तमिलनाडु में विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण | 20 Apr 2024
प्रिलिम्स के लिये:सकल मूल्यवर्द्धन (GVA), विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण मॉडल, क्लस्टर विकास, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन, सेवा क्षेत्र मेन्स के लिये:औद्योगिक विकास में पूंजीपतियों के समूह की भूमिका, भारत का औद्योगिक क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र के विकास हेतु सरकारी पहल |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
तमिलनाडु का आर्थिक परिदृश्य एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है, जो अपनी कृषि बुनियादों से आगे बढ़कर एक विविध और औद्योगिक अर्थव्यवस्था को अपना रहा है।
- यह बदलाव मुख्य रूप से पूंजीपतियों के समूह और 'छोटे उद्यमियों (‘Entrepreneurs from Below)' के उद्भव के लिये ज़िम्मेदार है, जो विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में विकास को गति दे रहे हैं।
तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था कितनी विविध और औद्योगीकृत है?
- हालाँकि गुजरात के GVA (15.9%) और कार्यबल (41.8%) में कृषि की हिस्सेदारी तमिलनाडु के 12.6% और 28.9% की तुलना में अधिक है।
- राष्ट्रीय औसत की तुलना में तमिलनाडु के कृषि क्षेत्र का सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) और नियोजित श्रम बल (28.9%) में न्यूनतम भाग (12.6%) है।
- अखिल भारतीय आँकड़ों की तुलना में राज्य की अर्थव्यवस्था में उद्योग, सेवाओं और निर्माण की हिस्सेदारी अधिक है।
- तमिलनाडु की कृषि अपने आप में विविधतापूर्ण है, पशुधन उपक्षेत्र कृषि GVA में 45.3% का महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, जो सभी राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है।
- राज्य ने वस्त्र, इंजीनियरिंग, चमड़ा, खाद्य प्रसंस्करण इत्यादि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कई उद्योग क्लस्टर विकसित किये हैं।
- गुजरात तमिलनाडु की तुलना में अधिक औद्योगीकृत है, जहाँ कारखाना क्षेत्र (Factory Sector) राज्य के GVA का 43.4% उत्पन्न करता है और अपने कार्यबल का 24.6% संलग्न करता है, जबकि तमिलनाडु का क्रमशः 22.7% और 17.9% है।
- यह गुजरात की अर्थव्यवस्था को तमिलनाडु की तुलना में कम विविध और संतुलित बनाता है।
तमिलनाडु के आर्थिक परिवर्तन को किन कारकों ने प्रेरित किया है?
- विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण:
- तमिलनाडु में केवल कुछ प्रमुख व्यावसायिक संस्थाएँ हैं जिनका वार्षिक राजस्व 15,000 करोड़ रुपए से अधिक है।
- हालाँकि तमिलनाडु के आर्थिक परिवर्तन को मध्यम स्तर के व्यवसायों द्वारा संचालित किया गया है, जिनका टर्नओवर 100 करोड़ रुपए से 5,000 करोड़ रुपए तक है, जिनमें से कुछ 5,000-10,000 करोड़ रुपए के स्तर तक पहुँच गए हैं।
- औद्योगीकरण को विकेंद्रीकृत किया गया है और समूहों के विकास के माध्यम से फैलाया गया है।
- इस विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण ने अधिक विविध और संतुलित आर्थिक परिदृश्य को संभव बनाया है।
- क्लस्टर-आधारित विकास:
- क्लस्टर विकास आर्थिक विकास का एक रूप है जिसमें व्यवसायों को एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में रखना शामिल है।
- इसका लक्ष्य उत्पादकता बढ़ाना और क्षेत्रीय दक्षता को अधिकतम करना है।
- तमिलनाडु में सफल क्लस्टर के उदाहरण:
- तिरुपुर: कपास से बुना हुआ कपड़ा (800,000 लोगों को रोज़गार);
- कोयंबटूर: कताई मिलें और इंजीनियरिंग सामान;
- शिवकाशी: सुरक्षित माचिस, पटाखे, और छपाई;
- इन समूहों ने न केवल रोज़गार के अवसर उत्पन्न किये हैं बल्कि उद्यमिता और नवाचार की संस्कृति को भी बढ़ावा दिया है, जिससे राज्य के समग्र आर्थिक विकास में योगदान मिला है।
- क्लस्टर विकास आर्थिक विकास का एक रूप है जिसमें व्यवसायों को एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में रखना शामिल है।
- कृषि से परे विविधीकरण:
- क्लस्टर शहरों में रोज़गार के सृजन ने तमिलनाडु के कार्यबल की खेती पर निर्भरता कम कर दी है, जिससे कृषि से परे विविधीकरण हुआ है।
- इस परिवर्तन ने वैकल्पिक रोज़गार विकल्प प्रदान करके राज्य के आर्थिक आधार का विस्तार किया है।
- क्लस्टर शहरों में रोज़गार के सृजन ने तमिलनाडु के कार्यबल की खेती पर निर्भरता कम कर दी है, जिससे कृषि से परे विविधीकरण हुआ है।
- ज़मीनी स्तर पर उद्यमिता:
