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इंटरनेट बाज़ार पर बड़ी टेक कंपनियों का प्रभाव

  • 10 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, प्रतिस्पर्द्धा कानून

मेन्स के लिये:  

इंटरनेट बाज़ार में बड़ी टेक कंपनियों की भूमिका, इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों की निगरानी की आवश्यकता  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) के एक पैनल ने देश की चार बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों- अमेज़न, एप्पल, गूगल और फेसबुक के कामकाज पर एक द्विदलीय जाँच की रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस रिपोर्ट में बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों को तोड़ने और इन बड़े प्लेटफाॅर्मों द्वारा भविष्य के विलय और अधिग्रहण के खिलाफ प्रकल्पित निषेध (Presumptive Prohibition) की मांग की गई है।

जाँच का कारण:

  • ये कंपनियाँ अपने प्रभाव के माध्यम से बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा को दबाने के कारण पिछले कुछ समय से विभिन्न देशों में सरकारों के संदेह के दायरे में थीं।
  • इन कंपनियों पर आरोप लगे थे कि इनके द्वारा अपने प्रतिद्वंदियों को खरीद कर या विक्रेताओं पर अपने प्रतिद्वंदी के साथ काम न करने का दबाव बनाकर प्रतिस्पर्द्धा को दबाने का प्रयास किया गया। 
  • ऑनलाइन प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति की समीक्षा के लिये पैनल द्वारा जून 2019 से एप्पल, अमेज़न, गूगल और फेसबुक की जाँच की गई, जिसमें इन कंपनियों द्वारा अपने और अपने प्रतिद्वंदियों के लिये डेटा के प्रवाह को नियंत्रित करने की प्रक्रिया की समीक्षा की गई।
  • जाँच के दौरान पैनल द्वारा 1.3 मिलियन दस्तावेज़ एकत्र किये गए और इन कंपनियों के कई कर्मचारियों की गुप्त गवाही सुनी गई।
  • इन साक्ष्यों में कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा विरोधी और अनुचित तरीके से डिजिटल मार्केट पर  अपनी शक्ति का विस्तार और अतिक्रमण करने के संकेत मिले जिसके बाद इस संदर्भ में कंपनी के प्रमुखों से पूछताछ की गई।

जाँच का परिणाम:  

  • पैनल द्वारा पूछताछ के दौरान कंपनियों के प्रमुखों की प्रतिक्रिया ‘अस्पष्ट और गैर-उत्तरदायी’ रही, इससे इन बड़ी कंपनियों की शक्तियों पर और अधिक प्रश्न उठे तथा यह भी प्रश्न उठा कि क्या ये कंपनियाँ खुद को "लोकतांत्रिक निरीक्षण की पहुँच से परे मानती हैं”।
  • पैनल के अनुसार, ये सभी कंपनियाँ  वितरण के एक प्रमुख चैनल पर एक "गेटकीपर" के रूप में काम कर रही थीं, जिसका अर्थ था कि अपने संबंधित डोमेन पर इनका पूरा नियंत्रण है।
    • बाज़ारों तक पहुँच को नियंत्रित करके ये कंपनियाँ हमारी अर्थव्यवस्था में विजेताओं और हारने वालों का निर्धारण कर सकती हैं।
  • पैनल के अनुसार, इन कंपनियों के पास न केवल व्यापक शक्ति है बल्कि वे अत्यधिक शुल्क लगाकर दमनकारी अनुबंध की शर्तों को लागू कर और लोगों तथा व्यवसायों से मूल्यवान डेटा निकालने के लिये इसका दुरुपयोग भी करते हैं।
  • ये कंपनियाँ अपने-अपने डोमेन में बाज़ार चलाने के साथ इसमें एक प्रतिस्पर्द्धी के रूप में शामिल हैं, इन कंपनियों ने स्वयं को शीर्ष पर बनाए रखने के लिये स्व-वरीयता और अपवर्जनात्मक आचरण का रास्ता अपनाना शुरू कर दिया है।

सुझाव: 

  • पैनल के अनुसार, बड़ी तकनीकी कंपनियों के "संरचनात्मक पृथक्करण" पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। इन कंपनियों को छोटी कंपनियों में तोड़ा/बाँटा जाना चाहिये, जिससे डिजिटल बाज़ार को प्रभावित करने की इनकी क्षमता में कमी की जा सके।
  • इन कंपनियों को "निकटवर्ती व्यवसायों/व्यावसायिक क्षेत्रों' (Adjacent Line of Business) में परिचालन से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
  • बड़ी टेक कंपनियों के विलय और अधिग्रहण पर अनुमानात्मक निषेध लगाया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये फेसबुक (जिसके द्वारा हाल के वर्षों में वाट्सएप और इंस्टाग्राम जैसी कंपनियों का अधिग्रहण किया गया) पर आरोप लगता है कि वह अपनी आर्थिक शक्ति के बल पर प्रतिस्पर्द्धा को प्रभावित करने का कार्य करता है।

भारत में बड़ी टेक कंपनियों की भूमिका:

  • रिपोर्ट में भारत की तनावपूर्ण प्रतिस्पर्द्धा में बड़ी टेक कंपनियों की भूमिका का भी उल्लेख किया गया है।
  • पिछले दो वर्षों में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (The Competition Commission of India- CCI) द्वारा गूगल की व्यावसायिक फ्लाईट सर्च विकल्प, सर्च मार्केट में इसकी प्रभावी स्थिति, एंड्राइड फोन और स्मार्ट टेलीविज़न बाज़ार में इसके द्वारा अपनी प्रभावी स्थिति का दुरुपयोग तथा ऐसे ही अन्य मुद्दों को उठाया गया है।
    • वर्ष 2019 में गूगल को अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग करने से रोकने के लिये डिवाइस निर्माताओं पर अनुचित शर्तों को लागू करने और मोबाइल एंड्रॉइड बाज़ार में अपनी प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग का दोषी ठहराया गया था।
    • गूगल पर अपने प्ले स्टोर (Play Store) पर सूचीबद्ध एप्स के लिये एक उच्च और अनुचित कमीशन तंत्र का अनुसरण करने का भी आरोप लगाया गया है।
  • अमेज़न और फेसबुक जो कि भारत के खुदरा बाज़ार में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं, उनके भी उत्पादों की कीमत के निर्धारण तथा अपने प्रतिद्वंदियों को अपने प्लेटफाॅर्म में स्थान देने या न देने को लेकर भी निगरानी के दायरे में होने की संभावना है।

प्रभाव:

  • हालाँकि इस पैनल की सिफारिशें संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार या किसी अन्य एजेंसी पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, परंतु यह जाँच भविष्य में इन बड़ी कंपनियों पर अधिक नियंत्रण लागू करने की दिशा में एक बहस और गहन शोध को बल दे सकती है।
  • समिति ने कंपनियों से अधिक सवाल पूछे जाने और ऊर्ध्वाद्धर विलय (Vertical Merger) पर कानून तथा कानून में व्याप्त समस्याओं पर पुनर्विचार करने की मांग की है।
  • इन सिफारिशों का किसी भी बड़ी टेक कंपनी पर भले ही तात्कालिक रूप से सीधे कोई प्रभाव न पड़े  परंतु इससे दुनिया भर में बड़ी टेक कंपनियों पर नियामकों और जाँच एजेंसियों की कार्रवाई बढ़ सकती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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