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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मछुआरों के लिये आपदा चेतावनी प्रेषित्र

  • 23 Jan 2024
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समुद्री बचाव समन्वय केंद्र (MRCC), भारतीय तटरक्षक बल (ICG), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), संभावित मछली पकड़ने के क्षेत्र (PFZ)

मेन्स के लिये:

मछुआरों के लिये आपदा चेतावनी प्रेषित्र, आपदा और आपदा प्रबंधन 

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने दूसरी पीढ़ी का आपदा चेतावनी प्रेषित्र (Second-Generation Distress Alert Transmitter, DAT-SG) विकसित किया है जो समुद्र में मछुआरों के लिये मछली पकड़ने की नौकाओं से आपातकालीन संदेश भेजने के लिये एक स्वदेशी तकनीकी समाधान है।

  • आपदा की स्थिति का सामना करने पर मछुआरे आपातकालीन संदेश भेजने के लिये DAT का उपयोग कर सकते हैं। इन संदेशों में आम तौर पर मछली पकड़ने की नौका की पहचान, स्थान तथा आपातकाल की प्रकृति से संबंधित जानकारी होती है।

आपदा चेतावनी प्रेषित्र (DAT) क्या है?

  • परिचय:
    • DAT के प्रथम संस्करण का परिचालन वर्ष 2010 से शुरू है जिसके उपयोग से संदेश एक संचार उपग्रह के माध्यम से भेजे जाते हैं तथा एक केंद्रीय नियंत्रण स्टेशन (INMCC: भारतीय मिशन नियंत्रण केंद्र) में प्राप्त होते हैं जहाँ मछली पकड़ने की नौका की पहचान व स्थान के लिये चेतावनी संकेतों को डिकोड किया जाता है।
    • प्राप्त जानकारी को फिर भारतीय तटरक्षक बल (Indian Coast Guard- ICG) के तहत समुद्री बचाव समन्वय केंद्रों (Maritime Rescue Coordination Centre- MRCC) को अग्रेषित किया जाता है।
    • इस जानकारी का उपयोग करते हुए, MRCC संकट में मछुआरों को बचाने के लिये खोज तथा बचाव अभियान शुरू करने के लिये समन्वय करता है।
      • वर्तमान में 20,000 से अधिक DAT का उपयोग किया जा रहा है।

दूसरी पीढ़ी का आपदा चेतावनी प्रेषित्र (DAT-SG) क्या है?

