आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण | 21 Sep 2022

प्रिलिम्स के लिये:

आरक्षण, भारत के महान्यावादी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, सकारात्मक कार्रवाई, बुनियादी संरचना सिद्धांत।

मेन्स के लिये:

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण के निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के महान्यायवादी ने स्पष्ट किया कि समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये 10% आरक्षणअनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों या अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकारों का हनन नहीं करता है।

सरकार का दृष्टिकोण:

  • अन्य वर्गों के आरक्षण का हनन नहं: EWS आरक्षण पिछड़े वर्गों, यानी अनुसूचित समुदायों और ओबीसी के लिये पहले से मौजूद 50% आरक्षण के अलावा स्वतंत्र रूप से दिया गया था।
    • महान्यायवादी ने याचिकाकर्त्ताओं के तर्कों को खारिज कर दिया कि EWS आरक्षण से पिछड़े वर्गों का बहिष्कार भेदभाव के समान है, क्योंकि उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से आरक्षण प्राप्त हुआ है।उदाहरण के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदस्यों को संविधान के तहत कई लाभ दिये गए हैं, जिनमें अनुच्छेद 16 (4) (A) (पदोन्नति के लिये विशेष प्रावधान), अनुच्छेद 243 D (पंचायत और नगरपालिका सीटों में आरक्षण), अनुच्छेद 330 (लोकसभा में आरक्षण) और अनुच्छेद 332 (राज्य विधानसभाओं में आरक्षण) शामिल हैं।
  • कमज़ोर वर्ग के उत्थान के लिये आवश्यक: पिछड़े वर्गों (OBC) के लिये आरक्षण और अब EWS आरक्षण को न्यायालय द्वारा "समाज के कमज़ोर वर्गों के उत्थान के लिये राज्य के एकल दृष्टिकोण" के रूप में माना जाना चाहिये।
    • सामान्य श्रेणी में कुल जनसंख्या का 18.2% EWS से संबंधित था और नीति आयोग द्वारा उपयोग किये जाने वाले बहु-आयामी गरीबी सूचकांक को संदर्भित करता है, जो जनसंख्या का लगभग 350 मिलियन (3.5 करोड़) है।
  • संविधान प्रदत्त: OBC, SC और ST के लिये आरक्षण EWS आरक्षण के अलावा अलग-अलग ढाँचे के अंतर्गत आता है और यह संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं करता है।
  • उदाहरण: सरकार द्वारा प्रस्तुत लिखित प्रस्तुतियों के अनुसार, शीर्ष न्यायालय ने बच्चों के निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की वैधता प्रदान किया था।
    • न्यायालय ने माना था कि 2009 का अधिनियम वित्तीय और मनोवैज्ञानिक बाधाओं सहित सभी बाधाओं को दूर करने का प्रयास करता है, जो कमज़ोर वर्ग एवं वंचित समूह के एक बच्चे को प्रवेश की मांग करते समय सामना करना पड़ता है तथा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इसे बरकरार रखा।

याचिकाकर्त्ताओं के तर्क:

  • संशोधन संवैधानिक योजना के विपरीत हैं जहाँ उपलब्ध सीटों/पदों का कोई भी खंड केवल आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षित नहीं किया जा सकता है।
  • याचिका में कहा गया था कि यह संविधान संशोधन वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के विपरीत है, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि ‘पिछड़े वर्ग का निर्धारण केवल आर्थिक कसौटी के संदर्भ में नहीं किया जा सकता है।’
  • याचिकाकर्त्ताओं का एक मुख्य तर्क यह भी था कि सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये लागू किये गए आरक्षण के प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लागू की गई 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करते हैं।

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण:

