COVID-19 के कारण गैर निष्पादित परिसंपत्तियों में वृद्धि | 03 Apr 2020

प्रीलिम्स के लिये:

गैर निष्पादित संपत्तियाँ, COVID-19 

मेन्स के लिये

भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के प्रभाव, COVID-19 से निपटने हेतु भारत सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश के कई बैंकों ने चिंता व्यक्त की है कि COVID-19 के कारण औद्योगिक गतिविधियों के रुकने से आने वाले दिनों में बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियों (Non-Performing Assets- NPAs)की संख्या में वृद्धि हो सकती है।

मुख्य बिंदु:  

  • एक अनुमान के अनुसार, पहले से ही बड़ी मात्रा में NPA का दबाव झेल रहे भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में लॉकडाउन के परिणामस्वरूप ऐसे लोन की संख्या बढ़ सकती है।
  • बैंकों ने चिंता व्यक्त की है कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन की समाप्ति के पश्चात भी कुछ क्षेत्रों कंपनियों के लिये सामान्य स्थिति में लौटना और पहले की तरह उत्पादन शुरू करना आसान नहीं होगा।
  • विशेषतः सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र (Micro,Small and Medium Enterprise- MSME) तथा मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर एवं ऊर्जा क्षेत्र में दिये गए लोन पर बड़ी मात्र में NPA के बढ़ने की आशंकाएँ हैं। 
  • बैंकों ने भारतीय रिज़र्व बैंक के सहयोग के बावज़ूद संवेदनशील क्षेत्र के संदर्भ में अपनी चिंताएँ सरकार के साथ साझा की हैं।
  • ध्यातव्य है कि भारत सरकार ने COVID-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये 24 मार्च, 2020 को अगले 21 दिनों के लिये देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। जिसके बाद अतिआवश्यक सेवाओं को छोड़कर देश में लगभग सभी प्रकार की गतिविधियों (यातायात, उद्योग आदि) पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था।   

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम

(Micro,Small and Medium Enterprise- MSME): 

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के उद्यमों को ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006’ के तहत दो श्रेणियों में बाँटा गया है:
    1. विनिर्माण उद्यम (Manufacturing Enterprise): 
    • सूक्ष्म (Micro): जिनकी स्थापना के लिये 25 लाख रुपए से अधिक के निवेश की आवश्यकता न हो।    
    • लघु (Small): निवेश की सीमा 25 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए के बीच।    
    • मध्यम (Medium):  निवेश की सीमा 5 से 10 करोड़ रुपए के बीच ।
      2. सेवा उद्यम (Service Enterprise): 
    • सूक्ष्म (Micro): जिनकी स्थापना के लिये आवश्यक उपकरणों में  कुल निवेश 10 लाख रुपए से अधिक न हो।    
    • लघु (Small): निवेश की सीमा 10 लाख रुपए से 2 करोड़ रुपए के बीच।    
    • मध्यम (Medium): निवेश की सीमा 2 से 5 करोड़ रुपए के बीच। 

NPA में वृद्धि के कारण:  

  • विशेषज्ञों के अनुसार, हाल के दिनों में भारतीय उत्पाद बाज़ार में लगातार घटती मांग से जूझ रहे थे, ऐसे में देशव्यापी लॉकडाउन के बाद ऐसे उद्योगों को पुनः सामान्य स्थिति में लाना एक बड़ी चुनौती होगी।
  • वर्तमान में भारत के साथ ही विश्व के कई देशों में पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन लागू है। ऐसे में वे औद्योगिक इकाइयाँ जो कच्चे माल के लिये अन्य देशों पर निर्भर है, आपूर्ति सेवा के बाधित होने से गंभीर रूप से प्रभावित होंगी।
  • लॉकडाउन के कारण MSME और असंगठित क्षेत्र में कर्मचारियों के पलायन से प्रतिबंधों के हटने के बाद भी कुछ समय तक ऐसी औद्योगिक इकाइयों में उत्पादन बाधित रहने की आशंकाएँ हैं।
  • इसके अतिरिक्त पूँजी प्रधान क्षेत्र जैसे-हवाई यातायात, अचल संपत्ति, आभूषण आदि की मांग में भी तेज़ी आने में समय लग सकता है।

प्रभाव: 

  • वित्तीय क्षेत्र के विश्लेषकों के अनुसार, शेयर बाज़ार में ‘तेज़ी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुओं’ (Fast Moving Consumer Goods-FMCG) की अपेक्षा वित्तीय क्षेत्र और बैंक शेयर को अधिक नुकसान हुआ है।
  • हाल ही में अमेरिका की रेटिंग एजेंसी ‘मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस’ (Moody's Investors Service) ने भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को स्थिर के स्थान पर नकारात्मक की श्रेणी में रखा है क्योंकि संस्था के अनुमान के अनुसार, भारतीय आर्थिक क्षेत्र में बाधाओं के कारण आने वाले दिनों में बैंकों की संपत्तियों में गिरावट देखी जा सकती है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान में भारतीय बैंकिग क्षेत्र में 44% लोन हाई रिजिलियंस (High Resilience) श्रेणी के उद्योगों जैसे-फार्मास्यूटिकल्स, दूरसंचार, उर्वरक, तेल रिफाइनरी, बिजली और गैस वितरण आदि तथा 52% लोन मोडरेट रिजिलियंस (Moderate Resilience) श्रेणी की कंपनियों जैसे-ऑटोमोबाइल निर्माता, विद्युत् उत्पादन, सड़क और निर्माण को दिया गया है।
  • मात्र 4% लोन ही लीस्ट रिजिलियंट (Least Resilient) क्षेत्र जैसे- एयरलाइंस, आभूषण संबंधी कंपनियों और रियल स्टेट (Real State) आदि को दिया गया है, जिन पर इस लॉकडाउन का सबसे अधिक प्रभाव हो सकता है।   

सरकार का पक्ष :

  • अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में इस लॉकडाउन के 21 दिनों से आगे चलने की उम्मीद नहीं है और हमें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि भारतीय अर्थव्यवस्था की तन्यकता (Resilience) बहुत अधिक है। 
  • सरकार द्वारा कंपनियों और बैंकों को ऋण लौटने की समय-सीमा में दी गई छूट से आर्थिक क्षेत्र को इस संकट से उबरने में सहायता प्राप्त होगी। 
  • इसके साथ-साथ इस चुनौती से कम-से-कम नुकसान के साथ निपटने के लिये सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट में कटौती के साथ कई अन्य प्रयास किये जा रहे हैं।    

 स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस