पुराने तापीय विद्युत संयंत्रों को बंद करने का सुझाव | 07 Sep 2020
प्रिलिम्स के लिये:स्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम, उदय योजना मेन्स के लिये:भारतीय विद्युत क्षेत्र की चुनौतियाँ, नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़ी संभावनाएँ और लाभ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में क्लाइमेट रिसर्च होराइज़न (Climate Research Horizon) नामक शोध संस्थान द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के 11 राज्यों में 20 वर्ष से पुराने तापीय विद्युत संयंत्रों को बंद करने से सरकार को अगले पाँच वर्षों में 53,000 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है।
प्रमुख बिंदु:
- शोधकर्ताओं के अनुसार, पुराने संयंत्रों बंद करने से सरकार को दो तरीके से लाभ होगा-
- पुराने तापीय विद्युत संयंत्रों से उत्सर्जन कम करने के लिये मरम्मत और अतिरिक्त उपकरण के खर्च से मुक्ति
- नवीकरणीय ऊर्जा विकल्पों की कम लागत से होने वाली बचत।
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में COVID-19 महामारी के दौरान विद्युत मांग में आई गिरावट के बीच पुराने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को बंद करने और निर्माणाधीन संयंत्रों के निर्माण कार्य को रोक कर 1.45 लाख करोड़ रुपए की बचत की जा सकती है।
- COVID-19 महामारी के कारण विद्युत मांग में गिरावट और राजस्व उगाही से जुड़ी समस्याओं के कारण विद्युत वितरण कंपनियों का बकाया बढ़कर 114,733 करोड़ रुपये हो गया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, विद्युत वितरण कंपनियों की वित्तीय चुनौतियों को दूर करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा उदय योजना (Ujwal Discom Assurance Yojana- UDAY) जैसे प्रयासों के बाद भी उनकी स्थिति और अधिक बिगड़ती गई है।
- गौरतलब है कि वर्तमान में भारत में कुल उत्पादित विद्युत का लगभग 53% कोयला आधारित संयंत्रों से ही आता है।
- इस विश्लेषण में 11 राज्यों (आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) को शामिल किया गया था।
- गौरतलब है कि पूरे देश में विद्युत वितरण कंपनियों या डिस्कॉम (Discom) द्वारा कुल बकाया राशि का लगभग आधा इन्हीं 11 राज्यों से है।
विद्युत् क्षेत्र की वर्तमान समस्याएँ:
- वित्तीय चुनौती:
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वर्तमान में देश में अधिशेष विद्युत् उत्पादन क्षमता होने के बावज़ूद भी कई डिस्कॉम वित्तीय चुनौतियों से जूझ रहीं हैं।
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विद्युत वितरण कंपनियों को पूर्व निर्धारित अतार्किक दरों पर अपनी सेवाएँ देनी पड़ती है।
- विद्युत वितरण कंपनियों के लिये अपने ग्राहकों के एक विशेष वर्ग को कम दरों या मुफ्त में विद्युत् आपूर्ति की अनिवार्यता कंपनियों की प्रगति के लिये एक बड़ी बाधा रही है।
- वित्तीय कमी के कारण कई सरकारी संस्थाओं से विद्युत कंपनियों को भुगतान में देरी इस समस्या को और बढ़ा देती है।
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- बिजली चोरी :
- हाल के वर्षों में देश के सभी हिस्सों में विद्युत मीटर अनिवार्य किये जाने पर विशेष ध्यान दिया गया है परंतु अभी भी बड़े पैमाने पर बिजली की चोरी और कृषि के लिये मुफ्त बिजली से जुड़ी योजनाएँ आदि विद्युत् क्षेत्र के आर्थिक नुकसान का एक बड़ा कारण हैं।
विद्युत क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव:
- COVID-19 महामारी और इसके प्रसार को रोकने के लिये लागू लॉकडाउन के कारण औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने से देश भर में विद्युत की मांग में भारी गिरावट देखी गई है।
आवश्यकता से अधिक ऊर्जा उत्पादन:
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, कई राज्यों में अनुमान के आधार पर विद्युत् संयंत्रों की स्थापना की गई है, जो उनकी वास्तविक आवश्यकता से बहुत अधिक है।
- अधिशेष विद्युत उत्पादन के कारण कई संयंत्रों को ‘संयंत्र भार घटक’ (Plant Load Factor- PLF) से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग 66,000 मेगावाट क्षमता के तापीय विद्युत संयंत्रों की स्थापना का कार्य चल रहा है।
- वहीं 29,000 मेगावाट क्षमता के विद्युत संयंत्रों की स्थापना प्रस्ताव/अनुमति के चरण पर है।
सुझाव:
- पुराने तापीय विद्युत संयंत्रों को बंद करने की प्रक्रिया तेज़ करना।
- कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के नए प्रस्ताव या शुरूआती चरण के संयत्रों का निर्माण स्थगित करना।
- मध्यस्थता और बातचीत के माध्यम से डिस्कॉम के लिये निश्चित लागत दायित्त्वों को कम करना।
- कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों की विद्युत मांग को पूरा करने के लिये सामुदायिक सौर फीडरों की स्थापना को बढ़ावा देना।
लाभ:
- वर्तमान में कोयला आधारित विद्युत् परियोजनाओं की औसत लागत 4 रुपए प्रति यूनिट है और आमतौर पर इसमें वृद्धि देखने को मिलती है।
- जबकि नए सौर ऊर्जा संयंत्रों की बोली 3 रुपए प्रति यूनिट से भी कम ही रही है।
- साथ ही इससे हानिकारक गैसों के उत्सर्जन की समस्या को भी नियंत्रित करने में सहायता प्राप्त होगी।
सरकार के प्रयास:
- केंद्र सरकार द्वारा विद्युत वितरण कंपनियों को अपना बकाया चुकाने के लिये 1 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज जारी करने की तैयारी की जा रही है।
- फरवरी 2020 में वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट भाषण के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री ने ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ (National Clean Air Programme-NCAP) के मापदंडों को पूरा न करने वाले पुराने और प्रदूषणकारी विद्युत् संयंत्रों को बंद करने का सुझाव दिया था।
- केंद्र सरकार द्वारा COVID-19 महामारी के दौरान ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के लिये 90 हजार करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की गई।
- द्वारा जून, 2020 में विद्युत् मंत्रालय द्वारा वास्तविक समय में विद्युत् खरीद के लिये ‘रियल टाइम इलेक्ट्रिसिटी मार्केट’ (Real Time Electricity Market-RTEM) की शुरुआत की गई।
चुनौतियाँ:
- रिपोर्ट के अनुसार, विद्युत् संयंत्रों को बंद करने से कुछ अल्पकालिक नुकसान (जैसे- करदाताओं की आय की क्षति, सरकारी संयंत्रों को उम्मीद से पहले बंद करना आदि) का सामना करना पड़ सकता है।
- परंतु इस कदम से उपभोक्ताओं और विद्युत वितरण कंपनियों को होने वाली बचत पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।
- वर्तमान में देश की कुल ऊर्जा ज़रुरत को पूरा करने के लिये आवश्यक नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों के विकास में बहुत समय और धन लग सकता है, साथ ही सौर ऊर्जा संयंत्रों से प्राप्त विद्युत का सुरक्षित भंडारण भी एक बड़ी चुनौती है।
आगे की राह:
- वर्तमान में कृषि और घरेलू क्षेत्र में बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने और ऊर्जा स्त्रोत के विकेंद्रीकरण के लिये सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- विद्युत वितरण कंपनियों के बकाया धन की समस्या के साथ इस क्षेत्र के सतत विकास के लिये निश्चित देय राशि के स्थान पर अनुबंध और अन्य वित्तीय सुधारों पर विचार किया जाना चाहिये।
- विद्युत उत्पादन में नवीन किफायती तकनीकों को अपनाने के साथ इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिये निज़ी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- क्रॉस सब्सिडी जैसी समस्याओं को दूर करने के लिये ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ (DBT) और ‘स्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम’ (Smart Meter National Programme-SMNP) जैसे प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।