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कृषि

डिजिटल कृषि

  • 15 Sep 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल कृषि

मेन्स के लिये:

डिजिटल कृषि से संबंधित चुनौतियाँ और भारत सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने डिजिटल कृषि को आगे बढ़ाने के लिये निजी कंपनियों के साथ 5 समझौता ज्ञापनों (MOUs) पर हस्ताक्षर किये।

  • ये पायलट परियोजनाएँ डिजिटल कृषि मिशन का हिस्सा हैं और राष्ट्रीय किसान डेटाबेस पर आधारित होंगी, जिसमें पहले से ही मौजूदा राष्ट्रीय योजनाओं का उपयोग करने वाले 5.5 करोड़ किसान शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु:

    • डिजिटल कृषि: 
      • संदर्भ: डिजिटल कृषि "सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) और डेटा पारिस्थितिकी तंत्र है जो सभी के लिये सुरक्षित पौष्टिक तथा किफायती भोजन प्रदान करते हुए खेती को लाभदायक एवं टिकाऊ बनाने हेतु समय पर लक्षित सूचना एवं सेवाओं के विकास व वितरण का समर्थन करता है।"
      • उदाहरण:
        • कृषि जैव प्रौद्योगिकी पारंपरिक प्रजनन तकनीकों सहित उपकरणों की एक शृंखला है, जो उत्पादों को बनाने या संशोधित करने के लिये जीवित जीवों या जीवों के कुछ हिस्सों को बदल देती है; पौधों या जानवरों में सुधार या विशिष्ट कृषि उपयोगों के लिये सूक्ष्मजीवों का विकास करती है।
        • परिशुद्ध कृषि (Precision Agriculture- PA) के अंतर्गत सेंसर, रिमोट सेंसिंग, डीप लर्निंग और अर्टीफिशियल इंटेलीजेंस तथा इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) में हुए विकास को व्‍यवहार में लाकर दक्षता एवं पर्यावरणीय निरंतरता का संवर्द्धित उपयोग कर मृदा, पौधों एवं पर्यावरण की निगरानी के माध्यम से कृषि उत्‍पादकता बढ़ाने पर चर्चा करना है।
        • डेटा मापन, मौसम निगरानी, रोबोटिक्स/ड्रोन प्रौद्योगिकी आदि के लिये डिजिटल और वायरलेस प्रौद्योगिकियाँ।
      • लाभ:
        • कृषि उत्पादकता को बढ़ाती है।
        • मृदा के क्षरण को रोकती है।
        • फसल उत्पादन में रासायनिक अनुप्रयोग को कम करती है।
        • जल संसाधनों का कुशल उपयोग।
        • गुणवत्ता, मात्रा और उत्पादन की कम लागत के लिये आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रसार करती है।
        • किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव लाती है।
      • चुनौतियाँ:
        • उच्च पूंजी लागत: यह किसानों को खेती के डिजिटल तरीकों को अपनाने के लिये हतोत्साहित करती है।
        • छोटी जोत: भारतीय खेत आकार में बहुत छोटे होते हैं और 1-2 एकड़ खेत के भूखंड काफी आम हैं। साथ ही भारत में कृषि भूमि को पट्टे पर देना भी व्यापक रूप से प्रचलित है।
        • भूमि किराए पर लेने और साझा करने की प्रथाएँ: सीमित वित्तीय संसाधनों और छोटे खेत के भूखंडों के कारण ट्रैक्टर, हार्वेस्टर आदि जैसे उपकरण और मशीनरी हेतु एकमुश्त खरीद के बजाय भूमि को किराए पर देना और साझा करना काफी आम है।
        • ग्रामीण क्षेत्र में निरक्षरता: बुनियादी कंप्यूटर साक्षरता की कमी ई-कृषि के तीव्र विकास में एक बड़ी बाधा है।
    • संबंधित सरकारी प्रयास
      • एग्रीस्टैक: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 'एग्रीस्टैक' के निर्माण की योजना बनाई है, जो कि कृषि में प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेपों का एक संग्रह है। यह किसानों को कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में एंड टू एंड सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक एकीकृत मंच का निर्माण करेगा।
      • डिजिटल कृषि मिशन: कृषि क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉक चेन, रिमोट सेंसिंग और GIS तकनीक, ड्रोन व रोबोट के उपयोग जैसी नई तकनीकों पर आधारित परियोजनाओं को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2021 से वर्ष 2025 तक के लिये यह पहल शुरू की गई है।
      • एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP): यह कोर इंफ्रास्ट्रक्चर, डेटा, एप्लीकेशन और टूल्स का एक संयोजन है जो देश भर में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न सार्वजनिक और निजी आईटी प्रणालियों की निर्बाध अंतःक्रियाशीलता को सक्षम बनाता है। UFSP निम्नलिखित भूमिका निभाता है:
        • यह कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करता है (जैसे ई भुगतान में UPI)।
        • सेवा प्रदाताओं (सार्वजनिक और निजी) और किसान सेवाओं के पंजीकरण को सक्षम करता है।
        • सेवा वितरण प्रक्रिया के दौरान आवश्यक विभिन्न नियमों और मान्यताओं को लागू करता है।
        • सभी लागू मानकों, एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस  (Application Programming Interface- API) और प्रारूपों के भंडार के रूप में कार्य करता है।
        • किसानों को व्यापक स्तर पर सेवाओं के वितरण सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न योजनाओं और सेवाओं के बीच डेटा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करना।
      • कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP-A): यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, इस योजना को वर्ष 2010-11 में 7 राज्यों में प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य किसानों तक समय पर कृषि संबंधी जानकारी पहुँचाने के लिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के उपयोग के माध्यम से भारत में तेज़ी से विकास को बढ़ावा देना है।
        • वर्ष 2014-15 में इस योजना का विस्तार शेष सभी राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया था।
      • अन्य डिजिटल पहलें: किसान कॉल सेंटर, किसान सुविधा एप, कृषि बाज़ार एप, मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) पोर्टल आदि।

    आगे की राह:

    • प्रौद्योगिकी के उपयोग ने 21वीं सदी को परिभाषित किया है। जैसे-जैसे दुनिया क्वांटम कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बिग डेटा और अन्य नई तकनीकों की ओर बढ़ रही है, भारत के पास आईटी दिग्गज होने का लाभ उठाने और कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने का एक ज़बरदस्त अवसर है। जैसे कि हरित क्रांति ने कृषि उत्पादन में वृद्धि की, वैसे ही भारतीय खेती में आईटी क्रांति अगला बड़ा कदम होना चाहिये।
    • उपग्रह इमेजिंग, मृदा स्वास्थ्य सूचना, भूमि रिकॉर्ड, फसल पैटर्न और आवृत्ति, बाज़ार डेटा एवं देश में एक मज़बूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है।
    • डेटा दक्षता को डिजिटल एलिवेशन मॉडल (डीईएम), डिजिटल स्थलाकृति, भूमि उपयोग और भूमि कवर, मृदा मानचित्र आदि के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है।

    स्रोत- पीआईबी

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