निवेश:
    • अप्रैल-अक्तूबर 2020 के दौरान 27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया, जो कि वित्‍त वर्ष 2019-20 के पहले सात महीने की तुलना में 14.8 प्रतिशत अधिक है।
    • नवंबर 2020 में कुल विदेशी पोर्टफोलियो निवेश प्रवाह 9.8 बिलियन डॉलर रहा, जो कि किसी महीने में सर्वाधिक है।
  • ऋण स्थिरता और विकास:
    • भारतीय संदर्भ में विकास संबंधी गतिविधियों से ऋण स्थिरता को बढ़ावा मिलता है, लेकिन ऋण स्थिरता से विकास को गति मिलना ज़रूरी नहीं है।
    • ऋण स्थिरता ‘ब्याज दर एवं विकास दर के अंतर’ (IRGD) पर निर्भर करती है।
    • भारत में नकारात्मक IRGD ब्याज दरों के कारण नहीं बल्कि काफी ज़्यादा विकास दर के कारण होती है।
    • विकास को गति देने वाली राजकोषीय नीति से जीडीपी/ऋण अनुपात में कमी को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
    • भारत की विकास क्षमता को देखते हुए सबसे खराब परिदृश्य में भी ऋण स्थिरता जैसी समस्या की संभावना नहीं है।
    • आर्थिक मंदी के दौरान वृद्धि हेतु प्रति-चक्रीय राजकोषीय नीति का उपयोग वांछनीय है।
      • यह राजकोषीय उपायों के माध्यम से मंदी या उछाल का मुकाबला करने के लिये अपनाई जाने वाली रणनीति है। मंदी के दौरान प्रति-चक्रीय राजकोषीय नीति का उद्देश्य करों को कम करना और व्यय में वृद्धि करना होता है। इसका उद्देश्य देश में मांग उत्पन्न करना है ताकि देश में आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी लाई जा सके। 
      • दूसरी ओर अर्थव्यवस्था में उछाल के दौरान प्रति-चक्रीय राजकोषीय नीति का उद्देश्य करों को बढ़ाना और सार्वजनिक व्यय को कम करना होता है। उछाल को अधिक बढ़ावा देना विनाशकारी हो सकता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि इससे मुद्रास्फीति और ऋण संकट बढ़ सकता है।

सेवा क्षेत्र:

  • भारत के सकल मूल्यवर्द्धित (GVA) के 54% से अधिक तथा कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) का लगभग 4/5वाँ हिस्सा सेवा क्षेत्र से ही आता है।
  • कुल निर्यात में सेवा क्षेत्र का 48% हिस्सा है।
  • मुख्य संकेतक, जैसे कि सर्विसेज़-परचेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स, रेल फ्रेट ट्रैफिक और पोर्ट ट्रैफिक आदि सभी लॉकडाउन के दौरान तेज़ गिरावट के बाद ‘V-शेप्ड’ रिकवरी कर रहे हैं।
  • स्टार्ट-अप: कोविड-19 महामारी के बीच भारतीय स्‍टार्ट-अप इकोसिस्‍टम अच्‍छी प्रगति कर रहा है, इस वर्ष 38 नए स्‍टार्ट-अप के साथ पिछले वर्ष इस सूची में 12 स्‍टार्ट-अप जुड़े।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र: भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र पिछले छह दशकों में काफी तेज़ी से आगे बढ़ा है। निजी उद्यमियों को शामिल करने के लिये अंतरिक्ष इकोसिस्‍टम ने अनेक नीतिगत सुधार किये हैं और नवोन्‍मेष तथा निवेश को आकर्षित किया है।

कृषि:

  • वृद्धि:
    • कोविड-19 के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान को कम करने में कृषि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जिसकी विकास दर वित्त वर्ष 2021 के लिये 3.4 प्रतिशत आँकी गई है।
    • देश के सकल मूल्‍यवर्द्धन (GVA) में कृषि और सहायक क्षेत्रों की हिस्‍सेदारी वर्ष 2019-20 के लिये स्थिर मूल्‍यों पर 17.8 प्रतिशत रही (सीएसओ के राष्‍ट्रीय आय का अनंतिम अनुमान, 29 मई,2020)।
  • निर्यात:
    • वर्ष 2019-20 में प्रमुख कृषि और संबद्ध उत्पादों के प्रमुख निर्यात गंतव्य यूएसए, सऊदी अरब, ईरान, नेपाल और बांग्लादेश थे।
    • भारत से निर्यात किये जाने वाले शीर्ष कृषि और संबंधित उत्पाद-समुद्री उत्पाद, बासमती चावल, भैंस का मांस, मसाले, गैर-बासमती चावल, कच्चा कपास, तेल, भोज्य पदार्थ, चीनी, अरंडी का तेल और चाय आदि थे।
  • पशुधन:
    • कुल कृषि और संबद्ध क्षेत्र (स्थिर कीमतों पर) में पशुधन का योगदान 24.32% (2014-15) से बढ़कर 28.63% (2018-19) हो गया है।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग:
    • खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग (एफपीआई) क्षेत्र करीब 9.99 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है, पिछले पाँच वर्षों के दौरान वर्ष 2011-12 के आधार पर कृषि में करीब 3.12 प्रतिशत और विनिर्माण में 8.25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

भारत और नवाचार:

  • भारत ने वैश्विक नवोन्‍मेष इंडेक्स‍ (Global Innovation Index) की वर्ष 2007 में शुरुआत के बाद पहली बार वर्ष 2020 में शीर्ष-50 नवोन्‍मेषी देशों के समूह में प्रवेश किया। इस संदर्भ में वह मध्‍य और दक्षिण एशिया में पहले नंबर पर है तथा निम्‍न-मध्‍य आय वर्ग वाली अर्थव्‍यवस्‍थाओं में तीसरे नंबर पर है।
  • भारत का अनुसंधान और विकास पर सकल घरेलू व्यय (Gross Domestic Expenditure) शीर्ष दस अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है।
  • भारत की महत्‍वाकांक्षा नवोन्‍मेष (Innovation) के मामले में शीर्ष 10 अर्थव्‍यवस्‍थाओं से प्रतिस्पर्द्धा करने की होनी चाहिये।

प्रक्रियागत सुधार:

  • इस सर्वेक्षण में भारत में किये जाने वाले अत्यधिक विनियमन पर प्रकाश डाला गया है।
  • भारत में अर्थव्यवस्था के ज़्यादा विनियमन के चलते तुलनात्मक रूप से प्रक्रिया के साथ बेहतर अनुपालन के बावजूद नियम निष्प्रभावी हो जाते हैं
  • अत्यधिक विनियमन की मुख्य वजह वह दृष्टिकोण है जिसके तहत हर समस्या के संभावित समाधान के लिये प्रयास किया जाता है। विवेकाधिकार घटाने से नियमों की जटिलता बढ़ने के कारण गैर-पारदर्शी विवेकाधिकार में वृद्धि होती है।
  • नियमों को सरल बनाया जाना चाहिये और निरीक्षण पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाना चाहिये।

भारत और संप्रभु क्रेडिट रेटिंग:

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  • भारत की संप्रभु क्रेडिट रेटिंग (Sovereign Credit Rating) अर्थव्यवस्था की बुनियादी बातों को प्रतिबिंबित नहीं करती है , अतः वैश्विक एजेंसियों को अपनी रेटिंग में अधिक पारदर्शी और कम व्यक्तिपरक बनना चाहिये।

रक्षा क्षेत्र:

  • वर्ष 2016-17 के बाद से बजट में रक्षा के लिये आवंटित पूंजी का पूरी तरह से उपयोग किया गया है, जबकि इसके पहले ऐसा नहीं था।

स्वास्थ्य सेवा:

Health-care

  • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY):
    • जिन राज्यों ने PM-JAY योजना को लागू किया था उन राज्यों में स्वास्थ्य परिणामों में सुधार हुआ है। यह भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018 में शुरू की गई एक महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य‍ सबसे कमज़ोर वर्ग के लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल उपलब्ध‍ कराना है। ।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन:
    • इस मिशन ने असमानता को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई क्योंकि प्रसव पूर्व/प्रसवोत्तर देखभाल और संस्थागत डिलिवरी में गरीबों की पहुँच  में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • आयुष्मान भारत (Ayushman Bharat) के तहत इस योजना को प्रमुखता दी जानी चाहिये।
  • सरकारी खर्च:
    • सरकारी खर्च में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र पर वृद्धि (जीडीपी के 1 प्रतिशत से बढ़कर 2.5-3 प्रतिशत) से लोगों द्वारा स्वास्थ्य देखभाल पर किये जाने वाला खर्च 65 प्रतिशत से घटकर 35 प्रतिशत हो सकता है।

शिक्षा:

  • साक्षरता:
    • भारत प्राथमिक विद्यालय स्तर पर लगभग 96% साक्षरता स्तर प्राप्त कर चुका है।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey) के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर 7 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की साक्षरता दर 77.7% है, लेकिन सामाजिक-धार्मिक समूहों के साथ-साथ लिंग आधारित (महिला-पुरुष) साक्षरता दर में अंतर अभी भी बना हुआ है।
    • हिंदू और इस्लाम धार्मिक समूहों सहित SC, ST और OBC के सामाजिक समूहों के बीच महिला साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से नीचे बनी हुई है।
  • ग्रामीण बच्चों का नामांकन:
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण भारत में सरकारी और निजी स्कूलों में नामाँकित ऐसे बच्चों की संख्या, जिनके पास स्मार्ट फोन है, वर्ष 2018 में  36.5% थी जिसकी तुलना में वर्ष 2020 में यह भारी बढ़ोतरी के साथ 61.8% हो गई है।
  • प्रधानमंत्री ई-विद्या:
    • प्रधानमंत्री ई-विद्या (PM eVIDYA) पहल की घोषणा मई 2020 में आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के तहत स्कूली और उच्च शिक्षा के लिये की गई थी। यह छात्रों और शिक्षकों तक शिक्षा को बहु-पद्धति तथा न्यायसंगत रूप से सुगमता से पहुँचाने के लिये डिजिटल/ऑनलाइन शिक्षा से संबंधित सभी प्रयासों को एकजुट करने की एक व्यापक पहल है।
    • इसके अंतर्गत लगभग 92 पाठ्यक्रम शुरू हो गए हैं और 1.5 करोड़ छात्रों का मैसिव ओपन ऑन लाइन कोर्स (Swayam Massive Open Online Course) के तहत नामांकित किया गया है जो  कि राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान से संबंधित ऑनलाइन पाठ्यक्रम हैं।
  • प्रज्ञाता:
    • ‘प्रज्ञाता’ (PRAGYATA) दिशा-निर्देश विद्यार्थियों के दृष्टिकोण को आधार बनाकर विकसित किये गए हैं जो COVID-19 के मद्देनज़र जारी लॉकडाउन के कारण घरों पर मौजूद छात्रों के लिये ऑनलाइन/डिजिटल शिक्षा पर केंद्रित हैं।
  • मनोदर्पण:
    • इस पहल का उद्देश्य आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत छात्रों को उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।

व्यावसायिक पाठ्यक्रम और कौशल विकास:

  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 3.0 (Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana 3.0) के तहत विद्यालयों में छात्रों को कौशल ज्ञान देने के लिये कक्षा 9 से 12 तक व्यावसायिक पाठ्यक्रम की चरण-वार शुरुआत की जाएगी।
    • भारत में 15-59 वर्ष आयु समूह के केवल 2.4% कर्मचारियों ने औपचारिक व्यावसायिक या तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त किया, जबकि अन्य 8.9% ने अनौपचारिक स्रोतों के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
    • गैर-औपचारिक रूप से प्रशिक्षित 8.9% कार्यबल में से ऑन-द-जॉब 3.3%, सेल्फ-लर्निंग 2.5%, वंशानुगत स्रोत से 2.1% और अन्य स्रोतों से 1% ने प्रशिक्षण प्राप्त किया ।
    • सबसे अधिक औपचारिक प्रशिक्षण IT-ITeS (Information Technology Enabled Services) पाठ्यक्रम में लिया गया है।
    • एकीकृत कौशल नियामक- राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद (National Council for Vocational Education and Training) को हाल ही में शुरू किया गया था।

