संवैधानिक (127वाँ) संशोधन विधेयक, 2021 | 06 Aug 2021
प्रिलिम्स के लिये102वाँ संविधान संशोधन, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग मेन्स के लियेराष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से संबंधित प्रावधान एवं संरचना, मराठा कोटा से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
102वें संविधान संशोधन विधेयक में कुछ प्रावधानों को स्पष्ट करने के लिये सरकार पिछड़े वर्गों की पहचान कर राज्यों की शक्ति को बहाल करने हेतु संसद में एक विधेयक लाने की योजना बना रही है।
- भारत में केंद्र और प्रत्येक राज्य द्वारा अलग-अलग ओबीसी सूचियाँ तैयार की जाती हैं। अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) ने राज्य को सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची की पहचान करने तथा घोषित करने के लिये स्पष्ट रूप से शक्ति प्रदान की।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि :
- इस वर्ष की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 102वें संवैधानिक संशोधन को बरकरार रखने के पश्चात् संशोधन की आवश्यकता बताई थी, लेकिन राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) की सिफारिशों के आधार पर यह निर्धारित करेगा कि राज्य ओबीसी सूची में कौन से समुदायों को शामिल किया जाएगा।
- वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 342 के बाद भारतीय संविधान में दो नए अनुच्छेदों 338B और 342A को जोड़ा गया।
- अनुच्छेद 338B राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना, कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 342A राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने का अधिकार प्रदान करता है। इन वर्गों को निर्दिष्ट करने के लिये वह संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श कर सकता है।
- वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 342 के बाद भारतीय संविधान में दो नए अनुच्छेदों 338B और 342A को जोड़ा गया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य में राजनीतिक रूप से शक्तिशाली मुद्दे के उद्देश्य से शुरू किये गए मराठा कोटा को रद्द कर दिया।
विधेयक के बारे में:
- यह अनुच्छेद 342A के खंड 1 और 2 में संशोधन करेगा और एक नया खंड 3 भी प्रस्तुत करेगा।
- विधेयक अनुच्छेद 366 (26c) और 338B (9) में भी संशोधन करेगा।
- इसकी परिकल्पना यह स्पष्ट करने के लिये की गई है कि राज्य OBC श्रेणी की "राज्य सूची" को उसी रूप में बनाए रख सकते हैं जैसा कि यह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पहले थी।
- अनुच्छेद 366 (26c) सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करता है।
- "राज्य सूची" को पूरी तरह से राष्ट्रपति के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा और राज्य विधानसभा द्वारा अधिसूचित किया जाएगा।
OBCs से संबंधित अन्य विकास:
- संसद में जारी वर्तमान मानसून सत्र में कुछ सांसदों ने क्रीमीलेयर को परिभाषित करने का मुद्दा उठाया है।
- इसके अलावा न्यायमूर्ति रोहिणी समिति ओबीसी कोटा के उप-वर्गीकरण और इस बात पर विचार कर रही है कि यदि कोई विशेष समुदाय या समुदायों का समूह ओबीसी कोटा से सबसे अधिक लाभान्वित हो रहा है तो विसंगतियों को कैसे दूर किया जाए।
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 से स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) मेडिकल/डेंटल के पाठ्यक्रम के लिये अखिल भारतीय कोटा (AIQ) योजना में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये 27% आरक्षण और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये 10% कोटा की घोषणा की है।
संविधान संशोधन विधेयक
- संविधान में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, संविधान संशोधन विधेयक तीन प्रकार के हो सकते हैं।
- प्रत्येक को सदन में पारित होने के लिये साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है।
- प्रत्येक को सदन में पारित होने के लिये विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है, अर्थात् किसी सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा उस सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से (अनुच्छेद 368)।
- उनके पारित होने के लिये विशेष बहुमत के साथ ही उन विधानमंडलों द्वारा पारित इस आशय के प्रस्तावों के माध्यम से आधे से कम राज्यों के विधानमंडलों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है (अनुच्छेद 368 के खंड (2) का परंतुक)।
- अनुच्छेद 368 के तहत एक संविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है और प्रत्येक सदन द्वारा विशेष बहुमत से पारित किया जाता है।
- धन विधेयक या संविधान संशोधन विधेयक पर संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है।
आगे की राह
- OBC की राज्य सूची को बनाए रखने हेतु राज्य सरकारों की शक्तियों को बनाए रखने के लिये संशोधन आवश्यक है जिसे सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्टीकरण से हटा दिया गया था।
- यदि राज्य सूची को समाप्त कर दिया जाता है तो लगभग 671 OBC समुदायों की शैक्षणिक संस्थानों और नियुक्तियों में आरक्षण तक पहुँच समाप्त हो जाती।
- इससे कुल OBC समुदायों के लगभग पाँचवें हिस्से पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- हमारे पास ऐसी केंद्रीय निगरानी (Central oversight) की व्यवस्था नही है। यह राज्यों को सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं की प्रतिक्रिया करने की अनुमति देता है जो किसी राज्य या क्षेत्र के लिये विशिष्ट हैं।
- इसके अलावा भारत में एक संघीय ढाँचा है और उस ढाँचे को बनाए रखने के लिये यह संशोधन आवश्यक था।