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जैव विविधता और पर्यावरण

पूर्वोत्तर भारत में वन संरक्षण और जनजातीय अधिकार

  • 07 Sep 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2023, दर्ज वनक्षेत्र, वन अधिकार अधिनियम 2006

मेन्स के लिये:

पूर्वोत्तर भारत में वन संरक्षण और जनजातीय अधिकार

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही मे मिज़ोरम विधानसभा ने वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें पूर्वोत्तर भारत में वन संरक्षण और जनजातीय अधिकारों से संबंधित चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।

FCA के विरोध में पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा व्यक्त चिंताएँ:

  • पूर्वोत्तर भारत पर इस संशोधन का प्रभाव:
    • वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के विपरीत वर्ष 2023 का वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम भारत की उन विदेशी सीमाओं से 100 किलोमीटर अथवा उससे कम दूरी पर परियोजनाओं के लिये वन भूमि के डायवर्ज़न (अन्य उद्देश्यों के लिये भूमि का आवंटन) की अनुमति देता है।
    • पूर्वोत्तर भारत का अधिकांश भाग 100 किमी. के दायरे में आता है जिससे विभिन्न परियोजनाओं के कारण उत्पन्न होने वाली पर्यावरणीय प्रभाव और जनजातीय अधिकारों के उल्लंघन को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • आधिकारिक तौर पर गैर-वर्गीकृत वनों की असुरक्षा:
    • वर्ष 1996 तक FCA के प्रावधान केवल उन वनों पर लागू होते थे जिन्हें वन के रूप में घोषित या अधिसूचित किया गया था और 25 अक्तूबर, 1980 को या उसके बाद सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज वनों पर।
    • जिन क्षेत्रों को आधिकारिक तौर पर सरकारी रिकॉर्ड में वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, भले ही वे स्थायी वन हों, उन्हें व्यावसायिक दोहन या किसी अन्य प्रकार के विचलन से संरक्षित नहीं किया जाएगा।
      • यह गोदावर्मन मामले में वर्ष 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को बदल देता है जिसमें कहा गया था कि वन शब्द से मिलता-जुलता कोई भी क्षेत्र संरक्षण कानूनों के तहत संरक्षित किया जाएगा।
  • राज्य विपक्ष:
    • मिज़ोरम और त्रिपुरा ने अपने व्यक्तियों के अधिकारों एवं हितों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त कर संशोधन का विरोध करते हुए प्रस्ताव पारित किये हैं।
    • नगालैंड को भी इसका पालन करने की मांग का सामना करना पड़ रहा है और सिक्किम ने भी 100 किमी. छूट वाले खंड का विरोध किया है।
  • महत्त्वपूर्ण क्षेत्र अवर्गीकृत वन:
    • उत्तर-पूर्व में वनों का एक बड़ा हिस्सा निजी स्वामित्व में है: जो व्यक्तियों या कुलों या ग्राम परिषदों या समुदायों के विशेष विशेषाधिकारों द्वारा सुनिश्चित हैं तथा संविधान आदिवासी समुदायों को गारंटी देता है।
    • उत्तर-पूर्व में रिकॉर्डेड वन क्षेत्र (RFA) का 50% से अधिक हिस्सा"अवर्गीकृत वन" के अंतर्गत आता है- वे वन जो किसी भी कानून के तहत अधिसूचित नहीं हैं।
      •  उदाहरण के लिये नगालैंड में RFA का 97.3%, मेघालय में 88.2%, मणिपुर में 76%, अरुणाचल प्रदेश में 53%, त्रिपुरा में 43%, असम में 33% और मिज़ोरम में 15.5% अवर्गीकृत वन श्रेणी में आते हैं।
    • इसका अर्थ यह है कि अवर्गीकृत वनों के इन बड़े क्षेत्रों को इस अधिनियम से बाहर रखा जाएगा जब तक कि उन्हें सरकारी रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया जाता है।

उत्तर-पूर्व भारत में वनों की सुरक्षा:

  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (FRA), 2006:
    • वन भूमि में अवर्गीकृत वन, गैर-सीमांकित वन, मौजूदा या डीम्ड वन, संरक्षित वन, आरक्षित वन, अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं।
    • यह वर्ष 1996 के सर्वोच्च न्यायालय की पुनर्परिभाषा का अनुपालन करता है।
  • अनुच्छेद 371A और 371G:
    • अनुच्छेद 371A (नगालैंड) और 371G (मिज़ोरम) में विशेष संवैधानिक सुरक्षा उन कानूनों के कार्यान्वयन करने पर रोक लगाती है जो आदिवासी प्रथागत कानून, भूमि स्वामित्व और राज्य विधानसभाओं के प्रस्तावों के बिना हस्तांतरण पर रोक लगाते हैं।
      • नगालैंड के विपरीत मिज़ोरम एक राज्य के रूप में अपनी स्थिति के कारण FCA के दायरे में आता है। यह संशोधन इसके 84.53% वन क्षेत्रों को प्रभावित करता है।
      • केंद्रशासित प्रदेश से मिज़ोरम संविधान (53वाँ संशोधन) अधिनियम, 1986 के साथ एक राज्य बन गया, जिसमें संविधान में अनुच्छेद 371G जोड़ा गया, इसमें कहा गया कि 1986 से पहले लागू सभी केंद्रीय अधिनियम FCA सहित राज्य तक विस्तृत हैं।
  • वन अधिकार अधिनियम (FRA) 2006:
    • FRA विभिन्न वन प्रकारों में पारंपरिक वन अधिकारों को मान्यता देता है, जिसमें अवर्गीकृत वन भी शामिल हैं, जो आदिवासी समुदायों के लिये सुरक्षा की एक अतिरिक्त स्तर प्रदान करता है।
      • असम और त्रिपुरा को छोड़कर अधिकांश पूर्वोत्तर राज्यों ने भूमि स्वामित्व पैटर्न और वन-निर्भर समुदायों की कमी जैसे कारणों का हवाला देते हुए FRA लागू नहीं किया है।

संवैधानिक अनुच्छेद जो पूर्वोत्तर राज्यों को छूट प्रदान करते हैं:

अनुच्छेद (संशोधन)

राज्य 

प्रावधान

अनुच्छेद 371A (13वाँ संशोधन अधिनियम, 1962)

नगालैंड

संसद नगा धर्म या सामाजिक प्रथाओं, नगा प्रथागत कानून और प्रक्रिया, नगा प्रथागत कानून के अनुसार निर्णय लेने वाले नागरिक एवं आपराधिक न्याय प्रशासन तथा राज्य विधानसभा की सहमति के बिना भूमि के स्वामित्व व हस्तांतरण के मामलों में कानून नहीं बना सकती है।

अनुच्छेद 371जी (53वाँ संशोधन अधिनियम, 1986)

मिज़ोरम

संसद मिज़ो की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, मिज़ो प्रथागत कानून और प्रक्रिया, मिज़ो प्रथागत कानून के अनुसार निर्णय लेने वाले नागरिक एवं आपराधिक न्याय के प्रशासन, भूमि के स्वामित्व तथा हस्तांतरण पर तब तक कानून नहीं बना सकती जब तक कि विधानसभा निर्णय न ले।

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