  •  DAT-SG:
    • दूसरी पीढ़ी का आपदा चेतावनी प्रेषित्र (DAT-SG) मूल आपदा चेतावनी प्रेषित्र (Distress Alert Transmitter- DAT) पर आधारित है तथा समुद्री सुरक्षा एवं संचार को बढ़ाने के लिये इसमें उन्नत क्षमताओं व सुविधाओं को शामिल किया गया है।
    • DAT-SG में समुद्र से संकट की चेतावनी सक्रिय करने वाले मछुआरों को वापस सूचना की पुष्टि भेजने की सुविधा है।
    • ISRO द्वारा DAT-SG का विकास किया गया है जो कि NavIC (भारतीय नक्षत्र में नौवहन) रिसीवर मॉड्यूल पर आधारित एक अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी (UHF) प्रेषित्र/ट्रांसमीटर है।
      • यह NavIC रिसीवर मॉड्यूल स्थिति निर्धारण के साथ-साथ प्रसारण संदेश पुष्टि का समर्थन करता है जिसे NavIC मैसेजिंग सेवा कहा जाता है।
  • विशेषताएँ:
    • ब्लूटूथ इंटरफेस: DAT-SG को ब्लूटूथ इंटरफेस का उपयोग करके मोबाइल फोन से जोड़ा जा सकता है। इससे मछुआरों को अपने मोबाइल उपकरणों पर संदेश प्राप्त करने की सुविधा मिलती है। इसके अतिरिक्त, मोबाइल फोन पर एक ऐप का उपयोग मूल भाषा में संदेशों को पढ़ने के लिये किया जा सकता है, जिससे पहुँच बढ़ जाती है।
    • मोबाइल फोन के साथ एकीकरण: DAT-SG को मोबाइल फोन के साथ एकीकृत किया जा सकता है, जो संचार के लिये एक सुविधाजनक और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला मंच प्रदान करता है।
    • वेब-आधारित नेटवर्क प्रबंधन प्रणाली (SAGARMITRA): केंद्रीय नियंत्रण केंद्र (INMCC) "सागरमित्र" नामक वेब-आधारित नेटवर्क प्रबंधन प्रणाली का उपयोग करता है। 
      • यह प्रणाली पंजीकृत DAT-SG का डेटाबेस बनाए रखती है और संकट में नौकाओं के बारे में वास्तविक समय की जानकारी तक पहुँचने में समुद्री बचाव समन्वय केंद्रों (Maritime Rescue Coordination Centres - MRCCs) की सहायता करती है। यह सुविधा भारतीय तटरक्षक बल को तुरंत खोज एवं बचाव अभियान चलाने में मदद करती है।
    • आमने सामने का संचार: DAT-SG नियंत्रण केंद्र से संदेश प्राप्त करने की क्षमता से सुसज्जित है। यह केंद्रीय नियंत्रण स्टेशन को खराब मौसम, चक्रवात, सुनामी या अन्य आपात स्थितियों जैसी घटनाओं के मामले में मछुआरों को अग्रिम चेतावनी संदेश भेजने में सक्षम बनाता है। 
    • संभावित मत्स्य पालन क्षेत्र: DAT-SG नियमित अंतराल पर समुद्र में मछुआरों को संभावित मछली पकड़ने के क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्रसारित कर सकता है। यह सुविधा मछुआरों को उच्च किस्म की मछलियाँ पकड़ने की अधिक संभावना वाले क्षेत्रों का पता लगाने में सहायता करती है, जिससे मछली पकड़ने के संचालन में दक्षता बढ़ती है और समय तथा ईंधन की बचत होती है।
    • ऑपरेशनल 24/7: DAT-SG की सेवाएँ 24x7 आधार पर प्रारंभ की गई हैं, जिससे संकट में फँसे मछुआरों को निरंतर सहायता सुनिश्चित की जा रही है।

NavIC क्या है?

  • परिचय:
    • NavIC या भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) को 7 उपग्रहों के समूह और 24×7 संचालित ग्राउंड स्टेशनों के नेटवर्क के साथ डिज़ाइन किया गया है।
      • इसमें कुल आठ उपग्रह हैं लेकिन अभी केवल सात ही सक्रिय हैं।
      • भूस्थैतिक कक्षा में तीन उपग्रह तथा भूतुल्यकालिक कक्षा में चार उपग्रह हैं।
    • तारामंडल का पहला उपग्रह (IRNSS-1A) 1 जुलाई, 2013 को लॉन्च किया गया था और आठवाँ उपग्रह IRNSS-1I अप्रैल, 2018 में लॉन्च किया गया था।
      • तारामंडल के उपग्रह (IRNSS-1G) के सातवें प्रक्षेपण के साथ वर्ष 2016 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा IRNSS का नाम बदलकर NaVIC कर दिया गया।
    • इसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा वर्ष 2020 में हिंद महासागर क्षेत्र में संचालन के लिये वर्ल्ड-वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम (WWRNS) के एक भाग के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • संभावित उपयोग:
    • स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन;
    • आपदा प्रबंधन;
    • वाहन ट्रैकिंग और बेड़ा प्रबंधन (विशेष रूप से खनन और परिवहन क्षेत्र के लिये);
    • मोबाइल फोन के साथ एकीकरण;
    • सटीक समय (ATM और पावर ग्रिड के लिये);
    • मैपिंग और जियोडेटिक डेटा कैप्चर।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय- संचालन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. IRNSS के तुल्यकाली (जियोस्टेशनरी) कक्षाओं में तीन उपग्रह हैं और भूतुल्यकाली (जियोसिंक्रोनस) कक्षाओं में चार उपग्रह हैं।  
  2. IRNSS की व्याप्ति संपूर्ण भारत पर और इसकी सीमाओं से लगभग 5500 वर्ग किमी.  बाहर तक है।  
  3. वर्ष 2019 के मध्य तक भारत की, पूर्ण वैश्विक व्याप्ति के साथ अपनी उपग्रह संचालन प्रणाली होगी।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) की आवश्यकता क्यों है? यह नेविगेशन में कैसे मदद करती है? (2018)

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016)

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