सामाजिक न्याय
राजनीति में अक्षमताओं पर सम्मानजनक संवाद को प्रोत्साहन
- 30 Dec 2023
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:चुनाव आयोग, दिव्यांग व्यक्ति, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत, सुगम्य भारत अभियान, दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना, दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप मेन्स के लिये:भारत में PwD के लिये संवैधानिक और विधायी ढाँचा, भारत में PwD से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
चुनाव आयोग (Election Commission-EC) ने राजनीतिक दलों को दिव्यांगता और लैंगिक संवेदनशील भाषण का उपयोग करने तथा सार्वजनिक भाषणों, अभियानों एवं लेखों में दिव्यांग व्यक्तियों के लिये अपमानजनक संदर्भों का उपयोग करने से बचने के लिये दिशानिर्देश जारी किये हैं।
चुनाव आयोग के प्रमुख दिशानिर्देश क्या हैं?
- अपमानजनक भाषा पर प्रतिबंध: राजनीतिक दलों एवं उनके प्रतिनिधियों से आग्रह किया जाता है कि वे किसी भी सार्वजनिक बयान, भाषण, लेख या अभियान में दिव्यांगता या दिव्यांगता से संबंधित अपमानजनक या आक्रामक संदर्भों का उपयोग करने से बचें और सुनिश्चित करें कि चुनाव अभियान सभी नागरिकों के लिये सुलभ रहें।
- समर्थ भाषा से परहेज़ (Avoidance of Ableist Language): दिव्यांगजनों के प्रति सक्षम या आपत्तिजनक समझे जाने वाले विशिष्ट शब्दों जैसे "गूँगा," "मंदबुद्धि," "अंधा," "बहरा," "लंगड़ा," आदि को ऐसी भाषा के रूप में रेखांकित किया गया है जिससे बचना चाहिये।
- आंतरिक समीक्षा एवं सुधार (Internal Review and Rectification): भाषणों, सोशल मीडिया पोस्ट, विज्ञापनों एवं प्रेस विज्ञप्तियों सहित सभी अभियान सामग्रियों को आपत्तिजनक भाषा के उदाहरणों की पहचान करने और उन्हें सुधारने के लिये राजनीतिक दल के भीतर आंतरिक समीक्षा से गुजरना चाहिये।
- संवेदनशील भाषा के प्रयोग की घोषणा (Declaration of Use of Sensitive Language): राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइटों पर मानवीय समानता, समानता, गरिमा एवं स्वायत्तता का सम्मान करते हुए विकलांगता और लिंग-संवेदनशील भाषा का उपयोग करने की अपनी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।
- अधिकार-आधारित शब्दावली को अपनाना: पार्टियों को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन (CRPD) में उल्लिखित अधिकार-आधारित शब्दावली का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
- वैधानिक परिणाम: दिशानिर्देशों का कोई भी उल्लंघन दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 92 के प्रावधानों के अंतर्गत आ सकता है।
भारत में दिव्यांग व्यक्तियों की स्थिति क्या है?
- स्थिति: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के 76वें दौर के अनुसार, भारतीय आबादी का 2.21% हिस्सा विकलांगता से ग्रस्त है।
- विकलांगता की घटनाएँ 10-19 वर्ष के आयु वर्ग में सबसे अधिक हैं, जो शीघ्र हस्तक्षेप और सहायता की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- भारत में PwD के लिये संवैधानिक और विधायी फ्रेमवर्क:
- संविधान:
- भारत का संविधान मौलिक अधिकारों के माध्यम से सभी व्यक्तियों की समानता, स्वतंत्रता, न्याय एवं गरिमा सुनिश्चित करता है और दिव्यांग व्यक्तियों सहित सभी के लिये एक समावेशी समाज के निर्माण के लिये अनिवार्य आदेश देता है।
- संविधान के अनुच्छेद 41 (राज्य के नीति निदेशक तत्त्व) में कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता एवं विकास की सीमा के अंतर्गत काम करने, शिक्षा पाने और बेरोज़गारी, बुढ़ापा, बीमारी एवं विकलांगता के मामलों में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिये प्रभावी प्रावधान करेगा।
- विधान:
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD अधिनियम), जिसने दिव्यांग व्यक्तियों (समान अवसर, अधिकारों की सुरक्षा और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 का स्थान लिया, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के लिये सबसे व्यापक कानून है।
- PwD के लिये सरकारी नौकरी में आरक्षण 4% है, जबकि सरकारी या सहायता प्राप्त उच्च शिक्षण संस्थानों में दिव्यांग छात्रों के लिये आरक्षित सीटें 5% है।
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD अधिनियम), जिसने दिव्यांग व्यक्तियों (समान अवसर, अधिकारों की सुरक्षा और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 का स्थान लिया, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के लिये सबसे व्यापक कानून है।
- अन्य संबंधित पहल:
- संविधान:
- प्रमुख चुनौतियाँ:
- पहुँच क्षमता: कई सार्वजनिक स्थानों, परिवहन प्रणालियों और इमारतों में रैंप, लिफ्ट एवं विकलांग व्यक्तियों के लिये निर्दिष्ट स्थान जैसी उचित पहुँच सुविधाओं का अभाव है, जिससे उनके लिये स्वतंत्र रूप से घूमना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- भारत में केवल लगभग 3% सार्वजनिक भवन ही दिव्यांगों के लिये सुलभ हैं (भारत की जनगणना, 2011)।
- अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा: भारत की जनगणना, 2011 के अनुसार, ग्रामीण भारत में केवल 37% दिव्यांगों के पास स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुँच है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक हालिया रिपोर्ट में पूरे भारत में विकलांगता प्रबंधन में प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी की पहचान की गई है, जिससे विशेष देखभाल तक पहुँच सीमित हो गई है।
- सीमित शैक्षणिक अवसर: दिव्यांगजनों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच एक चुनौती बनी हुई है। विभिन्न शिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये स्कूलों में प्राय: पर्याप्त सुविधाओं एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी होती है, जिसके परिणामस्वरूप मुख्यधारा की शिक्षा से वंचित होना पड़ता है।
- रोज़गार बाधाएँ: दिव्यांगों को उपयुक्त रोज़गार ढूँढने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। भेदभाव, सुलभ कार्यस्थलों की कमी एवं उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये आवास की कमी प्राय: विकलांग लोगों के बीच उच्च बेरोज़गारी दर का कारण बनती है।
- कलंक एवं भेदभाव: भारत में विकलांगता को लेकर अभी भी एक कलंक व्याप्त है साथ ही दिव्यांगों को प्राय: पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है जो समाज में उनके अवसरों और स्वीकार्यता को सीमित करते हैं।
- कानूनी और नीतिगत अंतराल: हालाँकि भारत में दिव्यांगों के अधिकारों की रक्षा के लिये कानून और नीतियाँ मौजूद हैं, लेकिन उनका प्रवर्तन एवं क्रियान्वयन असंगत रहता है। यह अंतर उनके अधिकारों की वास्तविक उपलब्धि और संसाधनों तक पहुँच को प्रभावित करता है।
- पहुँच क्षमता: कई सार्वजनिक स्थानों, परिवहन प्रणालियों और इमारतों में रैंप, लिफ्ट एवं विकलांग व्यक्तियों के लिये निर्दिष्ट स्थान जैसी उचित पहुँच सुविधाओं का अभाव है, जिससे उनके लिये स्वतंत्र रूप से घूमना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
आगे की राह
- सहायक प्रौद्योगिकी की पुनर्कल्पना: सरकार दिव्यांगता के विभिन्न रूपों के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता तथा इंटरनेट ऑफ थिंग्स का उपयोग करके सुलभ व किफायती सहायक प्रौद्योगिकी का एक सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये तकनीकी क्षेत्र के दिग्गजों तथा डिज़ाइन संस्थानों के साथ साझेदारी कर सकती है।
- इसके तहत सरलता से पहुँच के लिये स्व-नेविगेटिंग सार्वजनिक स्थान, अनुकूली यातायात सिग्नल तथा ध्वनि-नियंत्रित इंटरफेस शामिल हो सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त दिव्यांगजनों के लिये उपकरणों को अनुकूलित तथा मरम्मत करने के लिये ओपन-सोर्स हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर विकास को प्रोत्साहन देना।
- शिक्षा एवं कौशल विकास में क्रांतिकारी बदलाव: शिक्षकों के लिये अनिवार्य दिव्यांगता संवेदनशीलता प्रशिक्षण लागू करना तथा इसे शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में एकीकृत करना।
- विविध शिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये AI-संचालित शिक्षण सहायक, इंटरैक्टिव टूल एवं सुलभ ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म नियोजित करना।
- रोज़गार परिदृश्य में बदलाव: निगमों में PwD अनुकूल बुनियादी ढाँचा अनिवार्य करना तथा उनके कौशल व क्षमताओं के अनुकूल लचीले ऑनलाइन गिग कार्य में PwD की भागीदारी की सुविधा प्रदान करना तथा उन्हें दूरस्थ कार्य विकल्पों हेतु सशक्त बनाना।
- सुलभ उत्पादों तथा सेवाओं की प्रस्तुति करने वाले, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने एवं रोज़गार के अवसर सृजित करने वाले PwD के नेतृत्व वाले स्टार्टअप को प्रोत्साहन देना।
- समावेशी भारत की ओर: दिव्यांगजनों की समझ तथा समावेशिता को बढ़ावा देने के लिये समुदाय-आधारित कार्यशालाओं एवं संवेदीकरण कार्यक्रमों का आयोजन करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत लाखों विकलांगों का आश्रय है। कानून के तहत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |