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जैव विविधता और पर्यावरण

कृत्रिम आर्द्रभूमि

  • 09 May 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कृत्रिम आर्द्रभूमियों के लाभ, कृत्रिम आर्द्रभूमियों के प्रकार, आर्द्रभूमियाँ, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)

मेन्स के लिये:

कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ भारत के जल संकट में कैसे मदद कर सकती हैं, भारत के सतत् विकास के लिये कृत्रिम आर्द्रभूमियों का उपयोग

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

कृत्रिम आर्द्रभूमि, औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार के लिये एक अधिक सर्वव्यापी और प्राकृतिक दृष्टिकोण ने हाल ही में अधिक पारंपरिक तकनीकों के स्थान पर लोकप्रियता प्राप्त की है, जो मौजूद विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों पर नियंत्रण रखने में सक्षम नहीं हैं।

कृत्रिम आर्द्रभूमि क्या हैं?

  • परिचय:
    • कृत्रिम आर्द्रभूमि, अपशिष्ट जल उपचार के लिये आर्द्रभूमि की प्राकृतिक प्रक्रियाओं को दोहराने के लिये डिज़ाइन की गई अभियांत्रिकीय प्रणालियाँ हैं। 
    • वे जल, मिट्टी और चयनित वनस्पति द्वारा निर्मित होते हैं जो मिलकर अपशिष्ट जल को शुद्ध करते हैं।
    • इन आर्द्रभूमियों को विशेष रूप से लाभकारी सूक्ष्मजीवों और पौधों के विकास को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है जो प्रदूषकों को विघटित कर सकती हैं तथा जल की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि के प्रकार: 
    • उपसतह प्रवाह (SSF): SSF आर्द्रभूमि में, जब अपशिष्ट जल को छिद्रयुक्त माध्यम या बजरी के तल से गुज़ारा जाता है तो कार्बनिक पदार्थ सूक्ष्मजीवों द्वारा विखंडित हो जाते हैं।
    • सतह प्रवाह (SF): SF आर्द्रभूमि में सतह के ऊपर से जल प्रवाहित होता है, जो अक्सर विविध वनस्पतियों के साथ सौंदर्य की दृष्टि से सुंदर परिदृश्य निर्मित करता है।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमियों के लाभ:
    • आवश्यकता: औद्योगिक अपशिष्ट जल में शामिल प्रदूषकों के जटिल मिश्रण को आमतौर पर पारंपरिक उपचार तकनीकों, जैसे भौतिक और रासायनिक उपचार हेतु पर्याप्त रूप से संभालना मुश्किल होता है।
      • ये विधियाँ अत्यधिक महँगी, ऊर्जा-गहन हो सकती हैं तथा सभी दूषित पदार्थों का पूर्ण रूप से निष्कर्षण नहीं कर सकती हैं। यहाँ पर कृत्रिम आर्द्रभूमि जैसे अधिक व्यापक और टिकाऊ समाधानों की भूमिका सामने आती है।
    • पर्यावरणीय लाभ: वे जैवविविधता संरक्षण में योगदान करते हुए विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिये आवास के रूप में कार्य कर सकते हैं। 
      • इसके अतिरिक्त, वे बाढ़ नियंत्रण और कार्बन पृथक्करण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं, जिससे उनका पारिस्थितिक महत्त्व एवं मूल्य बढ़ सकता है।
      • कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ जल उपचार के लिये एक स्थायी समाधान हैं। इन्हें न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा ये जल शुद्धिकरण के लिये प्राकृतिक प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं।
    • लागत-प्रभावी: पारंपरिक अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों की तुलना में कृत्रिम आर्द्रभूमि का निर्माण, संचालन एवं रखरखाव कम खर्चीला होता है।
    • पोषक तत्वों का निवारण: ये नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं कार्बनिक पदार्थ जैसे प्रदूषकों का निवारण करने में सक्षम हैं।
    • भूमि पुनर्ग्रहण: इन प्रणालियों का उपयोग प्राकृतिक आर्द्रभूमि संबंधी कार्यों को बहाल करके खनन गतिविधियों से नष्ट हुई भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिये किया जा सकता है।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमियों के अनुप्रयोग:
    • नगरीय अपशिष्ट जल उपचार: कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ नगरीय अपशिष्ट जल के लिये द्वितीयक या तृतीयक उपचार स्तर हो सकती हैं, जिससे रिसाव या पुन: उपयोग से पूर्व जल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
    • चक्रवाती जल प्रबंधन: ये प्रणालियाँ चक्रवाती जल को शोधित कर सकती हैं तथा इस जल के प्राकृतिक जलमार्गों में प्रवेश करने से पूर्व प्रदूषकों और अवसादों को निष्कासित कर सकती हैं।
    • औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार: कृत्रिम आर्द्रभूमि को जल में उपस्थित प्रदूषकों के आधार पर विशिष्ट प्रकार के औद्योगिक अपशिष्ट जल के उपचार के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
    • कृषि: इनका उपयोग कृषि अपवाह के उपचार, प्रदूषण को कम करने तथा सिंचाई के लिये जल की गुणवत्ता में सुधार के लिये किया जा सकता है।

