हरा भरा: एरियल सीडिंग अभियान | 04 Oct 2021
प्रिलिम्स के लिये:हरा भरा: एरियल सीडिंग अभियान, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, कैम्पा फण्ड मेन्स के लिये:एरियल सीडिंग के लाभ और संबंधित चुनौतियाँ, सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सीडकॉप्टर ड्रोन का उपयोग करते हुए तेलंगाना में भारत का पहला हरा भरा: एरियल सीडिंग अभियान (Hara Bhara: Aerial Seeding Campaign) शुरू किया गया था।
- इससे पहले अगस्त 2015 में आंध्र प्रदेश सरकार ने भारतीय नौसेना के हेलीकॉप्टरों का उपयोग करके एरियल सीडिंग कार्यक्रम शुरू किया था।
प्रमुख बिंदु
- हरा भरा अभियान:
- इस अभियान का उद्देश्य देश में वर्ष 2030 तक ड्रोन का उपयोग करके एक अरब पेड़ लगाकर वनीकरण के मिशन में तेज़ी लाना है।
- इस परियोजना में क्षेत्र को हरा भरा बनाने का लिये संकीर्ण, बंजर और खाली वन भूमि पर ड्रोन का उपयोग करके सीड बाॅल्स का छिड़काव किया जाता है।
- 'सीडकॉप्टर' मारुत ड्रोन (Marut Drones) द्वारा विकसित एक ड्रोन है, जो तेज़ी से और स्केलेबल वनीकरण के लिये एक एरियल सीडिंग समाधान है।
- एरियल सीडिंग:
- एरियल सीडिंग, रोपण की एक तकनीक है जिसमें बीजों को मिट्टी, खाद, चारकोल और अन्य घटकों के मिश्रण में लपेटकर एक गेंद का आकार दिया जाता है, इसके बाद हवाई उपकरणों जैसे- विमानों, हेलीकाप्टरों या ड्रोन आदि का उपयोग करके इन गेंदों को लक्षित क्षेत्रों में फेंका जाता है/छिड़काव किया जाता है।
- इसका एक अन्य लाभ है कि जल और मिट्टी में घुलनशील इन पदार्थों के मिश्रण से पक्षी या वन्य जीव इन बीजों को क्षति नहीं पहुँचाते हैं, जिससे इनके लाभाकारी परिणाम प्राप्त होने की उम्मीदें भी बढ़ जाती है।
- बीजों से युक्त इन गेंदों को निचली उड़ान भरने में सक्षम ड्रोनों द्वारा एक लक्षित क्षेत्र में फैलाया जाता है, इससे बीज हवा में तैरने की बजाय लेपन युक्त मिश्रण के वज़न से एक पूर्व निर्धारित स्थान पर जा गिरते हैं।
- पर्याप्त बारिश होने पर ये बीज अंकुरित होते हैं, इनमें मौजूद पोषक तत्त्व इनकी प्रारंभिक वृद्धि में मदद करते हैं।
- एरियल सीडिंग के लाभ:
- दुर्गम क्षेत्रों तक पहुँच:
- इस विधि के माध्यम से ऐसे दुर्गम क्षेत्र, जहां खड़ी ढलान या कोई वन मार्ग न होने के कारण पहुँचना बहुत कठिन है, उन्हें आसानी से लक्षित किया जा सकता है।
- अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता नहीं:
- बीज के अंकुरण और वृद्धि की प्रक्रिया ऐसी है कि क्षेत्रों में इसके छिड़काव के बाद इस पर कोई विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती है और इस तरह बीजों को छिड़ककर भूल जाने के तरीके के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
- जुताई की आवश्यकता नहीं होती:
- न इन्हें जुताई की आवश्यकता होती हैं और न ही रोपण की, क्योंकि वे पहले से ही मिट्टी, पोषक तत्त्वों और सूक्ष्मजीवों से युक्त होते हैं।
- मिट्टी का खोल उन्हें पक्षियों, चींटियों और चूहों जैसे कीटों से भी बचाता है।
- मृदा अपवाह को रोकना:
- एरियल अनुप्रयोग से मिट्टी का संघनन नहीं होता है, इसलिये यह मिट्टी के अपवाह को रोकता है।
- इस प्रकार की सीडिंग तकनीक उष्णकटिबंधीय वनों के लिये सबसे उपयोगी है क्योंकि वे अन्य वन प्रकारों की तुलना में कार्बन को बहुत तेज़ी से अवशोषित करते हैं और बहुत अधिक जैव विविधता का समर्थन करते हैं।
- एरियल अनुप्रयोग से मिट्टी का संघनन नहीं होता है, इसलिये यह मिट्टी के अपवाह को रोकता है।
- दुर्गम क्षेत्रों तक पहुँच:
- चुनौतियाँ
- यद्यपि ड्रोन के कारण लागत कम हो सकती है, किंतु इसके प्रयोग से गलत स्थान पर बीज गिरने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
- जब बीज ज़मीन पर पहुँचते हैं तो मिट्टी की संरचना, जानवर और खरपतवार जैसे कई कारक रोपाई में बाधा डाल सकते हैं।
- संबंधित भारतीय पहलें:
- नेशनल मिशन फॉर ग्रीन इंडिया।
- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP)।
- प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (CAMPA Funds)।
- नेशनल एक्शन प्रोग्राम टू कॉम्बैट डेज़र्टिफिकेशन।