सकल पर्यावरण उत्पाद (GEP) | 26 Jul 2021

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद, सकल पर्यावरण उत्पाद, कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिज़र्व 

मेन्स के लिये:

सकल पर्यावरण उत्पाद की आवश्यकता एवं इसका महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने घोषणा की है कि वह अपने प्राकृतिक संसाधनों का मूल्यांकन 'सकल पर्यावरण उत्पाद' (Gross Environment Product’- GEP) के रूप में शुरू करेगी।

  • “GEP का मतलब है प्राकृतिक संसाधनों में हुई वृद्धि के आधार पर समय-समय पर पर्यावरण की स्थिति का आकलन करना।”
  • यह सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) के अनुरूप है। GDP उपभोक्ताओं की आर्थिक गतिविधियों का परिणाम है। यह निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध विदेशी व्यापार (निर्यात व आयात के बीच का अंतर) का योग है।

प्रमुख बिंदु: 

GEP के बारे में:

  • वैश्विक स्तर पर इसकी स्थापना वर्ष 1997 में रॉबर्ट कोस्टांज़ा जैसे पारिस्थितिक अर्थशास्त्रियों द्वारा की गई थी।
  • यह पारिस्थितिक स्थिति को मापने हेतु एक मूल्यांकन प्रणाली है।
  • इसे उन उत्पाद और सेवा मूल्यों के रूप में लिया जाता है जिसमें पारिस्थितिकी तंत्र मानव कल्याण और आर्थिक एवं सामाजिक सतत् विकास को बढ़ावा मिलता है, इसमें प्रावधान, विनियमन तथा सांस्कृतिक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएंँ शामिल हैं।  हैं।
  • कुल मिलाकर GEP उत्पादों और सेवाओं को प्रदान करने में पारिस्थितिकी तंत्र के आर्थिक मूल्य हेतु ज़िम्मेदार है जो हरित जीडीपी के घटकों में से एक है।
    • ग्रीन GDP किसी देश की  मानक GDP के साथ-साथ पर्यावरणीय कारकों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक विकास का एक संकेतक है। यह जैव विविधता के ह्रास और जलवायु परिवर्तन हेतु ज़िम्मेदार लागतों का कारक है।
  • इस पहलू की ओर शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित करने के लिये वर्ष 1981 में "पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ" शब्द गढ़ा गया था, इसकी परिभाषा अभी भी विकास की प्रक्रिया में है।
  • जिन पारिस्थितिक तंत्रों को मापा जा सकता है उनमें प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र जैसे- वन, घास के मैदान, आर्द्रभूमि, रेगिस्तान, मीठे पानी एवं महासागर और कृत्रिम प्रणालियाँ शामिल हैं जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं जैसे कि कृषि भूमि, चरागाह, जलीय कृषि खेतों तथा शहरी हरी भूमि आदि पर आधारित हैं

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आवश्यकता:

  • उत्तराखंड अपनी जैव विविधता के माध्यम से राष्ट्र को प्रतिवर्ष 95,112 करोड़ रुपए की सेवाएँ उपलब्ध कराता है।
  • राज्य में 71 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र वनों के अधीन है।
  • यहाँ हिमालय का भी विस्तार है और गंगा, यमुना तथा शारदा जैसी नदियों का उद्गम स्थल भी है, साथ ही कॉर्बेट एवं राजाजी टाइगर रिज़र्व जैसे वन्यजीव अभयारण्य भी यहाँ स्थित हैं।
  • उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जो बहुत सारी पर्यावरण सेवाएँ प्रदान करता है और निरंतरता के परिणामस्वरूप उन सेवाओं में प्राकृतिक गिरावट होती है।

महत्त्व:

  • पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का मूल्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद से लगभग दोगुना है। इसलिये  यह पर्यावरण के संरक्षण में मदद करेगा और हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने में भी मदद करेगा।

मुद्दे:

  • यह निर्णय एक स्वागत योग्य कदम प्रतीत होता है, लेकिन शब्दजाल के साथ आगे बढ़ना सरकार की मंशा पर गंभीर संदेह पैदा करता है। यह नीति निर्माताओं को भ्रमित कर सकता है और पिछले प्रयासों को नकार सकता है।
  • GEP शुरू करने का उद्देश्य पारदर्शी नहीं है।
    • क्या यह किसी राज्य की पारिस्थितिक संपदा के सरल मूल्यांकन की प्रक्रिया है, या यह आकलन करने के लिये कि यह सकल घरेलू उत्पाद के किस हिस्से में योगदान देता है।
    • क्या यह राज्य द्वारा देश के बाकी हिस्सों को प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और/या अपने स्वयं के निवासियों को लाभ प्रदान करने की प्रक्रिया के खिलाफ केंद्र से बजट का दावा करने का प्रयास है।

आगे की राह

  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की एक अच्छी तरह से परिभाषित अवधारणा को पेश करने के बजाय, बिना किसी स्पष्टता के एक नया शब्द तैयार करना सरकार की मंशा पर गंभीर संदेह को आमंत्रित करता है।
  • इसलिये यह महत्त्वपूर्ण है कि राज्य को स्थिर एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जिसकी वैश्विक स्वीकृति और एक मज़बूत ज्ञान आधार हो।

स्रोत: डाउन टू अर्थ