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आंतरिक सुरक्षा

ब्रू जनजाति समस्या

  • 11 Nov 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

ब्रू जनजाति, उनका निवास।

मेन्स के लिये

ब्रू जनजाति के संदर्भ में नृजातीय संघर्ष से उत्पन्न आतंरिक सुरक्षा की समस्या

चर्चा में क्यों?

हाल ही में त्रिपुरा सरकार ने ब्रू जनजाति को दी जाने वाली खाद्य आपूर्ति को, जिसे केंद्र सरकार ने रोक दिया था, पुनः प्रारंभ कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • ब्रू समुदाय के साथ लगातार हुई पुनर्स्थापन की कोशिशों के विफल होने के बाद केंद्र सरकार ने शरणार्थी शिविर में होने वाली खाद्य आपूर्ति को 1 अक्तूबर 2019 से समाप्त कर दिया।
  • साथ ही केंद्र सरकार ने ब्रू समुदाय के समक्ष एक अंतिम प्रस्ताव रखा कि जो परिवार 30 नवंबर 2019 से पहले वापस मिज़ोरम (मूल स्थान) लौटने को तैयार हो जाएगा उसे 25,000 रुपए की सहयोग राशि दी जाएगी। इसके बावजूद भी इस समुदाय के लोग वापस जाने को तैयार नहीं हुए।
  • खाद्य आपूर्ति रोकने के बाद छः लोगों की मौत हो गई जिसमें चार नवजात बच्चे भी शामिल थे। इन मौतों की वजह भुखमरी को बताया गया। हालाँकि स्थानीय प्रशासन ने इसका खंडन किया है।
  • इस घटना के बाद इस समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। जिसके चलते त्रिपुरा सरकार ने अपनी ओर से खाद्य आपूर्ति पुनः प्रारंभ कर दी लेकिन यह केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अंतिम तिथि 30 नवंबर 2019 तक ही जारी रहेगी।

कौन है ब्रू?

  • ब्रू या रेयांग (Bru or Reang) समुदाय पूर्वोत्तर भारत के मूल निवासी हैं जो मुख्यतः त्रिपुरा, मिज़ोरम तथा असम में रहते हैं। किवदंतियों के अनुसार, माना जाता है कि त्रिपुरा का एक राजकुमार, जिसे राज्य से निकाल दिया गया था वह, अपने समर्थकों के साथ मिज़ोरम में जाकर बस गया। वहाँ उसने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। ब्रू समुदाय के पूर्वज उस राजकुमार के समर्थक थे। वर्तमान में संख्या में कम होने के कारण त्रिपुरा में इनकी पहचान एक सुभेद्य आदिवासी समूह की है।
  • वर्ष 1995 में मिज़ोरम की ‘मिज़ो’ तथा ‘ब्रू’ जनजातियों के बीच हुए आपसी झड़प के बाद ‘यंग मिज़ो एसोसिएशन’ (Young Mizo Association) तथा ‘मिज़ो स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ (Mizo Students’ Association) ने यह मांग रखी कि ब्रू लोगों के नाम राज्य की मतदाता सूची से हटाए जाए क्योंकि वे मूल रूप से मिज़ोरम के निवासी नहीं हैं।
  • इसके बाद ब्रू समुदाय द्वारा समर्थित उग्रवादी समूह ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (Bru National Liberation Front-BNLF) तथा एक राजनीतिक संगठन (Bru National Union-BNU) के नेतृत्व में वर्ष 1997 में मिज़ो जनजातियों के समूह से हिंसक नृजातीय संघर्ष हुआ। जिसके बाद लगभग 37,000 ब्रू लोगों को मिज़ोरम छोड़ना पड़ा।
  • उसके बाद उन्हें त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में रखा गया। तब से अभी तक लगभग 5,000 ब्रू लोग वापस मिज़ोरम लौट सके हैं जबकि शेष 32,000 अभी भी त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।

उनके जीवन निर्वाह के साधन

  • केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली राहत सामग्री के तहत एक वयस्क ब्रू व्यक्ति को रोज़मर्रा की ज़रूरतों में शामिल सभी वस्तुओं के अलावा प्रतिदिन 5 रुपए व 600 ग्राम चावल तथा किसी अल्पवयस्क को 2.5 रुपए व 300 ग्राम चावल दिया जाता है।
  • अधिकतर शरणार्थी राहत सामग्री के तौर पर प्राप्त होने वाले अनाजों तथा अन्य वस्तुओं को बेच देते हैं तथा उसके बदले में प्राप्त धन को दवा आदि खरीदने के लिये प्रयोग में लाते हैं।
  • एक स्थाई निवास न होने की वजह से उनके पास आधार कार्ड, वोटर आईडी तथा राशन कार्ड आदि नहीं हैं। इसकी वजह से उन्हें घर, बिजली, स्वच्छ पानी, अस्पताल तथा बच्चों के लिये स्कूल जैसी कई बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है।

उनके शरणार्थी बने रहने की वजह

  • वर्ष 2018 में ब्रू समुदाय के नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्रालय तथा दो राज्य सरकारों (त्रिपुरा व मिज़ोरम) के साथ दिल्ली में एक समझौता किया। इसके अनुसार, केंद्र सरकार ने ब्रू जनजातियों के पुनर्वास के लिये आर्थिक मदद तथा घर निर्माण के लिये ज़मीन देना स्वीकार किया। साथ ही इस समुदाय को झूम खेती करने की अनुमति, बैंक अकाउंट, राशन कार्ड, आधार कार्ड, अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र आदि देना तय किया गया।
  • इसके बावजूद सिर्फ 5,000 लोग ही वापस मिज़ोरम जाने के लिये तैयार हुए तथा शेष 35,000 लोगों ने यह कहते हुए लौटने से मना कर दिया कि समझौते के प्रावधान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं साथ ही उन लोगों ने यह माँग भी रखी कि उन्हें एक साथ समूहों (Clusters) में बसाया जाए।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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