वृक्ष की प्रजातियों पर तटीय बाढ़ के विभेदी प्रभाव | 30 Oct 2024

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल वार्मिंग, तटीय बाढ़,  वन संरक्षण अधिनियम,1980, राष्ट्रीय वन नीति,1988

मेन्स के लिये:

समुद्री जल-स्तर में वृद्धि और भारत एवं इसके तटीय क्षेत्रों के समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्रों पर इसका प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

फ्रंटियर्स इन फॉरेस्ट्स एंड ग्लोबल चेंज में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार वैश्विक तापन के कारण समुद्री जल-स्तर में वृद्धि हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप जनित तटीय बाढ़ के कारण तटीय क्षेत्रों के वृक्ष प्रजातियों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ रहा है।

नोट:

  • अध्ययन में डेंड्रोक्रोनोलॉजी (वृक्ष-वलय काल-निर्धारण) और ग्रेडिएंट-बूस्टेड लीनियर रिग्रेशन नामक मशीन-लर्निंग तकनीक का उपयोग किया गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वर्षा, तापमान और ज्वार-भाटा का स्तर वृक्षों की वृद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है तथा इन कारकों के बीच जटिल अंतःक्रियाओं का पता लगाया जा सके।

अध्ययन से संबंधित मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • वृक्ष प्रजातियों पर विभेदी प्रभाव: अध्ययन के अनुसार अमेरिकन होली (इलेक्स ओपका) जैसी प्रजातियों की संवृद्धि उच्च समुद्री जल-स्तर पर होती है जबकि लोब्लोली पाइन (पाइनस टेडा) एवं पिच पाइन (पाइनस रिजिडा) की इन परिस्थितियों में सीमित संवृद्धि होती है।
  • प्रजातियों की अनुकूलनशीलता: कुछ प्रजातियाँ वर्षा, तापमान और समुद्र के स्तर में होने वाले परिवर्तन के अनुकूल ढलने के लिये उपयुक्त होती हैं।
    • वृक्ष इन परिवर्तनों के प्रति तेज़ी से अनुकूलित हो रहे हैं; चूँकि समुद्री जल-स्तर में प्रत्येक वर्ष कुछ मिलीमीटर (मिमी.) की वृद्धि हो रही है, इसलिये कई तटीय क्षेत्रों की वृक्ष प्रजातियाँ धीरे-धीरे निम्न ज्वार और अल्प लवणीय क्षेत्रों की ओर अभिगामी हैं।
  • व्यापक प्रभाव: तीन अरब से अधिक लोग समुद्र तट के समीप निवास करते हैं और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं। पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखने और आजीविका को आधार प्रदान करने हेतु तटीय वनस्पति संरक्षण अत्यावश्यक है।
  • भविष्य के निहितार्थ: 1993 से अभी तक समुद्री जल-स्तर में 2 मिमी. की प्रति वर्ष वृद्धि से दोगुना बढ़ोतरी हुई है तथा शोधकर्त्ताओं के अनुसार वर्ष 2050 तक तटीय बाढ़ में तीन गुना वृद्धि होगी तथा बाढ़ के दिनों की संख्या भी दोगुनी हो जाएगी। 
  • अध्ययन की प्रासंगिकता: इस अध्ययन के निष्कर्ष वन प्रबंधकों को तटीय क्षेत्रों में वृक्ष प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकता देने में मदद करते हैं तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति वनों की सुभेद्यता का आकलन करने में स्थानीय परिस्थितियों के महत्त्व पर बल देते हैं।

तटीय बाढ़ क्या है?

  • परिचय: तटीय बाढ़ का आशय तटीय क्षेत्रों में अचानक आने वाली बाढ़ है, जो स्थानीय स्थलाकृति और स्थलाकृति से प्रभावित तूफानी लहरों और अत्यधिक ज्वार से अल्पकालिक जल स्तर में होने वाली वृद्धि के कारण आती है।
  • तटीय बाढ़ की प्रणाली:
    • अतिप्रवाह: लहरें समुद्री दीवारों या तटबंधों को तोड़ सकती हैं, जिससे बाढ़ आ सकती है।
    • जलप्लावन: उच्च समुद्री जल स्तर या चरम मौसम के कारण बिना जलप्लावन के भी, निचले तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आ सकती है।
    • प्रतिप्रवाह: तूफानी लहरें या उच्च ज्वार से नदियाँ या नाले बाधित हो सकते हैं, जिससे जल तटीय क्षेत्रों में वापस बह सकता है।

भारत के तटीय परिदृश्य का अवलोकन

  • भारत की तटरेखा 7,516.6 किलोमीटर तक लंबी है जिसमें मुख्य भूमि 6,100 किलोमीटर और द्वीपीय क्षेत्र 1,197 किलोमीटर है, जो 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में विस्तारित हैं।
  • राज्यों में गुजरात की समुद्र तट रेखा सबसे लंबी (1,214.7 किमी.) है जिसके बाद आंध्र प्रदेश (973.7 किमी) और तमिलनाडु (906.9 किमी) का स्थान है। 
  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की तटरेखा 1,962 किलोमीटर के साथ केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे लंबी है।
  • संवेदनशील क्षेत्र: 
    • संवेदनशील तटीय राज्य: ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे तटीय राज्य अपनी भौगोलिक स्थिति और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण अत्यधिक जोखिम की स्थिति में हैं।
    • निम्न-ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बाढ़ का जोखिम: निम्न ऊँचाई वाले क्षेत्र (जैसे कि पश्चिम बंगाल में सुंदरवन और ओडिशा के तटीय मैदान) विशेष रूप से तटीय बाढ़ के प्रति संवेदनशील हैं।

ग्लोबल वार्मिंग से तटीय क्षेत्र किस प्रकार प्रभावित होता है? 

  • समुद्र-स्तर में वृद्धि: जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता है, ग्लेशियर और बर्फ की चादरें पिघलने से महासागरों में अधिक जल आता है और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होती है।
  • तटीय बाढ़ में वृद्धि: समुद्र के बढ़ते जल स्तर और मज़बूत तूफानी लहरों के परिणामस्वरूप तटीय बाढ़ अधिक तीव्र हो जाती है, जिससे बुनियादी ढाँचे और आवास प्रभावित होते हैं।
  • तटीय क्षेत्रों का क्षरण: समुद्र के बढ़ते जल स्तर और अधिक शक्तिशाली तूफानों के संयोजन से क्षरण में तेजी आती है, जिससे समुद्र तटों एवं आर्द्रभूमि (जो प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं) का विनाश होता है।
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: CO2 की वृद्धि के कारण समुद्र के तापमान में परिवर्तन और अम्लीकरण से समुद्री जीवन प्रभावित होता है जिसमें प्रवाल भित्तियाँ, मछलियाँ और तटीय अर्थव्यवस्थाओं के लिये महत्त्वपूर्ण जैवविविधता शामिल है।
  • तूफान की तीव्रता में वृद्धि: उष्ण समुद्र से अधिक शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय तूफानों और चक्रवातों को जन्म मिलने के परिणामस्वरूप विनाशकारी तूफानी लहरें उठती हैं, जिनसे तटीय समुदायों को खतरा होता है।

तटीय प्रबंधन के लिये भारत की क्या पहल हैं?

  • तटीय बाढ़ प्रबंधन: मिष्टी पहल, एक सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य समुद्र तट और खारे जल वाली भूमि पर मैंग्रोव आवरण को बढ़ाना है।
  • राष्ट्रीय सतत् तटीय प्रबंधन केंद्र: इसका उद्देश्य पारंपरिक तटीय और द्वीप समुदायों के लाभ और कल्याण के लिये भारत में तटीय तथा समुद्री क्षेत्रों के एकीकृत एवं टिकाऊ प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
  • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना: यह तटीय क्षेत्र के सभी पहलुओं (जिसमें भौगोलिक और राजनीतिक सीमाएँ भी शामिल हैं) के संबंध में एकीकृत दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए तट के प्रबंधन की एक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य स्थिरता प्राप्त करना है।
  • तटीय विनियमन क्षेत्र: भारत के तटीय क्षेत्रों में गतिविधियों को विनियमित करने के लिये पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत वर्ष 1991 में तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना जारी की गई थी।
  • बाढ़ प्रबंधन के लिये समाधान:
    • भंडारण जलाशय: ये मानव निर्मित संरचनाएँ उच्च प्रवाह की अवधि के दौरान जल को रोककर रखती हैं तथा प्रवाह कम होने पर इसे बाहर निकाल देती हैं। 
  • तटबंध: ये ऊँची संरचनाएँ होती हैं जो जल के प्रवाह को चैनल के भीतर या किनारे तक सीमित रखती हैं।
    • बाढ़ पूर्वानुमान और चेतावनी: इस प्रणाली के तहत मौसम विज्ञान और जल विज्ञान संबंधी आँकड़ों का उपयोग करके संभावित बाढ़ का पूर्वानुमान होता है। 
      • उदाहरण के लिये केंद्रीय जल आयोग (CWC) द्वारा भारत में बाढ़ पूर्वानुमान स्टेशनों का एक नेटवर्क संचालित किया जाता है, जिससे बाढ़ की स्थिति पर दैनिक अद्यतन जानकारी मिलती है।

तटीय बाढ़ से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • बुनियादी ढाँचे को नुकसान: तटीय बाढ़ से सड़कों, भवनों, बंदरगाहों और पुलों जैसे बुनियादी ढाँचे को गंभीर नुकसान पहुँचता है, जिससे मरम्मत की लागत बढ़ जाती है और तटीय क्षेत्रों में परिवहन और संचार प्रणालियाँ बाधित होती हैं।
  • आर्थिक नुकसान: पर्यटन, मत्स्य पालन और कृषि जैसे उद्योग बाढ़ के कारण प्रभावित होते हैं, तटीय क्षेत्रों को रुके हुए परिचालन, कम उत्पादकता और क्षतिग्रस्त परिसंपत्तियों के कारण प्रत्यक्ष नुकसान का सामना करना पड़ता है।
  • जैव विविधता का नुकसान: बाढ़ के कारण तटीय वनस्पतियों और जीवों के आवास नष्ट हो जाते हैं, जिससे जैव विविधता प्रभावित होती है। आर्द्रभूमि, मैंग्रोव और अन्य महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र विशेष रूप से दुर्बल होते हैं, जिससे भविष्य में बाढ़ के विरुद्ध प्राकृतिक लचीलापन कम हो जाता है।
  • तटीय बाढ़ से लवणीय जल का प्रवेश स्वच्छ जल के संसाधनों को दूषित करता है, जिससे पेयजल, कृषि और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं। 
  • मृदा लवणता फसल उत्पादन को भी बाधित करती है, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
  • विस्थापन और मानव प्रवास: लगातार बाढ़ से क्षेत्र रहने लायक नहीं रह जाते, जिससे समुदायों को स्थानांतरित होने के लिये मज़बूर होना पड़ता है। 
  • इसके परिणामस्वरूप आंतरिक प्रवास, शहरी बुनियादी ढाँचे पर दबाव तथा गंतव्य क्षेत्रों में संभावित सामाजिक संघर्ष उत्पन्न होते हैं।

तटीय बाढ़ से वनों की रक्षा के लिये कौन-सी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं?

  • वन अनुकूलन: वन प्रबंधकों को व्यापक रणनीतियाँ लागू करने के बजाय, उन वनों को प्राथमिकता देने के लिये प्रजातियों की संरचना की सूची बनानी चाहिये जो सबसे अधिक खतरे में हैं। 
    • मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ और लैगून या झीलों जैसे तटीय आवासों को समुद्री तूफानों और कटाव के विरुद्ध सर्वोत्तम सुरक्षा के रूप में मान्यता प्राप्त है, क्योंकि ये समुद्री तूफानों की अधिकांश ऊर्जा को विक्षेपित और अवशोषित कर लेते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, लोब्लोली पाइन की प्रधानता वाले वनों में ज्वारीय बाढ़ के प्रति संवेदनशीलता के कारण अधिक तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है।
  • स्थानीयकृत अध्ययन: मृदा स्वास्थ्य और वर्षा जैसे स्थानीयकृत अध्ययन तटीय पारिस्थितिकी तंत्रों के समक्ष आने वाली स्थल-विशिष्ट चुनौतियों को समझने और तटीय वनों की बाढ़ ही नहीं, बल्कि समुद्र-स्तर में वृद्धि के प्रति संवेदनशीलता का आकलन करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • रेत के टीलों का निर्माण और जीर्णोद्धार: रेत के टीलों का निर्माण या जीर्णोद्धार उच्च ज्वार और तूफानी लहरों के विरुद्ध प्रतिरोधक के रूप में कार्य कर सकता है।
  • प्रजातियों का चयन: लवण-सहिष्णु और बाढ़-प्रतिरोधी वृक्ष प्रजातियों का चयन बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में वन स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायता कर सकता है।
  • बुनियादी ढाँचा और इंजीनियरिंग समाधान: समुद्री दीवारों, तटबंधों और तूफानी जल प्रबंधन प्रणालियों जैसे नवीन इंजीनियरिंग समाधानों की खोज करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: तटीय वृक्ष प्रजातियों पर बढ़ते समुद्र के स्तर के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये तथा जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में वन प्रबंधन और संरक्षण रणनीतियों के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: यह संदेह है कि आस्ट्रेलिया में हाल में आयी बाढ़ "ला-नीना" के कारण आयी थी। "ला-नीना" "एल-नीनो" से कैसे भिन्न है ? (2011)

  1. ला-नीना विषुवतीय हिंद महासांगर में समुद्र के असाधारण रूप से ठंडे तापमान से चरित्रित होता है, जबकि एल-नीनो विषुवतीय प्रशांत महासागर में समुद्र के असाधारण रूप से गर्म तापमान से चरित्रित होता है।
  2. एल-नीनो का भारत की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, किंतु ला-नीना का मानसूनी जलवायु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

उपर्युक्त में से कौन-सा/कौन-से कथन सही है/हैं ?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 
(c) 1 व 2 दोनों 
(d) न तो 1 न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स:

Q. राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एन.डी.एम.ए.) के सुझावों के संदर्भ में, उत्तराखंड के अनेकों स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के संघात को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)