भारतीय अर्थव्यवस्था
जूट उद्योग का विकास और संवर्द्धन
- 19 Feb 2024
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:गोल्डन फाइबर, जूट उद्योग का विकास और संवर्द्धन, जूट पैकेज सामग्री (वस्तु पैकिंग अनिवार्य प्रयोग) अधिनियम 1987, जूट जियोटेक्सटाइल्स (JGT) मेन्स के लिये:जूट उद्योग का विकास और संवर्द्धन, देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसलें और फसल पैटर्न |
स्रोत: संसद
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रम, वस्त्र और कौशल विकास पर स्थायी समिति ने 'जूट उद्योग के विकास तथा संवर्द्धन’ पर 53वीं रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- जूट उद्योग की संभावनाएँ:
- भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में जूट उद्योग का एक महत्त्वपूर्ण योगदान है। यह पूर्वी क्षेत्र, विशेषकर पश्चिम बंगाल में प्रमुख उद्योगों में से एक है।
- जूट, 'गोल्डन फाइबर', एक प्राकृतिक, नवीकरणीय, बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद होने के कारण 'सुरक्षित' पैकेजिंग के सभी मानकों को पूरा करता है।
- विश्व में जूट उत्पादन में भारत की प्रमुख हिस्सेदारी:
- जूट के वैश्विक उत्पादन में भारत का एक प्रमुख हिस्सेदारी है, यह विश्व के कुल जूट उत्पादन में 70% का योगदान देता है।
- जूट उद्योग प्रत्यक्ष तौर पर लगभग 3.7 लाख श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करता है और लगभग 90% उत्पादन की खपत घरेलू स्तर की की जाती है।
- लगभग 73% जूट उद्योग का केंद्र पश्चिम बंगाल है (कुल 108 जूट मिलों में से 79 पश्चिम बंगाल में स्थित हैं)।
- उत्पादन और निर्यात डेटा (2022-23):
- वित्तीय वर्ष 2022-23 में जूट से निर्मित वस्तुओं के उत्पादन में कुल 1,246,500 मीट्रिक टन (MT) के साथ महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई।
- जूट से निर्मित वस्तुओं का निर्यात बढ़कर 177,270 मीट्रिक टन हो गया, जो कुल उत्पादन का लगभग 14% है। यह वर्ष 2019-20 के निर्यात के आँकड़ों की तुलना में 56% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है।
- जूट से निर्मित वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि के कई कारण थे जिसमें प्रमुख कारण विश्व भर में पर्यावरण के अनुकूल और सतत् उत्पादों की बढ़ती मांग है।
- इसी अवधि में भारत ने 121.26 हज़ार मीट्रिक टन कच्चे जूट का आयात किया।
- उच्च गुणवत्ता वाले जूट की मांग के कारण बांग्लादेश से जूट का आयात किया गया जिसका उपयोग मूल्यवर्द्धित उत्पादों के निर्माण में किया जाता है।
- जूट से निर्मित वस्तुओं के शीर्ष निर्यात बाज़ारों में संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस, घाना, यूके, नीदरलैंड, जर्मनी, बेल्जियम, कोटे डी आइवर, ऑस्ट्रेलिया और स्पेन जैसे विविध देश शामिल हैं।
- जूट उद्योग के सम्मुख प्रमुख चुनौतियाँ:
- खरीद की उच्च दर: मिलें कच्चे जूट को प्रसंस्करण के बाद जिस कीमत पर विक्रय कर रही हैं, उससे अधिक कीमत पर उनका क्रय कर रही हैं।
- बिचौलियों अथवा व्यापारियों से जुड़ी जटिल खरीद प्रक्रिया के कारण यह समस्या और बढ़ गई है जिससे अंततः लागत में और वृद्धि हुई है।
- अपर्याप्त कच्चा माल: जूट की कृषि को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद भारत अभी भी अपर्याप्त कच्चे माल की आपूर्ति का सामना रहा है जिससे खरीद संबंधी समस्याएँ बढ़ रही हैं और उत्पादन क्षमता प्रभावित हो रही है।
- अप्रचलित मिलें और मशीनरी: जूट उद्योग अप्रचलित मिलों और मशीनरी की समस्या का सामना कर रहा है जिससे दक्षता तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये तकनीकी उन्नयन की आवश्यकता है।
- सिंथेटिक सामग्रियों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा: जूट को सिंथेटिक सामग्रियों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है जो वहनीय पैकेजिंग समाधान प्रदान करते हैं जिससे जूट उत्पादों की मांग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- इसके अतिरिक्त मेस्टा जैसे वैकल्पिक फाइबर की उपलब्धता के कारण जूट से निर्मित वस्तुओं की मांग में कमी देखी गई है जिससे जूट उत्पादों का बाज़ार प्रभावित हुआ है।
- श्रम संबंधी मुद्दे और बुनियादी ढाँचा बाधाएँ: श्रम संबंधी मुद्दे उद्योग के संचालन को बाधित करते हैं, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में, निरंतर हड़तालों, तालाबंदी और विवादों के कारण परिचालन बाधित होता है तथा अस्थिरता बढ़ती है।
- अपर्याप्त विद्युत आपूर्ति, परिवहन चुनौतियाँ और पूंजी तक सीमित पहुँच जैसी बुनियादी ढाँचागत बाधाएँ उद्योग के स्थिरता प्रयासों में बाधा डालती हैं तथा साथ ही विकास एवं आधुनिकीकरण पहल को प्रभावित करती हैं।
- खरीद की उच्च दर: मिलें कच्चे जूट को प्रसंस्करण के बाद जिस कीमत पर विक्रय कर रही हैं, उससे अधिक कीमत पर उनका क्रय कर रही हैं।
जूट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- जूट की कृषि के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ:
- तापमान: 25-35°C के बीच
- वर्षा: लगभग 150-250 सेमी.
- मृदा प्रकार: अच्छी जल निकास वाली जलोढ़ मिट्टी
- उत्पादन:
- भारत जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद बांग्लादेश और चीन का स्थान है।
- हालाँकि रकबा और व्यापार के मामले में बांग्लादेश भारत के 7% की तुलना में वैश्विक जूट निर्यात में तीन-चौथाई का योगदान देता है।
- जूट की कृषि तीन राज्यों, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में केंद्रित है, जो उत्पादन का 99% हिस्सा है।
- इसका उत्पादन मुख्य रूप से पूर्वी भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा की समृद्ध जलोढ़ मिट्टी पर केंद्रित है।
- भारत जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद बांग्लादेश और चीन का स्थान है।
- उपयोग:
- इसे गोल्डन फाइबर के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग जूट की थैली, चटाई, रस्सी, सूत, कालीन और अन्य कलाकृतियों को बनाने में किया जाता है।
स्थायी समिति की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?
- प्रौद्योगिकी का आधुनिकीकरण और उन्नयन:
- उत्पादकता बढ़ाने और उत्पाद मानकों को उन्नत करने के लिये जूट मिलों को अत्याधुनिक मशीनरी तथा प्रौद्योगिकी में निवेश करने हेतु प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- नवाचार और प्रगति को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान संस्थानों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना।
- कुशल कच्चे माल की खरीद:
- खर्चों को कम करने के लिये कच्चे जूट प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करें। जूट की कृषि को बढ़ावा देने हेतु अनुबंध खेती की पहल को बढ़ावा देना और किसानों को प्रोत्साहन प्रदान करना।
- उन्नत गुणवत्ता नियंत्रण और मानकीकरण:
- जूट उत्पादों में एक समान उत्कृष्टता बनाए रखने के लिये गुणवत्ता नियंत्रण प्रोटोकॉल को सुदृढ़ करें। जूट वस्तुओं हेतु कड़े मानक स्थापित करना और लागू करना।
- कौशल संवर्द्धन और प्रशिक्षण:
- जूट श्रमिकों को उनकी विशेषज्ञता निखारने के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ सशक्त बनाना।
- बुनाई, रंगाई और मूल्यवर्द्धित प्रक्रियाओं में कौशल निखारने पर ज़ोर दें।
- बाज़ार विस्तार:
- जूट उत्पादों के लिये अप्रयुक्त वैश्विक बाज़ारों में अग्रणी अन्वेषण की आवश्यकता है।
- बाज़ार तक पहुँच बढ़ाने के लिये जूट आधारित हस्तशिल्प और जीवन शैली की वस्तुओं को बढ़ावा देना।
- अनुसंधान एवं विकास संवर्द्धन:
- जूट से संबंधित नवाचारों को आगे बढ़ाने पर केंद्रित अनुसंधान प्रयासों के लिये संसाधन आवंटित करें।
- उद्योग के अभिकर्त्ताओं और अनुसंधान संस्थाओं के बीच सहयोगात्मक प्रयासों को प्रोत्साहित करें।
- जूट उत्पादों को बढ़ावा देना:
- जूट की पर्यावरण-अनुकूल विशेषताओं और स्थिरता पर प्रकाश डालते हुए जागरूकता अभियान शुरू करें।
- जूट उत्पादों को चुनने के गुणों के बारे में उपभोक्ताओं को शिक्षित करें।
- नीति समर्थन:
- ऐसी नीतियाँ बनाएँ जो जूट की कृषि और मूल्य संवर्द्धन को प्रोत्साहित करें।
- अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये जूट मिलों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
जूट उद्योग से संबंधित सरकारी योजनाएँ क्या हैं?
