कास पठार में जलवायु परिवर्तन | 17 Jul 2023
प्रिलिम्स के लिये:कास पठार में जलवायु परिवर्तन, होलोसीन युग, दक्षिण-पश्चिम मानसून, राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान केंद्र, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) विश्व विरासत मेन्स के लिये:कास पठार में जलवायु परिवर्तन |
चर्चा में क्यों?
अगरकर अनुसंधान संस्थान (Agharkar Research Institute- ARI) और राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान केंद्र द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन ने प्रारंभिक-मध्य-होलोसीन एवं उत्तर होलोसीन काल के दौरान कास पठार में महत्त्वपूर्ण जलवायु परिवर्तनों पर प्रकाश डाला है।
- शोधकर्त्ताओं ने कास पठार की पूर्व जलवायु स्थितियों को समझने और अध्ययन के लिये एक मौसमी झील के तलछट का अध्ययन किया है।
कास पठार:
- महाराष्ट्र के सतारा ज़िले में स्थित कास पठार यूनेस्को विश्व प्राकृतिक विरासत स्थल के साथ एक निर्दिष्ट जैवविविधता हॉटस्पॉट भी है।
- इसे मराठी में कास पत्थर के नाम से जाना जाता है, इसका नाम कासा वृक्ष से लिया गया है जिसे वानस्पतिक रूप से एलेओकार्पस ग्लैंडुलोसस (रुद्राक्ष परिवार) के रूप में जाना जाता है।
- अगस्त और सितंबर के महीनों के दौरान यह पठार विभिन्न मौसमी फूलों से ढका रहता है, जो विभिन्न रंगों के कालीन जैसा दिखता है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:
- प्राचीन झील एवं पर्यावरण संरक्षण:
- प्रारंभिक-मध्य-होलोसीन या लगभग 8000 वर्ष पूर्व का युग वह समय है जब कास पठार के वर्तमान "फ्लावर वंडर" का निर्माण हुआ था।
- मौसमी झील को लंबे समय के लिये संरक्षित किया गया है तथा यह क्षेत्र की विगत जलवायु के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
- प्रारंभिक-मध्य-होलोसीन के दौरान जलवायु परिवर्तन:
- लगभग 8664 वर्ष पहले की जलवायु में कम वर्षा के साथ मीठे जल से लेकर शुष्क परिस्थितियों में परिवर्तन हुआ था।
- पॉलेन और डायटम डेटा ने इस दौरान भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून गतिविधि में एक बड़े बदलाव का संकेत दिया था।
- शुष्क परिस्थितियों के बावजूद डायटम की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि से पता चलता है कि रुक-रुक कर आर्द्र अवधि होती थी।
- लेट होलोसीन जलवायु परिवर्तन:
- लगभग 2827 वर्ष पहले लेट होलोसीन के दौरान वर्षा में कमी आई थी तथा दक्षिण-पश्चिम मानसून कमज़ोर हो गया था।
- हालिया पर्यावरणीय प्रभाव:
- पिछले 1000 वर्षों में प्लैंकटोनिक और प्रदूषण-सहिष्णु डायटम टैक्सा की उच्च संख्या की उपस्थिति से संकेत से झील के सुपोषण के प्रमाण मिले हैं।
- सुपोषण किसी जल निकाय का खनिजों और पोषक तत्त्वों से अत्यधिक समृद्ध होने की प्रक्रिया है जो शैवाल की अत्यधिक वृद्धि को प्रेरित करती है, जिससे जल निकायों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
- जलग्रहण क्षेत्र में कृषीय और मवेशी/पशुधन खेती सहित मानवीय गतिविधियों का इस पर्यावरणीय प्रभाव में योगदान रहा है।
- मानसून की तीव्रता और अवधि:
- लगभग 8000 वर्ष पहले प्रारंभिक होलोसीन/अभिनव युग के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की तीव्रता काफी अधिक थी।
- लगभग 2000 वर्ष पहले पूर्वोत्तर मानसून अपेक्षाकृत क्षीण हो गया था।
- यह संभावना है कि कास पठार का 'फ्लावर वंडर' मार्च-अप्रैल तक लंबी अवधि के लिये अस्तित्व में था, प्रारंभिक-मध्य-होलोसीन (8000-5000 वर्ष) के दौरान मानसूनी वर्षा प्रचुर मात्रा में यानी 100 से भी अधिक दिनों तक होती थी।