ड्रग रिकॉल | 09 May 2023
प्रिलिम्स के लिये:ड्रग रिकॉल, मानक गुणवत्ता विहीन, औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940, भारत के औषधि महानियंत्रक, CDSCO मेन्स के लिये:भारत में ड्रग रिकॉल कानून की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक फार्मास्यूटिकल कंपनी ने अनजाने में दवाओं के गलत लेबल वाले बैच को बाज़ार में उतार दिया, जो कि अस्वीकृत दवाओं की बिक्री की समस्या एवं भारत में ड्रग रिकॉल कानून की आवश्यकता को उजागर करता है।
- जबकि इस तरह के रिकॉल अमेरिका में नियमित रूप से होते हैं, जिसमें भारतीय कंपनियाँ भी शामिल हैं, लेकिन भारत में ऐसा नहीं देखा जाता है।
ड्रग रिकॉल:
- ड्रग रिकॉल तब होता है जब प्रेस्क्रिप्शन या ओवर-द-काउंटर दवा को उसके हानिकारक या साइड इफेक्ट के कारण बाज़ार से हटा दिया जाता है।
- ड्रग रिकॉल एक विपणन किये गए दवा उत्पाद को हटाने या सही करने की प्रक्रिया है जो किसी दवा की सुरक्षा, प्रभावकारिता या गुणवत्ता को नियंत्रित करने वाले कानूनों और नियमों का उल्लंघन करती है।
- ड्रग रिकॉल सामान्यतः तब जारी किया जाता है जब कोई उत्पाद दोषपूर्ण, दूषित, गलत लेबल वाला पाया जाता है या रोगियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा हेतु जोखिम उत्पन्न करता है।
- ड्रग रिकॉल का लक्ष्य प्रभावित उत्पाद को बाज़ार से हटाकर जनता को नुकसान से बचाना है और उन उपभोक्ताओं हेतु उपाय या धन वापसी की सुविधा प्रदान करना है जिन्होंने पहले ही उत्पाद खरीद लिया है।
भारत में ड्रग रिकॉल कानून की आवश्यकता:
- भारत को यह सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रीय ड्रग रिकॉल कानून होना आवश्यक है कि एक बार दवा का मानक गुणवत्ता विहीन (Not of Standard Quality- NSQ) होने का पता चलने पर पूरे बैच को बाज़ार से हटा दिया जाना चाहिये।
- वर्तमान में, बाज़ार से घटिया दवाओं के पूरे बैच को वापस लेने के लिये भारत में कोई कानून नहीं है।
- राज्य दवा नियामक ऐसी स्थिति में अधिक-से-अधिक अपने राज्य से दवाओं के किसी विशेष बैच को वापस लेने का आदेश दे सकते हैं, लेकिन यह देखते हुए कि भारत एक साझा बाज़ार है, यह संभव है कि दवाओं का एक ही बैच कई राज्यों में वितरित हो।
- ऐसे मामले में एक केंद्रीय दवा नियामक का होना काफी आवश्यक है जो राष्ट्रीय रिकॉल को क्रियान्वित और समन्वित कर सके।
- वर्ष 1976 में इसे एक प्रमुख मुद्दे के रूप में चिह्नित करने के बावजूद भारत में अभी भी दवाओं को वापस लेने के संबंध में एक राष्ट्रीय कानून का अभाव है।
- नतीजतन, सरकारी विश्लेषकों द्वारा दवाओं को NSQ घोषित करने के बाद भी पूरे भारत से इस प्रकार की दवाओं को वापस लेने की कोई वास्तविक व्यवस्था नहीं है।
भारत में घटिया दवाओं के लिये नियामक ढाँचे की कमी का कारण:
- स्थिति के प्रति उदासीनता और विशेषज्ञता की कमी:
- जटिल औषधि नियमन मुद्दों से निपटने के मामले में सरकार का औषधि नियामक निकाय वैसा नहीं है जैसी उसे होना चाहिये। स्थिति के प्रति उदासीनता, क्षेत्र में विशेषज्ञता की कमी और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा की तुलना में दवा उद्योग के विकास को सक्षम करने में अधिक रुचि आदि इसके विभिन्न प्रमुख कारकों में से हैं।
- खंडित नियामक संरचना:
- भारत में नियामक संरचना अत्यधिक खंडित है, प्रत्येक राज्य का अपना दवा नियामक है।
- लेकिन विखंडन के बावज़ूद एक राज्य में निर्मित दवाएँ देश भर के सभी राज्यों में बेची जा सकती हैं।
- केंद्रीकृत नियामक का विरोध:
- दवा उद्योग और राज्य दवा नियामकों दोनों ने नियामक शक्तियों के अधिक केंद्रीकरण का विरोध किया है।
- एक राज्य में नियामक की अक्षमता दूसरे राज्यों के रोगियों के लिये प्रतिकूल हो सकती है, जहाँ नागरिकों के पास अक्षम नियामक को जवाबदेह ठहराने की शक्ति अथवा चयन क्षमता की कमी होती है।
- सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं:
- ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है और सुधार के लिये नागरिक समाज की ओर से कोई निरंतर मांग भी नहीं की जाती है।
- सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के बजाय दवा उद्योग के विकास में अधिक निवेश करती है। संभवतः ऐसी धारणा है कि सख्त विनियमन दवा उद्योग के विकास को धीमा कर सकता है।
ऐसे किसी भी कानून को बनाने में देरी के निहितार्थ:
- यदि गैर-मानकीकृत दवाओं को बाज़ार से तुरंत हटाया नहीं गया तो इसका उपभोक्ताओं पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें बीमार पड़ना और मौत हो जाना भी शामिल है। हालाँकि भारत में ड्रग रिकॉल की प्रक्रिया अक्सर धीमी और अप्रभावी होती है, जिससे जनता के लिये खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है।
- अगर सरकार घटिया दवाओं को वापस लेने की त्वरित कार्रवाई नहीं करती है, तो यह लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति जवाबदेही और ज़िम्मेदारी में कमी का संकेत है।
- इसके अतिरिक्त इन दवाओं को वापस लेने में देरी करने से स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और सरकार में जनता का विश्वास कम हो सकता है।
भारत में ड्रग विनियमन:
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम:
- केंद्रीय और राज्य नियामकों को औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम, 1940 तथा नियम 1945 के तहत औषधियों एवं सौंदर्य प्रसाधनों के नियमन की ज़िम्मेदारी दी गई हैं।
- यह आयुर्वेदिक, सिद्ध, यूनानी दवाओं के निर्माण के लिये लाइसेंस जारी करने हेतु नियामक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO)
- यह देश में दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों, निदान और उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न मानक तथा उपाय निर्धारित करता है।
- नई दवाओं और नैदानिक परीक्षणों के मानकों के बाज़ार प्राधिकरण को नियंत्रित करता है।
- भारत का औषधि महानियंत्रक (DCGI):
- DCGI भारत सरकार के CDSCO के विभाग का प्रमुख है, जो भारत में रक्त और रक्त उत्पादों, IV तरल पदार्थ, टीके एवं सीरम (Sera) जैसी दवाओं की निर्दिष्ट श्रेणियों के लाइसेंस के अनुमोदन के लिये ज़िम्मेदार है।
- DCGI भारत में दवाओं के निर्माण, बिक्री, आयात और वितरण के लिये भी मानक तय करता है।
आगे की राह
- यदि स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता स्वीकार करते हैं कि नशीली दवाओं के नियमन में कोई समस्या है और प्रणालीगत सुधार के लिये कहते हैं, तो वे सुधार की मांग करने वाली आवाज़ों में शामिल हो जाएंगे। वर्तमान में भारत में दवा की गुणवत्ता के साथ समस्या को स्वीकार करने में भी अनिच्छा प्रकट होती है।
- एक प्रभावी रिकॉल तंत्र बनाने के लिये दवाओं को वापस लेने की ज़िम्मेदारी को केंद्रीकृत करना होगा, एक प्राधिकरण के पास देश भर से विफल दवाओं को वापस लेने तथा कंपनियों को उत्तरदायी ठहराने की कानूनी शक्ति हो। इसके अतिरिक्त विफल दवा बैचों को खोजने और जब्त करने की भी शक्ति हो।