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भारतीय अर्थव्यवस्था

सकल स्थिर पूंजी निर्माण

  • 26 Mar 2025
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पूंजीगत व्यय, सकल स्थायी पूंजी निर्माण, सकल घरेलू उत्पाद, 8वाँ वेतन आयोग, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड

मेन्स के लिये:

निरंतर कम होता निजी पूंजीगत व्यय और जीडीपी पर इसका प्रभाव, आर्थिक विकास में सकल स्थिर पूंजी निर्माण की भूमिका

स्रोत:बिज़नेस लाइन 

चर्चा में क्यों?

भारत के सकल स्थायी पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation- GFCF) में निजी पूंजीगत व्यय (Capex) की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 24 में घटकर 33% हो गई जो गत दशक में निम्नतम है।

सकल स्थायी पूंजी निर्माण क्या है?

  • GFCF: इसे "निवेश" के रूप में भी विनिर्दिष्ट किया जाता है। GFCF एक विशिष्ट अवधि में किसी अर्थव्यवस्था की स्थायी पूंजी परिसंपत्तियों (निपटानक के बाद निवेश) में निवल वृद्धि को संदर्भित करता है।
    • इसमें बुनियादी ढाँचे, मशीनरी, उपकरण और अन्य संधारणीय परिसंपत्तियों में किया जाने वाला निवेश शामिल है जो दीर्घकालिक आर्थिक विकास में योगदान देते हैं।
    • यह सकल पूंजी निर्माण (GCF) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें स्टॉक (इन्वेंट्री) में परिवर्तन और मूल्यवान वस्तुओं (सोना, रत्न और बहुमूल्य रत्न आदि) का निवल अधिग्रहण भी शामिल है।
  • महत्त्व: भारत के मौद्रिक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में इसका 30% योगदान है, जो इसे निजी अंतिम उपभोग व्यय के बाद दूसरा सबसे बड़ा घटक बनाता है।
    • GFCF आर्थिक विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह इससे प्रत्यक्ष रूप से GDP और उत्पादकता बढ़ती है तथा साथ ही जीवन स्तर में सुधार होता है। 
      • यह पूंजीगत परिसंपत्तियों के सृजन और नवाचार में सहायता के साथ आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
    • व्यापारिक विश्वास के सूचक के रूप में GFCF, विशेष रूप से निजी क्षेत्र में, भविष्य की आर्थिक क्षमता और समग्र उत्पादन क्षमता को दर्शाता है।
  • GFCF रुझान: वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2024 की अवधि में GFCF में 10% की वार्षिक  चक्रवृद्धि वृद्धि दर (CAGR) दर्ज की गई।
    • हालाँकि, GFCF की वृद्धि वित्त वर्ष 2023 के 20% से घटकर वित्त वर्ष 2024 में 9% होने के साथ वित्त वर्ष 2023 से विकास की गति मंद हुई है।
  • GFCF में गिरावट के कारण: वित्त वर्ष 24 में GFCF में निजी पूंजीगत व्यय की हिस्सेदारी घटकर 33% रह गई, क्योंकि गैर-सूचीबद्ध संस्थाओं में संकुचन हुआ, जिससे GFCF में समग्र गिरावट आई।
    • वैश्विक मंदी और भारतीय उत्पादों की कमज़ोर निर्यात मांग से उत्पादन क्षमता में निवेश कम हो गया है, जबकि वस्त्र जैसे कुछ क्षेत्रों का चीन के सस्ते आयातों के प्रवाह के कारण घरेलू विस्तार प्रभावित हुआ है।
    • वित्त वर्ष 24 में परिचालन से पूंजीगत व्यय अनुपात में नकदी प्रवाह बढ़कर 1.6 गुना हो गया (वित्त वर्ष 14-20 में 1.3 गुना से)।
      • हालाँकि, नई परिसंपत्तियों में निवेश करने के बजाय, कंपनियों ने ऋण चुकौती को प्राथमिकता दी, जिसके परिणामस्वरूप पूंजीगत व्यय और GFCF में गिरावट आई।
  • GFCF में गिरावट के निहितार्थ: GFCF में गिरावट उत्पादक क्षमता और रोज़गार सृजन को सीमित करके दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बाधित करती है। 
    • इससे बुनियादी ढाँचे के विकास में विलंब होता है, निजी क्षेत्र की भागीदारी कम होती है, तथा निवेशकों का विश्वास कमज़ोर होता है, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) हतोत्साहित हो सकता है।
    • GFC में गिरावट से सार्वजनिक व्यय पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ती है, जो स्थायी नहीं है और इससे नवाचार, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और समावेशी विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

निजी पूंजीगत व्यय और GFCF को पुनर्जीवित करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • घरेलू उपभोग को बढ़ावा देना: ग्रामीण विकास पर संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश के अनुसार 8 वें वेतन आयोग को लागू करना तथा मनरेगा मज़दूरी में वृद्धि करना, ताकि ग्रामीण व्यय और समग्र मांग को बढ़ावा दिया जा सके।
    • उच्च प्रयोज्य आय व्यवसायों को उत्पादन क्षमता में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करेगी, जिससे पूंजीगत व्यय और GFCF में वृद्धि होगी।
  • निर्यात और आयात को मज़बूत करना: भारतीय व्यवसायों को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करने, पूंजी निर्माण और निवेश को बढ़ावा देने के लिये UK और यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) को अंतिम रूप देना।
    • चीनी आयातों का मुकाबला करने के लिये पारंपरिक उद्योगों (जैसे, कपड़ा, खिलौने) को ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों के साथ एकीकृत करके पुनर्जीवित करना ताकि बाज़ार तक पहुँच का विस्तार किया जा सके। घरेलू निर्माताओं की रक्षा और MSME पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने के लिये चीनी स्टील पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाना।
  • निजी क्षेत्र अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिये अनुसंधान एवं विकास में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने हेतु 1 लाख करोड़ रुपए के नवाचार कोष (बजट 2024-25) को क्रियान्वित करना।
  • औद्योगिक अवसंरचना: निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये आतिथ्य क्षेत्र को अवसंरचना का दर्जा प्रदान करना।
  • सतत् विकास: जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं को वित्तपोषित करने तथा निजी निवेश आकर्षित करने के लिये सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड के माध्यम से हरित वित्त को बढ़ावा देना।
    • सतत् औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिये कार्बन ट्रेडिंग प्रोत्साहन और सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल को बढ़ावा देना , जिससे अंततः उच्च GFCF और निजी पूंजीगत व्यय को बढ़ावा मिलेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: सकल स्थायी पूंजी निर्माण में गिरावट भारत में दीर्घकालिक आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित करती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर में कमी निम्नलिखित में से किसको दर्शाती है? (2015)

  1. धीमी आर्थिक विकास दर
  2.  राष्ट्रीय आय का कम न्यायसंगत वितरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न 1. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइए। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं ? (2017)

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