भूगोल
बहु-ज़ोखिम पूर्व चेतावनी प्रणालियों की वैश्विक स्थिति: लक्ष्य G
- 19 Oct 2022
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प्रिलिम्स के लिये:सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030), आपदा ज़ोखिम न्यूनीकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस, सुनामी, सूखा, आपदा प्रबंधन। मेन्स के लिये:बहु-जोखिम पूर्व चेतावनी प्रणाली और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आपदा ज़ोखिम न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNDRR) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने बहु-ज़ोखिम पूर्व चेतावनी प्रणालियों की वैश्विक स्थिति: लक्ष्य G शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की जिसमें चेतावनी दी गई है कि विश्व स्तर पर आधे देश बहु-जोखिम पूर्व चेतावनी प्रणाली (MHEWS) द्वारा संरक्षित नहीं हैं।
- यह रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय आपदा ज़ोखिम न्यूनीकरण दिवस (13 अक्तूबर) को चिह्नित करने के लिये जारी की गई है।
- सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030) में उल्लिखित लक्ष्यों का आँकड़ा विश्लेषण किया गया था। यह विश्लेषण आपदा जोखिम में कमी और रोकथाम के लिये एक वैश्विक खाका है।
- फ्रेमवर्क में सात लक्ष्यों में से, लक्ष्य G का उद्देश्य "वर्ष 2030 तक लोगों को बहु-ज़ोखिम पूर्व चेतावनी प्रणालियों और आपदा जोखिम की जानकारी तथा आकलन की उपलब्धता एवं पहुँच में वृद्धि करना है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस:
- ‘अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस’ की स्थापना वर्ष 1989 में दुनिया भर में आपदा न्यूनीकरण की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ (UNGA) के आह्वान के बाद की गई थी।
- वर्ष 2015 में जापान के सेंडाई में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को याद दिलाया गया था कि स्थानीय स्तर पर आपदाएँ सबसे कठिन होती हैं, जिसमें जानमाल की क्षति और बृहत सामाजिक एवं आर्थिक उथल-पुथल की क्षमता होती है।
पूर्व चेतावनी प्रणाली:
- पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ तूफान, सूनामी, सूखा और लू सहित आने वाले खतरों से पूर्व लोगों को होने वाले नुकसान और संपत्ति की क्षति को कम करने के लिये एक सफल साधन हैं।
- बहु-जोखिम पूर्व चेतावनी प्रणाली कई खतरों को संबोधित करती है जो अकेले, एक साथ या व्यापक रूप से हो सकते हैं।
- कई प्रणालियाँ केवल एक प्रकार के खतरे- जैसे बाढ़ या चक्रवात को कवर करती हैं।
प्रमुख बिंदु
- निवेश में विफलता:
- दुनिया खतरे के समक्ष खड़े लोगों के जीवन और आजीविका की रक्षा करने में निवेश करने में विफल हो रही है।
- जिन लोगों ने जलवायु संकट पैदा करने के लिये सबसे कम योगदान किया है, वे सबसे अधिक कीमत चुका रहे हैं।
- अल्प विकसित देश (LDC), विकासशील छोटे द्वीप देश (SIDS) और अफ्रीका के देशों को प्रारंभिक चेतावनी कवरेज बढ़ाने एवं आपदाओं के खिलाफ पर्याप्त रूप से खुद को बचाने के लिये सबसे अधिक निवेश की आवश्यकता होती है।
- पाकिस्तान अपनी सबसे खराब जलवायु आपदा से निपट रहा है, जिसमें लगभग 1,700 लोगों की जान चली गई है। इस मौतों के बावजूद यदि प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली नहीं होती तो मरने वालों की संख्या बहुत अधिक होती।
- महत्त्वपूर्ण अंतराल:
- विश्व स्तर पर केवल आधे देशों में MHEWS है।
- रिकॉर्ड की गई आपदाओं की संख्या में पाँच गुना वृद्धि हुई है, जो मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन और अधिक चरम मौसम से प्रेरित है। यह प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है।
