भारत में चुनावी सुधार | 23 Apr 2024
प्रिलिम्स के लिये:निर्वाचन आयोग, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, 61वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम 1989, बूथ कैप्चरिंग, आदर्श आचार संहिता, वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल सिस्टम, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यालय की अवधि) 2023 मेन्स के लिये:भारत में प्रमुख चुनावी सुधार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित प्रावधान |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत में चल रहे आम चुनाव 2024 के साथ निर्वाचन आयोग की स्थापना से लेकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की शुरुआत तथा निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया में हुए हालिया बदलावों, पिछले चुनावी सुधार कार्य आदि चर्चा का विषय बने हुए हैं।
- ये सुधार लोकतांत्रिक प्रगति के सार को प्रतिबिंबित करने वाले भारत की चुनावी प्रणाली के निरंतर विकास और संवर्द्धन को दर्शाते हैं।
भारत में हुए प्रमुख चुनावी सुधार क्या हैं?
- निर्वाचन आयोग की स्थापना और पहला आम चुनाव: सुकुमार सेन (मूल रूप से आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त होता था) के नेतृत्व में भारत के निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी।
- पहला आम चुनाव अक्तूबर 1951 से फरवरी 1952 तक चला, जिसमें 17.5 करोड़ मतदाताओं ने भाग लिया।
- निरक्षर मतदाताओं और शरणार्थियों की अत्यधिक संख्या के बावजूद भारत ने 21 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों के लिये सार्वभौमिक मताधिकार को अपनाया।
- मतदान करने वालों की आयु को घटाना: 61वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1989 द्वारा लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनावों के लिये मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
- इसका कारण देश के गैर-प्रतिनिधित्त्व वाले युवाओं को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करने तथा उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा बनने में मदद करना था।
- निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्ति: वर्ष 1985 में एक प्रावधान किया गया, जिसके अनुसार चुनाव के लिये मतदाता सूची की तैयारी, पुनरीक्षण और सुधार कार्य से जुड़े अधिकारियों एवं कर्मचारियों को चुनाव की अवधि के लिये निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्त के तौर पर माना जाएगा।
- इसमें प्रावधान किया गया कि चुनाव की अवधि के दौरान ये कर्मी निर्वाचन आयोग के नियंत्रण, अधीक्षण और अनुशासन के अधीन रहेंगे।
- एक बहु-सदस्यीय आयोग के रूप में ECI: वर्ष 1989 में पहली बार भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) बहु-सदस्यीय आयोग बना।
- 1 जनवरी, 1990 को इन अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों के पद समाप्त कर दिये गए।
- हालाँकि 1 अक्तूबर, 1993 को ECI पुनः तीन सदस्यीय निकाय बन गया (जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य निर्वाचन आयुक्त थे), जो कि ECI की मौजूदा संरचना से बनी हुई है।
- रंगीन मतपेटिका (बैलट बॉक्स) से मतपत्रों की ओर संक्रमण: भारतीय चुनावों के शुरुआती वर्षों में प्रत्येक उम्मीदवार के लिये अलग-अलग रंगीन मतपेटिकाओं का प्रयोग किया जाता था।
- मतदाता संबंधित बक्सों में कागज़ के मतपत्र के रूप में अपना वोट डालते थे, एक ऐसी विधि जिसमें मतों/वोटों की सावधानीपूर्वक गिनती आवश्यकता होती थी और धोखाधड़ी व हेरफेर को रोकने के लिये यह काफी चुनौतीपूर्ण भी होती थीं।
- शुरुआत में मतदान प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की दिशा में मतपत्रों की अहम भूमिका रही।
- मतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी के चिह्न को कागज़ी मतपत्रों पर अंकित करते थे, जिन्हें बाद में एकत्र किया जाता था और उनकी गिनती की जाती थी।
- हालाँकि इस पद्धति से वोटों की गिनती की सटीकता में सुधार हुआ, फिर भी इसमें संभावित त्रुटियाँ और परिणामों की घोषणा में देरी जैसी सीमाएँ थीं।