- अधिक सामान्य किसान वर्ग और प्रांतीय व्यापारिक जातियों के उद्यमियों ने राज्य के आर्थिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- इन उद्यमियों ने विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसायों का निर्माण और विस्तार किया है, जिससे तमिलनाडु के समग्र औद्योगीकरण और आर्थिक विकास में योगदान मिला है।
- विविध सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से कृषि से परे औद्योगीकरण एवं विविधीकरण प्राप्त करने में सफल रहा है।
- अधिक सामान्य किसान वर्ग और प्रांतीय व्यापारिक जातियों के उद्यमियों ने राज्य के आर्थिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- सामाजिक प्रगति सूचकांक:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा शिक्षा में निवेश के परिणामस्वरूप उच्च सामाजिक प्रगति सूचकांकों ने संभवतः कृषि से परे औद्योगीकरण एवं विविधीकरण प्राप्त करने में तमिलनाडु की सापेक्ष सफलता में योगदान दिया है।
- सामाजिक विकास पर राज्य के आर्थिक विकास के साथ-साथ परिवर्तन हेतु अनुकूल वातावरण निर्मित किया है, जिससे जीवन स्तर एवं आर्थिक अवसरों में सुधार हुआ है।
विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण मॉडल क्या है?
- परिचय:
- विकेंद्रीकरण में समाज में विभिन्न राजनीतिक तथा आर्थिक एजेंटों के मध्य शक्तियों एवं कार्यों का व्यवस्थित वितरण शामिल होता है।
- उत्पादन के साधनों के स्वामित्व के साथ-साथ स्थान, संगठन एवं निर्णय लेने का विकेंद्रीकरण सभी इसके राजनीतिक तथा आर्थिक पहलुओं में शामिल हैं।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- ग्रामीण एवं उप-शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों का विस्तार करना साथ ही शहरी केंद्रों पर निर्भरता कम करना शामिल है।
- स्थानीय उद्यमिता एवं आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने हेतु स्थानीय समुदायों के स्वामित्व वाले छोटे एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
- रोज़गार के अवसर सृजित करने के साथ ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी को कम करने हेतु श्रम-केंद्रित उत्पादन विधियों पर ज़ोर दिया गया।
- स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने तथा सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय संसाधनों एवं कौशल का उपयोग।
- विभिन्न ग्राम उद्योगों के बीच परस्पर निर्भरता एक आत्मनिर्भर आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती है।
- उत्पादन इकाइयों की विकेंद्रीकृत व्यवस्था के माध्यम से उत्पादन एवं वितरण को समान बनाना।
- लाभ:
- संतुलित क्षेत्रीय विकास को सुगम बनाता है और स्थानिक असमानताओं को कम करता है।
- ग्रामीण समुदायों को आर्थिक अवसर प्रदान करके समावेशी विकास को बढ़ावा देता है।
- विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों में विविधता लाकर आर्थिक प्रभाव के प्रति लचीलापन बढ़ाता है।
- विकास प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी एवं स्वामित्व को बढ़ावा देता है।
- स्थानीय संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के साथ पर्यावरणीय प्रभावों को कम करके सतत् विकास का समर्थन करता है।
- चुनौतियाँ:
- सीमित तकनीकी क्षमता अधिक अक्षमता का कारण बन सकती है।
- विकेंद्रीकृत मॉडल से, विशेषकर खरीद में पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के हानि के कारण लागत में वृद्धि हो सकती है।
- विकेंद्रीकृत मॉडल में कुशल श्रम सभी क्षेत्रों में समान रूप से उपलब्ध नहीं हो सकता है और साथ ही इसके परिणामस्वरूप कुछ स्थानों पर कौशल अंतराल हो सकता है।
गांधीजी की विकेंद्रीकरण की अवधारणा:
- गांधी ने समतावादी ढाँचे पर आधारित एक सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की कल्पना की, जिसमें निर्णय लेने और उत्पादन के साधनों के स्वामित्व में विकेंद्रीकरण पर बल दिया गया।
- उन्होंने खादी और ग्रामोद्योग जैसी लघु-स्तरीय, श्रम-गहन उत्पादन इकाइयों के माध्यम से ग्रामीण औद्योगीकरण को बढ़ावा देने, ग्रामीण स्तर की आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण की वकालत की।
भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये पहल
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. आर्थिक विविधीकरण और क्षेत्रीय दक्षता में विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण और क्लस्टर-आधारित विकास के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015) (a) कोयला उत्पादन उत्तर: b मेन्सप्रश्न.1 "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न.2 आमतौर पर देश कृषि से उद्योग और फिर बाद में सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |