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COVID-19 तथा विटामिन-D की कमी

  • 06 Aug 2020
  • 14 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

COVID-19, ऑस्टियोमलेशिया,ऑस्टियोपोरोसिस, विटामिन-D

मेन्स के लिये: 

भारतीयों में विटामिन-D की कमी के कारण एवं प्रभाव, कुपोषण एवं  विटामिन-D की कमी को दूर करने के लिये सरकारी प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं द्वारा इस बात का दावा किया गया है कि विटामिन-D की कमी उन COVID-19 संक्रमित लोगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है जो उच्च जोखिम रोगों (मधुमेह, हृदय रोग, निमोनिया, मोटापा ) तथा धूम्रपान की लत से ग्रसित हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • इसका संबंध श्वसन पथ (Respiratory Tract) के संक्रमण तथा  फेफड़ों की चोट (Lung Injury) से भी संबंधित है।
  • अलग-अलग स्थान (शहरी या ग्रामीण), उम्र या लिंग के बावजूद भी भारत में एक बड़ी आबादी विटामिन-D की कमी से पीड़ित है।
    • भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है जहाँ धूप प्रचुर मात्रा में पहुँचती है तथा शरीर में विटामिन-D के निर्माण को प्रेरित/उत्तेजित करती है।
  • इंडियन जर्नल ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज़्म (Indian Journal of Endocrinology and Metabolism) के वर्ष 2017 में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, भारत के विभिन्न राज्यों के लोगों में विटामिन-D का स्तर 3.15 नैनोग्राम/मिलीलीटर से लेकर 52.9 नैनोग्राम/मिलीलीटर तक था, जो कि 30-100 नैनोग्राम/ मिलीलीटर के आवश्यक स्तर से काफी कम था। 
    • दक्षिण भारतीयों में विटामिन-D का स्तर 15.74-19.16 नैनोग्राम/मिलीलीटर के बीच देखा गया। महिलाओं में पुरुषों की तुलना में  लगातार विटामिन-D का निम्न स्तर देखा गया।
  • विटामिन-D की कमी ग्रेट ब्रिटेन में बसे भारतीय उपमहाद्वीप मूल के लोगों में भी पाई जाती है।
    • इससे इस क्षेत्र के लोगों की आनुवांशिकी तथा विटामिन-D के चयापचय के मध्य संबंध का पता चलता है।
  • राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो (National Nutrition Monitoring Bureau- NNMB) से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में भारतीय जनसंख्या में कैल्शियम का औसत स्तर  प्रति दिन 700 यूनिट से 300-400 यूनिट तक कम हो गया है।
    • मानव शरीर में प्रति दिन कैल्शियम का  सामान्य आवश्यक स्तर  800-1,000 यूनिट है,  विटामिन- D शरीर द्वारा कैल्शियम के अवशोषण में मदद करता है।
    • हड्डियों को मज़बूती प्रदान करने के लिये लिये शरीर को कैल्शियम की आवश्यकता होती है। इसके अलावा मांसपेशियों के संचालन में तथा तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क एवं शरीर के प्रत्येक हिस्से के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये भी कैल्शियम की आवश्यकता होती है।
    • यह हार्मोन एवं एंज़ाइमों को स्त्रावित करने में भी मदद करता है जो मानव शरीर में लगभग प्रत्येक कार्य को प्रभावित करते हैं।
    • भारतीयों में कैल्शियम की यह कमी इस तथ्य के विपरीत है कि भारत विश्व में प्रति दिन अधिकतम दूध का उत्पादन करने वाला देश है जो कैल्शियम का एक समृद्ध स्रोत है।

विटामिन-D 

  • विटामिन-D वसा में घुलनशील विटामिन है, जो प्राकृतिक रूप से बहुत कम खाद्य पदार्थों जैसे- वसायुक्त मछली एवं मछली के यकृत के तेल, सूअर के यकृत, पनीर एवं अंडे की जर्दी में पाया जाता है।
    • इसका स्राव शरीर की कोशिकाओं द्वारा उस समय किया जाता है जब सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणें त्वचा पर पड़ती हैं तथा विटामिन-D के संश्लेषण को प्रेरित/उत्तेजित करती हैं।
    • सूर्य का प्रकाश कोलेस्ट्रॉल-आधारित अणु में एक रासायनिक प्रतिक्रिया को प्रेरित कर इसे यकृत में कैल्सीडियोल (Calcidiol) तथा गुर्दे में कैल्सीट्रियोल (Calcitriol) में परिवर्तित करता है।
    • तकनीकी रूप से 25-OHD (25-Hydroxyvitamin D) कहे जाने वाले ये अणु शारीरिक रूप से सक्रिय होते हैं।

कार्य: 

  • विटामिन D रक्त में कैल्शियम और फॉस्फेट की पर्याप्त मात्रा को बनाए रखने में मदद करता है जो हड्डियों को कमज़ोर होने से रोकते हैं।
  • विटामिन-D के अन्य कार्यों में कोशिका वृद्धि, न्यूरोमस्कुलर, प्रतिरक्षा कार्य एवं सूजन को कम करना शामिल है।

आवश्यक मात्रा:

  • एक स्वास्थ शरीर में 30-100 नैनोग्राम/ मिलीलीटर की सीमा में 25-ओएचडी का स्तर पर्याप्त माना जाता है। 21-29 नैनोग्राम/मिलीलीटर के बीच के स्तर को अपर्याप्त माना जाता है तथा 20 नैनोग्राम/मिलीलीटर से नीचे का स्तर व्यक्ति में विटामिन-D की कमी को दर्शाता है।

प्रभाव:

  • विटामिन-D की कमी से बच्चों में रिकेट्स तथा वयस्कों में ऑस्टियोमलेशिया (हड्डियों का नरम होना) रोग हो जाता है।
  • विटामिन-D की कमी से हड्डियाँ पतली, भंगुर हो जाती है तथा इसमें अस्थिसुषिरता (ऑस्टियोपोरोसिस) की समस्या उप्तन्न हो जाती है।

भारत में पोषण:

  • भारत में आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूख, कुपोषण तथा पोषण संबंधी कमियों से ग्रस्त है।
    • छिपी हुई भूख की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब लोगों द्वारा खाए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता उनके शरीर के लिये पर्याप्त पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाती है। इस प्रकार के भोजन में उन आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसे विटामिन और खनिजों की कमी है जो उनके वृद्धि एवं विकास के लिये आवश्यक होते हैं।
  •  यूनिसेफ रिपोर्ट, एडोलेसेंट्स, डाइट्स एंड न्यूट्रिशन: ग्रोइंग विल इन  चेंजिंग वर्ल्ड, 2019 (Adolescents, Diets and Nutrition: Growing Well in a Changing World, 2019) के अनुसार भारत में 80% से अधिक किशोर छिपी हुई भूख की समस्या से ग्रसित हैं।
  • भारत के शहरी क्षेत्रों में 5 वर्ष से कम आयु के 63% बच्चे (ग्रामीण क्षेत्रों में 72%) एनीमिक (शरीर में रक्त का स्तर आवश्यक स्तर से कम होना) पाए जाते हैं तथा 55% महिलाएँ और 24% पुरुष एनीमिक पाए जाते हैं।
  • भारत में भोजन के लिये उत्पादन, खरीद और वितरण प्रणाली अभी भी खाद्य सुरक्षा के मुद्दों को हल करने में सक्षम नहीं है।
    • उदाहरण के लिये भारत में COVID-19 महामारी के समय गरीबों (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना) को दिये जा रहे भोजन में दाल एवं अनाज तो शामिल हैं लेकिन इनमें  कच्ची या पकी हुई सब्जियों की कमी है।
  • अभी भी एक संतुलित आहार लेना सभी भारतीयों के लिये संभव नहीं है।
  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी ‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड, 2020’ (State of Food Security and Nutrition in the World 2020) के अनुसार, प्रत्येक देश में खाद्य सुरक्षा और पोषण को ध्यान में रखते  हुए पोषक तत्वों से पूर्ण एक समय के भोजन की खुराक की कीमत 25 रूपए/खुराक तथा एक 'स्वस्थ आहार' की कीमत 100 रुपए/दिन है।

सरकारी पहल:

  • मध्याह्न भोजन योजना (Mid-day Meal Scheme)  गरीब स्कूल जाने वाले बच्चों में पोषण संबंधी कमियों को दूर करने में मददगार साबित हुई है।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services) के तहत आंगनवाड़ियों के माध्यम से संचालित पूर्व स्कूली बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिये पोषण कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण है।
  • सरकार, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act-NFSA) तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System-PDS) के माध्यम से समाज के गरीब वर्ग की खाद्य आवश्यकताओं को सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है।
  • वर्ष 2017-18 में शुरू किये  गए पोषण अभियान का उद्देश्य बेहतर निगरानी एवं  सामुदायिक सहयोग के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में तालमेल एवं एकरूपता स्थापित करते हुए बौनेपन, कम पोषण, एनीमिया तथा कम वजन वाले शिशुओं को संख्या को कम करना है।
  • बायोफोर्टिफिकेशन: पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा विभिन्न फसलों जैसे गाजर (मधुबन गजर), गेहूं (MACS 4028) आदि के लिये  एग्रोनोमिक पद्धति, पारंपरिक संयंत्र प्रजनन, या आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से खाद्य फसलों की पोषण गुणवत्ता में सुधार किया जा रहा है। 

सुझाव:

  • गरीबों और स्कूली बच्चों के लिये मौजूदा ‘राशन’ में विभिन्न आवश्यक पोषण तत्वों को शामिल करने के संदर्भ में केंद्र और राज्य सरकारों को पोषण विशेषज्ञों एवं संस्थानों की सलाह लेने की ज़रूरत है।
    • गरीबों या बच्चों को दिये जाने वाले भोजन में पालक एवं अन्य हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, फली, मटर, गाजर, टमाटर, आलू, दूध/दही,अंडा तथा फलों में केले इसके अलावा, ओमेगा 3 और 6 फैटी एसिड शामिल होने  चाहिये।
  • विटामिन-D और कैल्शियम के अलावा, अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों (जैसे बी कॉम्प्लेक्स विटामिन और Fe, Zn, I, Se, Zn) से पूर्ण भोजन ग़रीबों को उपलब्ध किया जाना चाहिये ताकि उनमें किसी भी संक्रमण के खिलाफ प्रतिरक्षा को विकसित किया जा सके।
  • सरकार चिकित्सक और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से परामर्श करके मुफ्त में विटामिन-D, अन्य विटामिन एवं कैल्शियम की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकती है।
    • कई भारतीय दवा कंपनियाँ इस प्रकार की दवाओं का निर्माण करती हैं। भारतीय कंपनियों द्वारा इस प्रकार की दवाओं के सप्लिमेंट्स को प्राप्त करना सरकार के 'मेक इन इंडिया' पहल के अनुरूप होगा।
  • समुद्री शैवालों का सेवन काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। समुद्री शैवाल शाकाहारी हैं तथा इनमें विटामिन, खनिज, आयोडीन तथा ओमेगा 3 फैटी एसिड प्रचुर मात्रा में विद्यमान होते हैं। चूंकि भारत में एक लंबी तटरेखा है, इसलिये ये भारतीयों के लिये एक सस्ती पोषक खुराक हो सकती है।
  • विटामिन-D की प्राप्ति के लिये स्कूल में छात्रों को प्रतिदिन 20-30 मिनट धूप में खड़ा किया जा सकता हैं तथा प्रति दिन एक घंटे के लिये शारीरिक व्यायाम और खेलने के लिये  प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, मानव शरीर के के लिये स्वस्थ भोजन एवं पोषण संबंधी आवश्यकताओं के महत्त्व के बारे में लोगों के मध्य जागरूकता आवश्यक है।

आगे की राह: 

एक स्वस्थ आबादी को विकसित करके ही COVID-19 जैसी महामारी से लड़ने के लिये प्रतिरक्षा क्षमता को विकसित किया जा सकता है। विटामिन-D एवं कैल्शियम की कमी को दूर करके ही सतत् विकास लक्ष्य-2 ( Sustainable Development Goal-SDG-2) में वर्णित भूख की समस्या को समाप्त किया जा सकता है जो सतत् विकास लक्ष्य-3 (SDG-3) अर्थात सभी के अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिये एक आवश्यक कदम है।

स्रोत: द हिंदू

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