भारत में कृत्रिम आर्द्रभूमियों का उदाहरण:

  • दिल्ली में असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य आस-पास की बस्तियों से सीवेज को शुद्ध करने के लिये कृत्रिम आर्द्रभूमि का उपयोग करता है, साथ ही वनस्पतियों और जीवों के लिये एक अभयारण्य के रूप में संरक्षण भी प्रदान करता है। 
  • इसी तरह, पश्चिम बंगाल का कोलकाता ईस्ट वेटलैंड्स स्थानीय मछली पकड़ने वालों और कृषि सिंचाई में सहयोग करते हुए कोलकाता के अपशिष्ट जल का उपचार करते हैं।
  • राजस्थान में, सरिस्का टाइगर रिज़र्व ने आसपास के गाँवों के अपशिष्ट जल के उपचार के लिये कृत्रिम आर्द्रभूमि का उपयोग करते हुए एक अभिनव पहल शुरू की है।

आर्द्रभूमि और कृत्रिम आर्द्रभूमि के बीच क्या अंतर है?

विशेषता

आर्द्रभूमि

कृत्रिम आर्द्रभूमि

उत्पत्ति

प्राकृतिक रूप से घटित होने वाला पारिस्थितिक तंत्र

मानव-निर्मित 

गठन

भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं, बाढ़ या जल प्रवाह में परिवर्तन के माध्यम से समय के साथ विकसित होना।

जानबूझकर एक विशिष्ट स्थान पर निर्माण किया गया।

जल स्रोत

विविध- वर्षा, भूजल, सतही जल अपवाह।

नियंत्रित स्रोत- अपशिष्ट जल, चक्रवाती जल अपवाह, या विशिष्ट जल निकाय।

उद्देश्य

बाढ़ नियंत्रण, जल शुद्धिकरण, विविध प्रजातियों के लिये आवास जैसे विभिन्न पारिस्थितिक कार्य।

मुख्य रूप से जल उपचार (अपशिष्ट जल, चक्रवाती जल) या जीव आवास जैसे विशिष्ट उद्देश्यों के लिये  बनाया गया है।

जैवविविधता

विशिष्ट आर्द्रभूमि प्रकार के लिये  अनुकूलित पौधों, जीवों और सूक्ष्म जीवों के स्थापित।

चुने हुए पौधों की प्रजातियों का विकास, जबकि सूक्ष्मजीव समुदाय समय के साथ विकसित होते हैं।

भू-क्षेत्र

इनका आकर छोटे तालाबों से लेकर विशाल दलदलों तक हो सकता है, जो सामान्यतः बड़े क्षेत्रों को समाहित करता है।

इसे जल उपचार आवश्यकताओं के उद्देश्य से बनाया गया है, यह प्राकृतिक आर्द्रभूमि से छोटा हो सकता है।

विनियमन

अक्सर इन्हें पारिस्थितिक महत्त्व के कारण पर्यावरणीय नियमों के तहत संरक्षित किया जाता है।

स्थानीय नियमों के आधार पर निर्माण एवं संचालन के लिये अनुमति की आवश्यकता हो सकती है।

रखरखाव

स्थापना पश्चात न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

उचित कार्यप्रणाली (जल प्रवाह, पौधों का स्वास्थ्य, तलछट हटाना) सुनिश्चित करने के लिये नियमित रखरखाव की आवश्यकता है।

Ramsar_Convention

कृत्रिम आर्द्रभूमियों से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पौधों का चयन: पोषक तत्वों के अवशोषकों एवं प्रदूषकों को हटाने के लिये कृत्रिम आर्द्रभूमि में प्रभावी पौधों का चयन महत्त्वपूर्ण है, कैटेल, बुलरश और सेज जैसी प्रजातियाँ नाइट्रोजन तथा फास्फोरस को अवशोषित करने में विशेष रूप से कुशल साबित होती हैं, जबकि प्रदूषकों को नष्ट करने के लिये पौधों के लाभकारी जीवाणुओं को अवशोषित करती हैं।
  • भूमि की आवश्यकता: आर्द्रभूमि के निर्माण के लिये अत्यधिक मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है, जो शहरी क्षेत्रों में एक सीमा हो सकती है।
  • उपचार दक्षता: प्रभावी होते हुए भी, निर्मित आर्द्रभूमियाँ भारी प्रदूषित जल के लिये पारंपरिक उपचार संयंत्रों के समान शुद्धिकरण स्तर प्राप्त नहीं कर सकती हैं।
  • रखरखाव की आवश्यकताएँ: उचित कामकाज़ सुनिश्चित करने और रुकावट या मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिये नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है।
  • अन्य चुनौतियाँ: इन्हें अपनाने को बढ़ावा देने, हितधारकों के बीच जागरूकता और तकनीकी विशेषज्ञता बढ़ाने तथा उनके प्रदर्शन को अनुकूलित करने के लिये निरंतर निगरानी एवं अनुसंधान के हेतु स्पष्ट नीतियों व विनियमों की आवश्यकता है।