- निर्यात बाज़ार विकास सहायता (EMDA) योजना:
- राष्ट्रीय जूट बोर्ड (NJB) द्वारा शुरू किया गया EMDA कार्यक्रम, जूट उत्पादों के निर्माताओं और निर्यातकों को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मेलों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करता है। इसका उद्देश्य जीवनशैली और अन्य जूट विविध उत्पादों (JDP) के निर्यात को बढ़ावा देना है।
- जूट पैकेजिंग सामग्री (वस्तुओं की पैकिंग में अनिवार्य उपयोग) अधिनियम 1987:
- यह अधिनियम कुछ वस्तुओं की आपूर्ति और वितरण में जूट पैकेजिंग सामग्री के अनिवार्य उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने जूट वर्ष 2023-24 के लिये विविध जूट बैग में 100% खाद्यान्न और 20% चीनी की अनिवार्य पैकेजिंग को बढ़ा दिया है।
- यह अधिनियम कुछ वस्तुओं की आपूर्ति और वितरण में जूट पैकेजिंग सामग्री के अनिवार्य उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- जूट जियो-टेक्सटाइल्स (JGT):
- आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA) ने एक तकनीकी वस्त्र मिशन को मंज़ूरी दे दी है जिसमें जूट जियो-टेक्सटाइल्स शामिल है।
- JGT सबसे महत्त्वपूर्ण विविधीकृत जूट उत्पादों में से एक है। इसे सिविल इंजीनियरिंग, मृदा कटाव नियंत्रण, सड़क फुटपाथ निर्माण और नदी तटों की सुरक्षा जैसे कई क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है।
- जूट हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य:
- भारतीय जूट निगम (Jute Corporation of India- JCI) सरकार की मूल्य समर्थन एजेंसी है। जूट के लिये भारत सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के तहत कच्चे जूट की खरीद के माध्यम से जूट उत्पादकों के हितों की रक्षा करना और साथ ही जूट किसानों तथा समग्र रूप से जूट अर्थव्यवस्था के लाभ हेतु कच्चे जूट बाज़ार को स्थिर करना है।
- जूट और मेस्टा पर गोल्डन फाइबर क्रांति और प्रौद्योगिकी मिशन:
- वे भारत में जूट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये सरकार की दो पहल हैं।
- इसकी उच्च लागत के कारण, यह सिंथेटिक फाइबर और पैकिंग सामग्री, विशेष रूप से नायलॉन के लिये बाज़ार समाप्त हो रहा है।
- स्मार्ट जूट :
- यह एक ई-गवर्नेंस पहल है जिसे जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये दिसंबर 2016 में शुरू किया गया था।
- यह सरकारी एजेंसियों द्वारा जूट की खरीद के लिये एक एकीकृत मंच प्रदान करता है।
कुछ अन्य संबद्ध फाइबर:
- सनहेम्प: सनहेम्प विभिन्न अनुप्रयोगों वाली एक बहुमुखी फलीदार फसल है। यह विशेष कागज़, रस्सियाँ, सुतली, मछली पकड़ने के जाल एवं कैनवास के उत्पादन के लिये उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त, सेना रक्षा उद्देश्यों के लिये छलावरण जाल बनाने हेतु सनहेम्प का उपयोग करती है।
- रेमी: रेमी विशेष क्षमता वाला एक प्राकृतिक फाइबर है। यह अपनी मज़बूती, टिकाऊपन एवं फफूंदी तथा बैक्टीरिया के प्रति प्रतिरोध के लिये जाना जाता है। रेमी फाइबर का उपयोग कपड़ा, कागज़ निर्माण तथा औद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जाता है।
- सिसल: सिसल फाइबर एगेव पौधे से आते हैं। वे मज़बूत, टिकाऊ होते हैं, साथ ही आमतौर पर रस्सियाँ, सुतली एवं अन्य डोरियाँ बनाने के लिये उपयोग किये जाते हैं।
- सन: सन फाइबर, सन के पौधे से प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग लिनन वस्त्र, कागज़ एवं अन्य उत्पाद बनाने के लिये किया जाता है.
- नेटल फाइबर: स्टिंगिंग नेटल फाइबर पौधे के रेशे से प्राप्त किया जाता है। पीढ़ियों से लोग कपड़ा बनाने के लिये इनका उपयोग करते आए हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q.1 हाल ही में हमारे देश में हिमालयी बिच्छू-बूटी (जिरार्डीनिया डाइवर्सीफोलिया) के महत्त्व के बारे में बढ़ती हुई जागरूकता थी, क्योंकि यह पाया गया है कि (2019) (a) यह प्रति-मलेरिया औषध का संधारणीय स्रोत है उत्तर: (d) प्रश्न.2 ‘‘यह फसल उपोष्ण प्रकृति की है। उसके लिये कठोर पाला हानिकारक है। इसके विकास के लिये कम-से-कम 210 पाला-रहित दिवसाें और 50-100 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता पड़ती है। हल्की सुअपवाहित मृदा जिसमें नमी धारण करने की क्षमता है इसकी खेती के लिये आदर्श रूप से अनुकूल है।’’ यह फसल निम्नलिखित में से कौन-सी है? (2020) (a) कपास उत्तर : (a) प्रश्न 3. निचले गंगा के मैदान में वर्ष भर उच्च तापमान के साथ आर्द्र जलवायु होती है। निम्नलिखित फसलों के युग्मों में से कौन-सा एक इस क्षेत्र के लिये सबसे उपयुक्त है? (2011) (a) धान और कपास उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या करें। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है? (2017) |