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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डीपफेक से निपटना

  • 07 Jun 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिए:

डीपफेक टेक्नोलॉजी, डीप सिंथेसिस टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी

मेन्स के लिये:

डीपफेक टेक्नोलॉजी का प्रभाव, डीपफेक से निपटने हेतु भारत का रुख, डीपफेक से जुड़ी नैतिक चिंताएँ

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में विभिन्न समाचार स्रोतों ने डीपफेक को लेकर बढ़ती चिंता पर ध्यान केंद्रित किया है, जो डीप लर्निंग तकनीक का उपयोग करके निर्मित किये जाते हैं। 

  • जबकि डीपफेक में वास्तविकता को विकृत करने और सार्वजनिक धारणा में हेर-फेर करने की क्षमता होती है, वे विभिन्न क्षेत्रों में भी संभावना रखते हैं। इस तकनीक का उपयोग और प्रबंधन तथा समाज पर पड़ने वाला प्रभाव प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

डीपफेक टेक्नोलॉजी: 

  • परिचय:
    • डीपफेक तकनीक शक्तिशाली कंप्यूटर और शिक्षा का उपयोग करके वीडियो, छवियों, ऑडियो में हेर-फेर करने की एक विधि है। डीप लर्निंग डीप सिंथेसिस का हिस्सा है।
      • डीप सिंथेसिस को आभासी दृश्य बनाने के लिये चित्र, ऑडियो और वीडियो उत्पन्न करने के लिये शिक्षा एवं संवर्द्धित वास्तविकता सहित प्रौद्योगिकियों के उपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • इसका उपयोग फर्जी खबरें उत्पन्न करने और अन्य अवैध कामों के बीच वित्तीय धोखाधड़ी करने के लिये किया जाता है।
    • यह पहले से मौजूद वीडियो, चित्र या ऑडियो पर एक डिजिटल सम्मिश्रण द्वारा साइबर अपराधी इसकें लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
    • डीपफेक मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का लाभ उठाकर पारंपरिक फोटो एडिटिंग तकनीकों पर हावी हो जाता है।
    • डीपफेक का उपयोग मनगढ़ंत या हेर-फेर कर सामग्री बनाने के लिये किया जाता है जैसे कि राजनीतिक हस्तियों के नकली वीडियो और झूठे आपदा चित्र बनाना
  • डीप लर्निंग एप्लीकेशन का उपयोग: 
    • डीप लर्निंग ने तकनीकी प्रगति को सकारात्मक रूप से सक्षम किया है जैसे कि खोई हुई आवाज़ों को बहाल करना और ऐतिहासिक कृतियों का पुनः निर्माण करना।
    • ALS एसोसिएशन की आवाज़ प्रतिरूपण (वॉइस क्लोनिंग) पहल तथा कलाकारों एवं मशहूर हस्तियों के चित्रों का पुनः निर्माण डीप लर्निंग के संभावित लाभ हैं।
    • कलात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ाने के लिये कॉमेडी, सिनेमा, संगीत और गेमिंग में डीप लर्निंग तकनीकों को लागू किया गया है।
  • अस्थिर परिणाम और नैतिक चिंताएँ:   
    • डीपफेक को दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिये नियोजित किया गया है जिसमें अश्लील चित्र बनाना और फेशियल रिकग्निशन प्रणाली को हैक करना शामिल हैं।
    • यह मीडिया के प्रति भरोसे को कम करता हैऔर तथ्य एवं कल्पना के बीच के अंतर को अस्पष्ट करता है।
    • डीपफेक द्वारा गलत तरीके से प्रचारित सूचना को सच माना जा सकता है जिससे सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है।

डीपफेक से निपटने हेतु भारत का रुख:

  • भारत में डीपफेक तकनीक के उपयोग को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला विशिष्ट कानून या नियम नहीं हैं।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (2000) की धारा 67 और 67A जैसे मौजूदा कानूनों में ऐसे प्रावधान हैं जो डीपफेक के कुछ पहलुओं पर लागू हो सकते हैं, जैसे- मानहानि और स्पष्ट सामग्री का प्रकाशन
  • भारतीय दंड संहिता (1860) की धारा 500 मानहानि के लिये सज़ा का प्रावधान करती है।
  • यदि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (2022) पारित हो जाता है, तो इससे व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग के खिलाफ कुछ सुरक्षा प्राप्त हो सकती है लेकिन इससे डीपफेक को स्पष्ट रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
  • निजता, सामाजिक स्थिरता, राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र के लिये संभावित निहितार्थों पर विचार करते हुए भारत को विशेष रूप से डीपफेक को लक्षित करने के लिये एक व्यापक कानूनी ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता है। 

डीपफेक से निपटने के लिये अन्य देशों द्वारा किये जा रहे प्रयास:

  • यूरोपियन संघ: 
    • वर्ष 2022 में यूरोपीय संघ ने डीपफेक के माध्यम से गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिये वर्ष 2018 में शुरू की गई गलत सूचना पर अभ्यास संहिता को अद्यतित किया है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: 
    • डीपफेक तकनीक का सामना करने के लिये डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) की सहायता के लिये अमेरिका ने द्विदलीय डीपफेक टास्क फोर्स एक्ट पेश किया।
  • चीन: 
    • डीपफेक से निपटने के लिये चीन ने जनवरी 2023 से प्रभावी व्यापक विनियमन पेश किया। गलत सूचना के प्रसार को रोकने के उद्देश्य वाले इस विनियमन में स्पष्ट लेबलिंग और इस प्रकार की सामग्री का पता लगाने की क्षमता का होना आवश्यक है। इसके तहत व्यक्तियों की सहमति एवं कानूनों तथा सार्वजनिक नैतिकता का पालन अनिवार्य है। इसके लिये सेवा प्रदाताओं द्वारा समीक्षा तंत्र की स्थापना करना व अधिकारियों के साथ सहयोग करने की भी आवश्यकता है।

 आगे की राह 

  • AI-पावर्ड सोशल मीडिया फैक्ट चेकिंग: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को AI-संचालित एल्गोरिदम और उपकरणों में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करना ताकि सूचनाओं के विषय में स्वचालित रूप से पता लगाया जा सके और संभावित हेरफेर अथवा डीपफेक सामग्री को चिह्नित किया जा सके।
  • तथ्यों की जाँच करने वाले संगठनों के साथ सहयोग करना चाहिये और डीपफेक के माध्यम से झूठी सूचना के प्रसार के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने के लिये सार्वजनिक भागीदारी की शक्ति का उपयोग किये जाने की आवश्यकता है।
  • ब्लॉकचेन-आधारित डीपफेक सत्यापन: ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करके अपरिवर्तनीय रिकॉर्ड बना सकते हैं कि किसने डिजिटल विषयवस्तु तैयार की, साथ ही इसकी वैधता को सत्यापित करने में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
    • यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण व्यक्तियों को दुर्भावनापूर्ण डीपफेक के निर्माण और प्रसार को हतोत्साहित करते हुए मीडिया की उत्पत्ति एवं संशोधन इतिहास का पता लगाने की अनुमति प्रदान करता है।
  • डीपफेक प्रभाव शमन नीति: डीपफेक से प्रभावित व्यक्तियों और संगठनों की मदद हेतु फंड स्थापित करना।
  • डीपफेक जवाबदेही अधिनियम (Deepfake Accountability Act- DAA): डीपफेक से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने और उनके निर्माण, वितरण एवं नियंत्रण में जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से DAA पेश किया जा सकता है।
  • सज़ा और जन जागरूकता अभियान: कानूनों को दोषी लोगों को दंडित करना चाहिये और लोगों को उनके ऑनलाइन निजता के दुरुपयोग से बचाना चाहिये।
  • डीपफेक के प्रसार से निपटने हेतु वैज्ञानिक और डिजिटल डोमेन में जन जागरूकता तथा साक्षरता महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: द हिंदू

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