अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सिंधु जल संधि से संबंधित विवाद
- 24 Jan 2025
- 11 min read
प्रिलिम्स:सिंधु जल संधि (IWT), सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ, किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाएँ, विश्व बैंक। मेन्स:सिंधु जल संधि और संबंधित मुद्दा |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ ने हाल ही में कहा है कि वह सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर किशनगंगा तथा रतले जलविद्युत परियोजना के डिज़ाइन के संबंध में पाकिस्तान द्वारा उठाए गए मुद्दे को हल करने में सक्षम है।
सिंधु जल संधि (IWT) से संबंधित प्रमुख विवाद क्या हैं?
- जल विभाजन संबंधी विवाद:
- किशनगंगा जलविद्युत परियोजना: किशनगंगा जलविद्युत परियोजना (HEP) जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा नदी (झेलम की सहायक नदी) से संबंधित है। पाकिस्तान ने इस पर दावा किया है कि विद्युत उत्पादन के लिये जल के बहाव पर नियंत्रण, IWT का उल्लंघन है।
- रतले जलविद्युत परियोजना: यह जम्मू-कश्मीर में चेनाब नदी पर एक रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है। इसके संदर्भ में पाकिस्तान ने चिंता जताई थी कि तटबंध का डिज़ाइन, भारत को नदी के प्रवाह पर काफी अधिक नियंत्रण प्रदान करता है।
- विवाद समाधान प्रक्रिया:
- पाकिस्तान ने किशनगंगा और रतले परियोजनाओं पर आपत्ति जताई थी, तथा शुरू में वर्ष 2015 में सिंधु जल संधि के तहत एक तटस्थ विशेषज्ञ की मांग की थी, लेकिन बाद में उसने PCA द्वारा निर्णय की मांग की थी।
- भारत ने इसका विरोध किया और IWT के विवाद समाधान पदानुक्रम पर ज़ोर दिया, जो PCA पर तटस्थ विशेषज्ञ को प्राथमिकता देता है। वर्ष 2022 में, विश्व बैंक ने तटस्थ विशेषज्ञ और PCA दोनों प्रक्रियाओं की शुरुआत की।
- भारत ने तटस्थ विशेषज्ञ के साथ वार्ता करते हुए PCA का बहिष्कार किया तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि केवल तटस्थ विशेषज्ञ को ही सिंधु जल संधि के अंतर्गत विवादों को सुलझाने का अधिकार है।
सिंधु जल संधि क्या है?
- परिचय: यह भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में विश्व बैंक के तत्वावधान में हस्ताक्षरित एक जल-बंटवारा समझौता है, जिसके तहत सिंधु नदी और इसकी 5 सहायक नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी, झेलम और चिनाब) के जल को दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया है।
- प्रमुख प्रावधान:
- जल बंटवारे की व्यवस्था:
- यह संधि भारत को तीन पूर्वी नदियों (व्यास, रावी, सतलुज) के अप्रतिबंधित उपयोग की अनुमति देती है तथा तीन पश्चिमी नदियों (चिनाब, सिंधु, झेलम) को पाकिस्तान को आवंटित करती है, साथ ही भारत को विशिष्ट परिस्थितियों में घरेलू, गैर-उपभोग्य, कृषि और जलविद्युत प्रयोजनों के लिये इन नदियों के जल का उपयोग करने की कुछ छूट भी देती है।
- इस व्यवस्था के अनुसार, पाकिस्तान को सिंधु नदी प्रणाली से लगभग 80% जल आवंटित किया जाता है, जबकि भारत को लगभग 20% जल मिलता है।
- स्थायी सिंधु आयोग: संधि ने दोनों देशों के प्रतिनिधियों के साथ एक स्थायी सिंधु आयोग (PIC) की स्थापना को अनिवार्य किया, जिसे संधि के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये वार्षिक बैठक करनी होती है।
- जल बंटवारे की व्यवस्था:
- विवाद समाधान तंत्र: IWT का अनुच्छेद IX 3-स्तरीय विवाद समाधान प्रक्रिया की रूपरेखा प्रस्तुत करता है:
- PIC द्वारा समाधान: संधि की व्याख्या या उल्लंघन से संबंधित प्रारंभिक विवादों या प्रश्नों का समाधान PIC द्वारा किया जाता है, जो भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों का एक द्विपक्षीय निकाय है।
- निष्पक्ष विशेषज्ञ: यदि PIC समस्या का समाधान करने में विफल रहती है, तो इसे किसी भी आयुक्त के अनुरोध पर विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ के पास भेजा जाता है।
- मध्यस्थता न्यायालय: यदि मामला विवाद के रूप में वर्गीकृत है या निष्पक्ष विशेषज्ञ के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, तथा यदि द्विपक्षीय वार्ता विफल हो जाती है, तो कोई भी पक्ष विश्व बैंक द्वारा स्थापित मध्यस्थता न्यायालय का सहारा ले सकता है।
नोट: PCA की स्थापना वर्ष 1899 में हुई थी। यह हेग (नीदरलैंड) में स्थित है, यह राज्यों के बीच विवादों को का समाधान करता है, मध्यस्थता और अन्य तंत्र प्रदान करता है। यह विकासशील देशों को मध्यस्थता लागतों को कवर करने में मदद करने के लिये एक वित्तीय सहायता कोष भी प्रदान करता है।
IWT से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- पुराने प्रावधान: IWT जलवायु परिवर्तन जैसी आधुनिक चुनौतियों का समाधान नहीं करता है, जिसने सिंधु बेसिन में जल विज्ञान प्रारूप को बदल दिया है, जिससे पानी की उपलब्धता प्रभावित हुई है।
- ऐतिहासिक जल विज्ञान प्रवृत्तियों के आधार पर स्थापित IWT, जल आपूर्ति पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से खतरे में है, जिसमें उच्च वाष्पीकरण, अप्रत्याशित वर्षा और हिमनदों का तेज़ी से पिघलना शामिल है।
- अनुकूलता का अभाव: संधि के तहत जल संसाधनों का असंगत आवंटन बदलती परिस्थितियों के अनुरूप अनुकूल जल प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने की क्षमता को सीमित करता है।
- PCA की अनियमितताएँ: विश्व बैंक द्वारा शुरू की गई समानांतर कार्यवाही संधि के विवाद समाधान ढाँचे में अस्पष्टता को उजागर करती है, तथा सुधार और स्पष्टीकरण की आवश्यकता का संकेत देती है।
- भू-राजनीतिक तनाव: भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापक अविश्वास और शत्रुता संधि की प्रभावशीलता में बाधा डालती है, जिससे जल-आवंटन और प्रबंधन पर सहयोग बाधित हो जाता है।
आगे की राह
- संधि पर पुनः वार्ता: इसकी सीमाओं का निवारण करने तथा जलवायु लचीलेपन और सतत् जल प्रबंधन के प्रावधानों को इसमें शामिल करने के लिये IWT पर पुनः विचार किये जाने की तत्काल आवश्यकता है।
- बेहतर संवाद: भारत और पाकिस्तान को विवादों को सौहार्दपूर्ण रूप से निवारण करने हेतु संवाद और विश्वास-निर्माण उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिये। इसके संदर्भ में स्थायी सिंधु आयोग का पुनरुद्धार एक शुरुआती बिंदु के रूप में काम कर सकता है।
- तृतीय-पक्ष मध्यस्थता: विश्व बैंक और अन्य तटस्थ पक्ष वार्ता को सुविधाजनक बनाने और संधि का अनुपालन सुनिश्चित करने में रचनात्मक भूमिका निभा सकते हैं।
- तकनीकी समाधान का विकल्प: दोनों देशों को जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित विवादों का समाधान करने हेतु तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये तथा डेटा साझाकरण एवं संयुक्त अध्ययन पर ज़ोर देना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. सिंधु जल संधि (IWT) क्या है? चर्चा कीजिये कि भारत किन कारणों से IWT पर पुनः वार्ता करना चाहता है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में निम्नलिखित चार नदियों में से तीन उनमें से एक में मिलती हैं, जो अंततः सीधे सिंधु में मिलती हैं। निम्नलिखित में से कौन-सी ऐसी नदी है जो सीधे सिंधु से मिलती है? (2021) (a) चिनाब उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं? (a) 1, 2 और 4 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. नदियों को आपस में जोड़ना सूखा, बाढ़ और बाधित जल-परिवहन जैसी बहु-आयामी अंतर्संबंधित समस्याओं का व्यवहार्य समाधान दे सकता है। आलोचनात्मक परिक्षण कीजिये। (2020) |