भारतीय अर्थव्यवस्था
K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी
- 19 Jan 2021
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नोमुरा इंडिया नॉर्मलाइज़ेशन इंडेक्स’ (Nomura India Normalization Index- NINI) के नवीनतम अध्ययन में भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 तथा K-शेप्ड रिकवरी के प्रभाव संबंधी आँकड़े प्रस्तुत किये गए हैं।
- नोमुरा सर्विसेज़ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (नोमुरा होल्डिंग्स इंक-Nomura Holdings Inc) एक उपभोक्ता सेवा प्रदाता कंपनी है।
प्रमुख बिंदु:
अध्ययन के निष्कर्ष के प्रमुख बिंदु:
- COVID-19 का परिवारों पर प्रभाव:
- पिरामिड के शीर्ष पर स्थित परिवारों में लॉकडाउन के दौरान काफी हद तक आय का संरक्षण, बचत दर में वृद्धि के साथ ही भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये धन एवं वस्तुओं का संग्रह किया गया।
- इन घरों में रहने वाले लोगों की नौकरियों और आय के स्थायी रूप से प्रभावित होने की संभावना है।
- वर्तमान मौद्रिक नीति का प्रभाव:
- लंबे समय से चली आ रही ‘अति समायोजन की मौद्रिक नीति’ के कारण वास्तविक उधार दरों में गिरावट आई है जो अंततः ब्याज-संवेदनशील क्षेत्रों के लिये राहत का कार्य करेगी।
- ‘आर्थिक प्रसार’ एक कंपनी के पूंजी निवेश पर आय सृजन की क्षमता संबंधी उपाय है।
- लंबे समय से चली आ रही ‘अति समायोजन की मौद्रिक नीति’ के कारण वास्तविक उधार दरों में गिरावट आई है जो अंततः ब्याज-संवेदनशील क्षेत्रों के लिये राहत का कार्य करेगी।
- टीकाकरण का प्रभाव:
- यात्रा, पर्यटन और टूरिज़्म जैसे बड़े क्षेत्र आखिरकार COVID-19 के प्रभाव से उभरेंगे।
- COVID-19 के बाद आर्थिक पुनर्बहाली:
- वित्त वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7% हो गया है, जो पूर्व-महामारी लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद के 3.5% का दोगुना है। इसलिये सरकार उच्च ईंधन करों, विनिवेश और सिन टैक्स को प्रोत्साहित कर रही है।
- भारत ‘K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी’ के दौर से गुज़र रहा है, जिससे कॉरपोरेट्स और परिवारों की अच्छी आर्थिक स्थिति के साथ अधिक मज़बूती आई है, जबकि छोटी फर्में और गरीब परिवार महामारी के कारण उत्पन्न गरीबी और ऋणग्रस्तता के दुष्चक्र में फँसे हैं।
इकोनॉमिक रिकवरी
- अर्थ:
- यह मंदी के बाद की व्यावसायिक चक्र अवस्था है, इसकी प्रमुख विशेषता एक निरंतर अवधि में व्यावसायिक गतिविधियों में सुधार होना है।
- आमतौर पर आर्थिक सुधार के दौरान सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता है, आय में वृद्धि होती है और बेरोज़गारी कम होने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की पुनर्बहाली होती है।
- प्रकार:
- ‘इकोनॉमिक रिकवरी’ के कई रूप होते हैं, जिसे वर्णमाला संकेतन का उपयोग करके दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिये, Z-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, V-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, U-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, U-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, W-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, L-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी और K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी।
- K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी
- K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी तब होती है, जब मंदी के बाद अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग दर, समय या परिमाण में ‘रिकवरी’ होती है। यह विभिन्न क्षेत्रों, उद्योगों या लोगों के समूहों में समान ‘रिकवरी’ के सिद्धांत के विपरीत है।
- के-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी से अर्थव्यवस्था की संरचना में व्यापक परिवर्तन होता है और आर्थिक परिणाम मंदी के पहले तथा बाद में मौलिक रूप से बदल जाते हैं।
- इस प्रकार की रिकवरी को ‘K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी’ कहा जाता है क्योंकि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र जब एक मार्ग पर साथ चलते हैं तो डायवर्ज़न के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो कि रोमन अक्षर ‘K’ की दो भुजाओं से मिलता-जुलता है।
COVID-19 के बाद ‘के-शेप्ड रिकवरी’ के निहितार्थ:
- निचले वर्ग के परिवारों को नौकरियों और मज़दूरी में कटौती के रूप में आय का स्थायी नुकसान हुआ है, अगर श्रम बाज़ार में तेज़ी से सुधर नहीं होता है तो यह मांग पर आवर्ती दवाब बढ़ाएगा।
- COVID-19 के कारण आय का प्रभावी हस्तांतरण गरीबों से अमीरों की ओर देखा गया है, इससे मांग में बाधा उत्पन्न होगी क्योंकि गरीबों में आय की तुलना में उपभोग की एक उच्च सीमांत प्रवृत्ति होती है (यानी वे बचत करने के बजाय खर्च करने की प्रवृत्ति रखते हैं)।
- यदि COVID-19 की वजह से आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा में कमी आती है या आय और अवसरों की बीच असमानता में वृद्धि होती है तो यह उत्पादकता को नुकसान पहुँचाकर और राजनीतिक-आर्थिक बाधाओं को बढ़ाकर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की प्रवृत्ति पर रोक लगा सकता है।
आगे की राह:
- के-शेप्ड रिकवरी और महामारी के कारण उत्पन्न गरीबी को देखते हुए सब्सिडी, रोज़गार सृजन, ग्रामीण विकास और अन्य सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों जैसे क्षेत्रों में खर्च करने के लिये बजटीय आवंटन के बढ़ने की संभावना है।