आंतरिक सुरक्षा
ब्रू-रियांग ऐतिहासिक समझौता
- 18 Jan 2020
- 6 min read
प्रीलिम्स के लिये:ब्रू जनजाति मेन्स के लिये:ब्रू-रियांग शरणार्थी समस्या के समाधान में नए समझौते का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
16 जनवरी, 2020 को नई दिल्ली में भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम सरकार तथा ब्रू-रियांग (Bru-Reang) प्रतिनिधियों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
प्रमुख बिंदु
- इस नए समझौते के तहत लगभग 23 वर्षों से चल रही ब्रू-रियांग शरणार्थी समस्या का स्थायी समाधान किया जाएगा और लगभग 34 हज़ार लोगों को त्रिपुरा में बसाया जाएगा।
- इन सभी लोगों को राज्य के नागरिकों के समान सभी अधिकार दिये जाएंगे और ये केंद्र व राज्य सरकारों की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे।
- इस नई व्यवस्था के अंतर्गत विस्थापित परिवारों को 40x30 फुट का आवासीय प्लॉट, आर्थिक सहायता के रूप में प्रत्येक परिवार को पहले समझौते के अनुसार 4 लाख रुपए फिक्स्ड डिपॉज़िट, दो साल तक 5 हज़ार रुपए प्रतिमाह नकद सहायता, दो साल तक फ्री राशन व मकान बनाने के लिये 1.5 लाख रुपए दिये जाएंगे।
- इस नई व्यवस्था के लिये भूमि की व्यवस्था त्रिपुरा सरकार करेगी।
- भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम सरकार तथा ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच हुए समझौते के तहत लगभग 600 करोड़ रुपए की सहायता राशि केंद्र द्वारा दी जाएगी।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 1997 में जातीय तनाव के कारण करीब 5,000 ब्रू-रियांग परिवारों, जिसमें करीब 30,000 व्यक्ति थे, ने मिज़ोरम से त्रिपुरा में शरण ली।
- इन लोगों को कंचनपुर, उत्तरी त्रिपुरा के अस्थायी शिविरों में रखा गया।
- भारत सरकार वर्ष 2010 से ब्रू-रियांग परिवारों को स्थायी रूप से बसाने के लिये लगातार प्रयास करती रही है। इन प्रयासों के तहत वर्ष 2014 तक विभिन्न बैचों में 1622 ब्रू-रियांग परिवारों को मिज़ोरम वापस भेजा गया।
- ब्रू-रियांग विस्थापित परिवारों की देखभाल व पुनर्स्थापन के लिये भारत सरकार त्रिपुरा व मिज़ोरम सरकारों की सहायता भी करती रही है।
- 3 जुलाई, 2018 को भारत सरकार, मिज़ोरम व त्रिपुरा सरकार तथा ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच हुए एक समझौते के बाद ब्रू-रियांग परिवारों को दी जाने वाली सहायता में काफी वृद्धि की गई है। समझौते के उपरांत वर्ष 2018-19 में 328 परिवार, जिसमें 1369 लोग शामिल थे, त्रिपुरा से मिज़ोरम वापस भेजे गए। लेकिन अधिकांश ब्रू-रियांग परिवारों की यह मांग थी कि सुरक्षा संबंधी आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें त्रिपुरा में ही बसा दिया जाए।
ब्रू जनजाति के बारे में
- ब्रू जनजाति को त्रिपुरा में रियांग के नाम से भी जाना जाता है। यह विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Group-PVTG) के रूप में वर्गीकृत 75 जनजातीय समूहों में से एक है।
- इस जनजाति के सदस्य त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा असम तथा मणिपुर में भी निवास करते हैं।
- त्रिपुरी जनजाति के बाद यह त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। ब्रू-रियांग जनजाति मुख्य रूप से दो बड़े गुटों- मेस्का और मोलसोई में विभाजित है।
- जी.के. घोष की पुस्तक ‘Indian Textiles: Past and Present’ के अनुसार, इस जनजाति की महिलाएँ बुनाई का काम भी करती हैं लेकिन ये कुछ गिने चुने कपड़े ही बुनती हैं जो इस प्रकार हैं-
- रिनाई (Rinai): महिलाओं द्वारा कमर से नीचे पहना जाने वाला वस्त्र।
- रिसा (Risa): महिलाओं द्वारा वक्ष पर पहना जाने वाला वस्त्र।
- बासेई (Basei): महिलाओं द्वारा बच्चों को शरीर पर बाँधने के लिये प्रयोग किया जाता है।
- पानद्री (Pandri): पुरुषों द्वारा कमर के नीचे पहना जाने वाला वस्त्र।
- कुताई (Kutai): शर्ट के समान होता है जिसे पुरुष और महिलाएँ दोनों द्वारा पहना जाता है।
- रिकातु (Rikatu): आयताकार वस्त्र जिसे शरीर को लपेटने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
- बाकी (Baki): यह रिकातु की तुलना में थोड़ा भारी होता है।
- कामचाई (Kamchai): इसे सिर पर लपेटने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
- हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय को मानने वाली रियांग जनजाति के प्रमुख को ‘राय’ कहा जाता है।