काली मृदा की वैश्विक स्थिति: FAO | 07 Dec 2022

प्रिलिम्स के लिये:

FAO, विश्व मृदा दिवस, SOC, मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिये पहल।

मेन्स के लिये:

काली मृदा की वैश्विक स्थिति, काली मृदा का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) ने विश्व मृदा दिवस 2022 (5 दिसंबर) के अवसर पर काली मृदा की वैश्विक स्थिति (Global Status of Black Soils) पर अपनी पहली रिपोर्ट जारी की, जो जलवायु संकट, जैव विविधता क्षति और भूमि उपयोग परिवर्तन के कारण पहले से कहीं अधिक जोखिम में हैं।

प्रमुख बिंदु

  • काली मृदा का महत्त्व:
    • काली मृदा को वायुमंडल से कार्बन को हटाने और कार्बनिक पदार्थ (जिसे कार्बन पृथक्करण कहा जाता है) को संचित करने की क्षमता एवं मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण समाधान के रूप में प्रस्तावित किया गया है।
    • मृदा में अंतर्निहित उर्वरता कई देशों के लिये खाद्य टोकरी जैसी है और वैश्विक खाद्य आपूर्ति के लिये आवश्यक मानी जाती है।
    • यदि काली मृदा पर उचित ध्यान दिया जाए तो वैश्विक स्तर पर काली मृदा में विश्व स्तर पर कुल मृदा कार्बनिक कार्बन (Soil Organic Carbon- SOC) अनुक्रम का 10% प्रदान करने की क्षमता है
      • यूरोप और यूरेशिया में 65% से अधिक एवं लैटिन अमेरिका तथा कैरिबियन में लगभग 10% मृदा कार्बनिक कार्बन (Soil Organic Carbon- SOC) अनुक्रम की उच्चतम क्षमता है।
    • काली मृदा वाले क्षेत्र में वैश्विक आबादी का 2.86% निवास करता है और इसमें 17.36% क्रॉपलैंड, 8.05% ग्लोबल SOC स्टॉक और 30.06% SOC ग्लोबल क्रॉपलैंड का स्टॉक था।
    • हालाँकि दुनिया की मृदा के एक छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद काली मृदा खाद्य सुरक्षा और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • वर्ष 2010 में विश्व स्तर पर, 66% सूरजमुखी के बीज, 51% छोटे बाजरा, 42% चुकंदर, 30% गेहूँ और 26% आलू काली मृदा से उत्पादित किये गए थे।
  • काली मृदा की स्थिति:
    • काली मृदा का SOC स्टॉक तेज़ी से कम हो रहा है। इसके अपने मूल SOC स्टॉक में 20- 50% की कमी हुई है, कार्बन को ज़्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वातावरण में उत्सर्जित किया जा रहा है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है।
  • काली मृदा के क्षरण का कारण:
    • भूमि उपयोग परिवर्तन, अस्थिर प्रबंधन पद्धतियाँ और कृषि रसायनों का अत्यधिक उपयोग इसके लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • अधिकांश काली मृदा गंभीर क्षरण प्रक्रियाओं के साथ-साथ पोषक तत्त्वों के असंतुलन, अम्लीकरण और जैव विविधता संबंधित क्षति का सामना कर रही है।
  • खाद्य और उर्वरक संकट:
    • छोटे किसानों विशेष रूप से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के कमज़ोर देशों से जैविक एवं अकार्बनिक उर्वरकों तक पहुँच की कमी है साथ ही वर्तमान में उर्वरक कीमतों में 300% की वृद्धि का सामना कर रहे हैं।
    • आज कम उपलब्धता और बढ़ती उर्वरक कीमतें खाद्य कीमतों और खाद्य असुरक्षा को बढ़ा रही हैं।
  • सुझाव:
    • काली मृदा वाले क्षेत्र में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पतियों, जैसे घास के मैदानों, जंगलों और आर्द्रभूमियों को संरक्षित करना और खेती के लिये उपयोग की जाने वाली काली मृदा के लिये स्थायी मृदा प्रबंधन तकनीकों का उपयोग करना आवश्यक है।
    • एक स्थायी तरीके से सुरक्षित, पौष्टिक और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन के उत्पादन हेतु एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है ताकि मृदा के क्षरण को कम किया जा सके, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम किया जा सके और कृषि खाद्य प्रणाली के प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।"

काली मृदा

  • काली मृदा जैविक पदार्थों से भरपूर, मोटी और गहरे रंग की होती है।
    • यह रूस (327 मिलियन हेक्टेयर), कज़ाखस्तान (108 मिलियन हेक्टेयर), चीन (50 मिलियन हेक्टेयर), अर्जेंटीना, मंगोलिया, यूक्रेन आदि में पायी जाती है।
  • काली मृदा अत्यंत उपजाऊ होती है और अपनी उच्च नमी भंडारण क्षमता के कारण उच्च कृषि पैदावार कर सकती है।
  • काली मृदा लौह तत्त्व, चूना, कैल्शियम, पोटेशियम, एल्यूमीनियम और मैग्नीशियम से भरपूर होती है लेकिन इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस की कमी होती है।
  • यह वैश्विक मृदा का 5.6% हैं और इनमे विश्व के मृदा जैविक कार्बन(Soil Organic Carbon - SOC) स्टॉक का 8.2%,अर्थात लगभग 56 बिलियन टन कार्बन होता हैं।
    • मृदा जैविक कार्बन मृदा के कार्बनिक पदार्थ का एक परिमेय घटक है, जो अधिकांश मृदा के द्रव्यमान का सिर्फ 2-10% होता है और कृषिपयोगी मृदा के भौतिक, रासायनिक और जैविक कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • SOC केवल जैविक यौगिकों के कार्बन घटक को संदर्भित करता है।
  • यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूलन संबंधी महत्त्व को दर्शाता है।
  • अपनी अंतर्निहित उर्वरता के कारण यह कई देशों के लिये फूड बास्केट हैं और वैश्विक खाद्य आपूर्ति के लिये आवश्यक मानी जाती हैं।
  • कई देशों के लिये फूड बास्केट होने और अपनी अंतर्निहित उर्वरता के कारण यह वैश्विक खाद्य आपूर्ति हेतु महत्त्वपूर्ण हैं।

विश्व मृदा दिवस:

  • वर्ष 2002 में ‘इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सॉयल साइंसेज़’ (IUSS) द्वारा इसकी सिफारिश की गई थी।
  • खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने WSD की औपचारिक स्थापना का समर्थन थाईलैंड के नेतृत्त्व में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने वाले वैश्विक मृदा भागीदारी मंच के रूप में किया है। ।
  • 5 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly- UNGA) द्वारा पहले आधिकारिक (World Soil Day -WSD) के रूप में नामित किया गया था।
    • 5 दिसंबर का दिन इसलिये चुना गया क्योंकि यह थाईलैंड के राजा भूमिबोल अदुल्यादेज का आधिकारिक जन्मदिवस है। जिन्होंने आधिकारिक तौर पर इस आयोजन को मंज़ूरी दी थी।
  • विश्व मृदा दिवस जन समुदायों को मृदा संसाधनों के सतत् प्रबंधन पर विचार करने के लिये प्रेरित करता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य मृदा क्षरण के कारकों, कार्बनिक पदार्थों की हानि और मृदा की उर्वरता में गिरावट जैसे पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना है।
  • वर्ष 2022 के लिये इसकी थीम- ‘मृदा, जिससे अनाज उत्पादित होता है’ ("Soils: Where food begins") है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रश्न. भारत की काली कपासी मृदा का निर्माण किसके अपक्षय के कारण हुआ है?

(a) भूरी वन मृदा
(b) विदरी  ज्वालामुखीय चट्टान
(c) ग्रेनाइट और शिस्ट
(d) शेल और चूना-पत्थर

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • काली मृदा, कपास उगाने के लिये आदर्श है इसे रेगुर मृदा या काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है। काली मृदा के निर्माण के लिये चट्टान सामग्री के साथ-साथ जलवायु परिस्थितियाँ भी महत्त्वपूर्ण कारक हैं। काली मृदा दक्कन (बेसाल्ट) क्षेत्र की प्रमुख पहचान है जो उत्तर-पश्चिमी दक्कन के पठारमें फैपायी जाती है और इसका निर्माण लावा प्रवाह या विदरी ज्वालामुखीय चट्टान से हुआ है।
  • दक्कन के पठार में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्से शामिल हैं। काली मृदा, गोदावरी व कृष्णा के ऊपरी भाग तथा उत्तरी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्से में पाई जाती हैं।
  • रासायनिक रूप से काली मृदा चूना, लोहा, मैग्नेशिया और एल्युमीनियम के संदर्भ में समृद्ध है। इसमें पोटाश भी होता है। लेकिन इसमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है। मृदा का रंग गहरे काले से लेकर भूरे रंग तक होता है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