सामाजिक न्याय
फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों की प्रभावशीलता
- 08 Oct 2024
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प्रारंभिक परीक्षा के लिये:भारत में फास्ट-ट्रैक कोर्ट, यौन अपराध, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम), आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2018, केंद्र प्रायोजित योजना, न्यायपालिका। मुख्य परीक्षा के लिये:भारत में फास्ट-ट्रैक न्यायालयों के समक्ष चुनौतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
गंभीर आपराधिक मामलों के त्वरित निपटान हेतु बनाए गए भारत के फास्ट-ट्रैक कोर्ट अपनी प्रभावशीलता को लेकर जाँच का सामना कर रहे हैं। हालाँकि शुरुआती रुझान के बावजूद कार्यात्मक न्यायालयों की संख्या में कमी आई है।
नोट:
- फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स की संख्या का रुझान:
- वर्ष 2018 और वर्ष 2020 के बीच भारत में फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 699 से बढ़कर 907 हो गई, जिसका मुख्य कारण हाई-प्रोफाइल मामलों में विलंब को लेकर जनता में व्याप्त आक्रोश था।
- हालाँकि वर्ष 2020 के बाद से यह प्रगति धीमी हो गई है, वर्ष 2023 में कार्यात्मक न्यायालयों की संख्या घटकर 832 हो गई है, जो वित्तीय और प्रशासनिक बाधाओं के कारण इन न्यायालयों को बनाए रखने में राज्यों के समक्ष विभिन्न चुनौतियों को दर्शाती है।
- फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स की उपलब्धता में असमानताएँ:
- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने उच्च संख्या में त्वरित न्यायालयों की क्रियाशीलता को बनाए रखा है, जबकि अन्य राज्यों में इनकी संख्या बहुत कम है या कुछ मामलों में तो एक भी नहीं है।
- ये असमानताएँ स्थानीय संसाधन सीमाओं, प्राथमिकता के विभिन्न स्तरों और भिन्न प्रशासनिक क्षमताओं का प्रतिबिंब हैं।
FTSC क्या हैं?
- परिचय:
- FTSC भारत में स्थापित न्यायिक निकाय हैं, जो यौन अपराधों से संबंधित मामलों, विशेष रूप से बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) से संबंधित मामलों की सुनवाई की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिये स्थापित किये गए हैं।
- स्थापना:
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम पारित किया, जिसमें बलात्कार के अपराधियों के लिये मृत्युदंड सहित कठोर दंड का प्रावधान किया गया। इसके पश्चात् ऐसे मामलों के त्वरित निर्णय की सुविधा के लिये FTSC की स्थापना की गई।
- भारत के उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में अगस्त 2019 में FTSC की स्थापना की पहल को औपचारिक रूप दिया गया था।
- FTSC की स्थापना के कारण:
- यौन अपराधों में अधिकतम वृद्धि और पारंपरिक न्यायालयों में मुकदमों की दीर्घकालीन अवधि के कारण पीड़ितों को न्याय मिलने में काफी विलंब हो रहा था, जिसके कारण FTSC की स्थापना की गई थी।
- FTSC का विस्तार:
- FTSC योजना, जिसे मूल रूप से वर्ष 2019 में एक वर्ष के लिये आरंभ किया गया था, को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा वर्ष 2023 से वर्ष 2026 तक अतिरिक्त तीन वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया है।
पोक्सो अधिनियम क्या है?
- परिचय: इस कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन उत्पीड़न के अपराधों को संबोधित करना है। यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है।
- इसे वर्ष 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था।
- विशेषताएँ:
- लिंग-निष्पक्ष प्रकृति: अधिनियम के अनुसार, लड़के और लड़कियाँ दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं और पीड़ित के लिंग की परवाह किये बिना ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
- पीड़ित की पहचान की गोपनीयता: पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 23 में यह प्रावधान है कि बाल पीड़ितों की पहचान गोपनीय रखी जानी चाहिये।
- मीडिया रिपोर्ट में पीड़ित की पहचान उजागर करने वाला कोई भी विवरण नहीं दिया जा सकता, जैसे कि उसका नाम, पता और परिवार की जानकारी।
- नाबालिगों के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामलों में अनिवार्य रिपोर्टिंग: धारा 19 से 22 ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें ऐसे अपराधों की जानकारी है या उचित संदेह है, संबंधित प्राधिकारियों को रिपोर्ट करने के लिये बाध्य करती है।
FTSC के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- बुनियादी ढाँचे का अभाव: फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स प्रायः अपर्याप्त सुविधाओं के साथ कार्य करती हैं, जिसमें आधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे आवश्यक संसाधनों और मुकदमों के भार को कुशलतापूर्वक निपटाने के लिये पर्याप्त स्थान का अभाव होता है।
- न्यायिक अधिभार: अपने उद्देश्य के बावजूद, फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स को प्रायः मामलों की अधिकता का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप विलंब देखने को मिलता है, जो त्वरित न्याय के उनके मूलभूत उद्देश्य के विपरीत है।
- असंगत कार्यान्वयन: फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स की स्थापना और कार्यप्रणाली विभिन्न राज्यों में भिन्न हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप न्याय तक असमान पहुँच और विधिक मानकों का असंगत अनुप्रयोग होता है।
- न्यायिक कार्मिकों की गुणवत्ता: न्यायाधीशों और सहायक कर्मचारियों की भर्ती और प्रशिक्षण सदैव फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हो सकता है, जिससे न्यायिक निर्णय लेने की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- सीमित सार्वजनिक जागरूकता: फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स के कार्यों और प्रक्रियाओं के संबंध में सामान्य जन में जागरूकता का अभाव है, जो उनकी प्रभावशीलता और पहुँच में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
आगे की राह
- बुनियादी ढाँचे का विकास: न्यायालय के बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण और विस्तार में निवेश करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स मुकदमों के बोझ को संभालने में सक्षम हों।
- व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम: न्यायाधीशों और सहायक कर्मचारियों के कौशल को बढ़ाने हेतु उनके लिये लक्षित प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना, जिसमें आमतौर पर फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स द्वारा निपटाए जाने वाले मामलों की जटिलताओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए, जैसे कि संवेदनशील मुद्दे।
- सुव्यवस्थित न्यायिक प्रक्रियाएँ: न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखते हुए दक्षता सुनिश्चित करने के लिये स्पष्ट प्रक्रियात्मक दिशानिर्देश और सर्वोत्तम प्रथाओं की स्थापना करना, निष्पक्षता से समझौता किये बगैर त्वरित समाधान की सुविधा प्रदान करना।
- जन जागरूकता अभियान: फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स के कार्यों, प्रक्रियाओं और लाभों के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिये पहल शुरू करना, जिससे न्यायिक प्रणाली में अधिक सामुदायिक सहभागिता और विश्वास को बढ़ावा मिले।
- विधायी सुधार: फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स की विशिष्ट परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये मौज़ूदा कानूनों में संशोधन की वकालत करना, तथा यह सुनिश्चित करना कि प्रक्रियात्मक ढाँचे उनके उद्देश्यों के अनुरूप हों।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) की भूमिका और प्रभावशीलता का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मुख्य परीक्षा:Q. हाल के समय में भारत और यू.के. की न्यायिक व्यवस्थाएँ अभिसरणीय और अपसरणीय होती प्रतीत हो रही हैं। दोनों राष्ट्रों की न्यायिक कार्य प्रणालियों के आलोक में अभिसरण तथा अपसरण के मुख्य बिंदुओं को आलोकित कीजिये। (2020) Q. न्यायालयों के द्वारा विधायी शक्तियों के वितरण से संबंधित मुद्दों को सुलझाने से, 'परिसंघीय सर्वोच्चता का सिद्धांत' और 'समरस अर्थान्वयन' उभर कर आए हैं। स्पष्ट कीजिये। (2019) |