आंतरिक सुरक्षा
ग्रेटर टिपरालैंड की मांग: त्रिपुरा
- 09 Dec 2022
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:त्रिपुरा, केंद्र राज्य संबंध, अलग राज्य की मांग मेन्स के लिये:अलग राज्य के लिये संवैधानिक प्रावधान, त्रिपुरा में अलग राज्य की मांग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में त्रिपुरा के इंडिजनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) राजनितिक दल के प्रमुख सचिव ने पूरी तरह से अलग राज्य "ग्रेटर टिपरालैंड" की मांग को उठाने के लिये जंतर मंतर, नई दिल्ली में दो दिवसीय धरने का नेतृत्त्व करने का निर्णय लिया है।
- इसका उद्देश्य राज्य में स्थानीय समुदायों के अधिकारों को सुरक्षित करना है।
प्रमुख बिंदु
- मांग:
- यह पार्टी पूर्वोत्तर राज्य के मूल समुदायों के लिये 'ग्रेटर तिपरालैंड' के रूप में एक अलग राज्य की मांग कर रही है।
- उनकी मांग हैं कि केंद्र संविधान के अनुच्छेद 2 और 3 के तहत अलग राज्य बनाए।
- त्रिपुरा में 19 अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में त्रिपुरी (तिप्रा और टिपरास) सबसे बड़ी है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में कम-से-कम 5.92 लाख त्रिपुरी हैं, इसके बाद ब्रू या रियांग (1.88 लाख) और जमातिया (83,000) हैं।
- वह न केवल मूल निवासियों के लिये बल्कि त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद (The Tripura Tribal Areas Autonomous District Council- TTAADC) क्षेत्र में रहने वाले सभी समुदायों के लिये भी एक अलग राज्य की मांग कर रहे हैं।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- त्रिपुरा 13 वीं शताब्दी के अंत से वर्ष 1949 में भारत सरकार के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने तक माणिक्य वंश द्वारा शासित एक राज्य था।
- यह मांग राज्य की जनसांख्यिकी में बदलाव के संबंध में स्थानीय समुदायों की चिंता से उपजी है जिसने उन्हें अल्पसंख्यक बना दिया है।
- यह वर्ष 1947 से वर्ष 1971 के मध्य तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से बंगालियों के विस्थापन के कारण हुआ।
- त्रिपुरा में आदिवासियों की जनसंख्या वर्ष 1881 के 63.77% से घटकर वर्ष 2011 तक 31.80% हो गई थी।
- बीच के दशकों में जातीय संघर्ष और उग्रवाद ने राज्य को जकड़ लिया जो बांग्लादेश के साथ लगभग 860 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है।
- संयुक्त मंच ने यह भी बताया है कि स्थानीय लोगों को न केवल अल्पसंख्यक में बदल दिया गया है, बल्कि माणिक्य वंश के अंतिम राजा बीर बिक्रम किशोर देबबर्मन द्वारा उनके लिये आरक्षित भूमि से भी उन्हें बेदखल कर दिया गया है।
पूर्वोत्तर की अन्य मांगें:
- ग्रेटर नगालिम (अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, असम और म्याँमार के हिस्से)
- बोडोलैंड (असम)
- जनजातीय स्वायत्तता मेघालय
संसद के पास एक नया राज्य बनाने की शक्तियाँ:
- संसद को भारत के संविधान के अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 से एक नया राज्य बनाने की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
- अनुच्छेद 2:
- संसद कानून बनाकर नए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की स्थापना ऐसे नियमों और शर्तों पर कर सकती है, जो वह ठीक समझे।
- हालाँकि संसद कानून पारित करके एक नया केंद्रशासित प्रदेश नहीं बना सकती है, यह कार्य केवल संवैधानिक संशोधन के माध्यम से ही किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 2 के तहत सिक्किम को भारत का हिस्सा बनाया गया।
- अनुच्छेद 3:
- इसके तहत संसद को नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्यों के परिवर्तन से संबंधित कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।
इस मुद्दे के समाधान के लिये पहल:
- त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद:
- त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद (The Tripura Tribal Areas Autonomous District Council- TTAADC) का गठन वर्ष 1985 में संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी समुदायों के अधिकारों एवं सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने और विकास सुनिश्चित करने के लिये किया गया था।
- 'ग्रेटर टिपरालैंड' एक ऐसी स्थिति की परिकल्पना करता है जिसमें संपूर्ण TTAADC क्षेत्र एक अलग राज्य होगा। यह त्रिपुरा के बाहर रहने वाले लोगों और अन्य आदिवासी समुदायों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिये समर्पित निकायों का भी प्रस्ताव करता है।
- TTAADC, जिसके पास विधायी और कार्यकारी शक्तियाँ हैं, राज्य के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग दो-तिहाई हिस्से को कवर करता है।
- परिषद में 30 सदस्य होते हैं जिनमें से 28 निर्वाचित होते हैं जबकि दो राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं।
- त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद (The Tripura Tribal Areas Autonomous District Council- TTAADC) का गठन वर्ष 1985 में संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी समुदायों के अधिकारों एवं सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने और विकास सुनिश्चित करने के लिये किया गया था।
- आरक्षण:
- साथ ही राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से 20 अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित हैं।
आगे की राह
- राजनीतिक विचारों के बजाय आर्थिक और सामाजिक व्यवहार्यता को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- निरंकुश मांगों की जाँच के लिये कुछ स्पष्ट मानदंड और सुरक्षा उपाय होने चाहिये।
- धर्म, जाति, भाषा या बोली के बजाय विकास, विकेंद्रीकरण और शासन जैसी लोकतांत्रिक चिंताओं को नए राज्य की मांगों को स्वीकार करने के लिये वैध आधार देना बेहतर है।
- इसके अलावा विकास और शासन की कमी जैसी मूलभूत समस्याओं जैसे- सत्ता का संकेंद्रण, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अक्षमता आदि का समाधान किया जाना चाहिये।