जरूरी आवश्यकताएँ:

  • बुनियादी आवश्यकता सूचकांक:
    • बुनियादी आवश्यकता सूचकांक (Bare Necessities Index), राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आँकड़ों का उपयोग करते हुए आर्थिक विकास तक पहुँच की रूपरेखा तैयार करने का एक प्रयास है। 
      • यह सूचकांक पाँच संकेतकों अर्थात् पानी, स्वच्छता, आवास, सूक्ष्म पर्यावरण और अन्य सुविधाओं पर 26 संकेतक प्रस्तुत करता है।
  • बुनियादी आवश्यकताओं में सुधार:
    •  देश के सभी राज्यों में वर्ष 2012 की तुलना में वर्ष 2018 में बुनियादी आवश्यकताओं में सुधार हुआ है।
    • समानता में वृद्धि उल्लेखनीय है क्योंकि अमीर सार्वजनिक वस्तुओं के लिये निजी विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं।

सतत् विकास और जलवायु परिवर्तन

  • भारत ने सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों में शामिल करने के लिये कई सक्रिय कदम उठाए हैं।
    • सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को लेकर भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (HLPF) के समक्ष प्रस्तुत की जाने वाली स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (Voluntary National Review-VNR)।
    • वर्ष 2030 एजेंडा के तहत निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का स्थानीयकरण किसी भी रणनीति के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • कोरोना वायरस महामारी संकट के बावजूद सतत् विकास भारत की विकास संबंधी रणनीति में महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत 8 राष्ट्रीय मिशनों की स्थापना की गई, जिनका मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के संकटों से निपटना और संबद्ध तैयारी करना है।
    • भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में स्पष्ट किया गया है कि जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के लिये वित्त की भूमिका अहम है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) ने दो नई पहलें शुरू की है, जिसमें ‘विश्व सौर बैंक’ और ‘एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड’ शामिल हैं, इनका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति लाना है।

सामाजिक अवसंरचना, रोज़गार और मानव विकास:

  • कुल GDP के प्रतिशत के रूप में सामाजिक क्षेत्र का संयुक्त (केंद्र और राज्‍यों) व्यय पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2020-21 में बढ़ा है। 
  • मानव विकास सूचकांक 2019 में कुल 189 देशों में भारत को 131वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
  • ‘आत्‍मनिर्भर भारत रोज़गार योजना’ के माध्यम से रोज़गार को बढ़ावा देने का प्रयास और श्रम कानूनों को 4 संहिताओं में युक्तिसंगत और सरल बनाना।
  • भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) का निम्‍न स्‍तर:
    • भारत में महिलाएँ, पुरुषों की तुलना में परिवार के सदस्‍यों की देखरेख और अवैतनिक घरेलू सेवाओं में अधिक समय खर्च कर रही हैं (टाइम यूज़ सर्वे, 2019)
    • महिला कर्मचारियों के लिये कार्यस्‍थलों पर गैर-भेदभावपूर्ण कार्य प्रणाली को बढ़ावा देने की आवश्‍यकता है, जैसे कि चिकित्‍सा और सामाजिक सुरक्षा लाभों सहित वेतन और कॅरियर में प्रगति, कार्य प्रोत्‍साहन में सुधार आदि।

असमानता और विकास 

  • विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत भारत में असमानता और प्रति व्यक्ति आय (विकास) का सामाजिक-आर्थिक संकेतकों के साथ समान संबंध है।
  • आर्थिक विकास का ज़्यादा प्रभाव असमानता की तुलना में गरीबी उन्मूलन पर पड़ता है।
  • नागरिकों को गरीबी के दुष्चक्र से निकालने के लिये भारत को आर्थिक विकास पर ज़ोर देना चाहिये। विकासशील अर्थव्यवस्था में पुनर्वितरण सिर्फ तभी व्यवहार्य है, जब अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ता रहे।

स्रोत-पीआइबी