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें: वर्ष 1989 के चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के प्रयोग की सुविधा उपलब्ध कराने के लिये एक प्रावधान किया गया था।
- EVM का प्रयोग पहली बार प्रायोगिक आधार पर वर्ष 1998 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में चुनिंदा निर्वाचन क्षेत्रों में किया गया था।
- EVM का प्रयोग पहली बार वर्ष 1999 में गोवा विधानसभा के आम चुनाव (पूरे राज्य) में किया गया था।
- इन्हें निर्वाचन आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति के तकनीकी मार्गदर्शन के तहत भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन, विकसित व निर्मित किया गया।
- बूथ कैप्चरिंग के विरुद्ध प्रावधान: वर्ष 1989 में बूथ कैप्चरिंग के मामले में मतदान स्थगित करने अथवा चुनाव रद्द करने का प्रावधान किया गया था। बूथ कैप्चरिंग के अंतर्गत निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल हैं:
- किसी मतदान केंद्र पर कब्ज़ा करना और मतदान अधिकारियों को मतपत्र अथवा वोटिंग मशीनें सरेंडर करने के लिये बाध्य करना।
- मतदान केंद्र पर नियंत्रण कर केवल अपने समर्थकों को मताधिकार का प्रयोग करने की अनुमति देना।
- मतदाता को धमकाना और मतदान केंद्र पर जाने से रोकना।
- वोटों की गिनती के लिये प्रयोग में लाए जा रहे स्थान पर कब्ज़ा करना।
- आदर्श आचार संहिता (MCC): मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में टी एन शेषन का कार्यकाल भारतीय निर्वाचन आयोग के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण समय था, उनके कार्यकाल के दौरान आदर्श आचार संहिता को अधिक प्रभावकारिता के साथ लागू करने का प्रयास किया गया था।
- आदर्श आचार संहिता की सबसे पहले शुरुआत वर्ष 1960 में केरल में की गई थी, इसमें मूलतः चुनाव के दौरान 'क्या करें और क्या न करें' जैसे विवरण शामिल थे।
- वर्ष 1979 तक भारतीय निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के सहयोग से संहिता का विस्तार किया, जिसमें चुनावों में अनुचित लाभ के लिये सत्तारूढ़ दल द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के उपाय भी शामिल थे।
- टी एन शेषन के ही कार्यकाल में वर्ष 1993 में निर्वाचक फोटो पहचान-पत्र (EPICs) की शुरुआत की गई थी।
- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समय का आवंटन: वर्ष 2003 के एक प्रावधान के तहत चुनाव आयोग को चुनाव के दौरान किसी भी मामले को प्रदर्शित करने या प्रचारित करने या जनता को संबोधित करने के लिये केबिल टेलीविज़न नेटवर्क और अन्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समय का समान विभाजन करना शामिल था।
- एग्जिट पोल पर लगाए गए प्रतिबंध: वर्ष 2009 के प्रावधान के अनुसार, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के दौरान एग्जिट पोल आयोजित करना और एग्जिट पोल के नतीजे प्रकाशित करना प्रतिबंधित होगा।
- "एग्जिट-पोल" एक जनमत सर्वेक्षण है जो बताता है कि किसी चुनाव में मतदाताओं ने कैसे मतदान किया है या किसी चुनाव में किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार के संबंध में सभी मतदाताओं ने कैसा प्रदर्शन किया है।
- मतदाता सूची में ऑनलाइन नामांकनः वर्ष 2013 में मतदाता सूची में नामांकन के लिये आवेदनों को ऑनलाइन दाखिल करने का प्रावधान किया गया था। हालाँकि इस उद्देश्य हेतु केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग से परामर्श करने के पश्चात् नियमों का निर्माण किया, जिसे मतदाता पंजीकरण (संशोधन) नियम, 2013 के रूप में पहचान मिली।
- उपरोक्त में से कोई नहीं (NOTA) विकल्प : सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को मतपत्रों और EVM में उपरोक्त में से कोई नहीं (NOTA) विकल्प शामिल करने का निर्देश दिया, जिससे मतदाताओं को मतपत्र की गोपनीयता बनाए रखते हुए किसी भी उम्मीदवार को वोट देने से परहेज करने की अनुमति मिल सके।
- NOTA को वर्ष 2013 के चुनावों में पेश किया गया था, जिससे मतदाताओं को विवेकपूर्वक मतदान न करने का अधिकार सुनिश्चित हुआ।
- वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) प्रणाली: ECI ने मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता और सत्यापन क्षमता बढ़ाने के लिये वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) प्रणाली शुरू करने की संभावना व्यक्त की है।
