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कृषि

एग्रीस्टैक: कृषि क्षेत्र हेतु नया डिजिटल प्रयोजन

  • 26 Jun 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

एग्रीस्टैक 

मेन्स के लिये

कृषि में ई-टेक का प्रयोग 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि मंत्रालय ने 6 राज्यों के 100 गाँवों के लिये एक पायलट कार्यक्रम चलाने हेतु माइक्रोसॉफ्ट के साथ समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • समझौता ज्ञापन में माइक्रोसॉफ्ट की क्लाउड कंप्यूटिंग सेवाओं के माध्यम से 'एकीकृत किसान सेवा इंटरफेस' (Unified Farmer Service Interface) बनाने की आवश्यकता है।
  • इसमें 'एग्रीस्टैक' (कृषि में प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेप का एक संग्रह) बनाने की मंत्रालय की योजना का एक बड़ा हिस्सा शामिल है, जिस पर बाकी सभी संरचनाएँ बनायी जाएंगी।

प्रमुख बिंदु:

एग्रीस्टैक के बारे में:

  • यह प्रौद्योगिकियों और डिजिटल डेटाबेस का एक संग्रह है जो किसानों तथा कृषि क्षेत्र पर केंद्रित है।
  • एग्रीस्टैक किसानों को कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में एंड टू एंड सर्विसेज़ प्रदान करने के लिये एक एकीकृत मंच तैयार करेगा।
  • यह केंद्र के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य भारत में भूमि के डिजिटलीकरण से लेकर मेडिकल रिकॉर्ड तक के डेटा को डिजिटाइज़ करने के लिये व्यापक प्रयास करना है।
  • इस कार्यक्रम के तहत प्रत्येक किसान की एक विशिष्ट डिजिटल पहचान (किसानों की आईडी) होगी जिसमें व्यक्तिगत विवरण, उनके द्वारा खेती की जाने वाली भूमि की जानकारी, साथ ही उत्पादन और वित्तीय विवरण शामिल होंगे।
    • प्रत्येक आईडी व्यक्ति की डिजिटल राष्ट्रीय आईडी आधार से जुड़ी होगी।

आवश्यकता:

  • वर्तमान में भारत में अधिकांश किसान छोटे और सीमांत स्तर के किसान हैं जिनकी उन्नत तकनीकों या औपचारिक ऋण तक सीमित पहुँच है जो उत्पादन में सुधार तथा  बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।
  • कार्यक्रम के तहत प्रस्तावित नई डिजिटल कृषि प्रौद्योगिकियों और सेवाओं के प्रयोग से मवेशियों की निगरानी के लिये सेंसर, मिट्टी का विश्लेषण करने और कीटनाशक छिड़काव के लिये ड्रोन, कृषि उपज में सुधार तथा किसानों की आय को बढ़ावा देना शामिल है।

संभावित लाभ:

  • क्रेडिट और सूचना तक अपर्याप्त पहुँच, कीट संक्रमण, फसल की बर्बादी, फसलों की कम कीमत और उपज की भविष्यवाणी जैसी समस्याओं से डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग से पर्याप्त रूप से निपटा जा सकता है।
  • यह नवाचार को बढ़ावा देने के साथ ही कृषि क्षेत्र में निवेश को भी बढ़ाएगा तथा अधिक लचीली फसलों के लिये अनुसंधान को बढ़ावा देगा।

चिंताएँ:

  • डेटा सुरक्षा कानून का अभाव:
    • इसकी अनुपस्थिति में यह एक ऐसी व्यवस्था बन सकती है जहाँ निजी डेटा प्रोसेसिंग संस्थाएँ किसान की भूमि के बारे में किसान की तुलना में अधिक जानकारी रख सकती हैं और वे जिस सीमा तक चाहें किसानों के डेटा का दोहन करने में सक्षम हो सकती हैं।
  • व्यावसायीकरण:
    • 'एग्रीस्टैक' के गठन से कृषि विस्तार गतिविधियों का व्यावसायीकरण होगा क्योंकि ये डिजिटल और निजी क्षेत्र में स्थानांतरित हो जाएंगी।
  • विवाद निपटान तंत्र की अनुपस्थिति:
    • समझौता ज्ञापन डिजिटल रूप से एकत्र किये गए भूमि डेटा का भौतिक सत्यापन करते हैं, लेकिन विवाद उत्पन्न होने पर कार्रवाई का तरीका क्या होगा, इस पर कुछ भी  स्पष्ट नहीं है, खासकर जब ऐतिहासिक साक्ष्य स्पष्ट करते हैं कि भूमि विवादों को निपटाने में वर्षों लगते हैं।

गोपनीयता और बहिष्करण मुद्दे:

  • इस व्यवस्था में प्रस्तावित किसान आईडी आधार से जुड़ी होगी जिससे गोपनीयता और बहिष्करण के मुद्दे उभरेंगे।
  • कई शोधकर्त्ताओं ने उल्लंघन और लीक के लिये आधार डेटाबेस की भेद्यता को स्पष्ट किया है, जबकि कल्याण वितरण में आधार-आधारित बहिष्करण को भी विभिन्न संदर्भों में अच्छी तरह से उल्लेखित किया गया है।
  • साथ ही भूमि रिकॉर्ड का किसान डेटाबेस बनाने का तात्पर्य है कि इसमें काश्तकार किसानों, बटाईदारों और खेतिहर मजदूरों को नहीं शामिल किया जाएगा।
    • आँकड़ों से पता चलता है कि खेतिहर मदूरों की आबादी किसानों से ज़्यादा हो गई है।

आगे की राह:

  • इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि डेटा और प्रौद्योगिकी द्वारा किसानों को सशक्त बनाया जा सकता है लेकिन केवल इसके लिये सूचना का संतुलित प्रयोग होना आवश्यक है।
  • प्रायोगिक परियोजनाओं पर काम कर रही निजी फर्मों को भूमि स्वामित्व पर मतभेदों को सुलझाने के लिये राज्य सरकारों के साथ प्रभावी ढंग से सहयोग करना चाहिये।
  • सरकार को पायलट ट्रेल्स से प्राप्त परिणामों के आधार पर परियोजना के साथ आगे बढ़ना चाहिये। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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