उपचारात्मक याचिका | 15 Apr 2024

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, उपचारात्मक याचिका, न्यायालय की अवमानना, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 145

मेन्स के लिये:

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की विशेष शक्तियाँ, उपचारात्मक याचिका और उसका महत्त्व।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 के अपने पुराने फैसले को परिवर्तित  करने के लिये एक उपचारात्मक याचिका के माध्यम से अपनी "असाधारण शक्तियों" का प्रयोग किया है। 

  • इस फैसले ने दिल्ली मेट्रो रेल निगम (DMRC) को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड-कंसोर्टियम के नेतृत्व वाली दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड (DAMEPL) को लगभग 8,000 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया था।  

दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड मामला, 2024 क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 2008 में DMRC ने दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस के निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिये DAMEPL के साथ भागीदारी की।
    • विवादों के कारण सुरक्षा चिंताओं और परिचालन संबंधी मुद्दों का हवाला देते हुए वर्ष 2013 में DAMEPL द्वारा समझौते को समाप्त कर दिया गया।
    • कानूनी लड़ाई शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप मध्यस्थता पैनल ने DAMEPL के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके परिणामस्वरूप DMRC को लगभग 8,000 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया। हालाँकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने DMRC को 75% राशि एस्क्रो खाते में जमा करने का निर्देश दिया। सरकार ने अपील की और वर्ष 2019 में उच्च न्यायालय के फैसले को DMRC के पक्ष में परिवर्तित कर दिया गया।
    • DAMEPL ने फिर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया, जिसने शुरुआत में वर्ष 2021 में माध्यस्थम पंचाट (Arbitral Award) को बरकरार रखा।
  • निर्णय:
    • सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले ने अपने पुराने फैसले में "मौलिक त्रुटि" का हवाला देते हुए DMRC के पक्ष में फैसला सुनाया।
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह उपचारात्मक याचिकाओं के महत्त्व पर प्रकाश डालता है, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सार्वजनिक-निजी भागीदारी हेतु कानूनी ढाँचे पर स्पष्टता प्रदान करता है साथ ही अंतिम फैसले के वर्षों बाद भी त्रुटियों को सुधारने और न्याय सुनिश्चित करने की न्यायालय की सदिच्छा (willingness) को प्रदर्शित करता है।

उपचारात्मक याचिका:

  • परिचय: जब अंतिम दोषसिद्धि के विरुद्ध समीक्षा याचिका खारिज़ होती है, उसके बाद उपचारात्मक याचिका एक कानूनी उपाय बन जाती है।
    • संवैधानिक रूप से सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय को आमतौर पर केवल समीक्षा याचिका के माध्यम से और उसके बाद भी संकीर्ण प्रक्रियात्मक आधारों पर चुनौती दी जा सकती है।
      • हालाँकि उपचारात्मक याचिका न्यायिक विफलता को सुधारने हेतु एक संयमित न्यायिक नवाचार के रूप में कार्य करती है।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य न्यायिक विफलता को रोकने के साथ-साथ कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को भी रोकना है।
  • निर्णय प्रक्रिया: उपचारात्मक याचिकाओं पर निर्णय आमतौर पर न्यायाधीशों द्वारा चैंबर में लिया जाता है, हालाँकि विशिष्ट अनुरोध पर खुले न्यायालय में सुनवाई की अनुमति दी जा सकती है।
  • कानूनी आधार: उपचारात्मक याचिकाओं को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा एवं अन्य मामले, 2002 के मामले में स्थापित किये गए थे।
  • उपचारात्मक याचिका पर विचार करने के लिये मानदंड:
    • नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन: यह प्रदर्शित किया जाना चाहिये कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है, जैसे न्यायालय द्वारा आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्त्ता को नहीं सुना जाना।
    • पूर्वाग्रह की आशंका: यदि न्यायाधीश की ओर से पूर्वाग्रह का संदेह करने के आधार हैं, जैसे कि प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करने में विफलता, तो इसे स्वीकार किया जा सकता है।
  • उपचारात्मक याचिका दायर करने के लिये दिशानिर्देश:
    • वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा प्रमाणीकरण: याचिका के साथ किसी वरिष्ठ अधिवक्ता का प्रमाणीकरण होना चाहिये, जिसमें इस पर विचार करने के लिये पर्याप्त आधारों पर प्रकाश डाला गया हो।
    • प्रारंभिक समीक्षा: इसे सबसे पहले तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों की एक पीठ में प्रसारित किया जाता है, साथ ही यदि उपलब्ध हो तो मूल निर्णय पारित करने वाले न्यायाधीशों के साथ भी।
    • सुनवाई: केवल यदि न्यायाधीशों का बहुमत इसे सुनवाई के लिये आवश्यक समझता है, तो इसे विचार के लिये सूचीबद्ध किया जाता है, अधिमानतः उसी पीठ के समक्ष जिसने प्रारंभिक निर्णय पारित किया था।
  • न्याय-मित्र की भूमिका: पीठ उपचारात्मक याचिका पर विचार के किसी भी चरण में न्याय-मित्र के रूप में सहायता के लिये एक वरिष्ठ अधिवक्ता को नियुक्त कर सकती है।
  • लागत निहितार्थ: यदि पीठ यह निर्धारित करती है कि याचिका तर्कराहित है और यह कष्टप्रद है, तो वह याचिकाकर्त्ता पर अनुकरणीय शुल्क लगा सकती है।
  • न्यायिक विवेक: सर्वोच्च न्यायालय इस बात पर ज़ोर देता है कि न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने के लिये उपचारात्मक याचिकाएँ दुर्लभ होनी चाहिये और उनकी समीक्षा सावधानीपूर्वक की जानी चाहिये।

उपचारात्मक याचिका से संबंधित अन्य मामले:

  • भारत संघ बनाम यूनियन कार्बाइड मामला (भोपाल गैस त्रासदी):
    • संघ सरकार भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिये अधिक मुआवज़े के लिये वर्ष 2010 में एक उपचारात्मक याचिका दायर की। वर्ष 2023 में 5 न्यायाधीशों की पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज़ कर दी कि पहले निर्धारित किया गया मुआवज़ा पर्याप्त था।
    • पीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उपचारात्मक याचिका पर केवल न्याय के दुरुपयोग, धोखाधड़ी, या भौतिक तथ्यों को दबाने के मामलों में ही विचार किया जा सकता है, जिनमें से कोई भी तथ्य इस मामले में मौजूद नहीं था।
  • नवनीत कौर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य मामला, 2014: 
    • इस मामले ने मृत्युदंड के मामलों में बदलाव को चिह्नित किया। मृत्युदंड पाने वाले याचिकाकर्त्ता ने उपचारात्मक याचिका के माध्यम से सफलतापूर्वक तर्क दिया कि मानसिक बीमारी और दया याचिका के लिये अनुचित रूप से विलंब सज़ा को आजीवन कारावास में बदलने का आधार बनता है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय की विशेष शक्तियाँ क्या हैं?

  • विवादों का समाधान: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच या स्वयं राज्यों के बीच कानूनी अधिकारों से जुड़े विवादों में विशेष मौलिक क्षेत्राधिकार का वर्णन करता है।
  • विवेकाधीन क्षेत्राधिकार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 136 सर्वोच्च न्यायालय को भारत में किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा दिये गए किसी भी निर्णय, डिक्री या आदेश के विरुद्ध अपील करने की विशेष अनुमति देने की शक्ति प्रदान करता है।
    • यह शक्ति सैन्य न्यायाधिकरणों और कोर्ट-मार्शल पर लागू नहीं होती है।
  • सलाहकारी क्षेत्राधिकार: संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के पास सलाहकार क्षेत्राधिकार है, जहाँ भारत के राष्ट्रपति अपनी राय के लिये विशिष्ट मामलों को न्यायालय में भेज सकते हैं।
  • अवमानना की कार्यवाही: संविधान के अनुच्छेद 129 और 142 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को अदालत की अवमानना के लिये दंडित करने का अधिकार है, जिसमें स्वत: संज्ञान या महान्यायवादी, सॉलिसिटर जनरल या किसी व्यक्ति द्वारा याचिका सहित स्वयं की अवमानना भी शामिल है।
  • समीक्षा और उपचारात्मक शक्तियाँ: 
    • अनुच्छेद 145 सर्वोच्च न्यायालय को, राष्ट्रपति की मंज़ूरी से, न्यायालय के अभ्यास और प्रक्रिया को विनियमित करने के लिये नियम बनाने का अधिकार देता है, जिसमें न्यायालय के समक्ष अभ्यास करने वाले व्यक्तियों के लिये नियम, अपील की सुनवाई, अधिकारों को लागू करना तथा अपीलों पर विचार करना शामिल है।
    • इसमें निर्णयों की समीक्षा करने, लागत निर्धारित करने, ज़मानत देने, कार्यवाही पर रोक लगाने और पूछताछ करने के नियम भी शामिल हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की सुरक्षा में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर चर्चा कीजिये, न्यायिक त्रुटियों को सुधारने में उपचारात्मक याचिकाओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है।
  2.  भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1                       
(b)  केवल 2
(c)  1 और 2 दोनों 
(d)  न तो 1 और न ही 2


मेन्स:

प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)