भारत में फ्लोरीकल्चर | 10 Oct 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:फ्लोरीकल्चर, धान, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, APEDA, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, प्रति बूंद अधिक फसल मुख्य परीक्षा के लिये:फ्लोरीकल्चर क्षेत्र, कृषि विपणन, फसल विविधीकरण के माध्यम से आर्थिक परिवर्तन |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
ओडिशा के संबलपुर ज़िले का जुजुमारा क्षेत्र राज्य के पहले किसान उत्पादक संगठनों (FPO) में से एक है, यह पारंपरिक धान की खेती के स्थान पर फूलों की खेती को समर्पित है।
- राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (NBRI) के समर्थन से स्थानीय किसान फूलों की खेती अपना रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप इनकी आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा मिल रहा है।
फूलों की खेती जुजुमारा की अर्थव्यवस्था को किस प्रकार बदल रही है?
- आय स्रोतों में विविधीकरण: किसान पारंपरिक धान की खेती से फूलों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे एक ही फसल पर निर्भरता कम होने के साथ आय स्थिरता को बढ़ावा मिल रहा है।
- आर्थिक लाभ: धान की खेती से लाभ लगभग 40,000 रुपए प्रति एकड़ जबकि फूलों की खेती से लाभ 1 लाख रुपए प्रति एकड़ हो सकता है।
- बाज़ार अनुकूलन: व्हाट्सएप ग्रुप जैसे प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से किसानों को बाज़ार के रुझानों के बारे में अपडेट प्राप्त होता है, जिससे वे उत्पादन एवं बिक्री के बारे में निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।
- धारणीय प्रथाएँ: फ्लोरीकल्चर के साथ-साथ मधुमक्खी पालन को एकीकृत करने से जैवविविधता को बढ़ावा मिलता है तथा किसानों के लिये अतिरिक्त आय का स्रोत उपलब्ध होता है।
फ्लोरीकल्चर क्या है?
- परिचय: फ्लोरीकल्चर के तहत विभिन्न प्रयोजनों (जैसे प्रत्यक्ष बिक्री, सौंदर्य प्रसाधन, इत्र और दवा उद्योग) के लिये पुष्पीय और सजावटी पौधों की खेती शामिल है।
- इसमें कटिंग, ग्राफ्टिंग और बडिंग जैसी तकनीकों के माध्यम से बीज और पौधों का उत्पादन शामिल है।
- कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA), फूलों सहित कृषि-निर्यात को बढ़ावा देने के लिये नोडल संगठन है।
- भारत में फ्लोरीकल्चर का बाजार: भारत सरकार ने फ्लोरीकल्चर को “सनराइज़ उद्योग” के रूप में चिन्हित किया है।
- वर्ष 2023-24 (द्वितीय अग्रिम अनुमान) में लगभग 297 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फूलों की खेती होना अनुमानित है।
- भारत ने वर्ष 2023-24 में 717.83 करोड़ रुपए मूल्य के लगभग 20,000 मीट्रिक टन फ्लोरीकल्चर उत्पादों का निर्यात किया, जिसमें प्रमुख आयातकों में संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और मलेशिया शामिल हैं।
- इस क्षेत्र के असाधारण प्रदर्शन के कारण वर्ष 2030 तक इसके 7.4% (वर्ष 2021-2030) की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ 5.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक होने की उम्मीद है।
- किस्में: भारत के फ्लोरीकल्चर उद्योग में कटे हुए फूल, गमले के पौधे, बल्ब, कंद और सूखे फूल शामिल हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय पुष्प व्यापार में महत्त्वपूर्ण पुष्पीय फसलें शामिल हैं जिसमें गुलाब, कारनेशन, गुलदाऊदी, गार्गेरा, ग्लेडियोलस, जिप्सोफिला, लिआट्रिस, नेरिन, आर्किड, आर्किलिया, एन्थ्यूरियम, ट्यूलिप और लिली आदि शामिल हैं।
- फ्लोरीकल्चर संबंधी फसलें जैसे गेरबेरा, कारनेशन इत्यादि ग्रीनहाउस में उगाई जाती हैं। ये खुले खेत में उगाई गई फसलें हैं जिसमें गुलदाऊदी, गुलाब, गैलार्डिया, लिली मैरीगोल्ड, एस्टर, ट्यूबरोज़ इत्यादि शामिल है।
- ग्रीनहाउस पारदर्शी सामग्री से निर्मित ढाँचे होते हैं, जहाँ नियंत्रित पर्यावरणीय परिस्थितियों में फसलें उगाई जाती हैं।
- अग्रणी फ्लोरीकल्चर क्षेत्र: कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, असम और महाराष्ट्र प्रमुख फ्लोरीकल्चर केंद्र के रूप में उभरे हैं।
भारत के फ्लोरीकल्चर उद्योग में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- ज्ञान की कमी: फ्लोरीकल्चर एक नवीन अवधारणा है, वैज्ञानिक और कॉमर्सियल फ्लोरीकल्चर के प्रति अच्छी समझ विकसित नहीं हो पाई है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन और विपणन में अकुशलताएँ आती हैं।
- भूमि जोत का आकर का छोटा होना: अधिकांश फ्लोरीकल्चर कृषकों के पास भूमि जोत का आकार छोटा होता है, जिससे वृहद स्तरीय आधुनिक कृषि पद्धतियों में निवेश करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
