विधानसभा सदस्य की अयोग्यता | 21 Dec 2023
प्रिलिम्स के लिये:प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), विधान सभा सदस्य की अयोग्यता और निलंबन, संविधान का अनुच्छेद 191, लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 मेन्स के लिये:लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 का महत्त्व, विधायक की अयोग्यता के लिये विभिन्न आधार |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा तमिलनाडु के एक मंत्री को आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराया गया।
- उच्च न्यायालय का यह निर्णय वर्ष 2011 में संबद्ध मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज होने के 12 वर्ष उपरांत आया है। मंत्री को अब दोषसिद्धि से मुक्ति न मिलने तक अपनी सज़ा के कारण विधान सभा (MLA) के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित किया गया है।
नोट:
- आय से अधिक संपत्ति का उपयोग भारत में किसी व्यक्ति की शुद्ध आर्थिक परिसंपत्तियों का वर्णन करने के लिये किया जाता है जो उनके पास मौजूद परिसंपत्तियों से काफी अधिक है।
- यह उनके पास पहले से मौजूद परिसंपत्तियों तथा आय के सभी विधिक स्रोतों का परिकलन करने के बाद की स्थिति को दर्शाता है।
विधानसभा के सदस्य की अयोग्यता के लिये क्या प्रावधान हैं?
- अनुच्छेद 191:
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 191 राज्य विधानसभा अथवा विधानपरिषद की सदस्यता के लिये अयोग्यता से संबंधित है।
- कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद का सदस्य चुने जाने के लिये और सदस्य होने के लिये अयोग्य होगा-
- यदि वह भारत सरकार या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी भी राज्य की सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, जब तक कि विधानमंडल से विधि द्वारा पद धारण करने की छूट नहीं मिल जाती है।
- किसी व्यक्ति को सक्षम न्यायालय द्वारा विकृतचित्त घोषित कर दिया जाता है।
- यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है।
- यदि वह भारत का नागरिक नहीं है अथवा उसने स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वीकार कर ली है अथवा वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा रखता है अथवा उसका पालन करता है।
- यदि वह संसद द्वारा निर्मित किसी विधि द्वारा अथवा उसके अधीन अयोग्य घोषित किया जाता है।
- संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत किसी व्यक्ति को दलबदल के आधार पर अयोग्य ठहराया जा सकता है। इसमें चुनाव से पहले अथवा बाद में दल की संबद्धता बदलना शामिल है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951:
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(1) के अनुसार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA), 1988 के तहत अपराध हेतु दोषी ठहराए गए विधायक को दोषसिद्धि की तारीख से छह वर्ष के लिये अयोग्य घोषित किया जाना चाहिये, यदि सज़ा जुर्माने तक सीमित है।
- हालाँकि यदि किसी विधायक को PCA, 1988 के तहत किसी भी अवधि के कारावास की सज़ा सुनाई जाती है, तो अधिनियम के अनुसार, उसे दोषसिद्धि की तिथि से कारावास की पूरी अवधि तक और रिहाई की तिथि से छह वर्ष की अतिरिक्त अवधि तक के लिये अयोग्य ठहराया जाना चाहिये।
- लेकिन निवारक निरोध कानून के तहत किसी व्यक्ति की हिरासत अयोग्यता नहीं है।
- अयोग्यता से केवल तभी बचा जा सकता है जब दोषसिद्धि, न कि केवल सज़ा, रोक दी जाए या रद्द कर दी जाए।
- व्यक्ति को चुनाव में कुछ चुनावी अपराधों या भ्रष्ट आचरण का दोषी नहीं पाया जाना चाहिये।
- व्यक्ति को भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति विश्वासघात के लिये सरकारी सेवा से बर्खास्त नहीं किया गया होना चाहिये।
- व्यक्ति को विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने या रिश्वतखोरी के अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया गया हो।
- व्यक्ति समय के भीतर अपने चुनाव खर्च का लेखा-जोखा दाखिल करने में विफल नहीं होना चाहिये।
- व्यक्ति को सरकारी ठेकों, कार्यों या सेवाओं में कोई रुचि नहीं होनी चाहिये।
- व्यक्ति को निदेशक या प्रबंध एजेंट नहीं होना चाहिये और न ही किसी ऐसे निगम में लाभ का पद धारण करना चाहिये जिसमें सरकार की कम-से-कम 25% हिस्सेदारी हो।
- उस व्यक्ति को अस्पृश्यता, दहेज और सती प्रथा जैसे सामाजिक अपराधों का प्रचार व आचरण करने के लिये दंडित नहीं किया गया होगा।
- किसी सदस्य की अयोग्यता पर राज्यपाल का निर्णय अंतिम होता है, लेकिन उन्हें कार्रवाई करने से पहले चुनाव आयोग की राय लेनी होगी।
- यदि कोई उच्च न्यायालय दोषसिद्धि पर रोक लगा देता है या दोषी सदस्य के पक्ष में अपील का फैसला करता है तो अयोग्यता के निर्णय को वापस लिया जा सकता है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(1) के अनुसार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA), 1988 के तहत अपराध हेतु दोषी ठहराए गए विधायक को दोषसिद्धि की तारीख से छह वर्ष के लिये अयोग्य घोषित किया जाना चाहिये, यदि सज़ा जुर्माने तक सीमित है।
अयोग्यता निलंबन से किस प्रकार भिन्न है?
- निलंबन का अर्थ है कि कोई व्यक्ति किसी कदाचार या नियमों के उल्लंघन के कारण अस्थायी रूप से अपनी सदस्यता खो देता है।
- लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के नियम 373, 374, तथा 374A उस सदस्य को पद से हटाने का प्रावधान करते हैं जिसका आचरण "अमर्यादित" है और जो सदन के नियमों का दुरुपयोग करता है या जानबूझकर उसके कार्य में बाधा डालता है।
- इन नियमों के अनुसार अधिकतम निलंबन "लगातार पाँच बैठकों या शेष सत्र के लिये, जो भी कम हो" है।
- नियम 255 और 256 के तहत राज्यसभा के लिये अधिकतम निलंबन भी सत्र के शेष समय से अधिक नहीं है।
- इसी तरह प्रत्येक राज्य में विधानसभा संचालन को नियंत्रित करने के अपने नियम हैं, जिनमें विधायकों के निलंबन के प्रावधान भी शामिल हैं, जो अधिकतम निलंबन निर्धारित करते हैं जो सत्र के शेष समय से अधिक नहीं होना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014) 1- भारत के राष्ट्रपति को, राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |