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वैज्ञानिक प्रकाशन से संबंधित चिंताएँ

  • 25 Jul 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वैज्ञानिक प्रकाशन, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन, ग्लोबल साउथ  से संबंधित चिंताएँ।

मेन्स के लिये:

वैज्ञानिक प्रकाशन से संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में स्वीकृत नेशनल रिसर्च फाउंडेशन को सुलभ, न्यायसंगत और वित्तीय रूप से ज़िम्मेदार वैज्ञानिक-प्रकाशन के लिये एक अग्रणी मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है।

  • अनुसंधान को संप्रेषित करना वैज्ञानिक प्रयास का एक अभिन्न अंग है। यह वैज्ञानिक समझ को आगे बढ़ाता है तथा विज्ञान तथा समाज के बीच संबंध स्थापित करता है। 

वैज्ञानिक-प्रकाशन की प्रक्रिया:

  • अकादमिक प्रकाशन: 
    • अकादमिक प्रकाशन की शुरुआत वैज्ञानिकों द्वारा पत्रिकाओं में अपने शोध निष्कर्ष प्रस्तुत करने से होती है।
    • इन पांडुलिपियों को सहकर्मी समीक्षा से गुज़रना पड़ता है, जहाँ विशेषज्ञ कठोर तथा मान्य शोध सुनिश्चित करने के लिये स्वैच्छिक टिप्पणियाँ प्रदान करते हैं।
    • स्वीकृति के पश्चात् पत्रों को या तो ऑनलाइन या प्रिंट के माध्यम से प्रकाशित किया जाता है, जिससे शोध व्यापक समुदाय के लिये सुलभ हो जाता है।
  • मॉडल पढ़ने के लिये भुगतान: 
    • पारंपरिक अकादमिक प्रकाशन 'पढ़ने के लिये भुगतान', मॉडल पर निर्भर करता है, जहाँ पुस्तकालय तथा संस्थान प्रकाशित शोध तक पहुँचने के लिये शुल्क का भुगतान करते हैं।
    • यह प्रणाली वैज्ञानिक सामग्री तक पहुँच को प्रतिबंधित करती है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में जहांँ संस्थानों को सदस्यता शुल्क वहन करने के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है।
  • पे टू पब्लिश मॉडल:
    • यह गोल्ड ओपन-एक्सेस मॉडल है जहाँ लेखक अपने काम को ऑनलाइन मुफ्त में उपलब्ध कराने के लिये आर्टिकल प्रोसेसिंग चार्ज (APC) का भुगतान करते हैं। 
      • हालाँकि यह ओपन-एक्सेस को बढ़ावा देता है। इसने शोधकर्ताओं के लिये वित्तीय निहितार्थों के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। 

भारत में वैज्ञानिक प्रकाशन से संबंधित मुद्दे: 

  • सार्वजनिक धन से लाभ:
    • अकादमिक प्रकाशन एक आकर्षक उद्योग है जिसका विश्व भर में राजस्व 19 बिलियन अमेरिकी डॉलर और व्यापक लाभ मार्जिन 40% तक है।
    • मुद्दा इस तथ्य में निहित है कि यह लाभ सार्वजनिक धन से प्राप्त होता है लेकिन ये कुछ चुनिंदा कंपनियों की ओर निर्देशित होते हैं, जबकि अकादमिक वैज्ञानिक अनुसंधान का उद्देश्य एक गैर-लाभकारी प्रयास है।
    • भारत की अनुसंधान निधि में मामूली वृद्धि और ठहराव देखा गया है जिससे गोल्ड ओपन-एक्सेस (OA) पत्रिकाओं की उच्च APC वैज्ञानिकों के लिये एक चुनौती बन गई है।
      • गोल्ड OA एक प्रकार का ओपन-एक्सेस प्रकाशन मॉडल है जो बिना किसी सदस्यता या भुगतान बाधाओं के शोधकर्ताओं के ऑनलाइन लेखों तक अप्रतिबंधित और तत्काल पहुँच की अनुमति देता है।
  • प्रिडेटरी प्रकाशन (Predatory Publishing):  
    • भारत को प्रिडेटरी प्रकाशन की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। प्रिडेटरी  पत्रिकाएँ पर्याप्त सहकर्मी समीक्षा और संपादकीय सेवाएँ प्रदान किये बिना "भुगतान-से-प्रकाशन" मॉडल का फायदा उठाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप निम्न-गुणवत्ता वाले प्रकाशन किये जाते हैं जो भारतीय अनुसंधान की विश्वसनीयता को कमज़ोर कर सकते हैं। 
  • खुली पहुँच का अभाव:
    • दस्यता-आधारित मॉडल या महँगे पेवॉल (Paywalls) के कारण वैज्ञानिक शोध पत्रों तक पहुँच अधिकतर प्रतिबंधित रहती है।
    • इससे शोधकर्ताओं के बीच ज्ञान के प्रसार और सहयोग में बाधा आती है।
  • साहित्यिक चोरी और नैतिकता:
    • कुछ शोधकर्ता, विभिन्न कारणों से साहित्यिक चोरी या अन्य अनैतिक प्रथाओं का सहारा लेते हैं, जो भारतीय शोध प्रकाशनों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को नष्ट कर सकते हैं।
  • फंडिंग संबंधी बाधाएँ: 
    • अनुसंधान और प्रकाशन के लिये सीमित फंडिंग और संसाधनों से प्रकाशन लागत को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें ओपन-एक्सेस (Open-Access ) पत्रिकाओं के लिये लेख प्रसंस्करण शुल्क भी शामिल है।
  • अनुसंधान मूल्यांकन:
    • शोध की गुणवत्ता के माप के रूप में पत्रिकाओं के  प्रभाव कारक पर अत्यधिक ज़ोर दिया गया है, जो शोधकर्ताओं को उनके काम की प्रासंगिकता या योगदान पर विचार किये बिना उच्च प्रभाव वाली पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।

लागत का समाधान:

  • सरकार 'वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन' जैसे विकल्प तलाश रही है, जो एक निश्चित लागत पर विद्वत्तापूर्ण प्रकाशनों तक पहुँच प्रदान करता है लेकिन वाणिज्यिक प्रकाशकों के एकाधिकार को बढ़ा सकता है।
  • एक अन्य दृष्टिकोण पेशेवरों द्वारा प्रबंधित एक स्वतंत्र रूप से सुलभ और उच्च गुणवत्ता वाले ऑनलाइन रिपॉजिटरी की स्थापना करके खुली पहुँच से मुक्त प्रकाशन की ओर स्थानांतरित करना है।  
    • यह रिपॉजिटरी अकादमिक अनुसंधान मूल्यांकन के लिये संख्यात्मक मेट्रिक्स से हटकर, विशेषज्ञों और जनता की समीक्षाओं के साथ निरंतर मूल्यांकन तथा जुड़ाव की अनुमति देता है।

निष्कर्ष:

  • भारत अकादमिक प्रकाशन पर पुनर्विचार करने के अपने प्रयास से अनुसंधान तक समान पहुँच को प्राथमिकता देकर विश्व का नेतृत्व कर सकता है।
  • नवोन्मेषी मॉडल लागू करके और नव स्वीकृत राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन का लाभ उठाकर भारत सुलभ एवं परिवर्तनकारी अनुसंधान प्रकाशन की दिशा में प्रगति कर सकता है, जिससे न केवल वैज्ञानिक समुदाय बल्कि बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा।

स्रोत: द हिंदू

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