- अल्प विकसित देशों के आधे से भी कम और विकासशील छोटे द्वीप देशों में से केवल एक तिहाई के पास बहु-जोखिम पूर्व चेतावनी प्रणाली है।
- खतरे के घेरे में है मानवता:
- जैसा कि लगातार बढ़ रहा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ग्रह भर में चरम मौसम की घटनाओं को बढ़ावा दे रही है, जलवायु आपदाएँ देशों और अर्थव्यवस्थाओं को पहले की तरह नुकसान पहुँचा रही हैं।
- बढ़ती हुई विपत्तियों से लोगों की जान जा रही है और सैकड़ों अरबों डॉलर का नुकसान हो रहा है।
- युद्ध की तुलना में तीन गुना अधिक लोग जलवायु आपदाओं से विस्थापित होते हैं और आधी मानवता पहले से ही खतरे के क्षेत्र में है।
सिफारिशें:
- सभी देशों से पूर्व चेतावनी प्रणाली में निवेश करने का आह्वान किया।
- जैसा कि जलवायु परिवर्तन अधिक बार-बार, चरम और अप्रत्याशित मौसम की घटनाओं का कारण बनता है, अतः प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में निवेश जो कई खतरों को लक्षित करता है, पहले से कहीं अधिक ज़रूरी है।
- यह न केवल आपदाओं के प्रारंभिक प्रभाव, बल्कि दूसरे और तीसरे क्रम के प्रभावों के प्रति भी चेतावनी देने की आवश्यकता है। उदाहरणों में भूकंप या भूस्खलन के बाद मृदा का विलयनीकरण और भारी वर्षा के बाद रोग का प्रकोप शामिल हैं।
आपदा प्रबंधन के संबंध में भारत के प्रयास:
- राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल (NDRF):
- राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल (NDRF) के स्थापना के साथ, आपदा प्रतिक्रिया के लिये समर्पित सबसे बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया बल, भारत ने सभी प्रकार की आपदाओं को रोकने और प्रतिक्रिया करने की अपनी क्षमता में वृद्धि की है।
- विदेशी आपदा राहत के रूप में भारत की भूमिका:
- नौसेना के जहाज़ो या विमानों के प्राथमिक उपयोग के साथ, भारत की विदेशी मानवीय सहायता ने अपने सैन्य संसाधनों को और समृद्ध किया है।
- "पड़ोसी पहले (नेबरहुड फर्स्ट)" की अपनी कूटनीतिक नीति के अनुरूप, कई सहायता प्राप्तकर्त्ता देश दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के क्षेत्र में रहे हैं।
- क्षेत्रीय आपदा तैयारियों में योगदान:
- बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल- (BIMSTEC) के संदर्भ में भारत ने आपदा प्रबंधन अभ्यासों की मेजबानी की है जो NDRF को साझेदार देशों के समकक्षों के लिये विभिन्न आपदाओं का जवाब देने हेतु विकसित तकनीकों का प्रदर्शन करने की अनुमति देता है।
- अन्य NDRF और भारतीय सशस्त्र बलों के अभ्यासों ने भारत के पहले उत्तरदाताओं को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के देशों के संपर्क में लाया है।
- जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदा का प्रबंधन:
- भारत ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई फ्रेमवर्क, सतत् विकास लक्ष्यों (2015-2030) और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को अपनाया है, जो सभी आपदा जोखिम कमी, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (CCA), और सतत् विकास के बीच संबंधों को स्पष्ट करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में आपदा ज़ोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई आपदा ज़ोखिम न्यूनीकरण प्रारूप' (2015-30) पर हस्ताक्षर करने से पूर्व और उसके पश्चात किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप 'ह्यूगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (2005)' से किस प्रकार भिन्न है? (2018) |