उच्च न्यायालय ने देनदारों के यात्रा के अधिकार को बरकरार रखा | 01 May 2024

प्रिलिम्स के लिये:

मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 21, सर्वोच्च न्यायलय, भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018, अनुच्छेद 14, भारतीय रिजर्व बैंक, मनी लॉन्ड्रिंग

मेन्स के लिये:

भारत में ऋण चूककर्त्ताओं को नियंत्रित करने वाली रूपरेखा एवं उपायों का उद्देश्य ऋणदाताओं और उधारकर्त्ताओं के हितों को संतुलित करना है

स्रोत :इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) ऋण चूककर्त्ताओं के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (LOC) का अनुरोध नहीं कर सकते हैं।

  • न्यायालय ने PSB को ऐसा करने का अधिकार देने वाले केंद्र सरकार के कार्यालय ज्ञापन (OM) को रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा कि ये नीतियाँ संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।

नोट:

  • LOC एक परिपत्र है जिसका उपयोग भारत में पुलिस अधिकारियों द्वारा यह जाँचने के लिये किया जाता है कि यात्रा करने वाला व्यक्ति पुलिस द्वारा वांछित है अथवा नहीं।

उच्च न्यायालय ने देनदारों की यात्रा पर प्रतिबंध लगाने वाले बैंकों के विरुद्ध नियम क्यों बनाया?

  • विधिक चुनौतियाँ:
    • 27 अक्तूबर, 2010 से कार्यालय ज्ञापन (OM) के आधार पर गृह मंत्रालय (MHA) के आव्रजन ब्यूरो द्वारा LOC जारी किये गए थे।
    • सितंबर 2018 में OM में संशोधन प्रस्तुत किये गए, जिससे व्यक्तियों को विदेश यात्रा करने से रोकने के लिये LOC जारी करने को अधिकृत किया गया, यदि उन देनदारों का प्रस्थान देश के "आर्थिक हित" के लिये हानिकारक था। 
      • इसने PSB अधिकारियों (प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों) को डिफॉल्ट उधारकर्त्ताओं के विरुद्ध LOC जारी करने के लिये आव्रजन अधिकारियों से अनुरोध करने का अधिकार दिया।
      • The default borrowers included not only the borrowers but also the डिफॉल्ट देनदारों में न केवल देनदार बल्कि ऋण चुकाने वाले गारंटर और कर्ज़ में डूबी कॉर्पोरेट संस्थाओं के प्रमुख अधिकारी या निदेशक भी शामिल थे।
  • याचिकाकर्त्ताओं के तर्क:
    • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि OM मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिसमें अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीवन का अधिकार भी शामिल है।
    • उन्होंने तर्क दिया कि सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित सार्वजनिक और निजी बैंकों के बीच एक अनुचित वर्गीकरण बनाया है।
    • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि किसी PSB का "वित्तीय हित" "भारत के आर्थिक हित" के समान नहीं हो सकता है।
  • केंद्र का प्रस्तुतीकरण:
    • गृह मंत्रालय ने तर्क दिया कि परिपत्रों में स्थापित कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के लिये आवश्यक "जाँच और संतुलन" शामिल थे।
  • न्यायालय का रुख:
    • न्यायालय ने विराज चेतन शाह बनाम भारत संघ एवं अन्य, 2024 मामले का ज़िक्र करते हुए कहा कि व्यक्ति को विदेश यात्रा की अनुमति नहीं मिलने के कारण सरकार ऋण वसूली साबित करने में विफल रही।
      • इसने कानूनी कार्यवाही को दरकिनार करने के लिये एक मज़बूत रणनीति के रूप में LOC के उपयोग की आलोचना की, जिसे PSB असुविधाओं और परेशानियों के रूप में देखते हैं।
    • इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि विदेश यात्रा के मौलिक अधिकार को सरकारी कानून के बिना कार्यकारी कार्रवाई द्वारा कम नहीं किया जा सकता है।
    • न्यायालय ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि PSB को ऋण वसूली के लिये एकतरफा शक्तियाँ प्रदान की गईं, जिस कारण वे प्रभावी ढंग से न्यायाधीश और प्रवर्तक बने। इसमें यह समझ से परे था कि बैंक अधिकारियों को उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारियों के समान दर्जा दिया गया था।
    • न्यायालय ने पाया कि यदि कोई उधारकर्त्ता पूरी तरह से गैर-PSB के साथ लेनदेन करता है, तो कोई LOC जारी नहीं की जा सकती है, लेकिन PSB की एक भागीदारी भी जोखिम उत्पन्न करती है।
      • न्यायालय ने PSB और निजी बैंक कर्ज़दारों के बीच भेदभाव को मनमाना बताते हुए खारिज़ कर दिया। न्यायालय ने अनुच्छेद 14 के तहत अवैध मानते हुए LOC प्रावधान में केवल PSB को शामिल करने को मनमाना माना।
  • फैसले के निहितार्थ:
    • यह निर्णय सक्षम प्राधिकारियों द्वारा जारी मौजूदा प्रतिबंध आदेशों को प्रभावित नहीं करता है।
    • बैंक अभी भी व्यक्तियों को विदेश यात्रा से रोकने के लिये न्यायालयों या न्यायाधिकरणों से आदेश मांग सकते हैं, लेकिन केंद्र से लुक आउट सर्कुलर जारी करने के लिये नहीं कह सकते हैं।
    • बैंक ऋण की वसूली के लिये भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 के तहत शक्तियों का भी उपयोग कर सकते हैं।
    • यह फैसला केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप उचित कानून बनाने से नहीं रोकेगा।

भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018:

  • यह उन आर्थिक अपराधियों की संपत्तियों को ज़ब्त करने का प्रयास करता है, जिन्होंने आपराधिक मुकदमे का सामना करने से बचने के लिये देश छोड़ दिया है या अभियोजन का सामना करने के लिये देश लौटने से इनकार कर दिया है।
  • यह अधिकारियों को 'भगोड़े आर्थिक अपराधी' की अपराध की आय तथा संपत्तियों की गैर-दोषी-आधारित कुर्की एवं ज़ब्ती का अधिकार देता है, जिसके विरुद्ध भारत में किसी भी न्यायालय द्वारा अनुसूचित अपराध के बारे में गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है और जिसने आपराधिक मुकदमे या न्यायिक प्रक्रियाओं से बचने के लिये देश छोड़ दिया है।
    • भगोड़ा आर्थिक अपराधी (FEO): एक ऐसा व्यक्ति जिसके खिलाफ अनुसूची में दर्ज़ किसी अपराध के संबंध में गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है और इस अपराध का मूल्य कम-से-कम 100 करोड़ रुपए है।
  • अधिनियम में सूचीबद्ध अपराधों में सरकारी स्टांप या मुद्रा की जालसाज़ी, चेक बाउंस, धन शोधन और लेनदारों को धोखा देने वाले लेनदेन शामिल हैं।

डिफॉल्टर्स के कानूनी अधिकार क्या हैं?

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों और वित्त कंपनियों को जानबूझकर चूक करने वालों या धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत खातों पर समझौता निपटान या तकनीकी राइट-ऑफ करने का निर्देश दिया।
    • इरादतन चूककर्त्ता (जान बूझकर ऋण न चुकाने वाला) अथवा धोखाधड़ी में शामिल कंपनियों को अब उनके खिलाफ की गई आपराधिक कार्यवाही के कारण ऋणदाताओं के पूर्वाग्रह का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • जिन उधारकर्त्ताओं ने समझौता निपटान कर लिया है, वे 12 माह की न्यूनतम विराम (कूलिंग) अवधि के पश्चात नए ऋण के लिये आवेदन कर सकते हैं।
    • विनियमित बैंकों और वित्त कंपनियों के पास अपनी बोर्ड-अनुमोदित नीतियों के अनुरूप उच्च विराम (कूलिंग) अवधि निर्धारित करने का अधिकार है।
  • भारत में डिफॉल्टरों के कानूनी अधिकारों में नोटिस प्राप्त करने का अधिकार, उचित ऋण वसूली प्रथाएँ, शिकायत निवारण, कानूनी सहायता लेना और निष्पक्ष क्रेडिट रिपोर्टिंग शामिल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न :

प्रश्न. भारत में ऋण चूककर्त्ताओं को नियंत्रित करने वाले कानूनी और नियामक ढाँचे पर चर्चा कीजिये। डिफॉल्ट मामलों से निपटने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भूमिका और ऋण वसूली में उनके सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।

प्रश्न. ऋण चूक के मुद्दे से निपटने के दौरान बैंकिंग सुधार व्यापक वित्तीय समावेशन लक्ष्यों के साथ किस प्रकार संरेखण कर रहे हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के संचालन के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. पिछले दशक में भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूँजी के अंतर्वेशन में लगातार वृद्धि हुई है।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सुव्यवस्थित करने के लिये मूल भारतीय स्टेट बैंक के साथ उसके सहयोगी बैंकों का विलय किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)