  • परिचय:
    • 10% EWS कोटा 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके पेश किया गया था।
      • संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) सम्मिलित किया गया।
    • यह आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) हेतु शिक्षा संस्थानों में नौकरियों और प्रवेश में आर्थिक आरक्षण के लिये है।
    • यह अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) के लिये 50% आरक्षण नीति द्वारा कवर नहीं किये गए गरीबों के कल्याण को बढ़ावा देने हेतु अधिनियमित किया गया था।
    • यह केंद्र और राज्यों दोनों को समाज के EWS को आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
  • महत्त्व:
    • असमानता को संबोधित करता है:
      • 10% कोटे का विचार प्रगतिशील है और भारत में शैक्षिक तथा आय असमानता के मुद्दों को संबोधित कर सकता है क्योंकि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों एवं सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
    • आर्थिक पिछड़ों को मान्यता:
      • पिछड़े वर्ग के अलावा बहुत से लोग या वर्ग हैं जो भूख और गरीबी की परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
      • संवैधानिक संशोधन के माध्यम से प्रस्तावित आरक्षण उच्च जातियों के गरीबों को संवैधानिक मान्यता प्रदान करेगा।
    • जाति आधारित भेदभाव में कमी:
      • इसके अलावा यह धीरे-धीरे आरक्षण से जुड़े कलंक को हटा देगा क्योंकि आरक्षण का ऐतिहासिक रूप से जाति से संबंध रहा है और अक्सर उच्च जाति उन लोगों को देखती है जो आरक्षण के माध्यम से आते हैं।
  • चिंताएँ:
    • डेटा की अनुपलब्धता:
      • EWS कोटे में उद्देश्य और कारण के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को आर्थिक रूप से अधिक विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों व सार्वजनिक रोज़गार के अवसरों में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
      • इस प्रकार के तथ्य संदिग्ध हैं क्योंकि सरकार ने इस बात का समर्थन करने के लिये कोई डेटा तैयार नहीं किया है।
    • मनमाना मानदंड:
      • इस आरक्षण हेतु पात्रता तय करने के लिये सरकार द्वारा उपयोग किये जाने वाले मानदंड अस्पष्ट हैं और यह किसी डेटा या अध्ययन पर आधारित नहीं है।
      • यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार से सवाल किया कि क्या राज्यों ने EWS आरक्षण देने के लिये मौद्रिक सीमा तय करते समय हर राज्य के लिये प्रति व्यक्ति जीडीपी की जाँच की है।
        • आँकड़े बताते हैं कि भारत के राज्यों में प्रति व्यक्ति आय व्यापक रूप से भिन्न है- जैसे गोवा की प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक 4 लाख है तो वहीं बिहार की प्रति व्यक्ति आय 40,000 रुपए है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किसे "कानून का शासन" की मुख्य विशेषताएँ माना जाता है? (2018)

  1. शक्तियों की सीमा
  2. कानून के समक्ष समानता
  3. सरकार के प्रति लोगों की ज़िम्मेदारी
  4. स्वतंत्रता और नागरिक अधिकार

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) उपरोक्त सभी

उत्तर:  c

व्याख्या:

  • 'कानून के शासन' को शासन के एक सिद्धांत के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें सभी व्यक्ति, संस्थान और संस्थाएँ (सार्वजनिक और निजी), राज्य सहित, सार्वजनिक रूप से प्रकाशित, समान रूप से लागू और स्वतंत्र रूप से न्यायनिर्णय वाले कानूनों के प्रति जवाबदेह हैं। साथ ही ये कानून मानवाधिकार मानदंडों और मानकों के अनुरूप होते हैं।
  • इसके साथ ही कानून की सर्वोच्चता, कानून के समक्ष समानता, कानून के प्रति जवाबदेही, कानून के पालन में निष्पक्षता, शक्तियों के पृथक्करण, निर्णय लेने में भागीदारी, कानूनी निश्चितता, ऐच्छिकता के परिहार और प्रक्रियात्मक एवं कानूनी पारदर्शिता का पालन सुनिश्चित करने के उपायों की आवश्यकता है।
  • कानून के शासन के प्रमुख सिद्धांत:
    • कानून के समक्ष समानता; अतः कथन 2 सही है।
    • कानून का समान संरक्षण;
    • स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों का अस्तित्व और संरक्षण; अतः कथन 4 सही है।
    • कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियों की सीमाएँ; अतः कथन 1 सही है।
    • जनता के प्रति सरकार की ज़िम्मेदारी।

अतः विकल्प (c) सही है।


प्रश्न: क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के कार्यान्वयन को लागू कर सकता है? परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा 2018)

स्रोत: द हिंदू