 आगे की राह 

  • वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियों का लाभ उठाना:
    • डिज़ाइन अनुकूलन: भारत निर्मित आर्द्रभूमि डिज़ाइन में अग्रणी जर्मनी और नीदरलैंड जैसे देशों से सीख सकता है।
      • ये राष्ट्र प्रभावशाली विशेषताओं के आधार पर ईष्टतम उपचार के लिये मुक्त जल सतहों (सतह प्रवाह) और उपसतह प्रवाह के साथ बहु-चरण प्रणालियों का उपयोग करते हैं।
    • प्रदर्शन निगरानी: अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (US Environmental Protection Agency- US EPA) स्पष्ट प्रदर्शन निगरानी प्रोटोकॉल स्थापित करने की अनुसंशा करती है।
      • उपचार दक्षता को अनुकूलित करने और संभावित मुद्दों की पहचान करने के लिये जल गुणवत्ता मापदंडों तथा आर्द्रभूमि स्वास्थ्य की नियमित निगरानी महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत में निर्मित आर्द्रभूमियों का कार्यान्वयन:
    • नीति और विनियमन: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने पूर्व निर्मित आर्द्रभूमि को एक व्यवहार्य अपशिष्ट जल उपचार विकल्प के रूप में मान्यता प्रदान की है।
      • डिज़ाइन, संचालन और रखरखाव हेतु स्पष्ट दिशानिर्देशों के साथ-साथ भविष्य की नीतिगत रूपरेखाएँ नगर पालिकाओं एवं उद्योगों द्वारा उन्हें अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं।
    • वित्तीय साधन: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships- PPPs) जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्र की खोज और इन प्रणालियों के निर्माण एवं रखरखाव के लिये सब्सिडी निवेश को आकर्षित कर सकती है तथा उन्हें विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमज़ोर समुदायों के लिये अधिक सुलभ बना सकती है।
    • प्रदर्शन परियोजनाएँ: भारत में विविध भौगोलिक एवं जलवायु क्षेत्रों में सफल प्रदर्शन परियोजनाएँ स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। 
      • यह वास्तविक वैश्विक परिदृश्यों में कृत्रिम आर्द्रभूमि की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करेगा और साथ ही भविष्य के अनुप्रयोगों हेतु मूल्यवान डेटा भी प्रदान करेगा।
    • सामुदायिक सहभागिता: स्थानीय समुदायों को कृत्रिम आर्द्रभूमि की योजना, निर्माण एवं संचालन में शामिल किया जाना चाहिये।
      • इन प्रणालियों के लाभों के बारे में जागरूकता के साथ ही स्वामित्व की भावना को बढ़ावा देना और साथ ही उनकी दीर्घकालिक सफलता भी सुनिश्चित करेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार के लिये एक स्थायी समाधान के रूप में कृत्रिम आर्द्रभूमि की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। देश में कृत्रिम आर्द्रभूमियों को बड़े पैमाने पर अपनाने से जुड़ी चुनौतियों एवं अवसरों का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा, परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. यदि अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के एक आर्द्रभूमि को 'मोंट्रेक्स रिकॉर्ड' के अंतर्गत लाया जाता है, तो इसका क्या अर्थ है? (2014)

(A) मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक स्वरूप में परिवर्तन हुआ है, हो रहा है या होने की संभावना है।
(B) जिस देश में आर्द्रभूमि स्थित है उसे आर्द्रभूमि के किनारे से पाँच किलोमीटर के भीतर किसी भी मानवीय गतिविधि को प्रतिबंधित करने के लिये एक कानून बनाना चाहिये।
(C) आर्द्रभूमि का अस्तित्व इसके आसपास रहने वाले कुछ समुदायों की सांस्कृतिक प्रथाओं एवं परंपराओं पर निर्भर करता है और इसलिये वहाँ की सांस्कृतिक विविधता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिये।
(D) इसे 'विश्व विरासत स्थल' का दर्ज़ा दिया गया है।

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. आर्द्रभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के संदर्भ में 'बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग' की रामसर संकल्पना को स्पष्ट कीजिये। भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरणों का उद्धरण दीजिये। (2018)

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