- असंगठित विपणन: विपणन प्रणाली खंडित है, इसमें नीलामी यार्ड और नियंत्रित भंडारण सुविधाओं जैसे संगठित प्लेटफार्मों का अभाव है, जिससे किसानों के लिये उचित मूल्य प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
- यद्यपि भारत में एक बड़ा घरेलू बाज़ार है, लेकिन अधिशेष उत्पादन को संभालने और बढ़ती गुणवत्ता की मांग को पूरा करने के लिये आधुनिक विपणन प्रणालियों का अभाव है।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: उन्मूलन के पश्चात् खराब प्रबंधन और कोल्ड स्टोरेज की कमी से, विशेष रूप से घरेलू बाज़ारों के लिये उगाए गए फूलों में, गुणवत्ता में गिरावट आती है।
- जैविक और अजैविक तनाव: खुले खेतों में फूलों का उत्पादन फसलों को विभिन्न तनावों के संपर्क में लाता है, जिससे उपज उच्च गुणवत्ता वाले निर्यात बाज़ारों के लिये कम उपयुक्त हो जाती है।
- उच्च प्रारंभिक लागत: वाणिज्यिक फूलों की खेती के लिये बुनियादी ढाँचे में भारी निवेश की आवश्यकता होती है और किसानों को किफायती वित्त विकल्पों तक पहुँचने में संघर्ष करना पड़ता है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा सॉफ्ट लोन पहल जैसी और अधिक योजनाओं की आवश्यकता है।
- निर्यात संबंधी बाधाएँ: उच्च हवाई मालभाड़ा दरें, कम कार्गो क्षमता, भारतीय फ्लोरीकल्चर उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करती हैं।
फ्लोरीकल्चर के लिये भारत की पहल क्या हैं?
- APEDA (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण): फ्लोरीकल्चर निर्यातकों को कोल्ड स्टोरेज, मालभाड़ा सब्सिडी और बुनियादी ढाँचे के विकास में सहायता करता है।
- वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) फ्लोरीकल्चर मिशन: यह एक राष्ट्रव्यापी मिशन है, जिसे 22 राज्यों में क्रियान्वित किया जा रहा है, इसका उद्देश्य CSIR प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके हाई वैल्यू फ्लोरीकल्चर के माध्यम से कृषकों की आय में वृद्धि करना और उद्यमिता विकसित करना है।
- फ्लोरीकल्चर में FDI: फ्लोरीकल्चर के क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है, जिससे विदेशी निवेशकों के लिये निवेश प्रक्रिया अधिक आसान हो गई है।
- कॉमर्सियल फ्लोरीकल्चर के एकीकृत विकास की योजना: यह योजना गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री तक पहुँच प्रदान करती है, गैर-मौसमी कृषि को बढ़ावा देती है, तथा उन्मूलन के पश्चात् प्रबंधन को बढ़ाती है।
आगे की राह
- आवश्यक सेवा और बाज़ार आधुनिकीकरण: लॉकडाउन जैसे संकट के दौरान निर्बाध आपूर्ति और बिक्री सुनिश्चित करने के लिये फूलों को फलों और सब्जियों की तरह आवश्यक सेवाओं के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये।
- फ्लोरीकल्चर बाज़ार को सौर ऊर्जा चालित एयर-कूल्ड पुशकार्ट तथा फोल्डेबल क्रेटों के साथ बेहतर पैकेजिंग के माध्यम से आधुनिकीकरण की आवश्यकता है।
- सूक्ष्म सिंचाई और मल्चिंग: समस्त प्रकार के फूलों की खेती को सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत लाकर "पर ड्रॉप मोर क्रॉप" पहल को फ्लोरीकल्चर तक विस्तारित करना।
- श्रम को कम करने, जल उपयोग दक्षता में सुधार लाने तथा खरपतवार को न्यूनतम करने के लिये मल्चिंग (ऊपरी मृदा को ढकना) तकनीक को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- कौशलीकरण: "कौशल भारत" और "स्टैंडअप इंडिया" के अंतर्गत आदिवासी महिलाओं और बेरोज़गार युवाओं को सूखे फूलों के उत्पादन में प्रशिक्षित करना।
- गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री के लिये समर्थन: वायरस मुक्त रोपण सामग्री सुनिश्चित करने के लिये प्रमाणित नर्सरियों और ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशालाओं को बढ़ावा देना। जैव सुरक्षा मानकों को मज़बूत करना और कॉमर्सियल फ्लोरीकल्चर के लिये गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- फ्लोरी-मॉल और मूल्य संवर्द्धन: कोल्ड चेन, आवश्यक तेल निष्कर्षण, वर्णक निष्कर्षण (Pigment Extraction) और वर्मीकंपोस्ट इकाईयों के साथ एकीकृत "फ्लोरी-मॉल" का निर्माण करना।
- इससे किसानों को अतिरिक्त फूलों के द्वारा डाई, गुलकंद (गुलाब की पंखुड़ियों की मिठास) और सूखे फूलों जैसे उत्पादों में परिवर्तित करने में सहायता मिलेगी, जिससे मूल्य संवर्द्धन होगा और उनकी अपव्ययता भी कम होगी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: फ्लोरीकल्चर के महत्त्व और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के परिवर्तन में इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)मुख्य परीक्षा:प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021) |