- वर्ष 2011 में ECI और इसकी विशेषज्ञ समिति के समक्ष एक प्रोटोटाइप विकसित और प्रदर्शित किया गया था।
- अगस्त 2013 में केंद्र सरकार ने संशोधित चुनाव संहिता नियम, 1961 को अधिसूचित किया, जिससे ECI को EVM के साथ VVPAT का उपयोग करने में सक्षम बनाया गया।
- नगालैंड के 51-नोकसेन विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनाव (Bye-election) में पहली बार EVM के साथ VVPAT का उपयोग किया गया था।
नोट: भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) की गणना के अनुसार, देश भर में यादृच्छिक रूप से चयनित 479 VVPAT से पर्चियों की गिनती, 99% से अधिक सटीकता सुनिश्चित करेगी।
- चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति: पूर्व में मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी।
- हालाँकि मार्च 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ मामले में चुनाव सुधारों पर दिनेश गोस्वामी समिति (1990) और विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट (2015) की सिफारिशों पर प्रकाश डाला।
- दोनों समितियों ने मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिये प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और विपक्ष के नेता को शामिल करके एक समिति बनाने का सुझाव दिया।
- हालिया CEC और अन्य EC (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय) 2023 CEC और EC के लिये नियुक्ति, वेतन और बर्खास्तगी प्रक्रियाओं को कवर करने वाले निर्वाचन आयोग अधिनियम, 1991 का उल्लंघन करता है।
- नए कानून के तहत राष्ट्रपति उन्हें एक चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर नियुक्त करता है जिसमें प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और विपक्ष का नेता या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता शामिल होता है।
- हालाँकि मार्च 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ मामले में चुनाव सुधारों पर दिनेश गोस्वामी समिति (1990) और विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट (2015) की सिफारिशों पर प्रकाश डाला।
चुनाव सुधार से संबंधित प्रमुख समितियाँ कौन-सी हैं?
- चुनाव सुधार पर दिनेश गोस्वामी समिति (1990)
- अपराध-राजनीति नेक्सस पर वोहरा समिति (1993)
- चुनावों के राज्य वित्तपोषण पर इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998)
- वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में शासन में नैतिकता पर दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट (2007)
- चुनाव कानूनों और सुधारों पर तन्खा समिति (कोर समिति) (2010)
अमिट स्याही - भारतीय चुनाव का प्रतीक:
- अमिट स्याही, जो भारतीय चुनावों का प्रतीक है, का उपयोग एकाधिक मतदान को रोकने के लिये किया जाता है। इसमें सिल्वर नाइट्रेट होता है और साबुन या तरल पदार्थ के संपर्क में आने के बाद भी 72 घंटों तक दिखाई देती है।
- स्याही, जो शुरू में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) द्वारा बनाई गई थी और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम द्वारा पेटेंट कराई गई थी, अब इसका उत्पादन पूरी तरह से मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड द्वारा किया जाता है, जो कर्नाटक सरकार का एक प्रमुख उपक्रम है और 25 से अधिक देशों में इसका निर्यात किया जाता है।
नोट:
- EVM और VVPAT को रक्षा मंत्रालय के तहत एक PSU, भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (BEL) और परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत एक अन्य PSU, इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्मित किया जाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत में चुनावी सुधारों के प्रभाव की जाँच कीजिये, जिसमें तकनीकी प्रगति, मतदान की आयु में बदलाव और नैतिक आचरण को लागू करने के उपाय शामिल हैं। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.1 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न.1 भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017) |